तंत्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 24: Line 24:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:मंत्र-तंत्र]]
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
[[Category:बौद्ध धर्म]][[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 14:15, 18 October 2014

तंत्र (संस्कृत शब्द, अर्थात तंतु) कुछ हिंदू, बौद्ध या जैन संप्रदायों के रहस्यमय आचरणों से संबंधित कई ग्रंथों में से एक है। हिंदू धार्मिक साहित्य के परंपरागत वर्गीकरण में पुराणों (पौराणिक कथाओं, अनुश्रुतियों और अन्य विषयों के मध्य कालीन अतिव्यापक संकलन) की तरह उत्तर वैदिक संस्कृत ग्रंथों के एक वर्ग को तंत्र कहा जाता है। इस प्रयोग में तंत्र सैद्धांतिक रूप से धर्मशास्त्र, मंदिरों एवं मूर्तियों के निर्माण तथा धार्मिक आचरण के प्रतिपादक हैं, किंतु वास्तव में जादू-टोना, अनुष्ठानों और प्रतीकों जैसे हिंदू धर्म के लोकप्रिय पहलुओं से संबद्ध हैं। हिंदू सांप्रदायिक सारणी के अनुरूप वे शैव आगमों, वैष्णव संहिताओं और शाक्त तंत्रों में विभक्त हैं।

शाक्त तंत्र

शाक्त तंत्रों की सूचियां एक-दूसरे से काफ़ी भिन्न हैं, लेकिन संकेत मिलते हैं कि प्रारंभिक पांडुलिपियां क़रीब सातवीं सदी की है। वे देवी शक्ति को देवी सर्जन शक्ति या ऊर्जा का नारी स्वरूप मानते हैं। इस अवधारणा का मानना है कि अपनी शक्ति के बिना शिव शव हैं। योग से संबद्ध तंत्रों में शक्ति का तादाम्य कुंडलिनी से किया गया है; वह ऊर्जा, जो (मेरुदंड) के आधार पर तब तक कुंडली के रूप में रहती है, जब तक कि यौगिक साधना द्वारा उसे शरीर से गुज़ारते हुए ऊपर नहीं लाया जाता। तंत्र पद्धति यंत्रों एवं मंडलों (आनुष्ठानिक रेखाचित्र) और मंत्रों (गूढ़ अक्षर या पवित्र सूत्र) पर भी ज़ोर देते हैं। शाक्त तंत्रों में प्रमुख है : कुलर्णव, जो ‘वाम हस्त’ कर्मकांडों, जैसे आनुष्ठानिक मैथुन का प्रतिपादन करते हैं; कुलचूड़ामणि में अनुष्ठानों की चर्चा की गई है और शारदातिलक में विशेष रूप से जादू-टोने का वर्णन है।

तंत्रशास्त्र

तंत्र को तंत्रशास्त्र शिवप्रणीत भी कहा जाता है। तंत्रशास्त्र तीन भागों में विभक्त है,

(1)आगम तन्त्र

वाराहीतंत्र के अनुसार जिसमें सृष्टि प्रलय, देवताओं की पूजा, सत्कर्यों के साधन, पुरश्चरण, षट्कर्मसाधन और चार प्रकार के ध्यानयोग का वर्णन हो उसे 'आगम' कहते है।

(2)यामल तन्त्र

तंत्रशास्त्र में सृष्टितत्त्व, ज्योतिष, नित्य कृत्य, क्रम, सूत्र, वर्णभेद और युगधर्म का वर्णन हो उसे 'यामल' कहते है।

(3)मुख्य तन्त्र

तंत्रशास्त्र सृष्टि, लय, मन्त्र, निर्णय, तीर्थ, आश्रमधर्म, कल्प, ज्योतिषसंस्थान, व्रतकथा, शौच-अशौच, स्त्रीपुरुषलक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युगधर्म, व्यवहार तथा आध्यात्मिक नियमों का वर्णन हो, वह 'मुख्य तंत्र' कहलाता है।

सिद्धांत

तंत्रशास्त्र के सिद्धांतानुसार कलियुग में वैदिक मंत्रों, जपों और यज्ञों आदि का फल नहीं होता इस युग में सब प्रकार के कार्यों की सिद्धि के लिए तंत्रशास्त्र में वर्णिक मंत्रों और उपायों आदि से ही सफलता मिलती है।

तंत्रशास्त्र के सिद्धांत बहुत गुप्त रखे जाते है। और इसकी शिक्षा लेने के लिए मनुष्य को पहले दीक्षित होना पड़ता है, आजकल प्राय: मारण, उच्चाटन, वशीकरण आदि के लिए तथा अनेक प्रकार की सिद्धियों के लिए तंत्रोक्त मंत्रों और क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है। तंत्रशास्त्र प्रधानत: शाक्तों (देवी-उपासकों) का है और इसके मंत्र प्राय: अर्थहीन और एकाक्षरी हुआ करते है। जैसे- ह्नीं,क्लीं, श्रीं, ऐं, क्रूं आदि। तांत्रिकों का पच्च मकार सेवन (मद्य, मांस, मत्स्य आदि) तथा चक्र-पूजा का विधान स्वतंत्र होता है। अथर्ववेद में भी मारण, मोहन, उच्चाटन और वशीकरण आदि का विधान है, परंतु कहते हैं कि वैदिक क्रियाओं और तंत्र-मंत्रादि विधियों को महादेव जी ने कीलित कर दिया है और भगवती उमा के आग्रह से ही कलियुग के लिए तंत्रों की रचना की है। बौद्धमत में भी तंत्रशास्त्र एक ग्रंथ है। उनका प्रचार चीन और तिब्बत में है। हिन्दू तांत्रिक उन्हें उपतंत्र कहते हैं। तंत्रशास्त्र की उत्पत्ति कब से हुई इसका निर्णय नहीं हो सकता। प्राचीन स्मृतियों में चौदह विद्याओं का उल्लेख है किंतु उनमें तंत्र गृहीत नहीं हुआ है। इनके सिवा किसी महापुराण में भी तंत्रशास्त्र का उल्लेख नहीं है। इसी तरह के कारणों से तंत्रशास्त्र को प्राचीन काल में विकसित शास्त्र नहीं माना जा सकता।

अथर्ववेदीय नृसिंहतापनीयोपनिषद में सबसे पहले तंत्र का लक्षण देखने में आता है। इस उपनिषद में मंत्रराज नरसिंह- अनुष्टुप प्रसंग में तांत्रिक महामंत्र का स्पष्ट आभास सूचित हुआ है। शंकराचार्य ने भी जब उक्त उपनिषद के भाष्य की रचना की है तब निस्सन्देह वह 8वीं शताब्दी से पहले की है। हिन्दुओं के अनुकरण से बौद्ध तंत्रों की रचना हुई है। 10वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के भीतर बहुत से बौद्ध तंत्रों का तिब्बतीय भाषा में अनुवाद हुआ था। ऐसी दशा में मूल बौद्ध तंत्र 8वीं शताब्दी के पहले और उनके आदर्श हिन्दू तंत्र बौद्ध तंत्रों से भी पहले प्रकटिक हुए हैं, इसमें सन्देह नहीं। तंत्रों के मत से सबसे पहले दीक्षा ग्रहण करके तांत्रिक कार्यों में हाथ डालना चाहिए। बिना दीक्षा के तांत्रिक कार्य में अधिकार नहीं है। तांत्रिक गण पाँच प्रकार के आचारों में विभक्त हैं, ये श्रेष्ठता के क्रम से निम्नोक्त हैं वेदाचार, वैष्णवाचार, शैवाचार, दक्षिणाचार, वामाचार, सिद्धांताचार एवं कौलाचार। ये उत्तरोत्तर श्रेष्ठ माने जाते हैं।

बौद्ध तंत्र

बौद्ध तंत्र सातवीं सदी या पहले के हैं व तथागतह्मका एक प्रारंभिक एवं उत्कृष्ट रचना है। क़रीब नौवीं सदी के बाद इन रचनाओं का तिब्बती और चीनी भाषा में अनुवाद किया गया और कुछ तो अब इन्हीं भाषाओं में संरक्षित हैं, क्योंकि मूल संस्कृत रचनाएं खो चुकी हैं। बौद्ध तंत्रों में महत्त्वपूर्ण रचना कालचक्र-तंत्र है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ