जा दिनतें निरख्यौ नँद-नंदन, कानि तजी घर बन्धन छूट्यो। चारु बिलोकनिकी निसि मार, सँभार गयी मन मारने लूट्यो॥ सागरकौं सरिता जिमि धावति रोकि रहे कुलकौ पुल टूट्यो। मत्त भयो मन संग फिरै, रसखानि सुरूप सुधा-रस घूट्यो॥