टी. एस. ठाकुर: Difference between revisions

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Revision as of 06:29, 20 December 2016

टी. एस. ठाकुर
पूरा नाम तीरथ सिंह ठाकुर
जन्म 4 जनवरी, 1952
जन्म भूमि रामबन, जम्मू-कश्मीर
अभिभावक पिता- देवीदास ठाकुर
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र न्यायपालिका
प्रसिद्धि भारत के मुख्य न्यायाधीश
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश
पदस्थ 3 दिसम्बर, 2015 (भारत के मुख्य न्यायाधीश)
द्वारा नियुक्त राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
पूर्वाधिकारी एच. एल. दत्तू
अन्य जानकारी तीरथ सिंह ठाकुर एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं। उन्होंने चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा था। जम्मू-कश्मीर में 1987 के विधानसभा के चुनावों में उन्होंने रामबन विधानसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आज़माया और उनका मुक़ाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भरत गांधी के साथ था।

तीरथ सिंह ठाकुर (अंग्रेज़ी: Tirath Singh Thakur, जन्म: 4 जनवरी, 1952, रामबन, जम्मू-कश्मीर) भारत के 43वें एवं वर्तमान मुख्य न्यायाधीश हैं। वे पूर्व में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रह चुके हैं। उन्होंने 3 दिसम्बर, 2015 को पदभार ग्रहण किया था। टी. एस. ठाकुर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय के भी मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। उन्होंने एच. एल. दत्तू के सेवानिवृत्त होने के बाद देश के 43वें मुख्य न्यायाधीश का कार्यभार संभाला है।

परिचय

न्यायमूति तीरथ सिंह ठाकुर का जन्म 4 जनवरी, 1952 को जम्मू-कश्मीर में रामवन ज़िले में हुआ था। उनके पिता का नाम देवीदास ठाकुर था, जो शेख अब्दुल्ला के सहयोगी और 1975 में शेख अब्दुल्लाह के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री भी रह चुके थे। टी. एस. ठाकुर ने बतौर वकील अक्टूबर, 1972 में अपना पंजीकरण कराया और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में दीवानी, फौजदारी, टैक्स, संवैधानिक मामलों तथा नौकरी से संबंधित मामलों में वकालत शुरू की। इसके बाद उन्होंने अपने पिता प्रसिद्ध अधिवक्ता देवीदास ठाकुर के चैंबर में काम शुरू किया। न्यायमूर्ति ठाकुर के पिता भी जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और फिर केंद्रीय मंत्री रह चुके थे। टी. एस. ठाकुर को 17 नवंबर, 2009 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। देश के प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल एक साल से कुछ अधिक 4 जनवरी, 2017 तक रहेगा। 63 वर्षीय ठाकुर ने आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी प्रकरण में फैसला सुनाने वाली पीठ की अध्यक्षता की थी। बहुचर्चित शारदा चिटफंड घोटाले के मामले की जांच की निगरानी भी न्यायमूर्ति ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ही कर रही है।[1]

कर्तव्यनिष्ठ

न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर ने एक बार अपने पिता की सरकार की बर्खास्तगी की भी मांग कर दी थी। यह ग़ुलाम मोहम्मद शाह की सरकार थी, जिसमें टी. एस. ठाकुर के पिता देवीदास ठाकुर उपमुख्यमंत्री थे। ग़ुलाम मुहम्मद शाह 2 जुलाई 1984 से 6 मार्च 1986 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। उस दौरान टी. एस. ठाकुर जम्मू हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हुआ करते थे। बार एसोसिएशन में उनके पुराने साथी बताते हैं कि ग़ुलाम मोहम्मद शाह की सरकार विवादों में थी और चारों तरफ सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे थे। टी. एस. ठाकुर को लंबे समय से जानने वाले और वरिष्ठ वकील बी. एस. सलाथिया कहते हैं, "तीरथ सिंह ठाकुर हमेशा से सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने का माद्दा रखते थे। जब वे अपने पिता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा सकते हैं तो आप समझ जाइए कि वो ग़लत होते हुए नहीं देख सकते हैं। वे जिस पद पर आज हैं, वहां वे भला कैसे चुप रह सकते हैं, जब पूरे देश में जजों की इतनी कमी है।"[2]

विधानसभा चुनाव में पराजय

यह बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि तीरथ सिंह ठाकुर एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं। उन्होंने चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा था। जम्मू-कश्मीर में 1987 के विधानसभा के चुनावों में उन्होंने रामबन विधानसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आज़माया और उनका मुक़ाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भरत गांधी के साथ था। तीरथ सिंह ठाकुर ये चुनाव हार गए थे। उन्हें कुल 8,597 वोट मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी भरत गांधी को 14339। रामबन के पुराने लोगों में से एक ग़ुलाम क़ादिर वानी बताते हैं कि ठाकुर चुनाव इसलिए हार गए थे, क्योंकि राजनीति और ख़ास तौर पर चुनावों में जो तिकड़म नेता अपनाया करते हैं, उससे वे पूरी तरह अनभिज्ञ थे। चुनाव जीतने के लिए सब कुछ करना पड़ता है। सिर्फ उसूलों से चुनाव जीते नहीं जाते। हालांकि उनके पिता उपमुख्यमंत्री रहे हैं, मगर तीरथ सिंह ठाकुर को वे सारे तिकड़म नहीं आते थे। इसलिए वोटरों को रिझाने के लिए वे ऐसा कुछ नहीं कर पाए।"

महत्त्वपूर्ण फ़ैसले

न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर अपने फ़ैसलों के लिए जाने जाते रहे हैं, क्योंकि हर मामले में उनका अध्ययन साफ़ झलकता रहा। उनके कुछ प्रमुख फ़ैसले जिनकी बहुत चर्चा रही, इस प्रकार हैं[2]-

  • महाराष्ट्र में पर्यूषण पर्व के दौरान मांस पर प्रतिबन्ध के मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने टिप्पणी की थी कि- "मांस प्रतिबन्ध किसी के गले के अंदर ज़बरदस्ती ठूंसे नहीं जा सकते।"
  • उन्होंने कबीर का हवाला देते हुए कहा कि- "कबीर ने कहा था कि तुम उन लोगों के घरों में तांक-झाँक क्यों करते हो जो मांस खाते हैं। वो जो कर रहे हैं उन्हें करने दो भाई। तुम्हें इतनी चिंता क्यों है।
  • फ़रवरी 2015 में न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति ए. के. गोयल की खंडपीठ ने बहु-विवाह पर कहा था कि इस्लाम में यह प्रथा नहीं है और सरकार इस पर क़ानून बना सकती है।
  • इससे पहले 2015 के जनवरी माह में एक आदेश में कहा कि बीसीसीआई का क्रिकेट में कोई व्यावसायिक हित नहीं होना चाहिए। इस फ़ैसले के बाद बीसीसीआई के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन को अपना पद छोड़ना पड़ा।

उल्लेखनीय तथ्य

  1. टी. एस. ठाकुर का अक्तूबर 1972 में बतौर वकील पंजीकरण हुआ और उन्होंने अपने पिता के साथ वकालत शुरू की।
  2. न्यायमूर्ति ठाकुर को 1990 में वरिष्ठ वकील नामित किया गया और 16 फ़रवरी 1994 को उन्हें जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में अतिरिक्त जज नियुक्त किया गया। जहां से मार्च 1994 में कर्नाटक उच्च न्यायालय में उनका तबादला हो गया।
  3. सितंबर 1995 में उन्हें स्थाई जज बनाया गया और फिर जुलाई 2004 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया।
  4. न्यायमूर्ति ठाकुर 9 अप्रैल 2008 को दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बने और 11 अगस्त 2008 को उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया। इसके बाद उन्हें पदोन्नति देकर सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने 17 नवंबर, 2009 को अपना पदभार ग्रहण किया।[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जस्टिस तीर्थ सिंह ठाकुर होंगे देश के अगले चीफ जस्टिस (हिन्दी) ndtv.com। अभिगमन तिथि: 20 दिसम्बर, 2016।
  2. 2.0 2.1 पिता को भी नहीं बख्शा था जस्टिस ठाकुर ने (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 20 दिसम्बर, 2016।
  3. तीरथ सिंह ठाकुर- क्रिमिनल लॉयर से देश के मुख्य न्यायाधीश पद तक का सफर (हिन्दी) oneindia.com। अभिगमन तिथि: 20 दिसम्बर, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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