परमाल रासो: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | |||
|चित्र=Blank-image-book.jpg | |||
|चित्र का नाम= | |||
|विवरण= | |||
|शीर्षक 1=लेखक | |||
|पाठ 1=जगनिक | |||
|शीर्षक 2=प्रकार | |||
|पाठ 2=वीरगाथात्मक रासोकाव्य | |||
|शीर्षक 3= | |||
|पाठ 3= | |||
|शीर्षक 4= | |||
|पाठ 4= | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|शीर्षक 6= | |||
|पाठ 6= | |||
|शीर्षक 7= | |||
|पाठ 7= | |||
|शीर्षक 8= | |||
|पाठ 8= | |||
|शीर्षक 9=रचना काल | |||
|पाठ 9=डॉ. माता प्रसाद गुप्त के अनुसार यह रचना 16वीं शती विक्रमी की हो सकती है, किंतु इस पर मतभेद हैं। | |||
|शीर्षक 10=विशेष | |||
|पाठ 10=इस काव्य के 'महोबा खण्ड' को [[संवत]] [[1976]] वि. में [[डॉ. श्यामसुन्दर दास]] ने 'परमाल रासो' के नाम से संपादित किया था। | |||
|संबंधित लेख= | |||
|अन्य जानकारी=वर्तमान समय में 'परमाल रासो' का केवल '[[आल्हाखण्ड]]' उपलब्ध है, जो वीरगाथात्मक लोकगाथा के रूप में [[उत्तर भारत]] में बेहद लोकप्रिय है। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
'''परमाल रासो''' आदिकालीन [[हिंदी साहित्य]] का प्रसिद्ध वीरगाथात्मक रासोकाव्य है। वर्तमान समय में इसका केवल [[आल्हाखण्ड]] उपलब्ध है जो वीरगाथात्मक लोकगाथा के रूप में [[उत्तर भारत]] में बेहद लोकप्रिय रहा है। इसके रचयिता जगनिक हैं। | '''परमाल रासो''' आदिकालीन [[हिंदी साहित्य]] का प्रसिद्ध वीरगाथात्मक रासोकाव्य है। वर्तमान समय में इसका केवल [[आल्हाखण्ड]] उपलब्ध है जो वीरगाथात्मक लोकगाथा के रूप में [[उत्तर भारत]] में बेहद लोकप्रिय रहा है। इसके रचयिता जगनिक हैं। | ||
==विशेष बिंदु== | ==विशेष बिंदु== | ||
Line 14: | Line 44: | ||
==सम्बंधित लेख== | ==सम्बंधित लेख== | ||
{{रासो काव्य}} | {{रासो काव्य}} | ||
[[Category:आदि_काल]][[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:आदि_काल]][[Category:साहित्य_कोश]][[Category:रासो_काव्य]] | ||
[[Category:रासो_काव्य]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 12:15, 18 July 2013
परमाल रासो
| |
लेखक | जगनिक |
प्रकार | वीरगाथात्मक रासोकाव्य |
रचना काल | डॉ. माता प्रसाद गुप्त के अनुसार यह रचना 16वीं शती विक्रमी की हो सकती है, किंतु इस पर मतभेद हैं। |
विशेष | इस काव्य के 'महोबा खण्ड' को संवत 1976 वि. में डॉ. श्यामसुन्दर दास ने 'परमाल रासो' के नाम से संपादित किया था। |
अन्य जानकारी | वर्तमान समय में 'परमाल रासो' का केवल 'आल्हाखण्ड' उपलब्ध है, जो वीरगाथात्मक लोकगाथा के रूप में उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय है। |
परमाल रासो आदिकालीन हिंदी साहित्य का प्रसिद्ध वीरगाथात्मक रासोकाव्य है। वर्तमान समय में इसका केवल आल्हाखण्ड उपलब्ध है जो वीरगाथात्मक लोकगाथा के रूप में उत्तर भारत में बेहद लोकप्रिय रहा है। इसके रचयिता जगनिक हैं।
विशेष बिंदु
- इस ग्रन्थ की मूल प्रति कहीं नहीं मिलती। पर इसके 'महोबा खण्ड' को सं. 1976 वि. में डॉ. श्यामसुन्दर दास ने 'परमाल रासो' के नाम से संपादित किया था।
- डॉ. माता प्रसाद गुप्त के अनुसार यह रचना सोलहवीं शती विक्रमी की हो सकती है।
- इस रचना के सम्बन्ध में काफ़ी मतभेद है।
- श्री रामचरण हयारण 'मित्र' ने अपनी कृति 'बुन्देलखण्ड की संस्कृति और साहित्य' में 'परमाल रासो' को चन्द की स्वतन्त्र रचना माना है। किन्तु भाषा, शैली एवं छन्द में - 'महोबा खण्ड' से यह काफ़ी भिन्न है। उन्होंने टीकामगढ़ राज्य के वयोवृद्ध दरबारी कवि श्री 'अम्बिकेश' से इस रचना के कंठस्थ छन्द लेकर अपनी कृति में उदाहरण स्वरुप दिए हैं।
- रचना के एक छन्द में समय की सूचना दी गई है जिसके अनुसार इसे 1115 वि. की रचना बताया गया है जो पृथ्वीराज एवं चन्द के समय की तिथियों से मेल नहीं खाती। इस आधार पर इसे चन्द की रचना कैसे माना जा सकता है। यह इसे 'परमाल चन्देल' के दरबारी कवि 'जगनिक' की रचना माने तो जगनिक का रासो कही भी उपलब्ध नहीं होता है।
- स्वर्गीय महेन्द्रपाल सिंह ने अपने एक लेख में लिखा है कि जगनिक का असली रासो अनुपलब्ध है। इसके कुछ हिस्से दतिया, समथर एवं चरखारी राज्यों में वर्तमान थे, जो अब नष्ट हो चुके हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रासो काव्य : वीरगाथायें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 मई, 2011।