इम्पीरियल फ़िल्म कम्पनी: Difference between revisions

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इम्पीरियल फ़िल्म कम्पनी (अंग्रेज़ी: Imperial Films Company) सन 1926 में शुरू की गई थी। फ़िल्म कंपनियों के इस दौर में सन 1926 में युसुफ़ अली और दाऊद जी रंगवाला के साथ मिलकर आर्देशिर ईरानी द्वारा स्थापित इंपीरियल फिल्म्स कंपनी का विशेष महत्व था। इस कंपनी ने कोहिनूर फ़िल्म कम्पनी में काम कर रहे कई मशहूर कलाकारों को अपने यहाँ काम करने का अवसर दिया था। उनमें मुख्य हैं- सुलोचना, जुबेदा और जिल्लू।

ऐतिहासिक फ़िल्मों का निर्माण

इम्पीरियल फ़िल्म कम्पनी में कुछ समय के लिए युवा पृथ्वीराज कपूर ने भी काम किया था। यह दौर मुख्यत: धार्मिक फ़िल्मों का था, धार्मिक कथाओं पर आधारित फ़िल्में ही ज्यादा निर्मित होती थीं। कुछ ऐसी भी कंपनियाँ और फ़िल्म निर्माता उभर रहे थे, जो सामाजिक फ़िल्मों के निर्माण की ओर ध्यान दे रहे थे। इस बदलते दौर में इम्पीरियल फ़िल्म कम्पनी ने कुछ अलग और बेहतर कर दिखाने के ध्येय से ऐतिहासिक फ़िल्मों के निर्माण की दिशा में सोचना शुरू कर दिया।[1]

ऐतिहासिक प्रेम कथा के रूप में अनारकली और सलीम की प्रेमकथा मुग़ल काल के इतिहास की पृष्ठभूमि में सदा से लोगों में लोकप्रिय रही है। सन 1928 में इस कंपनी ने इसी कथा पर आर.एस. चौधरी के निर्देशन में "अनारकली" फ़िल्म का निर्माण किया और इसी वर्ष इसी प्रेमकथा पर चारू रॉय द्वारा निर्देशित "द लव ऑफ़ ए मुग़ल प्रिंस" का भी निर्माण किया गया। ये दोनों फ़िल्में ऐतिहासिक कथा पर आधारित होने के कारण काफ़ी महंगी भी थीं। इन दोनों में से "अनारकाली" अधिक लोकप्रिय और सफल सिद्ध हुई और चारू रॉय को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा। इसी कथा पर बाद में दो और फ़िल्में काफ़ी अंतराल के बाद बनी थीं, जिसमें सन 1935 में बनी अनारकली और फिर 1960 में बनी फ़िल्म थी के. आसिफ़ की "मुग़ल-ए-आज़म"।

फ़िल्म 'आलमआरा'

ऐतिहासिक फ़िल्मों के निर्माण में शुरू से ही इम्पीरियल फ़िल्म कम्पनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1931 में बनी पहली सवाक् फ़िल्म "आलमआरा" भी इसी ने बनाई थी। "आलमआरा" कलकत्ता के मदन थियेटर द्वारा निर्मित प्रथम अवाक् फ़िल्म "शीरीं फरहाद" से पहले रिलीज़ हुई, जिस कारण वह प्रथम सवाक् फ़िल्म का इतिहास रचने में पिछड़ गई। "आलमआरा" 14 मार्च, 1931 को मुंबई के मेजेस्टिक थियेटर में रिलीज़ हुई थी। "आलमारा" से आर्देशिर ईरानी भारत की पहली सवाक् फ़िल्म के निर्माता बन गए और मास्टर विट्ठल तथा जुबेदा बने भारत की पहली सवाक् फ़िल्म के नायक और नायिका। इस फ़िल्म में युवा पृथ्वीराज कपूर और दक्षिण (मद्रास) के मशहूर फ़िल्म लेबोरेटरी के मालिक एल.वी. प्रसाद ने भी अभिनय किया था। "आलमारा" ने भारत की प्रथम सवाक् फ़िल्म के साथ-साथ गीत, नृत्य और संगीत के लिए भी भारत की पहली फ़िल्म होने का गौरव प्राप्त किया। यह फ़िल्म फ़ारसी थियेटर के लिए लिखी गई एक जादुई नाटक पर आधारित थी और इस फ़िल्म का मुख्य आकर्षण इसके सात गाने थे।[1]

अन्य भाषाओं में फ़िल्म निर्माण

इम्पीरियल फ़िल्म कम्पनी ने 1931 में ही तमिल भाषा में भी एक फ़िल्म बनाई थी, जिसका नाम था "कालीदास" और इसके निर्देशक थे एच.एम. रेड्डी। इस फ़िल्म कंपनी ने अपनी ही कई मूक फ़िल्मों का सवाक् फ़िल्मों में पुनर्निमाण किया। ऐसी फ़िल्मों में 1928 में निर्मित मूक फ़िल्म "अनारकली" थी, जिसे पुन: सवाक् फ़िल्म के रूप में इसी नाम से पुन: 1935 में बनाया गया। हिंदी के अतिरिक्त इस फ़िल्म कंपनी ने अन्य भारतीय भाषाओं में भी फ़िल्में बनाईं। गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगु, बर्मी, पश्तो, और उर्दू आदि में भी इस कंपनी ने कई फ़िल्में बनाईं। इसी कंपनी के अंतर्गत "गिडवानी" ने "किसान कन्या" सन 1937 में बनाई, जो भारत की प्रथम स्वदेशी रंगीन फ़िल्म थी।

अधिग्रहण

सन 1938 इम्पीरियल फ़िल्म कम्पनी बंद हो गई और 'सागर मूवीटोन' द्वारा इसका अधिग्रहण कर लिया गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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