म्या यी

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thumb|200px|म्या यी म्या यी (अंग्रेज़ी: Myayi) दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सक्रिय महिला जांबाजों में से एक थीं। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशवाद का विरोध किया। वह अपने पास हमेशा तलवार और एक ज़हर की शीशी रखती थीं। वह बर्मा से थीं और दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद भी अपने देश में सैन्य शासन के विरुद्ध लड़ती रहीं।

  • म्या यी का संघर्ष दूसरे विश्वयुद्ध में जापानियों के बर्मा पर हमला करने से पहले ही शुरू हो गया था। वह देश की स्वतंत्रता के लिए कट्टरता से लड़ने वालों में थीं और ब्रिटिश औपनिवेशवाद का विरोध कर रही थीं।
  • वह दूसरे विश्वयुद्ध में प्रतिरोध करने वाली ताकतों के साथ जुड़ गई थीं।
  • उनके हाथ में हमेशा तलवार रहती थी। साथ ही उनके पास ज़हर की एक बोतल भी रहती थी।
  • 1944 में म्या यी पैदल ही दुश्मन के इलाके में जा पहुंचीं। वह उस वक्त ब्रिटेन के अधीन भारत में पहुंच गईं और वहां से उन्होंने जापानियों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी।
  • म्या यी ने अपने घावों पर अपनी धोती की पट्टियां बांध लीं और उन्होंने खुद को पुरुषों की मदद से ले जाने से इनकार कर दिया।
  • भारत में उन्होंने पूरे बर्मा में जापानियों के खिलाफ तैयार किए गए पर्चे फिंकवाने में मदद दी। इन पर्चों में कहा गया था कि जापानी शासन कितना बुरा है और वे बर्मा के लोगों के साथ कितना बुरा व्यवहार कर रहे हैं।
  • हालांकि म्या यी ने अपने पति के साथ अपने पहले बच्चे के जन्म के बाद बर्मा वापस लौटने का फैसला किया और उन्हें एक पैराशूटिस्ट के तौर पर प्रशिक्षण दिया गया, लेकिन आखिर वक्त में उन्होंने अपनी सीट एक अन्य फाइटर के लिए छोड़ दी।
  • म्या यी 1945 में जंग खत्म होने के बाद ही बर्मा वापस लौट पाईं।
  • इसके बाद भी उनकी जंग जारी रही। वह स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ती रहीं और उसके बाद उनकी जंग देश के सैन्य शासन के खिलाफ शुरू हो गई।[1]
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