नसिरुद्दीन महमूद: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''नसिरुद्दीन महमूद''' (1246-1266 ई.) इल्तुतमिश का पौत्र तथा [[...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
'''नसिरुद्दीन महमूद''' (1246-1266 ई.) [[इल्तुतमिश]] का पौत्र तथा [[ग़ुलाम वंश]] सुल्तान था। यह [[10 जून]] 1246 ई. को सिंहासन पर बैठा। उसके सिंहासन पर बैठने के बाद अमीर सरदारों एवं सुल्तान के बीच शक्ति के लिए चल रहा संघर्ष पूर्णत: समाप्त हो गया। नसिरुद्दीन विद्या प्रेमी और बहुत ही शांत स्वभाव का व्यक्ति था। शासन का सम्पूर्ण भार 'उलूग ख़ाँ' अथवा [[ग़यासुद्दीन बलबन]] पर छोड़कर वह सादा जीवन व्यतीत करता था। बलबन की पुत्री का [[विवाह]] नसिरुद्दीन के साथ हुआ था।
'''नसिरुद्दीन महमूद''' (1246-1266 ई.) [[इल्तुतमिश]] का कनिष्ठ पुत्र तथा [[ग़ुलाम वंश]] सुल्तान था। यह [[10 जून]] 1246 ई. को सिंहासन पर बैठा। उसके सिंहासन पर बैठने के बाद अमीर सरदारों एवं सुल्तान के बीच शक्ति के लिए चल रहा संघर्ष पूर्णत: समाप्त हो गया। नसिरुद्दीन विद्या प्रेमी और बहुत ही शांत स्वभाव का व्यक्ति था। शासन का सम्पूर्ण भार 'उलूग ख़ाँ' अथवा [[ग़यासुद्दीन बलबन]] पर छोड़कर वह सादा जीवन व्यतीत करता था। बलबन की पुत्री का [[विवाह]] नसिरुद्दीन के साथ हुआ था।
==धर्मपरायण व्यक्ति==
==धर्मपरायण व्यक्ति==
नसिरुद्दीन महमूद की स्थिति का वर्णन करते हुए इतिहासकार इसामी लिखते हैं कि "वह तुर्की अधिकारियों की पूर्व आज्ञा के बिना अपनी कोई भी राय व्यक्त नहीं कर सकता था। वह बिना तुर्की अधिकारियों की आज्ञा के हाथ पैर तक नहीं हिलाता था। कहा गया है कि सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद महात्वाकांक्षाओं से रहित एक धर्मपरायण व्यक्ति था। वह क़ुरान की नकल करता था तथा उसको बेचकर जीविका चलाता था।
नसिरुद्दीन महमूद की स्थिति का वर्णन करते हुए इतिहासकार इसामी लिखते हैं कि "वह तुर्की अधिकारियों की पूर्व आज्ञा के बिना अपनी कोई भी राय व्यक्त नहीं कर सकता था। वह बिना तुर्की अधिकारियों की आज्ञा के हाथ पैर तक नहीं हिलाता था। कहा गया है कि सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद महात्वाकांक्षाओं से रहित एक धर्मपरायण व्यक्ति था। वह क़ुरान की नकल करता था तथा उसको बेचकर जीविका चलाता था।

Latest revision as of 11:41, 16 April 2013

नसिरुद्दीन महमूद (1246-1266 ई.) इल्तुतमिश का कनिष्ठ पुत्र तथा ग़ुलाम वंश सुल्तान था। यह 10 जून 1246 ई. को सिंहासन पर बैठा। उसके सिंहासन पर बैठने के बाद अमीर सरदारों एवं सुल्तान के बीच शक्ति के लिए चल रहा संघर्ष पूर्णत: समाप्त हो गया। नसिरुद्दीन विद्या प्रेमी और बहुत ही शांत स्वभाव का व्यक्ति था। शासन का सम्पूर्ण भार 'उलूग ख़ाँ' अथवा ग़यासुद्दीन बलबन पर छोड़कर वह सादा जीवन व्यतीत करता था। बलबन की पुत्री का विवाह नसिरुद्दीन के साथ हुआ था।

धर्मपरायण व्यक्ति

नसिरुद्दीन महमूद की स्थिति का वर्णन करते हुए इतिहासकार इसामी लिखते हैं कि "वह तुर्की अधिकारियों की पूर्व आज्ञा के बिना अपनी कोई भी राय व्यक्त नहीं कर सकता था। वह बिना तुर्की अधिकारियों की आज्ञा के हाथ पैर तक नहीं हिलाता था। कहा गया है कि सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद महात्वाकांक्षाओं से रहित एक धर्मपरायण व्यक्ति था। वह क़ुरान की नकल करता था तथा उसको बेचकर जीविका चलाता था।

तुर्क सरदारों की साजिश

नसिरुद्दीन महमूद ने 7 अक्टूबर, 1246 ई. में बलबन को 'उलूग ख़ाँ' की उपाधि प्रदान की और इसके तदुपरान्त उसे 'अमीर-हाजिब' बनाया गया। अगस्त, 1249 ई. में नसिरुद्दीन महमूद के साथ बलबन ने अपनी लड़की का विवाह कर दिया। बलबन की सुल्तान से निकटता एवं उसके बढ़ते हुए प्रभाव से अन्य तुर्की सरदारों ने नसिरुद्दीन महमूद की माँ एवं कुछ भारतीय मुसलमानों के साथ एक दल बनाया, जिसका नेता रायहान को बनाया गया था। उसे 'वकीलदर' के पद पर नियुक्त किया गया, परन्तु यह परिवर्तन बहुत दिन तक नहीं चल सका। भारतीय मुसलमान रायहान को अधिक दिन तक तुर्क सरदार नहीं सह सके। वे पुनः बलबन से जा मिले। इस तरह दोनों विरोधी सेनाओं के बीच आमना-सामना हुआ, परन्तु अन्ततः एक समझौते के तहत नसिरुद्दीन महमूद ने रायहान को 'नाइब' के पद से मुक्त कर पुनः बलबन को यह पद दे दिया। रायहान को एक धर्मच्युत[1] शक्ति का अपहरणकर्ता, षड़यंत्रकारी आदि कहा गया है। कुछ समय पश्चात् रायहान की हत्या कर दी गयी।

बलबन द्वारा शांति स्थापना

नसिरुद्दीन महमूद के राज्य काल में बलबन ने शासन प्रबन्ध में विशेष क्षमता दिखाई। बलबन ने पंजाब तथा दोआब के हिन्दुओं के विद्रोह का दृढ़ता से दमन किया। साथ ही उसने मुग़लों (मंगोलों) के आक्रमणों को भी रोका। सम्भवतः इसी समय बलबन ने सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद से 'छत्र'[2] प्रयोग करने की अनुमति माँगी। सुल्तान ने अपना छत्र प्रयोग करने के लिए आज्ञा दे दी। 1245 ई. से सुल्तान बनने तक बलबन का अधिकांश समय विद्रोहों को दबानें में बीता। उसने 1259 ई. में मंगोल नेता हलाकू के साथ समझौता कर पंजाब में शांति स्थापित की।

मृत्यु

मिनहाजुद्दीन सिराज ने, जो सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में मुख्य क़ाज़ी के पद पर था, अपना ग्रन्थ 'ताबकात-ए-नासिरी' उसे समर्पित किया। 1266 ई. में नसिरुद्दीन महमूद की अकस्मात् मृत्यु के बाद बलबन उसका उत्तराधिकारी बना, क्योंकि महमूद के कोई भी पुत्र नहीं था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाया गया था।
  2. सुल्तान के पद का प्रतीक

संबंधित लेख