रसखान- लक्षणा शक्ति

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  • रसखान में लक्षणा शब्द शक्ति वह शब्द शक्ति है जो कहीं मुख्यार्थ के (अन्वयबोध) वाधित हो जाने पर वहां एक ऐसे अर्थ का अवबोधन करवाया करती है।
  • जो मुख्यार्थ से किसी न किसी रूप में संबंध तो अवश्य रहा करता है, किन्तु मुख्यार्थ के स्वभाव से भिन्न स्वभाव का ही हुआ करता है और ऐसा होने का कारण या तो रूढ़ि है या प्रयोजन-विवक्षा।[1]
  • लक्षणा शक्ति के अनेक भेदोपभेद हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुख्यार्थ बाधे तद्युक्तो ययान्योऽर्थ: प्रतीयते। रूढे: प्रयोजनाद्वाऽसौ लक्षणा शक्तिरर्पिता॥ साहित्यदर्पण, पृ0 48

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