इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय: Difference between revisions
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1595 ई. में इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने अहमदनगर के सुल्तान को पराजित कर मार डाला। परन्तु शीघ्र ही दोनों राज्यों को [[मुग़ल काल|मुग़ल साम्राज्य]] द्वारा आत्मसात् कर लिये जाने की योजना का सामना करना पड़ा। इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, | 1595 ई. में इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने अहमदनगर के सुल्तान को पराजित कर मार डाला। परन्तु शीघ्र ही दोनों राज्यों को [[मुग़ल काल|मुग़ल साम्राज्य]] द्वारा आत्मसात् कर लिये जाने की योजना का सामना करना पड़ा। इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, विद्वान् एवं धार्मिक रूप से सहिष्णु शासक था। उसने अपने राज्य में [[हिन्दू]] और [[ईसाई धर्म|ईसाई]] प्रजा को पूरी धार्मिक आज़ादी दे रखी थी। उसने प्रशासन में कई सुधार किये, भूमि का बन्दोबस्त ठीक किया, [[गोवा]] के [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] से मैत्री पूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये, अपने राज्य का विस्तार [[मैसूर]] की सीमा तक किया। | ||
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बीजापुर में कई सुन्दर इमारतें बनवायीं। उसके विषय में 'मीडोज टेलर' ने कहा है कि, 'इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, आदिलशाही वंश का सबसे बड़ा सुल्तान था, और बहुत-सी बातों में उसके संस्थापक को छोड़कर सबसे अधिक योग्य ओर लोकप्रिय भी था।' उसने 1618-1619 ई. में [[बीदर]] को [[बीजापुर]] में मिला लिया। ग़रीबों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने के कारण इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय को 'अबलाबाबा' एवं विद्वानों को संरक्षण देने के कारण 'जगतगुरु' की उपाधि दी गई। | बीजापुर में कई सुन्दर इमारतें बनवायीं। उसके विषय में 'मीडोज टेलर' ने कहा है कि, 'इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, आदिलशाही वंश का सबसे बड़ा सुल्तान था, और बहुत-सी बातों में उसके संस्थापक को छोड़कर सबसे अधिक योग्य ओर लोकप्रिय भी था।' उसने 1618-1619 ई. में [[बीदर]] को [[बीजापुर]] में मिला लिया। ग़रीबों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने के कारण इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय को 'अबलाबाबा' एवं विद्वानों को संरक्षण देने के कारण 'जगतगुरु' की उपाधि दी गई। |
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thumb|इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने 1580 से 1627 ई. तक राज्य किया था। वह आदिलशाही वंश का छठा शासक था। उसकी माँ अहमदनगर की प्रसिद्ध शाहज़ादी, चाँद बीबी थी। इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय जिस समय गद्दी पर बैठा, उस समय वह नाबालिग था, और राज्य का प्रबंध 1584 ई. तक उसकी माँ देखती रही। 1584 ई. में चाँद बीबी अहमदनगर वापस लौट गयी।
व्यक्तित्व
1595 ई. में इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने अहमदनगर के सुल्तान को पराजित कर मार डाला। परन्तु शीघ्र ही दोनों राज्यों को मुग़ल साम्राज्य द्वारा आत्मसात् कर लिये जाने की योजना का सामना करना पड़ा। इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, विद्वान् एवं धार्मिक रूप से सहिष्णु शासक था। उसने अपने राज्य में हिन्दू और ईसाई प्रजा को पूरी धार्मिक आज़ादी दे रखी थी। उसने प्रशासन में कई सुधार किये, भूमि का बन्दोबस्त ठीक किया, गोवा के पुर्तग़ालियों से मैत्री पूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये, अपने राज्य का विस्तार मैसूर की सीमा तक किया।
स्थापत्य निर्माण
बीजापुर में कई सुन्दर इमारतें बनवायीं। उसके विषय में 'मीडोज टेलर' ने कहा है कि, 'इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय, आदिलशाही वंश का सबसे बड़ा सुल्तान था, और बहुत-सी बातों में उसके संस्थापक को छोड़कर सबसे अधिक योग्य ओर लोकप्रिय भी था।' उसने 1618-1619 ई. में बीदर को बीजापुर में मिला लिया। ग़रीबों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने के कारण इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय को 'अबलाबाबा' एवं विद्वानों को संरक्षण देने के कारण 'जगतगुरु' की उपाधि दी गई।
रचनाएँ
इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय ने हिन्दी कविता की प्रसिद्ध पुस्तक 'किताब-ए-नवरस' का रचना की। इस पुस्तक में विभिन्न रागों का वर्णन किया गया है। इसमें उपलब्ध कविताएँ विभिन्न रागों में गायन हेतु रचित की गई हैं। उसके शासन काल में ही 'मुहम्मद कासिम', जो फ़रिश्ता के नाम से प्रसिद्ध था, ने 'तारीख़-ए-फ़रिश्ता' की रचना की। उसने 'नौरसपुर' नामक नगर की स्थापना की थी।
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