मुक्ति यज्ञ -सुमित्रानन्दन पंत: Difference between revisions

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==पृष्ठभूमि==
==पृष्ठभूमि==

Revision as of 11:29, 11 September 2013

मुक्ति यज्ञ -सुमित्रानन्दन पंत
कवि सुमित्रानन्दन पंत
मूल शीर्षक मुक्ति यज्ञ
कथानक 'मुक्ति यज्ञ' में उस समय के भारत का इतिहास है, जब देश में क्रांति की आग सुलग रही थी और हर तरफ़ हलचल मची हुई थी।
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
ISBN 0000
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय कविताएँ
प्रकार काव्य संकलन
विशेष 'मुक्ति यज्ञ’ प्रसंग 'लोकायतन' का ही एक अंश है, परन्तु अंश होते हुए भी वह अपने आप में पूर्ण है। 'लोकायतन' एक लक्ष्य प्रधान भविष्योन्मुखी काव्य है।

मुक्ति यज्ञ छायावादी युग के प्रसिद्ध कवियों में से एक सुमित्रानन्दन पंत द्वारा रचित कविता संग्रह है। पंतजी के इस कविता संग्रह का प्रकाशन 'लोकभारती प्रकाशन' द्वारा किया गया था। 'मुक्ति यज्ञ' में उस समय के भारत का इतिहास है, जब देश में क्रांति की आग सुलग रही थी और हर तरफ़ हलचल मची हुई थी। 'मुक्ति यज्ञ' प्रसंग 'लोकायतन' का ही एक अंश है, परन्तु अंश होते हुए भी वह अपने आप में पूर्ण है। यह लोकायतन का वही अंश है, जिसमें भारत के स्वतन्त्रता के युद्ध का आद्योपान्त वर्णन किया गया है।

पृष्ठभूमि

'मुक्ति यज्ञ' में उस युग का इतिहास अंकित है, जब भारत में एक हलचल मची हुई थी और सम्पूर्ण भारत में क्रांति की आग सुलग रही थी। प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार के दमन चक्र के आतंक के अवसाद पर विजय पाकर जनता फिर नये युद्ध के लिए तैयार हो गयी थी। देश के युवक विशेष रूप से जागरुक हो गए थे। सारे देश में युवक समाजों की नींव पड़ी, जिनमें देश के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रश्नों पर विचार होता था। इन्हीं के द्वारा जनता को सुभाषचन्द्र बोस और जवाहरलाल नेहरू जैसे सेनानी मिले; सारे देश में सत्याग्रह, हड़ताल और बहिष्कार आन्दोलनों की बाढ़ आ गयी। किसानों और मजदूरों के जीवन में जागृति की एक नई लहर आ गयी। सरदार पटेल के नेतृत्व में बारदोली के किसानों ने भूमिकर से छूट पाने के लिए सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह किया।[1]

'लोकायतन' का अंश

'मुक्ति यज्ञ’ प्रसंग 'लोकायतन' का ही एक अंश है, परन्तु अंश होते हुए भी वह अपने आप में पूर्ण है। 'लोकायतन' एक लक्ष्य प्रधान भविष्योन्मुखी काव्य है। उसका काव्य वाल्मीकि अथवा व्यास की तरह एक ऐसे युग शिखर पर खड़ा है, जिसके निचले स्तरों में उद्वेलित मन का गर्जन टकरा रहा है और ऊपर का स्वर्ग प्रकाश, अमरों का संगीत और भावी का सौन्दर्य बरस रहा है। उनके अपने शब्दों में "सांप्रतिक युग का मुख्य प्रश्न सामूहिक आत्मा का मनःसंगठन है, अतः आधुनिक मानव को अंतः शुद्धि के द्वारा अन्तर्जगत के नये संस्कारों को गढ़ना है। सामाजिक स्तर पर आत्मा का यही संस्कार 'लोकायतन' का प्रतिपाद्य है।"

वास्तव में सुमित्रानन्दन पंत ने आज की दुर्निवार स्थितियों में जबकि चारों ओर मूल्यों के विघटन, खंडित आस्था और आपाधापी की हलचल का बोलबाला है, 'लोकायतन' में आत्मा का एक अमर भवन स्थापित करने तथा सारी पृथ्वी को अन्तश्चैतन्य के रागात्मक वृत्त में बाँधने की कल्पना की है। पन्तजी की यह विश्वदृष्टि राष्ट्र और देश की सीमाओं को पार करती हुई गई है, इसलिए भारत के राजनीतिक आन्दोलनों और सामाजिक समस्याओं का चित्रण भी उनके लिए अनिवार्य हो गया है। 'मुक्ति यज्ञ' 'लोकायतन' का वही अंश है, जिसमें भारत के स्वतन्त्रता के युद्ध का आद्योपान्त वर्णन किया गया है। इसलिए 'मुक्ति यज्ञ' को समझने के लिए इस युग की राजनीतिक सामाजिक पृष्ठभूमि को समझ लेना आवश्यक है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मुक्तियज्ञ, सुमित्रानन्दन पंत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 11 सितम्बर, 2013।

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