User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 13: | Line 13: | ||
-[[झारखण्ड]] | -[[झारखण्ड]] | ||
-[[पश्चिम बंगाल]] | -[[पश्चिम बंगाल]] | ||
||[[चित्र:Chhau-Dance.jpg|120px|right|छाऊ नृत्य]][[लोक नृत्य]] में [[छाऊ | ||[[चित्र:Chhau-Dance.jpg|120px|right|छाऊ नृत्य]][[लोक नृत्य]] में [[छाऊ नृत्य]] रहस्यमय उद्भव वाला है। छाऊ नर्तक अपनी आंतरिक भावनाओं व विषय वस्तु को, शरीर के आरोह-अवरोह, मोड़-तोड़, संचलन व गत्यात्मक संकेतों द्वारा व्यक्त करता है। 'छाऊ' शब्द की अलग-अलग विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न व्याख्या की गई है। छाऊ नृत्य की तीन विधाएँ मौजूद हैं, जो तीन अलग-अलग क्षेत्रों- 'सेराईकेला' ([[बिहार]]), 'पुरूलिया' ([[पश्चिम बंगाल]]) और 'मयूरभंज' ([[उड़ीसा]]) से शरू हुई हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[उड़ीसा]] | ||
{प्रसिद्ध गायिका पीनाज मसानी किस गायिकी से सम्बंधित हैं? | {प्रसिद्ध गायिका पीनाज मसानी किस गायिकी से सम्बंधित हैं? | ||
Line 51: | Line 51: | ||
-[[मध्य प्रदेश]] | -[[मध्य प्रदेश]] | ||
-[[पश्चिम बंगाल]] | -[[पश्चिम बंगाल]] | ||
||[[चित्र:Vaidyanath-Temple.jpg|120px|right|वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर]]झारखण्ड के अधिकांश जनजातीय गाँवों में एक नृत्यस्थली होती है। प्रत्येक गाँव का अपना पवित्र वृक्ष (सरना) होता है, जहाँ गाँव के [[पुरोहित]] द्वारा [[पूजा]] अर्पित की जाती है। साप्ताहिक हाट जनजातीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जनजातीय त्योहार, जैसे- 'सरहुल', 'बसंतोत्सव' (सोहरी) और 'शीतोत्सव' (माघ परब) आदि उल्लास के अवसर हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[झारखण्ड]] | ||[[चित्र:Vaidyanath-Temple.jpg|120px|right|वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर]][[झारखण्ड]] के अधिकांश जनजातीय गाँवों में एक नृत्यस्थली होती है। प्रत्येक गाँव का अपना पवित्र वृक्ष (सरना) होता है, जहाँ गाँव के [[पुरोहित]] द्वारा [[पूजा]] अर्पित की जाती है। साप्ताहिक हाट जनजातीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जनजातीय त्योहार, जैसे- 'सरहुल', 'बसंतोत्सव' (सोहरी) और 'शीतोत्सव' (माघ परब) आदि उल्लास के अवसर हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[झारखण्ड]] | ||
{[[दुमका]] का 'हिजला मेला' किस नदी के किनारे आयोजित होता है? | {[[दुमका]] का 'हिजला मेला' किस नदी के किनारे आयोजित होता है? | ||
Line 119: | Line 119: | ||
-[[गुरु अर्जुन देव]] | -[[गुरु अर्जुन देव]] | ||
+[[गुरु गोविन्द सिंह]] | +[[गुरु गोविन्द सिंह]] | ||
||[[चित्र:Guru Gobind Singh.jpg|right| | ||[[चित्र:Guru Gobind Singh.jpg|right|100px|गुरु गोविन्द सिंह]]गुरु गोविन्द सिंह सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरु माने जाते हैं। इन्होंने युद्ध की प्रत्येक स्थिति में सदा तैयार रहने के लिए सिक्खों के लिए पाँच 'ककार' (कक्के) अनिवार्य घोषित किए थे, जिन्हें आज भी प्रत्येक [[सिक्ख]] धारण करना अपना गौरव समझता है। ये ककार थे, 'केश'-जिसे सभी गुरु और [[ऋषि]]-[[मुनि]] धारण करते आए थे; 'कंघा'-केशों को साफ करने के लिए; 'कच्छा'-स्फूर्ति के लिए; 'कड़ा'-नियम और संयम में रहने की चेतावनी देने के लिए; 'कृपाण'-आत्मरक्षा के लिए। | ||
</quiz> | </quiz> | ||
|} | |} | ||
|} | |} | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Revision as of 08:46, 17 December 2011
कला और संस्कृति
|