रात: Difference between revisions
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*रात्रि एवं उषा को [[ऋग्वेद]]<ref>ऋग्वेद 10.70.6</ref> में [[अग्नि]] का रूप कहा गया है। वे एक युग्म देवत्व की रचना करती हैं। दोनों आकाश (स्वर्ग) की बहन तथा ऋतु की माता हैं। रात्रि के लिए केवल एक ऋचा है।<ref>ऋग्वेद 10.12.7</ref> | *रात्रि एवं उषा को [[ऋग्वेद]]<ref>ऋग्वेद 10.70.6</ref> में [[अग्नि]] का रूप कहा गया है। वे एक युग्म देवत्व की रचना करती हैं। दोनों आकाश (स्वर्ग) की बहन तथा ऋतु की माता हैं। रात्रि के लिए केवल एक ऋचा है।<ref>ऋग्वेद 10.12.7</ref> | ||
*मैकडॉनेल के अनुसार रात्रि को अंधकार का प्रतियोगी रूप मानकर 'चमकीली रात' कहा गया है। इस प्रकार प्रकाशपूर्ण रात्रि घने अंधकार के विरोध में खड़ी होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=549|url=}}</ref | *मैकडॉनेल के अनुसार रात्रि को अंधकार का प्रतियोगी रूप मानकर 'चमकीली रात' कहा गया है। इस प्रकार प्रकाशपूर्ण रात्रि घने अंधकार के विरोध में खड़ी होती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दू धर्मकोश|लेखक=डॉ. राजबली पाण्डेय|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, महात्मा गाँधी मार्ग, लखनऊ|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन= |पृष्ठ संख्या=549|url=}}</ref> | ||
*प्राचीन समय से ही हिन्दू धर्म में रात का समय काफ़ी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों तथा तांत्रिक क्रियाओं आदि के लिए रात का समय उपयुक्त माना जाता है। | *प्राचीन समय से ही [[हिन्दू धर्म]] में रात का समय काफ़ी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों तथा तांत्रिक क्रियाओं आदि के लिए रात का समय उपयुक्त माना जाता है। | ||
*हिन्दू धर्म में [[अमावस्या]] तथा [[पूर्णिमा]] की रात का भी अपना महत्त्व है। कई धार्मिक त्योहार भी रात्रि से ही जुड़े हैं, जैसे- [[जन्माष्टमी]], [[शिवरात्रि]] तथा [[दीपावली]] आदि। | *हिन्दू धर्म में [[अमावस्या]] तथा [[पूर्णिमा]] की रात का भी अपना महत्त्व है। कई धार्मिक त्योहार भी रात्रि से ही जुड़े हैं, जैसे- [[जन्माष्टमी]], [[शिवरात्रि]] तथा [[दीपावली]] आदि। | ||
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Revision as of 07:24, 19 April 2016
रात अथवा रात्रि सूर्यास्त के बाद सूर्योदय तक के समय को कहा जाता है।
- रात्रि एवं उषा को ऋग्वेद[1] में अग्नि का रूप कहा गया है। वे एक युग्म देवत्व की रचना करती हैं। दोनों आकाश (स्वर्ग) की बहन तथा ऋतु की माता हैं। रात्रि के लिए केवल एक ऋचा है।[2]
- मैकडॉनेल के अनुसार रात्रि को अंधकार का प्रतियोगी रूप मानकर 'चमकीली रात' कहा गया है। इस प्रकार प्रकाशपूर्ण रात्रि घने अंधकार के विरोध में खड़ी होती है।[3]
- प्राचीन समय से ही हिन्दू धर्म में रात का समय काफ़ी महत्त्वपूर्ण समझा जाता है। कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों तथा तांत्रिक क्रियाओं आदि के लिए रात का समय उपयुक्त माना जाता है।
- हिन्दू धर्म में अमावस्या तथा पूर्णिमा की रात का भी अपना महत्त्व है। कई धार्मिक त्योहार भी रात्रि से ही जुड़े हैं, जैसे- जन्माष्टमी, शिवरात्रि तथा दीपावली आदि।
हिन्दी | सूर्यास्त के बाद सूर्योदय तक का समय। रजनी, निशा। |
-व्याकरण | स्त्रीलिंग |
-उदाहरण | अश्वत्थामा रात में अंधकार का लाभ उठाकर पांडव शिविर में घुस गया और वहाँ सोते हुए धृष्टद्युम्न, शिखंडी तथा द्रौपदी के पाँचों पुत्रों आदि का वध कर दिया। |
-विशेष | ध्रुव प्रदेशों में 6 महीने की रात और 6 महीने का दिन होता है। |
-विलोम | दिन |
-पर्यायवाची | निशा, क्षया, रैन, रात, यामिनी, शर्वरी, तमस्विनी, विभावरी। |
संस्कृत | [< संस्कृत रात्र/रात्रि] |
अन्य ग्रंथ | |
संबंधित शब्द | |
संबंधित लेख |
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