हौज़-ए-शम्शी: Difference between revisions
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"तत्कालीन समय में दिल्ली की पानी की समस्या से निपटने के लिए [[इल्तुतमिश]] एक तालाब बनवाने पर विचार कर रहा था। वह यह तय नहीं कर पा रहा था कि यह तालाब कहां पर बनाया जाए। एक रात उसे सपने में हजरत मोहम्मद दिखाई दिए। उन्होंने एक | "तत्कालीन समय में दिल्ली की पानी की समस्या से निपटने के लिए [[इल्तुतमिश]] एक तालाब बनवाने पर विचार कर रहा था। वह यह तय नहीं कर पा रहा था कि यह तालाब कहां पर बनाया जाए। एक रात उसे सपने में हजरत मोहम्मद दिखाई दिए। उन्होंने एक ख़ास जगह की ओर इशारा करके उसे वहां पर हौज़ बनवाने को कहा। सुबह उठने पर इल्तुतमिश बताई गई जगह पर गया। उसे वहां पर घोड़े के 'हूफ' यानी खुर का निशान दिखाई दिया। इल्तुतमश ने जहां पर यह निशान दिखाई दिया था, वहां पर एक छतरी बनवाई तथा उसके चारों ओर इस हौज़ का निर्माण करवाया।" यह कहानी कितनी ठीक है, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह हौज़ आज भी है।<ref>{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/node/45988 |title= हौज़ और झरने|accessmonthday=14 मई|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
Revision as of 13:30, 1 November 2014
हौज़-ए-शम्शी एक तालाब है, जिसे दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश के शासन काल के दौरान बनवाया गया था। चौहानों की पराजय के बाद क़ुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली की गद्दी संभाली तो उसने क़िला रायपिथौरा और लालकोट में ही अपना डेरा जमाया। इस वंश के शम्शुद्दीन इल्तुतमिश के शासन 1211-1236 ई. के दौरान महरौली के दक्षिणी हिस्से में एक हौज़ बनाया गया। इसे ‘हौज़-ए-शम्शी’ का नाम दिया गया।
- इल्तुतमिश के 'शम्शी' परिवार का होने के कारण ही इस तालाब को हौज़-ए-शम्शी नाम मिला था। उस समय के इतिहासकारों के अनुसार इल्तुतमिश के माता-पिता मध्य एशिया के इल्बारी कबीले के शम्शी परिवार के थे।
- दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने वाला पहला तुर्क इल्तुतमिश था। इसके साथ ही दिल्ली में एक नए वंश के शासन की शुरुआत हुई थी।
- दिल्ली की गद्दी संभालने के पहले इल्तुतमिश मुहम्मद गोरी का गुलाम था।
- हौज़-ए-शम्शी तालाब के बनाए जाने के बारे में एक रोचक कहानी बताई जाती है। यह कहानी कुछ इस प्रकार है-
"तत्कालीन समय में दिल्ली की पानी की समस्या से निपटने के लिए इल्तुतमिश एक तालाब बनवाने पर विचार कर रहा था। वह यह तय नहीं कर पा रहा था कि यह तालाब कहां पर बनाया जाए। एक रात उसे सपने में हजरत मोहम्मद दिखाई दिए। उन्होंने एक ख़ास जगह की ओर इशारा करके उसे वहां पर हौज़ बनवाने को कहा। सुबह उठने पर इल्तुतमिश बताई गई जगह पर गया। उसे वहां पर घोड़े के 'हूफ' यानी खुर का निशान दिखाई दिया। इल्तुतमश ने जहां पर यह निशान दिखाई दिया था, वहां पर एक छतरी बनवाई तथा उसके चारों ओर इस हौज़ का निर्माण करवाया।" यह कहानी कितनी ठीक है, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह हौज़ आज भी है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हौज़ और झरने (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 मई, 2014।