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'''तेर''' [[महाराष्ट्र]] में [[उसमानाबाद]] ज़िला से 12 मील उत्तर-पूर्व की ओर तथा तेर नामक स्टेशन से प्राय: 3 मील दूर स्थित एक ग्राम है। इस स्थान पर प्राचीन मंदिर के [[अवशेष]] मिले हैं। यह मंदिर रूपरेखा से [[पश्चिम भारत]] के शैलकृत [[बौद्ध]] [[चैत्य गृह|चैत्यों]] तथा मम्मलपुर के रथों के अनुरूप है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=410|url=}}</ref>
'''तेर''' [[महाराष्ट्र]] में [[उसमानाबाद]] ज़िला से 12 मील उत्तर-पूर्व की ओर तथा तेर नामक स्टेशन से प्राय: 3 मील दूर स्थित एक ग्राम है। इस स्थान पर प्राचीन मंदिर के [[अवशेष]] मिले हैं। यह मंदिर रूपरेखा से [[पश्चिम भारत]] के शैलकृत [[बौद्ध]] [[चैत्य गृह|चैत्यों]] तथा मम्मलपुर के रथों के अनुरूप है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=410|url=}}</ref>


*यहाँ का मंदिर ईटों का बना हुआ है, जिसके देवगृह के ऊपर नालाकार महराब वाली छतें हैं।
*यहाँ का मंदिर ईटों का बना हुआ है, जिसके देवगृह के ऊपर नालाकार महराब वाली छतें हैं।

Latest revision as of 11:56, 17 June 2013

तेर महाराष्ट्र में उसमानाबाद ज़िला से 12 मील उत्तर-पूर्व की ओर तथा तेर नामक स्टेशन से प्राय: 3 मील दूर स्थित एक ग्राम है। इस स्थान पर प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं। यह मंदिर रूपरेखा से पश्चिम भारत के शैलकृत बौद्ध चैत्यों तथा मम्मलपुर के रथों के अनुरूप है।[1]

  • यहाँ का मंदिर ईटों का बना हुआ है, जिसके देवगृह के ऊपर नालाकार महराब वाली छतें हैं।
  • इसके सामने वर्गाकार तथा सपाट छत का मंडप है।
  • मंदिर की ईटें बहुत बड़ी हैं और उसकी प्राचीनता की सूचक हैं।
  • कुछ विद्वानों का मत है कि टॉल्मी ने पैठान के साथ ही दक्षिण भारत के जिस प्रसिद्ध व्यापारिक नगर 'तगारा' का उल्लेख किया है, वह इसी स्थान पर बसा होगा।
  • प्राचीन समय में 'तगारा' की बनी हुई मलमल बहुत प्रसिद्ध थी।
  • तेर विठोबा भगवान के भक्त, संत गोरा खंभर कुम्हार के संबंध के कारण भी प्रसिद्ध है।
  • संत गोरा खंभर महाराष्ट्र के प्रख्यात संत नामदेव के समकालीन थे।
  • इनके बारे में माना जाता है कि एक बार भक्ति में इतने तल्लीन हो गए कि उन्हें सामने ही अपने शिशु के, बर्तन बनाने की मिट्टी के गढ्ढे में डूब जाने की खबर तक नहीं हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार |पृष्ठ संख्या: 410 |

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