मध्व

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  • माध्व वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक मध्व अथवा मध्वाचार्य थे। मध्व दक्षिण कर्नाटक के उदीपी नामक स्थान में उत्पन्न हुए थे।
  • मध्व ने तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में अपने सम्प्रदाय की स्थापना की।
  • मध्व बाल्याकाल में ही ये संन्यासी हो गये और प्रथम शांकरमत की दीक्षा ग्रहण की। वेदान्त सम्बन्धी ग्रन्थों के अतिरिक्त इन्होंने ऐतरेयोपनिषद, महाभारत तथा भागवत पुराण पर ध्यान दिया। अन्तिम ग्रन्थ (भागवत पुराण) इनके धार्मिक जीवन पर छा गया।
  • प्रशिक्षण के पूर्ण होने के पहले ही ये शांकर मत से अलग हो गये और अपना द्वैतवादी सिद्धान्त स्थापित किया, जो प्रधानतया भागवत पुराण पर आधृत था। इनके अनेक अनुयायी उद्भट विद्वान हो गये हैं।
  • मध्व का धार्मिक सिद्धान्त रामानुज से बहुत कुछ मिलता-जुलता है, किन्तु दर्शन स्पष्टत: द्वैतवादी है।
  • मध्व बड़ी तीक्ष्णता से जीव एवं ईश्वर का भेद करते हैं और इस प्रकार शंकर से विष्णु स्वामी को छोड़कर अन्य वेदान्तियों की अपेक्षा अत्यन्त दूर खड़े हो जाते हैं।
  • ईश्वरवाद के सिवा इनका सिद्धान्त बहुत कुछ भागवत सम्प्रदाय के समान ही है। इनके धर्म चिन्तन का केन्द्र कृष्ण की भक्तिपूर्ण उपासना है, जैसा कि भागवत की शिक्षा है। किन्तु राधा का नाम इस सम्प्रदाय में नहीं लिया जाता है। यहाँ पर सभी अवतारों का आदर है। माध्व सम्प्रदाय में शिव के साथ पाँच मुख्य देवताओं (पंचायतन) की पूजा भी मान्य है।
  • आचार्य मध्व के प्रमुख ग्रन्थ वेदान्तसूत्र का भाष्य तथा अनुख्यान है। इनके अतिरिक्त अनेक ग्रन्थ इन्होंने रचे, जिनमें मुख्य हैं- गीताभाष्य, भागवत तात्पर्य निर्णय, महाभारत तात्पर्य निर्णय, दशोपनिषदों पर भाष्य, तन्त्रसार संग्रह आदि।[1]




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाण्डेय, डॉ. राजबली हिन्दू धर्मकोश, द्वितीय संस्करण-1988 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 492।

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