चमड़ा उद्योग: Difference between revisions
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चमड़ा उद्योग भारत के रोजगार के सर्वाधिक अवसर प्रदान करने वाले उद्योगों में से एक है। खासकर कमजोर तबके को रोजगार व उत्थान के रास्ते पर लाने के लिए इस उद्योग का बड़ा योगदान है। चमड़ा उद्योग में महिलाओं को भी खूब मौका मिलता है।
- भारत के लगभग हर गाँव में इस उद्योग का कोई न कोई काम सम्पन्न किया जाता है।
- जूते, चमड़े के वस्त्र, चमड़े के बैग, घोड़े की जीन, जल भरने के मशक, जल निकालने के चरस व अन्य सामान बनाने वाली इकाइयों से लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है। यही नहीं जूता निर्यातक कंपनियां व चमड़े का सामान बनाने वाली कंपनियों में भी इस उद्योग के जानकारों को मौका मिलता है।
- चमड़ा उद्योग में कच्ची खाल और चमड़ा निकालने के साथ साथ उसे उत्पाद योग्य बनाने व ढुलाई का काम भी आता है।
- उत्तर प्रदेश का कानपुर नगर इसके लिए विशेष प्रसिद्ध हैं।
- बड़े या छोटे पशुओं की साफ की हुई खाल को रासायनिक प्रक्रिया द्वारा 'कमाकर' चमड़ा बनाया जाता है। बिना कमाई खाल सड़ने लगती है।
- संसार का लगभग 90 प्रतिशत चमड़ा बड़े पशुओं, जैसे गोजातीय पशुओं एवं भेड़ तथा बकरों की खालों से बनता है, किंतु घोड़ा, सूअर, कंगारू, हिरन, सरीसृप, समुद्री घोड़ा और जलव्याघ्र की खालें भी न्यूनाधिक रूप में काम में आती हैं।
- खाल उत्पादन-आँकड़ों को देखने से ज्ञात होता है कि सन 1955 में खाल-उत्पादक देशों में भारत का बड़ी खालें पैदा करने में द्वितीय तथा बकरी और मेमनों की खालें पैदा करने में सर्वप्रथम, स्थान था।
- चर्मपाक रासायनिक परिवर्तन है जिसके फलस्वरूप चमड़ा बनता है। प्राचीनतम काल में इसके लिये केवल वनस्पति वर्ग के पदार्थ प्रयुक्त होते थे, किंतु आधुनिक औद्योगिकी ने चर्मपाक के लिये अनेक रासायनिक द्रव्यों का अविष्कार किया है। अधिकतम चमड़ा क्रोम विधि से बनता है, किंतु कुछ चमड़े अभी तक वानस्पतिक चर्मपाक द्वारा तैयार किए जाते हैं।
- खाल के प्रकार
खाल में दो प्रकार की सुस्पष्ट परतें होती हैं, जिनकी उत्पत्ति तथा विन्यास भिन्न होता है:
- एपिथीलिअल कोशिकाओं की बनी पतली ऊपरी तह, एपिडर्मिस[1]
- इसके नीचे वाली सापेक्षत: अत्यधिक मोटी तह, डर्मिस या कोरियम
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इसके छोटे-छोटे अवनयनों में बालगर्त ओर बाल स्थित रहते हैं।
बाहरी कड़ियाँ
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