स्मृति की रेखाएँ -महादेवी वर्मा: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Smiriti-Ki-Rekhayein.jpg |चित्र का नाम=स्...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (श्रेणी:पद्य साहित्य; Adding category Category:गद्य साहित्य (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 38: | Line 38: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{महादेवी वर्मा की कृतियाँ}} | {{महादेवी वर्मा की कृतियाँ}} | ||
[[Category: | [[Category:महादेवी वर्मा]][[Category:पुस्तक कोश]][[Category:काव्य कोश]][[Category:साहित्य कोश]] | ||
[[Category:गद्य साहित्य]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 10:48, 31 March 2013
स्मृति की रेखाएँ -महादेवी वर्मा
| |
कवि | महादेवी वर्मा |
प्रकाशन तिथि | 1943 (पहला संस्करण) |
ISBN | 81-7119-782-5 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
प्रकार | संस्मरण संग्रह |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द |
स्मृति की रेखाएँ एक संस्मरण - संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा हैं।
सारांश
महादेवी मूलत: कवयित्री हैं, परन्तु उन्होंने गद्य में भी श्रेष्ठ लेखन किया। विशेष बात यह है कि हिन्दी साहित्य में उनके रेखाचित्र जिस शिखर पर खड़े हैं, उन्हें छूनेवाला आज तक कोई नहीं हुआ। एक महादेवी ही हैं, जिन्होंने गद्य में भी कविता के मर्म की अनुभूति कराई और ‘गद्यं कविता निकषं वदन्ति’ को चरितार्थ किया। स्मृति की रेखाएँ में निरन्तर जिज्ञासाशील महादेवी ने अपनी स्मृति के आधार पर अमिट रेखाओं द्वारा अत्यन्त सहृदयता-पूर्वक जीवन के विविध रूपों को चित्रित कर पात्रों को अमर कर दिया गया। मदादेवी ने अपने अधिकांश रेखाचित्रों में निम्नवर्गीय पात्रों की विशेषताओं, दुर्बलताओं और समस्याओं का चित्रण किया है।
भक्तिन
वृद्ध ‘भक्तिन’ की प्रगल्भता तथा स्वामि-भक्ति, ‘चीनी युवक’ की करुण मार्मिक जीवन-गाथा, पर्वत के कुली ‘जंगबहादुर’ की कर्मठता और फिर ‘मुन्नू’, ‘ठकुरी बाबा’, ‘बिबिया’ तथा ‘गुँगिया’ जैसे चरित्रों की मर्मस्पर्शी जीवन-झाँकियाँ पाठक को अभिभूत कर दने में सक्षम हैं। छोटे कद और दुबले शरीरवाली भक्तिन अपने पतले ओठों के कानों में दृढ़ संकल्प और छोटी आँखों में एक विचित्र समझदारी लेकर जिस दिन पहले-पहले मेरे पास आ उपस्थित हुई थी तब से आज तक एक युग का समय बीत चुका है। पर जब कोई जिज्ञासु उससे इस संबंध में प्रश्न कर बैठता है, तब वह पलकों को आधी पुतलियों तक गिराकर और चिन्तन की मुद्रा में ठुड्डी को कुछ ऊपर उठाकर विश्वास भरे कण्ठ से उत्तर देती हैं-- ‘तुम पचै का का बताई—यहै पचास बरिस से संग रहित है।’ इस हिसाब से मैं पचहत्तर की ठहरती हूँ और वह सौ वर्ष की आयु भी पार कर जाती है, इसका भक्तिन को पता नहीं। पता हो भी, तो सम्भवत: वह मेरे साथ बीते हुए समय में रत्तीभर भी कम न करना चाहेगी। मुझे तो विश्वास होता जा रहा है कि कुछ वर्ष तक पहुँचा देगी, चाहे उसके हिसाब से मुझे 150 वर्ष की असम्भव आयु का भार क्यों न ढोना पड़े। [सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्द्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है-नाम है लाछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी।] वैसे तो जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकर की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया; पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूँ। उपनाम रखने की प्रतिमा होती, तो मैं सबसे पहले उसका प्रयोग अपने ऊपर करती, इस तथ्य को देहातिन क्या जाने, इसी से जब मैंने कण्ठी-माला देखकर उसका नया नामकरण किया, तब वह भक्तिन जैसे कवित्वहीन नाम को पाकर भी गद्गद् हो उठी।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्मृति की रेखाएँ (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 31 मार्च, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख