बेगम हज़रत महल: Difference between revisions
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[[लखनऊ]] में 1857 की क्रांति का नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था। अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर उन्होंने अंग्रेज़ी सेना का स्वयं मुक़ाबला किया। उनमें संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी और इसी कारण अवध के ज़मींदार, किसान और सैनिक उनके नेतृत्व में आगे बढ़ते रहे। आलमबाग़ की लड़ाई के दौरान अपने जांबाज सिपाहियों की उन्होंने भरपूर हौसला आफज़ाई की और [[हाथी]] पर सवार होकर अपने सैनिकों के साथ दिन-रात युद्ध करती रहीं। लखनऊ में पराजय के बाद वह अवध के देहातों में चली गईं और वहाँ भी क्रांति की चिंगारी सुलगाई। | [[लखनऊ]] में 1857 की क्रांति का नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था। अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर उन्होंने अंग्रेज़ी सेना का स्वयं मुक़ाबला किया। उनमें संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी और इसी कारण अवध के ज़मींदार, किसान और सैनिक उनके नेतृत्व में आगे बढ़ते रहे। आलमबाग़ की लड़ाई के दौरान अपने जांबाज सिपाहियों की उन्होंने भरपूर हौसला आफज़ाई की और [[हाथी]] पर सवार होकर अपने सैनिकों के साथ दिन-रात युद्ध करती रहीं। लखनऊ में पराजय के बाद वह अवध के देहातों में चली गईं और वहाँ भी क्रांति की चिंगारी सुलगाई। | ||
बेगम हज़रत महल और [[रानी लक्ष्मीबाई]] के सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। लखनऊ में बेगम हज़रत महल की महिला सैनिक दल का नेतृत्व रहीमी के हाथों में था, जिसने फ़ौजी भेष अपनाकर तमाम महिलाओं को तोप और बन्दूक चलाना सिखाया। रहीमी की अगुवाई में इन महिलाओं ने अंग्रेज़ों से जमकर लोहा लिया। लखनऊ की तवायफ हैदरीबाई के यहाँ तमाम अंग्रेज़ | बेगम हज़रत महल और [[रानी लक्ष्मीबाई]] के सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। लखनऊ में बेगम हज़रत महल की महिला सैनिक दल का नेतृत्व रहीमी के हाथों में था, जिसने फ़ौजी भेष अपनाकर तमाम महिलाओं को तोप और बन्दूक चलाना सिखाया। रहीमी की अगुवाई में इन महिलाओं ने अंग्रेज़ों से जमकर लोहा लिया। लखनऊ की तवायफ हैदरीबाई के यहाँ तमाम अंग्रेज़ अफ़सर आते थे और कई बार क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ योजनाओं पर बात किया करते थे। हैदरीबाई ने पेशे से परे अपनी देशभक्ति का परिचय देते हुये इन महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को क्रांतिकारियों तक पहुँचाया और बाद में वह भी रहीमी के सैनिक दल में शामिल हो गयी। | ||
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Revision as of 07:57, 8 July 2011
thumb|बेगम हज़रत महल
Begum Hazrat Mahal
लखनऊ में 1857 की क्रांति का नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था। अपने नाबालिग पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बिठाकर उन्होंने अंग्रेज़ी सेना का स्वयं मुक़ाबला किया। उनमें संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी और इसी कारण अवध के ज़मींदार, किसान और सैनिक उनके नेतृत्व में आगे बढ़ते रहे। आलमबाग़ की लड़ाई के दौरान अपने जांबाज सिपाहियों की उन्होंने भरपूर हौसला आफज़ाई की और हाथी पर सवार होकर अपने सैनिकों के साथ दिन-रात युद्ध करती रहीं। लखनऊ में पराजय के बाद वह अवध के देहातों में चली गईं और वहाँ भी क्रांति की चिंगारी सुलगाई।
बेगम हज़रत महल और रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। लखनऊ में बेगम हज़रत महल की महिला सैनिक दल का नेतृत्व रहीमी के हाथों में था, जिसने फ़ौजी भेष अपनाकर तमाम महिलाओं को तोप और बन्दूक चलाना सिखाया। रहीमी की अगुवाई में इन महिलाओं ने अंग्रेज़ों से जमकर लोहा लिया। लखनऊ की तवायफ हैदरीबाई के यहाँ तमाम अंग्रेज़ अफ़सर आते थे और कई बार क्रांतिकारियों के ख़िलाफ़ योजनाओं पर बात किया करते थे। हैदरीबाई ने पेशे से परे अपनी देशभक्ति का परिचय देते हुये इन महत्त्वपूर्ण सूचनाओं को क्रांतिकारियों तक पहुँचाया और बाद में वह भी रहीमी के सैनिक दल में शामिल हो गयी।
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