संयोगिता

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संयोगिता कन्नौज के महाराज जयचन्द्र की पुत्री थी। जयचन्द्र ने संयोगिता के विवाह हेतु स्वयंवर का आयोजन किया था, किंतु पृथ्वीराज चौहान से शत्रुता के कारण उसने उसे स्वयंवर का निमंत्रण नहीं भेजा। जब राजकुमारी संयोगिता के स्वयंवर का आयोजन किया गया, तब पृथ्वीराज चौहान के अपमान के लिए महल में दरबान के स्थान पर पृथ्वीराज की प्रतिमा लगाई गई। स्वयंवर में पहुँचकर पृथ्वीराज चौहान राजकुमारी संयोगिता का हरण कर ले जाते हैं। इस घटना से दोनों राजाओं में इतनी अधिक शत्रुता पैदा हो गई कि जयचन्द्र ने मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद ग़ोरी से हाथ मिलाकर उसे पृथ्वीराज चौहान पर हमला करने का निमंत्रण दिया। 1192 ई. में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज पराजित हुआ और उसने स्वयं का प्राणांत कर लिया। दो वर्ष बाद सन 1194 ई. में चन्दावर के युद्ध में तुर्क विजेता मुहम्मद ग़ोरी ने जयचन्द्र को भी हराया और मार डाला।

पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेमकथा

पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेमकथा राजस्थान के इतिहास में स्वर्ण अंकित है। वीर राजपूत जवान पृथ्वीराज चौहान को उनके नाना ने गोद लिया था। वर्षों दिल्ली का शासन सुचारु रूप से चलाने वाले पृथ्वीराज को कन्नौज के महाराज जयचंद की पुत्री संयोगिता भा गई। पहली ही नजर में संयोगिता ने भी अपना सर्वस्व पृथ्वीराज को दे दिया, परन्तु दोनों का मिलन इतना सहज न था। महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में कट्टर दुश्मनी थी। राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया गया, जिसमें पृथ्वीराज चौहान को नहीं बुलाया गया तथा उनका अपमान करने हेतु दरबान के स्थान पर उनकी प्रतिमा लगाई गई। ठीक वक्त पर पहुँचकर संयोगिता की सहमति से महाराज पृथ्वीराज उसका अपहरण करते हैं और मीलों का सफर एक ही घोड़े पर तय कर दोनों अपनी राजधानी पहुँचकर विवाह करते हैं। जयचंद के सिपाही बाल भी बाँका नहीं कर पाते। इस अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद ने मुहम्मद ग़ोरी से हाथ मिलाता है तथा उसे पृथ्वीराज पर आक्रमण का न्योता देता है। कहते हैं कि पृथ्वीराज ने 17 बार मुहम्मद ग़ोरी को परास्त किया तथा दरियादिल होकर छोड़ दिया। 18वीं बार धोखे से मुहम्मद ग़ोरी ने पृथ्वीराज को कैद कर लिया तथा अपने मुल्क ले गया। वहाँ पृथ्वीराज के साथ अत्यन्त ही बुरा सलूक किया गया। उनकी आँखें गरम सलाखों से जला दी गईं। अंत में पृथ्वीराज के अभिन्न सखा चंदबरदाई ने योजना बनाई। पृथ्वीराज चौहान शब्द भेदी बाण छोड़ने में माहिर थे। चंदबरदाई ने ग़ोरी तक इस कला के प्रदर्शन की बात पहुँचाई। ग़ोरी ने मंजूरी दे दी। प्रदर्शन के दौरान ग़ोरी के शाबाश लफ्ज के उद्घोष के साथ ही भरी महफिल में अंधे पृथ्वीराज चौहान ने ग़ोरी को शब्दभेदी बाण से मार गिराया तथा इसके पश्चात दुश्मन के हाथ दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक-दूसरे का वध कर दिया। अमर प्रेमिका संयोगिता को जब इसकी जानकारी मिली तो वह भी वीरांगना की भाँति सती हो गई। दोनों की दास्तान प्रेमग्रंथ में अमिट अक्षरों से लिखी गई।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पृथ्वीराज संयोगिता: स्‍वर्णाक्षरों से अंकित प्रेमकथा (हिंदी) वेबदुनिया हिंदी। अभिगमन तिथि: 25 मई, 2014।

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