राजनीति में जवाहरलाल नेहरू: Difference between revisions
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मार्क्सवाद और समाजवादी विचारधारा में नेहरू की वास्तविक रुचि इसी यात्रा से पैदा हुई, यद्यपि इससे उनके साम्यवादी सिद्धांतों और व्यवहार के ज्ञान में कोई ख़ास वृद्धि नहीं हुई। बाद में जेल यात्राओं के दौरान उन्हें अधिक गहराई से मार्क्सवाद के अध्ययन का मौक़ा मिला। इसके सिद्धांतों में उनकी रुचि थी, लेकिन इसके कुछ तरीक़ों से विकर्षित होने के कारण वह कार्ल मार्क्स की कृतियों को सारे प्रश्नों का उत्तर देने वाले शास्त्रों के रूप में स्वीकार नहीं कर पाए। फिर भी मार्क्सवाद ही उनकी आर्थिक विचारधारा का मानदंड रहा, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर भारतीय परिस्थितियों के अनुसार फेरबदल किया गया। | मार्क्सवाद और समाजवादी विचारधारा में नेहरू की वास्तविक रुचि इसी यात्रा से पैदा हुई, यद्यपि इससे उनके साम्यवादी सिद्धांतों और व्यवहार के ज्ञान में कोई ख़ास वृद्धि नहीं हुई। बाद में जेल यात्राओं के दौरान उन्हें अधिक गहराई से मार्क्सवाद के अध्ययन का मौक़ा मिला। इसके सिद्धांतों में उनकी रुचि थी, लेकिन इसके कुछ तरीक़ों से विकर्षित होने के कारण वह कार्ल मार्क्स की कृतियों को सारे प्रश्नों का उत्तर देने वाले शास्त्रों के रूप में स्वीकार नहीं कर पाए। फिर भी मार्क्सवाद ही उनकी आर्थिक विचारधारा का मानदंड रहा, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर भारतीय परिस्थितियों के अनुसार फेरबदल किया गया। | ||
==पहला चुनाव प्रचार== | ==पहला चुनाव प्रचार== | ||
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पहला चुनाव प्रचार भी यादगार है। एक कमेंटेटर के | देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पहला चुनाव प्रचार भी यादगार है। एक कमेंटेटर के मुताबिक़ कांग्रेस का चुनाव प्रचार केवल नेहरू पर केन्द्रित था। चुनाव में नेहरू ने सड़क, रेल, पानी और हवाई जहाज़ सभी का सहारा लिया। उन्होंने 25,000 मील की दूरी तय की। 18,000 मील हवाई जहाज़ से, 5200 मील कार से, 1600 मील ट्रेन से और 90 मील नाव से। [[चुनाव आयोग]] के लिए राहत की बात ये थी कि निरक्षरता के बावजूद पूरे देश में 60 प्रतिशत वोटिंग हुई। जबकि पहले [[लोकसभा]] चुनावों में कांग्रेस को सबसे ज़्यादा 364 सीटें मिली थी। | ||
====राज्यों का पुनर्गठन==== | ====राज्यों का पुनर्गठन==== | ||
नेहरू के समय में एक और अहम फ़ैसला भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का था। इसके लिए राज्य पुनर्गठन क़ानून (1956) पास किया गया। आज़ादी के बाद भारत में राज्यों की सीमाओं में हुआ यह सबसे बड़ा बदलाव था। इसके तहत 14 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों की स्थापना हुई। इसी क़ानून के तहत केरल और बॉम्बे को राज्य का दर्जा मिला। संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया जिसके तहत भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला। | नेहरू के समय में एक और अहम फ़ैसला भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का था। इसके लिए राज्य पुनर्गठन क़ानून (1956) पास किया गया। आज़ादी के बाद भारत में राज्यों की सीमाओं में हुआ यह सबसे बड़ा बदलाव था। इसके तहत 14 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों की स्थापना हुई। इसी क़ानून के तहत केरल और बॉम्बे को राज्य का दर्जा मिला। संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया जिसके तहत भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला। |
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राजनीति में जवाहरलाल नेहरू
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पूरा नाम | पंडित जवाहरलाल नेहरू |
अन्य नाम | चाचा नेहरू, पंडित जी |
जन्म | 14 नवम्बर, 1889 |
जन्म भूमि | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 27 मई, 1964 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
मृत्यु कारण | दिल का दौरा |
अभिभावक | पं. मोतीलाल नेहरू और स्वरूप रानी |
पति/पत्नी | कमला नेहरू |
संतान | इंदिरा गाँधी |
स्मारक | शांतिवन, दिल्ली |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
पद | भारत के प्रथम प्रधानमंत्री |
कार्य काल | 15 अगस्त 1947-27 मई 1964 |
शिक्षा | बैरिस्टर |
विद्यालय | इंग्लैण्ड के हैरो स्कूल, केंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी |
जेल यात्रा | नौ बार जेल यात्रा की |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न सम्मान |
संबंधित लेख | जलियाँवाला बाग़, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, इंदिरा गाँधी |
रचनाएँ | विश्व इतिहास की झलक, भारत की खोज आदि |
अन्य जानकारी | नेहरू जी का जन्म दिवस 14 नवंबर पूरे देश में बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। |
भारत लौटने के बाद नेहरूजी ने पहले वकील के रूप में स्थापित होने का प्रयास किया लेकिन अपने पिता के विपरीत उनकी इस पेशे में कोई ख़ास रुची नहीं थी और उन्हें वकालत और वकीलों का साथ, दोनों ही नापसंद थे। उस समय वह अपनी पीढ़ी के कई अन्य लोगों की भांति भीतर से एक ऐसे राष्ट्रवादी थे, जो अपने देश की आज़ादी के लिए बेताब हो, लेकिन अपने अधिकांश समकालीनों की तरह उसे हासिल करने की ठोस योजनाएं न बना पाया हो।
गाँधी जी से मुलाकात
1916 ई. के लखनऊ अधिवेशन में वे सर्वप्रथम महात्मा गाँधी के सम्पर्क में आये। गांधी उनसे 20 साल बड़े थे। दोनों में से किसी ने भी आरंभ में एक-दूसरे को बहुत प्रभावित नहीं किया। बहरहाल, 1929 में कांग्रेस के ऐतिहासिक लाहौर अधिवेशन का अध्यक्ष चुने जाने तक नेहरू भारतीय राजनीति में अग्रणी भूमिका में नहीं आ पाए थे। इस अधिवेशन में भारत के राजनीतिक लक्ष्य के रूप में संपूर्ण स्वराज्य की घोषणा की गई। उससे पहले मुख्य लक्ष्य औपनिवेशिक स्थिति की माँग था। नेहरू जी के शब्दों में:-
कुटिलता की नीति अन्त में चलकर फ़ायदेमन्द नहीं होती। हो सकता है कि अस्थायी तौर पर इससे कुछ फ़ायदा हो जाए।[[चित्र:Jawaharlal-Nehru-And-Mahatma-Gandhi.jpg|thumb|जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गाँधी|left]]
अगर हम इस देश की ग़रीबी को दूर करेंगे, तो क़ानूनों से नहीं, शोरगुल मचाके नहीं, शिकायत करके नहीं, बल्कि मेहनत करके। एक-एक आदमी बूढ़ा और छोटा, मर्द , औरत और बच्चा मेहनत करेगा। हमारे सामने आराम नहीं है।
समय के साथ-साथ पं. नेहरू की रुचि भारतीय राजनीति में बढ़ती गयी। जलियाँवाला बाग़ हत्याकाण्ड की जाँच में देशबन्धु चितरंजनदास एवं महात्मा गाँधी के सहयोगी रहे और 1921 के असहयोग आन्दोलन में तो महात्मा गाँधी के अत्यधिक निकट सम्पर्क में आ गये। यह सम्बन्ध समय की गति के साथ-साथ दृढ़तर होता गया और उसकी समाप्ति केवल महात्मा गाँधी जी की मृत्यु से ही हुई।
गाँधी जी के अनुयायी के रूप में
नेहरू की आत्मकथा से भारतीय राजनीति में उनकी गहरी रुचि का पता चलता है। उन्हीं दिनों अपने पिता को लिखे गए पत्रों से भारत की स्वतंत्रता में उन दोनों की समान रुचि दिखाई देती है। लेकिन गांधी से मुलाक़ात होने तक पिता और पुत्र में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए निश्चित योजनाओं का विकास नहीं हुआ था। गांधी ने उन्हें राजनीति में अपना अनुयायी बना लिया। गांधी द्वारा कर्म पर बल दिए जाने के गुण से वह दोनों प्रभावित हुए। महात्मा गांधी का तर्क था कि ग़लती की सिर्फ़ निंदा ही नहीं, बल्कि प्रतिरोध भी किया जाना चाहिए। इससे पहले नेहरू और उनके पिता समकालीन भारतीय राजनीतिज्ञों का तिरस्कार करते थे, जिनका राष्ट्रवाद, कुछ अपवादों को छोड़कर लंबे भाषणों और प्रस्तावों तक सीमित था। गांधी द्वारा ग्रेट ब्रिटेन के ख़िलाफ़ बिना भय या घृणा के लड़ने पर ज़ोर देने से भी जवाहरलाल बहुत प्रभावित हुए।
जेल यात्रा
[[चित्र:Gandhi-Patel-Nehru.png|thumb|250px|महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू]]
कांग्रेस पार्टी के साथ नेहरू का जुड़ाव 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद आरंभ हुआ। इस काल में राष्ट्रवादी गतिविधियों की लहर ज़ोरों पर थी और अप्रैल 1919 को अमृतसर के नरसंहार के रूप में सरकारी दमन खुलकर सामने आया; स्थानीय ब्रिटिश सेना कमांडर ने अपनी टुकड़ियों को निहत्थे भारतीयों की एक सभा पर गोली चलाने का हुक्म दिया, जिसमें 379 लोग मारे गये और कम से कम 1,200 घायल हुए। नेहरू जी के शब्दों में:-
भारत की सेवा का अर्थ, करोड़ों पीड़ितों की सेवा है। इसका अर्थ दरिद्रता और अज्ञान, और अवसर की विषमता का अन्त करना है। हमारी पीढ़ी के सबसे बड़े आदमी की यह आकांक्षा रही है-कि प्रत्येक आँख के प्रत्येक आँसू को पोंछ दिया जाए। ऐसा करना हमारी शक्ति से बाहर हो सकता है, लेकिन जब तक आँसू हैं और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा।
तीन मूर्ति भवन, जवाहरलाल नेहरू का निवास, दिल्ली
Teen Murti Bhavan, Nehru's Residence |thumb|left
1921 के आख़िर में जब कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेताओं और कार्यकर्ताओं को कुछ प्रांतों में ग़ैर क़ानूनी घोषित कर दिया गया, तब पहली बार नेहरू जेल गये। अगले 24 वर्ष में उन्हें आठ बार बंदी बनाया गया, जिनमें से अंतिम और सबसे लंबा बंदीकाल, लगभग तीन वर्ष का कारावास जून 1945 में समाप्त हुआ। नेहरू ने कुल मिलाकर नौ वर्ष से ज़्यादा समय जेलों में बिताया। अपने स्वभाव के अनुरूप ही उन्होंने अपनी जेल-यात्राओं को असामान्य राजनीतिक गतिविधि वाले जीवन के अंतरालों के रूप में वर्णित किया है।
व्यापक क्षेत्रों की यात्रा
कांग्रेस के साथ उनका राजनीतिक प्रशिक्षण 1919 से 1929 तक चला। 1923 में और फिर 1927 में वह दो-दो वर्ष के लिए पार्टी के महासचिव बने। उनकी रुचियों और ज़िम्मेदारियों ने उन्हें भारत के व्यापक क्षेत्रों की यात्रा का अवसर प्रदान किया, विशेषकर उनके गृह प्रदेश संयुक्त प्रांत का, जहाँ उन्हें घोर ग़रीबी और किसानों की बदहाली की पहली झलक मिली और जिसने इन महत्त्वपूर्ण समस्याओं को दूर करने की उनकी मूल योजनाओं को प्रभावित किया। यद्यपि उनका कुछ-कुछ झुकाव समाजवाद की ओर था, लेकिन उनका सुधारवाद किसी निश्चित ढांचे में ढला हुआ नहीं था। 1926-27 में उनकी यूरोप तथा सोवियत संघ की यात्रा ने उनके आर्थिक और राजनीतिक चिंतन को पूरी तरह प्रभावित कर दिया। नेहरू जी ने कहा था:-
अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से, आज का बड़ा सवाल विश्वशान्ति का है। आज हमारे लिए यही विकल्प है कि हम दुनिया को उसके अपने रूप में ही स्वीकार करें। हम देश को इस बात की स्वतन्त्रता देते रहे कि वह अपने ढंग से अपना विकास करे और दूसरों से सीखे, लेकिन दूसरे उस पर अपनी कोई चीज़ नहीं थोपें। निश्चय ही इसके लिए एक नई मानसिक विधा चाहिए। पंचशील या पाँच सिद्धान्त यही विधा बताते हैं।
मार्क्सवाद और समाजवादी विचारधारा में नेहरू की वास्तविक रुचि इसी यात्रा से पैदा हुई, यद्यपि इससे उनके साम्यवादी सिद्धांतों और व्यवहार के ज्ञान में कोई ख़ास वृद्धि नहीं हुई। बाद में जेल यात्राओं के दौरान उन्हें अधिक गहराई से मार्क्सवाद के अध्ययन का मौक़ा मिला। इसके सिद्धांतों में उनकी रुचि थी, लेकिन इसके कुछ तरीक़ों से विकर्षित होने के कारण वह कार्ल मार्क्स की कृतियों को सारे प्रश्नों का उत्तर देने वाले शास्त्रों के रूप में स्वीकार नहीं कर पाए। फिर भी मार्क्सवाद ही उनकी आर्थिक विचारधारा का मानदंड रहा, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर भारतीय परिस्थितियों के अनुसार फेरबदल किया गया।
पहला चुनाव प्रचार
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पहला चुनाव प्रचार भी यादगार है। एक कमेंटेटर के मुताबिक़ कांग्रेस का चुनाव प्रचार केवल नेहरू पर केन्द्रित था। चुनाव में नेहरू ने सड़क, रेल, पानी और हवाई जहाज़ सभी का सहारा लिया। उन्होंने 25,000 मील की दूरी तय की। 18,000 मील हवाई जहाज़ से, 5200 मील कार से, 1600 मील ट्रेन से और 90 मील नाव से। चुनाव आयोग के लिए राहत की बात ये थी कि निरक्षरता के बावजूद पूरे देश में 60 प्रतिशत वोटिंग हुई। जबकि पहले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे ज़्यादा 364 सीटें मिली थी।
राज्यों का पुनर्गठन
नेहरू के समय में एक और अहम फ़ैसला भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का था। इसके लिए राज्य पुनर्गठन क़ानून (1956) पास किया गया। आज़ादी के बाद भारत में राज्यों की सीमाओं में हुआ यह सबसे बड़ा बदलाव था। इसके तहत 14 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों की स्थापना हुई। इसी क़ानून के तहत केरल और बॉम्बे को राज्य का दर्जा मिला। संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया जिसके तहत भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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