राम चतुर मल्लिक: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "फिल्म" to "फ़िल्म") |
||
Line 9: | Line 9: | ||
*1976 में फ्राँस सरकार ने इनके ध्रुपद धमार के रिकार्ड को यूनेस्को प्रसारण के लिए चुना। | *1976 में फ्राँस सरकार ने इनके ध्रुपद धमार के रिकार्ड को यूनेस्को प्रसारण के लिए चुना। | ||
*[[मध्य प्रदेश]] सरकार ने इन्हें 'तानसेन' की उपाधि, बिहार सरकार ने महामहोपाध्याय की उपाधि, और खेरागढ़ (म.प्र.) ने इन्हें डी लिट् की उपाधि दी। | *[[मध्य प्रदेश]] सरकार ने इन्हें 'तानसेन' की उपाधि, बिहार सरकार ने महामहोपाध्याय की उपाधि, और खेरागढ़ (म.प्र.) ने इन्हें डी लिट् की उपाधि दी। | ||
*फ्राँस के कुछ संगीत प्रेमी इनकी वीडियों रिकार्डिंग ले गये। जिस पर उन्होंने एक | *फ्राँस के कुछ संगीत प्रेमी इनकी वीडियों रिकार्डिंग ले गये। जिस पर उन्होंने एक टैलीफ़िल्म तैयार की। फ्राँस, जर्मनी तथा कालम्बिया ने इनके दो रिकार्ड भी जारी किए। | ||
* ये ध्रुपद, [[खयाल]], ठुमरी और मैथिली लोकगीतों के अनुपम गायक थे। | * ये ध्रुपद, [[खयाल]], ठुमरी और मैथिली लोकगीतों के अनुपम गायक थे। | ||
Revision as of 14:45, 21 April 2011
- बिहार के दरभंगा ज़िले के अमता गाँव में जन्मे पंडित राम चतुर मल्लिक (जन्म- 5 अक्टूबर, 1902 - मृत्यु 11 जनवरी, 1990) ने ध्रुपद-धमार शैली के गायक थे। इन्होंने ध्रुपद-धमार की गायन शैली में देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी भारत का नाम रोशन किया है।
- पिता पंडित राजित राम (दरभंगा महाराज के दरबार में संगीतज्ञ थे) और चाचा क्षितिजपाल मल्लिक से और बाद में सितार वादक रामेश्वर पाठक से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली।
- दरभंगा महाराज ने 1924 में इन्हें राज दरबारी नियुक्त किया। महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह के अनुज विश्वेश्वर सिंह के साथ 1937 में इंग्लैंण्ड और फ्राँस गए और वहाँ अपने शास्त्रीय संगीत से श्रोताओं को मुग्ध किया।
- वे मोनिया परम्परा और गौंडवानी के प्रतिनिधि गायक थे। उन्हें ठुमरी गायन में बनारस और गया की गायकी में समान दक्षता प्राप्त थी।
- 1949 में आकाशवाणी के प्रथम श्रेणी के विशिष्ट कलाकार के रूप में सम्मानित किए गए।
- 1953 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इन्हें बिहार संगीत नाटक अकादमी की फेलोशिप प्रदान की।
- 1957 में बम्बई की 'सुर-श्रृंगार' संसद के द्वारा मानपत्र और ताम्रपत्र प्रदान किया गया।
- 1964 में बिहार के राज्यपाल ए. एस. आयंगार ने ताम्रपत्र की उपाधि से विभूषित किया। उसी वर्ष संगीता नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
- 1976 में फ्राँस सरकार ने इनके ध्रुपद धमार के रिकार्ड को यूनेस्को प्रसारण के लिए चुना।
- मध्य प्रदेश सरकार ने इन्हें 'तानसेन' की उपाधि, बिहार सरकार ने महामहोपाध्याय की उपाधि, और खेरागढ़ (म.प्र.) ने इन्हें डी लिट् की उपाधि दी।
- फ्राँस के कुछ संगीत प्रेमी इनकी वीडियों रिकार्डिंग ले गये। जिस पर उन्होंने एक टैलीफ़िल्म तैयार की। फ्राँस, जर्मनी तथा कालम्बिया ने इनके दो रिकार्ड भी जारी किए।
- ये ध्रुपद, खयाल, ठुमरी और मैथिली लोकगीतों के अनुपम गायक थे।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ