File:Raskhan-1.jpg

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विवरण (Description) | रसखान की समाधि, महावन, मथुरा |
दिनांक (Date) | वर्ष - 2009 |
प्रयोग अनुमति (Permission) | © brajdiscovery.org |
अन्य विवरण | हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृगांर रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और प्रभु के सगुण और निर्गुण निराकार रूप के प्रति श्रद्धालु हैं। रसखान के सगुण कृष्ण लीलाएं करते हैं। |
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Date/Time | अंगुष्ठ नखाकार (थंबनेल) | Dimensions | User | Comment | |
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current | 15:42, 19 March 2010 | ![]() | 1,200 × 902 (507 KB) | Maintenance script (talk | contribs) | Importing image file |
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- आवत है वन ते मनमोहन -रसखान
- कर कानन कुंडल मोरपखा -रसखान
- कानन दै अँगुरी रहिहौं -रसखान
- कान्ह भये बस बाँसुरी के -रसखान
- खेलत फाग सुहाग भरी -रसखान
- गावैं गुनी गनिका गन्धर्व -रसखान
- गोरी बाल थोरी वैस, लाल पै गुलाल मूठि -रसखान
- जा दिनतें निरख्यौ नँद-नंदन -रसखान
- धूरि भरे अति सोहत स्याम जू -रसखान
- नैन लख्यो जब कुंजन तैं -रसखान
- पहेली 12 दिसम्बर 2016
- पहेली 13 नवम्बर 2020
- पहेली दिसंबर 2016
- प्रान वही जु रहैं रिझि वापर -रसखान
- फागुन लाग्यौ सखि जब तें -रसखान
- बैन वही उनकौ गुन गाइ -रसखान
- ब्रज
- महावन
- मोरपखा मुरली बनमाल -रसखान
- मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं -रसखान
- मोहन हो-हो, हो-हो होरी -रसखान
- या लकुटी अरु कामरिया -रसखान
- रसखान
- रसखान का दर्शन
- रसखान का प्रकृति वर्णन
- रसखान का भाव-पक्ष
- रसखान का रस संयोजन
- रसखान की कविताएँ
- रसखान की भक्ति-भावना
- रसखान की भाषा
- रसखान की साहित्यिक विशेषताएँ
- रसखान व्यक्तित्व और कृतित्व
- संकर से सुर जाहिं जपैं -रसखान
- सेस गनेस महेस दिनेस -रसखान
- सोहत है चँदवा सिर मोर को -रसखान
- प्रयोग:रविन्द्र१