बाबू कुंवर सिंह: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Babu-Kunwar-Singh.jpg|thumb|250px|बाबू कुंवर सिंह के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]]
{{सूचना बक्सा स्वतन्त्रता सेनानी
|चित्र=Babu Kunwar Singh.jpg
|चित्र का नाम=बाबू कुंवर सिंह
|पूरा नाम=बाबू कुंवर सिंह
|अन्य नाम=
|जन्म=1778 ई.
|जन्म भूमि=जगदीशपुर, [[बिहार]]
|मृत्यु=[[23 अप्रैल]], [[1858]]
|मृत्यु स्थान=जगदीशपुर, [[बिहार]]
|मृत्यु कारण=
|अविभावक=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|स्मारक=
|क़ब्र=
|नागरिकता=भारतीय
|प्रसिद्धि=बिहार के शाहाबाद में उनकी एक छोटी रियासत थी।
|धर्म=
|आंदोलन=[[1857 क्रांति कथा|1857 की क्रांति]] में भी इन्होंने सम्मिलित होकर अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया।
|जेल यात्रा=
|कार्य काल=
|विद्यालय=
|शिक्षा=
|पुरस्कार-उपाधि=
|विशेष योगदान=
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=इनके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यही थी कि इन्हें वीरता से परिपूर्ण कार्यों को करना ही रास आता था।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''बाबू कुंवर सिंह''' (जन्म- 1778 ई., [[बिहार]]; मृत्यु- [[23 अप्रैल]], [[1858]] ई.) [[भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन|भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के सैनिकों में से एक थे। इनके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यही थी कि इन्हें वीरता से परिपूर्ण कार्यों को करना ही रास आता था। [[इतिहास]] प्रसिद्ध [[1857 क्रांति कथा|1857 की क्रांति]] में भी इन्होंने सम्मिलित होकर अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया। बाबू कुंवर सिंह ने [[रीवा]] के ज़मींदारों को एकत्र किया और उन्हें [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से युद्ध के लिए तैयार किया। [[तात्या टोपे]] से भी इनका सम्पर्क था।
'''बाबू कुंवर सिंह''' (जन्म- 1778 ई., [[बिहार]]; मृत्यु- [[23 अप्रैल]], [[1858]] ई.) [[भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन|भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] के सैनिकों में से एक थे। इनके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यही थी कि इन्हें वीरता से परिपूर्ण कार्यों को करना ही रास आता था। [[इतिहास]] प्रसिद्ध [[1857 क्रांति कथा|1857 की क्रांति]] में भी इन्होंने सम्मिलित होकर अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया। बाबू कुंवर सिंह ने [[रीवा]] के ज़मींदारों को एकत्र किया और उन्हें [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से युद्ध के लिए तैयार किया। [[तात्या टोपे]] से भी इनका सम्पर्क था।
==परिचय==
==परिचय==
1857 के [[प्रथम स्वतंत्रता संग्राम]] के प्रसिद्ध नायक बाबू कुंवर सिंह के आरम्भिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। सम्भवत: उनका जन्म 1778 ई. में बिहार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही शिक्षा से अधिक शौर्य-युक्त कार्यों में रुचि थी। बिहार के शाहाबाद में उनकी एक छोटी रियासत थी। उन पर जब कर्ज बढ़ गया तो अंग्रेज़ों ने रियासत का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया। उनका एजेंट लगान वसूल करता, सरकारी रकम चुकाता और रकम से किस्तों में रियासत का कर्ज उतारा जाता।
1857 के [[प्रथम स्वतंत्रता संग्राम]] के प्रसिद्ध नायक बाबू कुंवर सिंह के आरम्भिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। सम्भवत: उनका जन्म 1778 ई. में बिहार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही शिक्षा से अधिक शौर्य-युक्त कार्यों में रुचि थी। बिहार के शाहाबाद में उनकी एक छोटी रियासत थी। उन पर जब कर्ज बढ़ गया तो अंग्रेज़ों ने रियासत का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया। उनका एजेंट लगान वसूल करता, सरकारी रकम चुकाता और रकम से किस्तों में रियासत का कर्ज उतारा जाता।
====अंग्रेज़ों की चालाकी====
====अंग्रेज़ों की चालाकी====
इस अवस्था से बाबू कुंवर सिंह असंतुष्ट थे। इसी समय '1857 की क्रान्ति' आरम्भ हो गई और कुंवर सिंह को अपना विरोध प्रकट करने का अवसर मिल गया। [[25 जुलाई]], [[1857]] को जब क्रान्तिकारी दीनापुर से [[आरा]] की ओर बढ़े तो बाबू कुंवर सिंह उनमें सम्मिलित हो गए। उनके विचारों का अनुमान अंग्रेज़ों को पहले ही हो गया था। इसीलिए कमिश्नर ने उन्हें [[पटना]] बुलाया था कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाये। पर अंग्रेज़ों की चालाकी समझकर कुंवर सिंह बीमारी का बहाना बनाकर वहाँ नहीं गए।
इस अवस्था से बाबू कुंवर सिंह असंतुष्ट थे। इसी समय '1857 की क्रान्ति' आरम्भ हो गई और कुंवर सिंह को अपना विरोध प्रकट करने का अवसर मिल गया। [[25 जुलाई]], [[1857]] को जब क्रान्तिकारी दीनापुर से [[आरा]] की ओर बढ़े तो बाबू कुंवर सिंह उनमें सम्मिलित हो गए। उनके विचारों का अनुमान अंग्रेज़ों को पहले ही हो गया था। इसीलिए कमिश्नर ने उन्हें [[पटना]] बुलाया था कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाये। पर अंग्रेज़ों की चालाकी समझकर कुंवर सिंह बीमारी का बहाना बनाकर वहाँ नहीं गए।[[चित्र:Babu-Kunwar-Singh.jpg|thumb|left|बाबू कुंवर सिंह के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]]
==शौर्य प्रदर्शन==
==शौर्य प्रदर्शन==
आरा में आन्दोलन की कमान कुंवर सिंह ने संभाल ली और जगदीशपुर में विदेशी सेना से मोर्चा लेकर [[सहसराम]] और [[रोहतास ज़िला|रोहतास]] में विद्रोह की [[अग्नि]] प्रज्ज्वलित की। उसके बाद वे 500 सैनिकों के साथ रीवा पहुँचे और वहाँ के ज़मींदारों को अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया। वहाँ से [[बांदा]] होते हुए [[कालपी]] और फिर [[कानपुर]] पहुँचे। तब तक [[तात्या टोपे]] से उनका सम्पर्क हो चुका था। कानपुर की [[अंग्रेज़]] सेना पर आक्रमण करने के बाद वे [[आजमगढ़]] गये और वहाँ के सरकारी खजाने पर अधिकार कर छापामार शैली में युद्ध जारी रखा। यहाँ भी अंग्रेज़ी सेना को पीछे हटना पड़ा।
[[आरा]] में आन्दोलन की कमान कुंवर सिंह ने संभाल ली और जगदीशपुर में विदेशी सेना से मोर्चा लेकर [[सहसराम]] और [[रोहतास ज़िला|रोहतास]] में विद्रोह की [[अग्नि]] प्रज्ज्वलित की। उसके बाद वे 500 सैनिकों के साथ रीवा पहुँचे और वहाँ के ज़मींदारों को अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया। वहाँ से [[बांदा]] होते हुए [[कालपी]] और फिर [[कानपुर]] पहुँचे। तब तक [[तात्या टोपे]] से उनका सम्पर्क हो चुका था। कानपुर की [[अंग्रेज़]] सेना पर आक्रमण करने के बाद वे [[आजमगढ़]] गये और वहाँ के सरकारी खजाने पर अधिकार कर छापामार शैली में युद्ध जारी रखा। यहाँ भी अंग्रेज़ी सेना को पीछे हटना पड़ा।
====निधन====
==निधन==
इस समय बाबू कुंवर सिंह की उम्र 80 वर्ष की हो चली थी। वे अब जगदीशपुर वापस आना चाहते थे। नदी पार करते समय अंग्रेज़ों की एक गोली उनकी ढाल को छेदकर बाएं हाथ की कलाई में लग गई थी। उन्होंने अपनी तलवार से कलाई काटकर नदी में प्रवाहित कर दी। वे अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके [[23 अप्रैल]], [[1858]] को जगदीशपुर पहुँचे। लोगों ने उनको सिंहासन पर बैठाया और राजा घोषित किया। परन्तु कटे हाथ में सेप्टिक हो जाने के कारण '1857 की क्रान्ति' के इस महान नायक ने [[26 अप्रैल]], 1858 को अपने जीवन की इहलीला को विराम दे दिया।
इस समय बाबू कुंवर सिंह की उम्र 80 वर्ष की हो चली थी। वे अब जगदीशपुर वापस आना चाहते थे। नदी पार करते समय अंग्रेज़ों की एक गोली उनकी ढाल को छेदकर बाएं हाथ की कलाई में लग गई थी। उन्होंने अपनी तलवार से कलाई काटकर नदी में प्रवाहित कर दी। वे अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके [[23 अप्रैल]], [[1858]] को जगदीशपुर पहुँचे। लोगों ने उनको सिंहासन पर बैठाया और राजा घोषित किया। परन्तु कटे हाथ में सेप्टिक हो जाने के कारण '1857 की क्रान्ति' के इस महान नायक ने [[26 अप्रैल]], 1858 को अपने जीवन की इहलीला को विराम दे दिया।
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=538|url=}}
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=538|url=}}
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतंत्रता सेनानी}}
{{स्वतंत्रता संग्राम 1857}}{{स्वतंत्रता सेनानी}}
[[Category:स्वतन्त्रता संग्राम 1857]]
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:औपनिवेशिक काल]]
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:औपनिवेशिक काल]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 13:40, 16 April 2013

बाबू कुंवर सिंह
पूरा नाम बाबू कुंवर सिंह
जन्म 1778 ई.
जन्म भूमि जगदीशपुर, बिहार
मृत्यु 23 अप्रैल, 1858
मृत्यु स्थान जगदीशपुर, बिहार
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि बिहार के शाहाबाद में उनकी एक छोटी रियासत थी।
आंदोलन 1857 की क्रांति में भी इन्होंने सम्मिलित होकर अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया।
अन्य जानकारी इनके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यही थी कि इन्हें वीरता से परिपूर्ण कार्यों को करना ही रास आता था।

बाबू कुंवर सिंह (जन्म- 1778 ई., बिहार; मृत्यु- 23 अप्रैल, 1858 ई.) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों में से एक थे। इनके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यही थी कि इन्हें वीरता से परिपूर्ण कार्यों को करना ही रास आता था। इतिहास प्रसिद्ध 1857 की क्रांति में भी इन्होंने सम्मिलित होकर अपनी शौर्यता का प्रदर्शन किया। बाबू कुंवर सिंह ने रीवा के ज़मींदारों को एकत्र किया और उन्हें अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया। तात्या टोपे से भी इनका सम्पर्क था।

परिचय

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध नायक बाबू कुंवर सिंह के आरम्भिक जीवन के सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। सम्भवत: उनका जन्म 1778 ई. में बिहार में हुआ था। उन्हें बचपन से ही शिक्षा से अधिक शौर्य-युक्त कार्यों में रुचि थी। बिहार के शाहाबाद में उनकी एक छोटी रियासत थी। उन पर जब कर्ज बढ़ गया तो अंग्रेज़ों ने रियासत का प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया। उनका एजेंट लगान वसूल करता, सरकारी रकम चुकाता और रकम से किस्तों में रियासत का कर्ज उतारा जाता।

अंग्रेज़ों की चालाकी

इस अवस्था से बाबू कुंवर सिंह असंतुष्ट थे। इसी समय '1857 की क्रान्ति' आरम्भ हो गई और कुंवर सिंह को अपना विरोध प्रकट करने का अवसर मिल गया। 25 जुलाई, 1857 को जब क्रान्तिकारी दीनापुर से आरा की ओर बढ़े तो बाबू कुंवर सिंह उनमें सम्मिलित हो गए। उनके विचारों का अनुमान अंग्रेज़ों को पहले ही हो गया था। इसीलिए कमिश्नर ने उन्हें पटना बुलाया था कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाये। पर अंग्रेज़ों की चालाकी समझकर कुंवर सिंह बीमारी का बहाना बनाकर वहाँ नहीं गए।[[चित्र:Babu-Kunwar-Singh.jpg|thumb|left|बाबू कुंवर सिंह के सम्मान में जारी डाक टिकट]]

शौर्य प्रदर्शन

आरा में आन्दोलन की कमान कुंवर सिंह ने संभाल ली और जगदीशपुर में विदेशी सेना से मोर्चा लेकर सहसराम और रोहतास में विद्रोह की अग्नि प्रज्ज्वलित की। उसके बाद वे 500 सैनिकों के साथ रीवा पहुँचे और वहाँ के ज़मींदारों को अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया। वहाँ से बांदा होते हुए कालपी और फिर कानपुर पहुँचे। तब तक तात्या टोपे से उनका सम्पर्क हो चुका था। कानपुर की अंग्रेज़ सेना पर आक्रमण करने के बाद वे आजमगढ़ गये और वहाँ के सरकारी खजाने पर अधिकार कर छापामार शैली में युद्ध जारी रखा। यहाँ भी अंग्रेज़ी सेना को पीछे हटना पड़ा।

निधन

इस समय बाबू कुंवर सिंह की उम्र 80 वर्ष की हो चली थी। वे अब जगदीशपुर वापस आना चाहते थे। नदी पार करते समय अंग्रेज़ों की एक गोली उनकी ढाल को छेदकर बाएं हाथ की कलाई में लग गई थी। उन्होंने अपनी तलवार से कलाई काटकर नदी में प्रवाहित कर दी। वे अपनी सेना के साथ जंगलों की ओर चले गए और अंग्रेज़ी सेना को पराजित करके 23 अप्रैल, 1858 को जगदीशपुर पहुँचे। लोगों ने उनको सिंहासन पर बैठाया और राजा घोषित किया। परन्तु कटे हाथ में सेप्टिक हो जाने के कारण '1857 की क्रान्ति' के इस महान नायक ने 26 अप्रैल, 1858 को अपने जीवन की इहलीला को विराम दे दिया।  

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 538 |


संबंधित लेख

  1. REDIRECTसाँचा:स्वतन्त्रता सेनानी