Difference between revisions of "पंचतंत्र"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " कदम " to " क़दम ")
m (Text replacement - "तेजी " to "तेज़ी")
 
(12 intermediate revisions by 4 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''पंचतंत्र''' एक विश्वविख्यात कथा [[ग्रन्थ]] है, जिसके रचयिता श्री विष्णु शर्मा है। इस ग्रन्थ में प्रतिपादित राजनीति के पाँच तंत्र (भाग) हैं। इसी कारण से इसे 'पंचतंत्र' नाम प्राप्त हुआ है। भारतीय साहित्य की नीति कथाओं का विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पंचतंत्र उनमें प्रमुख है। पंचतंत्र को [[संस्कृत भाषा]] में 'पांच निबंध' या 'अध्याय' भी कहा जाता है। उपदेशप्रद भारतीय पशुकथाओं का संग्रह, जो अपने मूल देश तथा पूरे विश्व में व्यापक रूप से प्रसारित हुआ। [[यूरोप]] में इस पुस्तक को 'द फ़ेबल्स ऑफ़ बिदपाई'<ref>कथावाचक भारतीय साधु बिदपाई के नाम पर, जिन्हें [[संस्कृत]] में विद्यापति भी कहते हैं।</ref> के नाम से जाना जाता है। इसका एक संस्करण वहाँ 11वीं शताब्दी में ही पहुँच गया था।
+
{{सूचना बक्सा पुस्तक
 +
|चित्र=Sanskrit panchatantra 11.png
 +
|चित्र का नाम=संस्कृत में रचित पंचतंत्र
 +
|लेखक= [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]]
 +
|कवि=
 +
|मूल_शीर्षक =
 +
|मुख्य पात्र =
 +
|कथानक = इसमें जानवरों को पात्र बनाकर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं।
 +
|अनुवादक =
 +
|संपादक =
 +
|प्रकाशक =
 +
|प्रकाशन_तिथि =
 +
|भाषा = [[संस्कृत]]
 +
|देश = [[भारत]]
 +
|विषय =
 +
|शैली =कहानी
 +
|मुखपृष्ठ_रचना =
 +
|विधा =
 +
|प्रकार =
 +
|पृष्ठ =
 +
|ISBN =
 +
|भाग =इस ग्रन्थ में प्रतिपादित राजनीति के पाँच तंत्र (भाग) हैं। इसी कारण से इसे 'पंचतंत्र' नाम प्राप्त हुआ है।
 +
|विशेष =[[यूरोप]] में इस पुस्तक को 'द फ़ेबल्स ऑफ़ बिदपाई'<ref>कथावाचक भारतीय साधु बिदपाई के नाम पर, जिन्हें [[संस्कृत]] में विद्यापति भी कहते हैं।</ref> के नाम से जाना जाता है। 
 +
|टिप्पणियाँ =
 +
}}
 +
'''पंचतंत्र''' एक विश्वविख्यात [[कथा]] [[ग्रन्थ]] है, जिसके रचयिता [[विष्णु शर्मा|आचार्य विष्णु शर्मा]] है। इस ग्रन्थ में प्रतिपादित राजनीति के पाँच तंत्र (भाग) हैं। इसी कारण से इसे 'पंचतंत्र' नाम प्राप्त हुआ है। भारतीय साहित्य की नीति कथाओं का विश्व में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पंचतंत्र उनमें प्रमुख है। पंचतंत्र को [[संस्कृत भाषा]] में 'पांच निबंध' या 'अध्याय' भी कहा जाता है। उपदेशप्रद भारतीय पशुकथाओं का संग्रह, जो अपने मूल देश तथा पूरे विश्व में व्यापक रूप से प्रसारित हुआ। [[यूरोप]] में इस पुस्तक को 'द फ़ेबल्स ऑफ़ बिदपाई'<ref>कथावाचक भारतीय साधु बिदपाई के नाम पर, जिन्हें [[संस्कृत]] में विद्यापति भी कहते हैं।</ref> के नाम से जाना जाता है। इसका एक संस्करण वहाँ 11वीं शताब्दी में ही पहुँच गया था।
 
==संस्कृत में रचित पंचतंत्र==
 
==संस्कृत में रचित पंचतंत्र==
[[चित्र:sanskrit panchatantra 11.png|संस्कृत में रचित पंचतंत्र|thumb|250px]]
+
सिद्धांत रूप में पंचतंत्र नीति की पाठ्य पुस्तक<ref>विशेषकर राजाओं और राजपुरुषों के लिये</ref> के रूप में रचा गया है; इसकी सूक्तियाँ परोपकार की जगह चतुराई और घाघपन को महिमामंडित करती जान पड़ती है। इसके मूल [[ग्रंथ]] संस्कृत गद्य और [[छंद]] पदों का मिश्रण है, जिसके पांच भागों में से एक में कथाएँ है। इसकी भूमिका में समूची पुस्तक के सार को समेंटा गया है। '''पं॰ विष्णु शर्मा''' नामक एक विद्वान् [[ब्राह्मण]] को इन कहानियों का रचयिता बताया गया है, जिसने उपदेशप्रद पशुकथाओं के माध्यम से एक राजा के तीन मंदबुद्धि बेटों को शिक्षित करने के लिए इस पुस्तक की रचना की थी। प्रमाणों के आधार पर इस [[ग्रंथ]] की रचना के समय उनकी उम्र 80 वर्ष के क़रीब थी।  
सिद्धांत रूप में पंचतंत्र नीति की पाठ्य पुस्तक<ref>विशेषकर राजाओं और राजपुरूषों के लिये</ref> के रूप में रचा गया है; इसकी सूक्तियाँ परोपकार की जगह चतुराई और घाघपन को महिमामंडित करती जान पड़ती है। इसके मूल [[ग्रंथ]] संस्कृत गद्य और [[छंद]] पदों का मिश्रण है, जिसके पांच भागों में से एक में कथाएँ है। इसकी भूमिका में समूची पुस्तक के सार को समेंटा गया है। '''पं॰ विष्णु शर्मा''' नामक एक विद्वान [[ब्राह्मण]] को इन कहानियों का रचयिता बताया गया है, जिसने उपदेशप्रद पशुकथाओं के माध्यम से एक राजा के तीन मंदबुद्धि बेटों को शिक्षित करने के लिए इस पुस्तक की रचना की थी। प्रमाणों के आधार पर इस [[ग्रंथ]] की रचना के समय उनकी उम्र 80 वर्ष के क़रीब थी।  
 
 
====पंचतंत्र नाम====
 
====पंचतंत्र नाम====
 
पांच अध्याय में लिखे जाने के कारण इस पुस्तक का नाम '''पंचतंत्र''' रखा गया। इस किताब में जानवरों को पात्र बनाकर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं। इसमें मुख्यत: पिंगलक नामक [[सिंह]] के सियार मंत्री के दो बेटों दमनक और करटक के बीच के संवादों और कथाओं के जरिए व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा दी गई है। सभी कहानियां प्राय: करटक और दमनक के मुंह से सुनाई गई हैं। पंचतंत्र के पांच अध्याय (तंत्र/भाग) है।  
 
पांच अध्याय में लिखे जाने के कारण इस पुस्तक का नाम '''पंचतंत्र''' रखा गया। इस किताब में जानवरों को पात्र बनाकर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं। इसमें मुख्यत: पिंगलक नामक [[सिंह]] के सियार मंत्री के दो बेटों दमनक और करटक के बीच के संवादों और कथाओं के जरिए व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा दी गई है। सभी कहानियां प्राय: करटक और दमनक के मुंह से सुनाई गई हैं। पंचतंत्र के पांच अध्याय (तंत्र/भाग) है।  
Line 8: Line 32:
 
# मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
 
# मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
 
# मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
 
# मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
# काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
+
# काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की [[कथा]])
 
# लब्धप्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
 
# लब्धप्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
 
# अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठायें)
 
# अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें; हड़बड़ी में क़दम न उठायें)
Line 14: Line 38:
 
इस पुस्तक की महत्ता इसी से प्रतिपादित होती है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर [[भाषा]] में हो चुका है। मूल रूप में [[संस्कृत]] में रचित इस ग्रंथ का [[हिंदी भाषा]] में प्रकाशन कई विदेशी भाषाओं में प्रकाशन के बाद हुआ। अब विलुप्त हो चुकी पंचतंत्र की मूल संस्कृत कृति संभवत: 100 ई.पू. से 500 ई. के बीच किसी समय अस्तित्व में आई थी।
 
इस पुस्तक की महत्ता इसी से प्रतिपादित होती है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर [[भाषा]] में हो चुका है। मूल रूप में [[संस्कृत]] में रचित इस ग्रंथ का [[हिंदी भाषा]] में प्रकाशन कई विदेशी भाषाओं में प्रकाशन के बाद हुआ। अब विलुप्त हो चुकी पंचतंत्र की मूल संस्कृत कृति संभवत: 100 ई.पू. से 500 ई. के बीच किसी समय अस्तित्व में आई थी।
 
==प्रभावपूर्ण कथाएँ==
 
==प्रभावपूर्ण कथाएँ==
पाँच तंत्रों की ये पाँच प्रमुख कथाएँ हैं। इनके संदर्भ में भी अनेक उपकथाएँ प्रत्येक तंत्र में यथासार आती हैं। प्रत्येक तंत्र इस प्रकार कथाओं की लड़ी-सा ही है। पंचतंत्र में कुल 87 कथाएँ हैं, जिनमें अधिकांश हैं, प्राणी कथाएँ। प्राणी कथाओं का उदगम सर्वप्रथम [[महाभारत]] में हुआ। विष्णु शर्मा ने अपने पंचतंत्र की रचना महाभारत से ही प्रेरणा लेकर की है। उन्होंने अपने [[ग्रन्थ]] में महाभारत के कुछ संदर्भ भी लिये हैं। इसी प्रकार से [[रामायण]], महाभारत, [[मनुस्मृति]] तथा [[चाणक्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]] से भी श्री विष्णु शर्मा ने अनेक विचार और श्लोकों को ग्रहण किया है। इससे माना जाता है कि श्री विष्णु शर्मा [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के पश्चात् ईसा पूर्व पहली शताब्दी में हुए होंगे। पंचतंत्र की कथाओं की शैली सर्वथा स्वतंत्र है। उस का गद्य जितना सरल और स्पष्ट है, उतने ही उसके [[श्लोक]] भी समयोचित, अर्थपूर्ण, मार्मिक और पठन सुलभ हैं। परिणामस्वरूप इस ग्रन्थ की सभी कथाएं सरस, आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण बनी हैं। श्री विष्णु शर्मा ने अनेक कथाओं का समारोप श्लोक से किया है और उसी से किया है आगामी कथा का सूत्रपात।
+
पाँच तंत्रों की ये पाँच प्रमुख [[कथा|कथाएँ]] हैं। इनके संदर्भ में भी अनेक उपकथाएँ प्रत्येक तंत्र में यथासार आती हैं। प्रत्येक तंत्र इस प्रकार कथाओं की लड़ी-सा ही है। पंचतंत्र में कुल 87 कथाएँ हैं, जिनमें अधिकांश हैं, प्राणी कथाएँ। प्राणी कथाओं का उदगम सर्वप्रथम [[महाभारत]] में हुआ। विष्णु शर्मा ने अपने पंचतंत्र की रचना महाभारत से ही प्रेरणा लेकर की है। उन्होंने अपने [[ग्रन्थ]] में महाभारत के कुछ संदर्भ भी लिये हैं। इसी प्रकार से [[रामायण]], महाभारत, [[मनुस्मृति]] तथा [[चाणक्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रंथ|अर्थशास्त्र]] से भी श्री विष्णु शर्मा ने अनेक विचार और श्लोकों को ग्रहण किया है। इससे माना जाता है कि श्री विष्णु शर्मा [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के पश्चात् ईसा पूर्व पहली शताब्दी में हुए होंगे। पंचतंत्र की कथाओं की शैली सर्वथा स्वतंत्र है। उस का गद्य जितना सरल और स्पष्ट है, उतने ही उसके [[श्लोक]] भी समयोचित, अर्थपूर्ण, मार्मिक और पठन सुलभ हैं। परिणामस्वरूप इस ग्रन्थ की सभी कथाएं सरस, आकर्षक एवं प्रभावपूर्ण बनी हैं। श्री विष्णु शर्मा ने अनेक कथाओं का समारोप श्लोक से किया है और उसी से किया है आगामी कथा का सूत्रपात।
 
====प्राचीनता====
 
====प्राचीनता====
पंचतंत्र की कहानियाँ अत्यन्त प्राचीन हैं। अत: इसके विभिन्न शताब्दियों में, विभिन्न प्रान्तों में, विभिन्न संस्करण हुए हैं। इसका सर्वाधिक प्राचीन संस्करण ‘तंत्राख्यायिका’ के नाम से विख्यात है तथा इसका मूल स्थान 'काश्मीर' है। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान डॉक्टर हर्टेल ने अत्यन्त श्रम के साथ इसके प्रामाणिक संस्करण को खोज निकाला था। उनके अनुसार ‘तंत्राख्यायिका’ या ‘तंत्राख्यान’ ही पंचतंत्र का मूल रूप है। इसमें कथा का रूप भी संक्षिप्त है तथा नीतिमय पद्यों के रूप में समावेशित पद्यात्मक उद्धरण भी कम हैं। संप्रति पंचतंत्र के 4 भिन्न संस्करण उपलब्ध होते हैं। पंचतंत्र की रचना का काल अनिश्चित है, किन्तु इसका प्राचीन रूप डॉक्टर हर्टेल के अनुसार छठी शताब्दी में [[ईरान]] की पहलवी भाषा में हुआ था। हर्टेल ने 50 भाषाओं में इसके 200 अनुवादों का उल्लेख किया है। पंचतंत्र का सर्वप्रथम परिष्कार एवं परिबृंहण, प्रसिद्ध [[जैन]] विद्वान पूर्णभद्र सूरि ने संवत् 1255 में किया है और आजकल का उपलब्ध संस्करण इसी पर आधारित है। पूर्णभद्र के निम्न कथन से पंचतंत्र के पूर्ण पिरष्कार की पुष्टि होती है-
+
पंचतंत्र की कहानियाँ अत्यन्त प्राचीन हैं। अत: इसके विभिन्न शताब्दियों में, विभिन्न प्रान्तों में, विभिन्न संस्करण हुए हैं। इसका सर्वाधिक प्राचीन संस्करण ‘तंत्राख्यायिका’ के नाम से विख्यात है तथा इसका मूल स्थान 'काश्मीर' है। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डॉक्टर हर्टेल ने अत्यन्त श्रम के साथ इसके प्रामाणिक संस्करण को खोज निकाला था। उनके अनुसार ‘तंत्राख्यायिका’ या ‘तंत्राख्यान’ ही पंचतंत्र का मूल रूप है। इसमें कथा का रूप भी संक्षिप्त है तथा नीतिमय पद्यों के रूप में समावेशित पद्यात्मक उद्धरण भी कम हैं। संप्रति पंचतंत्र के 4 भिन्न संस्करण उपलब्ध होते हैं। पंचतंत्र की रचना का काल अनिश्चित है, किन्तु इसका प्राचीन रूप डॉक्टर हर्टेल के अनुसार छठी शताब्दी में [[ईरान]] की पहलवी भाषा में हुआ था। हर्टेल ने 50 भाषाओं में इसके 200 अनुवादों का उल्लेख किया है। पंचतंत्र का सर्वप्रथम परिष्कार एवं परिबृंहण, प्रसिद्ध [[जैन]] विद्वान् पूर्णभद्र सूरि ने संवत् 1255 में किया है और आजकल का उपलब्ध संस्करण इसी पर आधारित है। पूर्णभद्र के निम्न कथन से पंचतंत्र के पूर्ण पिरष्कार की पुष्टि होती है-
 
<blockquote><poem>प्रत्यक्षरं प्रतिपदं प्रतिवाक्यं प्रतिकथं प्रतिश्लोकम!।
 
<blockquote><poem>प्रत्यक्षरं प्रतिपदं प्रतिवाक्यं प्रतिकथं प्रतिश्लोकम!।
 
श्रीपूर्णभद्रसूरिर्विशेषयामास शास्त्रमिदम्।।<ref>सं.वा.को. (द्वितीय खण्ड), पृष्ठ 174</ref></poem></blockquote>
 
श्रीपूर्णभद्रसूरिर्विशेषयामास शास्त्रमिदम्।।<ref>सं.वा.को. (द्वितीय खण्ड), पृष्ठ 174</ref></poem></blockquote>
 
==पंचतंत्र का अन्य भाषाओ में अनुवाद==
 
==पंचतंत्र का अन्य भाषाओ में अनुवाद==
छठी शताब्दी (550 ई.) में जब [[ईरान]] सम्राट ‘खुसरू’ के राजवैद्य और मंत्री ने ‘पंचतंत्र’ को अमृत कहा। ईरानी राजवैद्य बुर्ज़ों ने किसी पुस्तक में यह पढ़ा था कि [[भारत]] में एक संजीवनी बूटी होती है, जिससे मूर्ख व्यक्ति को भी नीति-निपुण किया जा सकता है। इसी बूटी की तलाश में वह राजवैद्य ईरान से चलकर [[भारत]] आया और उसने संजीवनी की खोज शुरू कर दी। उस वैद्य को जब कहीं संजीवनी नहीं मिली तो वह निराश होकर एक भारतीय विद्वान के पास पहुंचा और अपनी सारी परेशानी बताई। तब उस विद्वान ने कहा- ‘देखो मित्र ! इमसें निराश होने की बात नहीं, भारत में एक संजीवनी नहीं, बल्कि संजीवनियों के पहाड़ हैं उनमें आपको अनेक संजीवनियां मिलेंगी। हमारे पास ‘पंचतंत्र’ नाम का एक ऐसा ग्रंथ है जिसके द्वारा मूर्ख अज्ञानी<ref> हम विद्वान जिन्हें मृतप्राय ही समझते हैं</ref> लोग नया जीवन प्राप्त कर लेते हैं।’’ ईरानी राजवैद्य यह सुनकर अति प्रसन्न हुआ और उस विद्वान से पंचतंत्र की एक प्रति लेकर वापस ईरान चला गया, उस '''संस्कृत कृति का अनुवाद उसने पहलवी'''<ref> मध्य फ़ारसी</ref> में करके अपनी प्रजा को एक अमूल्य उपहार दिया। हालांकि यह कृति भी अब खो चुकी है।  
+
छठी शताब्दी (550 ई.) में जब [[ईरान]] सम्राट ‘खुसरू’ के राजवैद्य और मंत्री ने ‘पंचतंत्र’ को अमृत कहा। ईरानी राजवैद्य बुर्ज़ों ने किसी पुस्तक में यह पढ़ा था कि [[भारत]] में एक संजीवनी बूटी होती है, जिससे मूर्ख व्यक्ति को भी नीति-निपुण किया जा सकता है। इसी बूटी की तलाश में वह राजवैद्य ईरान से चलकर [[भारत]] आया और उसने संजीवनी की खोज शुरू कर दी। उस वैद्य को जब कहीं संजीवनी नहीं मिली तो वह निराश होकर एक भारतीय विद्वान् के पास पहुंचा और अपनी सारी परेशानी बताई। तब उस विद्वान् ने कहा- ‘देखो मित्र ! इमसें निराश होने की बात नहीं, भारत में एक संजीवनी नहीं, बल्कि संजीवनियों के पहाड़ हैं उनमें आपको अनेक संजीवनियां मिलेंगी। हमारे पास ‘पंचतंत्र’ नाम का एक ऐसा ग्रंथ है जिसके द्वारा मूर्ख अज्ञानी<ref> हम विद्वान् जिन्हें मृतप्राय ही समझते हैं</ref> लोग नया जीवन प्राप्त कर लेते हैं।’’ ईरानी राजवैद्य यह सुनकर अति प्रसन्न हुआ और उस विद्वान् से पंचतंत्र की एक प्रति लेकर वापस ईरान चला गया, उस '''संस्कृत कृति का अनुवाद उसने पहलवी'''<ref> मध्य फ़ारसी</ref> में करके अपनी प्रजा को एक अमूल्य उपहार दिया। हालांकि यह कृति भी अब खो चुकी है।  
 
;लेरियाई भाषा में अनुवाद
 
;लेरियाई भाषा में अनुवाद
 
यह था पंचतंत्र का पहला अनुवाद जिसने विदेशों में अपनी सफलता और लोकप्रियता की धूम मचानी प्रारंभ कर दी। इसकी लोकप्रियता का यह परिणाम था कि बहुत जल्द ही पंचतंत्र का ‘लेरियाई’ भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित किया गया, यह संस्करण 570 ई. में प्रकाशित हुआ था।
 
यह था पंचतंत्र का पहला अनुवाद जिसने विदेशों में अपनी सफलता और लोकप्रियता की धूम मचानी प्रारंभ कर दी। इसकी लोकप्रियता का यह परिणाम था कि बहुत जल्द ही पंचतंत्र का ‘लेरियाई’ भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित किया गया, यह संस्करण 570 ई. में प्रकाशित हुआ था।
Line 28: Line 52:
 
इसका सीरियाई अनुवाद, में इसे दो सियारों की पहली कहानी के आधार पर "कलिलाह वा दिमनाह" के नाम से जाना जाता है। "कलिलाह वा दिमनाह" का दूसरा सीरियाई संस्करण और 11 वीं शताब्दी का यूनानी संस्करण ''स्टेफ़्नाइट्स काई इचनेलेट्स'' समेत कई अन्य संस्करण प्रकाशित हुए, जिनके लैटिन एवं विभिन्न स्लावियाई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। लेकिन अधिकांश यूरोपीय संस्करणों का स्त्रो 12 वीं शताब्दी में रैबाई जोएल द्वारा अनुदिन हिब्रू संस्करण है।
 
इसका सीरियाई अनुवाद, में इसे दो सियारों की पहली कहानी के आधार पर "कलिलाह वा दिमनाह" के नाम से जाना जाता है। "कलिलाह वा दिमनाह" का दूसरा सीरियाई संस्करण और 11 वीं शताब्दी का यूनानी संस्करण ''स्टेफ़्नाइट्स काई इचनेलेट्स'' समेत कई अन्य संस्करण प्रकाशित हुए, जिनके लैटिन एवं विभिन्न स्लावियाई भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ। लेकिन अधिकांश यूरोपीय संस्करणों का स्त्रो 12 वीं शताब्दी में रैबाई जोएल द्वारा अनुदिन हिब्रू संस्करण है।
 
;पंचतंत्र की लोकप्रियता  
 
;पंचतंत्र की लोकप्रियता  
पंचतंत्र का अरबी अनुवाद होते ही पंचतंत्र की लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ने लगी। अरब देशों से पंचतंत्र का सफर तेजी से बढ़ा और ग्यारहवीं सदी में इसका अनुवाद यूनानी भाषा में होते ही इसे रूसी भाषा में भी प्रकाशित किया गया। रूसी अनुवाद के साथ पंचतंत्र ने यूरोप की ओर अपने क़दम बढ़ाए, यूरोप की भाषाओं में प्रकाशित होकर पंचतंत्र जब लोकप्रियता के शिखर को छू रहा था तो 1251 ई. में इसका अनुवाद स्पैनिश भाषा में हुआ, यही नहीं विश्व की एक अन्य भाषा हिश्री जो प्राचीन भाषाओं में एक मानी जाती हैं, में अनुवाद प्रकाशित होते ही पंचतंत्र की लोकप्रियता और भी बढ़ गई।
+
पंचतंत्र का अरबी अनुवाद होते ही पंचतंत्र की लोकप्रियता बहुत तेज़ीसे बढ़ने लगी। अरब देशों से पंचतंत्र का सफर तेज़ीसे बढ़ा और ग्यारहवीं सदी में इसका अनुवाद यूनानी भाषा में होते ही इसे रूसी भाषा में भी प्रकाशित किया गया। रूसी अनुवाद के साथ पंचतंत्र ने यूरोप की ओर अपने क़दम बढ़ाए, यूरोप की भाषाओं में प्रकाशित होकर पंचतंत्र जब लोकप्रियता के शिखर को छू रहा था तो 1251 ई. में इसका अनुवाद स्पैनिश भाषा में हुआ, यही नहीं विश्व की एक अन्य भाषा हिश्री जो प्राचीन भाषाओं में एक मानी जाती हैं, में अनुवाद प्रकाशित होते ही पंचतंत्र की लोकप्रियता और भी बढ़ गई।
 
;जर्मन भाषा में
 
;जर्मन भाषा में
1260 में ई. में [[इटली]] के कपुआ नगर में रहने वाले एक यहूदी विद्वान ने जब पंचतंत्र को पढ़ा तो लैटिन भाषा में अनुवाद करके अपने देशवासियों को उपहार स्वरूप यह रचना भेंट करते हुए उसने कहा, ‘[[साहित्य]] में ज्ञानवर्धन, मनोरंजक व रोचक रचना इससे अच्छी कोई और हो ही नहीं सकती। इसी अनुवाद से प्रभावित होकर 1480 में पंचतंत्र का ‘जर्मन’ अनुवाद प्रकाशित हुआ, जो इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि एक [[वर्ष]] में ही इसके कई संस्करण बिक गए। जर्मन भाषा में इसकी सफलता को देखते हुए ‘चेक’ और ‘इटली’ के देशों में भी पंचतंत्र के अनुवाद प्रकाशित होने लगे।
+
1260 में ई. में [[इटली]] के कपुआ नगर में रहने वाले एक यहूदी विद्वान् ने जब पंचतंत्र को पढ़ा तो लैटिन भाषा में अनुवाद करके अपने देशवासियों को उपहार स्वरूप यह रचना भेंट करते हुए उसने कहा, ‘[[साहित्य]] में ज्ञानवर्धन, मनोरंजक व रोचक रचना इससे अच्छी कोई और हो ही नहीं सकती। इसी अनुवाद से प्रभावित होकर 1480 में पंचतंत्र का ‘जर्मन’ अनुवाद प्रकाशित हुआ, जो इतना अधिक लोकप्रिय हुआ कि एक [[वर्ष]] में ही इसके कई संस्करण बिक गए। जर्मन भाषा में इसकी सफलता को देखते हुए ‘चेक’ और ‘इटली’ के देशों में भी पंचतंत्र के अनुवाद प्रकाशित होने लगे।
 
;हितोपदेश
 
;हितोपदेश
 
इसका 15 वीं शताब्दी का ईरानी<ref>फ़ारसी</ref> संस्करण अनवर ए सुहेली पर आधारित है। पंचतंत्र की कहानियाँ जावा के पुराने लिखित साहित्य और संभवत: मौखिक रूप से भी इंडोनेशिया तक पहुँची। [[भारत]] में 12 वीं शताब्दी में नारायण द्वारा रचित "हितोपदेश"<ref>लाभकारी परामर्श</ref>, जो अधिकांशत: [[बंगाल]] में प्रसारित हुआ, पंचतंत्र की साम्रगी की एक स्वतंत्र प्रस्तुति जान पड़ता है।
 
इसका 15 वीं शताब्दी का ईरानी<ref>फ़ारसी</ref> संस्करण अनवर ए सुहेली पर आधारित है। पंचतंत्र की कहानियाँ जावा के पुराने लिखित साहित्य और संभवत: मौखिक रूप से भी इंडोनेशिया तक पहुँची। [[भारत]] में 12 वीं शताब्दी में नारायण द्वारा रचित "हितोपदेश"<ref>लाभकारी परामर्श</ref>, जो अधिकांशत: [[बंगाल]] में प्रसारित हुआ, पंचतंत्र की साम्रगी की एक स्वतंत्र प्रस्तुति जान पड़ता है।
Line 36: Line 60:
 
1552 ई. में पंचतंत्र का जो अनुवाद इटैलियन भाषा में हुआ, इसी से 1570 ई. में सर टामस नार्थ ने इसका पहला अनुवाद तैयार किया, जिसका पहला संस्करण बहुत सफल हुआ और 1601 ई. में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ। यह बात तो बड़े-बड़े देशों की भाषाओं की थी। फ्रेंच भाषा में तो पंचतंत्र के प्रकाशित होते ही वहां के लोगों में एक हलचल सी मच गई। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई लेखक पशु-पक्षियों के मुख से वर्णित इतनी मनोरंजक तथा ज्ञानवर्धक कहानियां भी लिख सकता है।
 
1552 ई. में पंचतंत्र का जो अनुवाद इटैलियन भाषा में हुआ, इसी से 1570 ई. में सर टामस नार्थ ने इसका पहला अनुवाद तैयार किया, जिसका पहला संस्करण बहुत सफल हुआ और 1601 ई. में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ। यह बात तो बड़े-बड़े देशों की भाषाओं की थी। फ्रेंच भाषा में तो पंचतंत्र के प्रकाशित होते ही वहां के लोगों में एक हलचल सी मच गई। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई लेखक पशु-पक्षियों के मुख से वर्णित इतनी मनोरंजक तथा ज्ञानवर्धक कहानियां भी लिख सकता है।
 
;सफलता और संस्करण
 
;सफलता और संस्करण
इसी प्रकार से पंचतंत्र ने अपना सफर जारी रखा, [[नेपाली भाषा|नेपाली]], [[चीन|चीनी]], [[ब्राह्मी]], [[जापान|जापानी]], भाषाओं में भी जो संस्करण प्रकाशित हुए उन्हें भी बहुत सफलता मिली। रह गई [[हिन्दी भाषा]], इसे कहते हैं कि अपने ही घर में लोग परदेसी बन कर आते हैं। 1970 ई. के लगभग यह हिन्दी में प्रकाशित हुआ और हिन्दी साहित्य जगत में छा गया। इसका प्रकाश आज भी जन-मानस को नई राह दिखा रहा है और शायद युगों-युगों तक दिखाता ही रहे।  
+
इसी प्रकार से पंचतंत्र ने अपना सफर जारी रखा, [[नेपाली भाषा|नेपाली]], [[चीन|चीनी]], [[ब्राह्मी]], [[जापान|जापानी]], भाषाओं में भी जो संस्करण प्रकाशित हुए उन्हें भी बहुत सफलता मिली। रह गई [[हिन्दी भाषा]], इसे कहते हैं कि अपने ही घर में लोग परदेसी बन कर आते हैं। 1970 ई. के लगभग यह हिन्दी में प्रकाशित हुआ और हिन्दी साहित्य जगत् में छा गया। इसका प्रकाश आज भी जन-मानस को नई राह दिखा रहा है और शायद युगों-युगों तक दिखाता ही रहे।  
  
 
==पंचतंत्र की प्रेरक कहानियाँ==
 
==पंचतंत्र की प्रेरक कहानियाँ==
Line 46: Line 70:
 
| [[एक और एक ग्यारह]]
 
| [[एक और एक ग्यारह]]
 
| [[एकता का बल]]
 
| [[एकता का बल]]
 +
|-
 
| [[कौए और उल्लू]]
 
| [[कौए और उल्लू]]
 
| [[खरगोश की चतुराई]]
 
| [[खरगोश की चतुराई]]
Line 55: Line 80:
 
| [[चापलूस मंडली]]
 
| [[चापलूस मंडली]]
 
| [[झगडालू मेढक]]
 
| [[झगडालू मेढक]]
 +
|-
 
| [[झूठी शान]]
 
| [[झूठी शान]]
 
| [[ढोंगी सियार]]
 
| [[ढोंगी सियार]]
Line 64: Line 90:
 
| [[नकल करना बुरा है]]
 
| [[नकल करना बुरा है]]
 
| [[बंदर का कलेजा]]
 
| [[बंदर का कलेजा]]
 +
|-
 
| [[बगुला भगत]]
 
| [[बगुला भगत]]
 
| [[बडे नाम का चमत्कार]]
 
| [[बडे नाम का चमत्कार]]
Line 72: Line 99:
 
| [[मक्खीचूस गीदड]]
 
| [[मक्खीचूस गीदड]]
 
| [[मित्र की सलाह]]
 
| [[मित्र की सलाह]]
| [[मुफ्तखोर मेहमान]]
+
| [[मुफ़्तखोर मेहमान]]
 +
|-
 
| [[मूर्ख गधा]]
 
| [[मूर्ख गधा]]
 
| [[मूर्ख को सीख]]
 
| [[मूर्ख को सीख]]
Line 82: Line 110:
 
| [[शरारती बंदर]]
 
| [[शरारती बंदर]]
 
| [[संगठन की शक्ति]]
 
| [[संगठन की शक्ति]]
 +
|-
 
| [[सच्चा शासक]]
 
| [[सच्चा शासक]]
 
| [[सच्चे मित्र]]
 
| [[सच्चे मित्र]]
| [[सांड और गीदड]]
+
| [[सांड़ और गीदड़]]
 
| [[सिंह और सियार]]
 
| [[सिंह और सियार]]
 
|-
 
|-
 
| [[स्वजाति प्रेम]]
 
| [[स्वजाति प्रेम]]
| रंग-बिरंगी मिठाइयॉ
 
|
 
|
 
|
 
|
 
 
|  
 
|  
 
|  
 
|  
 +
|
 
|}  
 
|}  
  
 
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
+
{{लोककथाएं}}
  
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
Line 109: Line 134:
 
[[Category:गद्य साहित्य]]
 
[[Category:गद्य साहित्य]]
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 
[[Category:साहित्य कोश]]
 +
[[Category:गुप्त काल]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

Latest revision as of 08:21, 10 February 2021

panchatantr
lekhak achary vishnu sharma
kathanak isamean janavaroan ko patr banakar shikshaprad batean likhi gee haian.
desh bharat
bhasha sanskrit
shaili kahani
bhag is granth mean pratipadit rajaniti ke paanch tantr (bhag) haian. isi karan se ise 'panchatantr' nam prapt hua hai.
vishesh yoorop mean is pustak ko 'd febals aauf bidapaee'[1] ke nam se jana jata hai.

panchatantr ek vishvavikhyat katha granth hai, jisake rachayita achary vishnu sharma hai. is granth mean pratipadit rajaniti ke paanch tantr (bhag) haian. isi karan se ise 'panchatantr' nam prapt hua hai. bharatiy sahity ki niti kathaoan ka vishv mean mahattvapoorn sthan hai. panchatantr unamean pramukh hai. panchatantr ko sanskrit bhasha mean 'paanch nibandh' ya 'adhyay' bhi kaha jata hai. upadeshaprad bharatiy pashukathaoan ka sangrah, jo apane mool desh tatha poore vishv mean vyapak roop se prasarit hua. yoorop mean is pustak ko 'd febals aauf bidapaee'[2] ke nam se jana jata hai. isaka ek sanskaran vahaan 11vian shatabdi mean hi pahuanch gaya tha.

sanskrit mean rachit panchatantr

siddhaant roop mean panchatantr niti ki pathy pustak[3] ke roop mean racha gaya hai; isaki sooktiyaan paropakar ki jagah chaturaee aur ghaghapan ko mahimamandit karati jan p dati hai. isake mool granth sanskrit gady aur chhand padoan ka mishran hai, jisake paanch bhagoan mean se ek mean kathaean hai. isaki bhoomika mean samoochi pustak ke sar ko sameanta gaya hai. pan॰ vishnu sharma namak ek vidvanh brahman ko in kahaniyoan ka rachayita bataya gaya hai, jisane upadeshaprad pashukathaoan ke madhyam se ek raja ke tin mandabuddhi betoan ko shikshit karane ke lie is pustak ki rachana ki thi. pramanoan ke adhar par is granth ki rachana ke samay unaki umr 80 varsh ke qarib thi.

panchatantr nam

paanch adhyay mean likhe jane ke karan is pustak ka nam panchatantr rakha gaya. is kitab mean janavaroan ko patr banakar shikshaprad batean likhi gee haian. isamean mukhyat: piangalak namak sianh ke siyar mantri ke do betoan damanak aur karatak ke bich ke sanvadoan aur kathaoan ke jarie vyavaharik jnan ki shiksha di gee hai. sabhi kahaniyaan pray: karatak aur damanak ke muanh se sunaee gee haian. panchatantr ke paanch adhyay (tantr/bhag) hai.

  1. mitrabhed (mitroan mean manamutav evan alagav)
  2. mitralabh ya mitrasanprapti (mitr prapti evan usake labh)
  3. kakolukiyamh (kauve evan ulluoan ki katha)
  4. labdhapranash (mrityu ya vinash ke ane par; yadi jan par a bane to kya?)
  5. aparikshit karak (jisako parakha nahian gaya ho use karane se pahale savadhan rahean; h dab di mean qadam n uthayean)

is pustak ki mahatta isi se pratipadit hoti hai ki isaka anuvad vishv ki lagabhag har bhasha mean ho chuka hai. mool roop mean sanskrit mean rachit is granth ka hiandi bhasha mean prakashan kee videshi bhashaoan mean prakashan ke bad hua. ab vilupt ho chuki panchatantr ki mool sanskrit kriti sanbhavat: 100 ee.poo. se 500 ee. ke bich kisi samay astitv mean aee thi.

prabhavapoorn kathaean

paanch tantroan ki ye paanch pramukh kathaean haian. inake sandarbh mean bhi anek upakathaean pratyek tantr mean yathasar ati haian. pratyek tantr is prakar kathaoan ki l di-sa hi hai. panchatantr mean kul 87 kathaean haian, jinamean adhikaansh haian, prani kathaean. prani kathaoan ka udagam sarvapratham mahabharat mean hua. vishnu sharma ne apane panchatantr ki rachana mahabharat se hi prerana lekar ki hai. unhoanne apane granth mean mahabharat ke kuchh sandarbh bhi liye haian. isi prakar se ramayan, mahabharat, manusmriti tatha chanaky ke arthashastr se bhi shri vishnu sharma ne anek vichar aur shlokoan ko grahan kiya hai. isase mana jata hai ki shri vishnu sharma chandragupt maury ke pashchath eesa poorv pahali shatabdi mean hue hoange. panchatantr ki kathaoan ki shaili sarvatha svatantr hai. us ka gady jitana saral aur spasht hai, utane hi usake shlok bhi samayochit, arthapoorn, marmik aur pathan sulabh haian. parinamasvaroop is granth ki sabhi kathaean saras, akarshak evan prabhavapoorn bani haian. shri vishnu sharma ne anek kathaoan ka samarop shlok se kiya hai aur usi se kiya hai agami katha ka sootrapat.

prachinata

panchatantr ki kahaniyaan atyant prachin haian. at: isake vibhinn shatabdiyoan mean, vibhinn prantoan mean, vibhinn sanskaran hue haian. isaka sarvadhik prachin sanskaran ‘tantrakhyayika’ ke nam se vikhyat hai tatha isaka mool sthan 'kashmir' hai. prasiddh jarman vidvanh d aauktar hartel ne atyant shram ke sath isake pramanik sanskaran ko khoj nikala tha. unake anusar ‘tantrakhyayika’ ya ‘tantrakhyan’ hi panchatantr ka mool roop hai. isamean katha ka roop bhi sankshipt hai tatha nitimay padyoan ke roop mean samaveshit padyatmak uddharan bhi kam haian. sanprati panchatantr ke 4 bhinn sanskaran upalabdh hote haian. panchatantr ki rachana ka kal anishchit hai, kintu isaka prachin roop d aauktar hartel ke anusar chhathi shatabdi mean eeran ki pahalavi bhasha mean hua tha. hartel ne 50 bhashaoan mean isake 200 anuvadoan ka ullekh kiya hai. panchatantr ka sarvapratham parishkar evan paribrianhan, prasiddh jain vidvanh poornabhadr soori ne sanvath 1255 mean kiya hai aur ajakal ka upalabdh sanskaran isi par adharit hai. poornabhadr ke nimn kathan se panchatantr ke poorn pirashkar ki pushti hoti hai-

pratyaksharan pratipadan prativakyan pratikathan pratishlokam!.
shripoornabhadrasoorirvisheshayamas shastramidamh..[4]

panchatantr ka any bhashao mean anuvad

chhathi shatabdi (550 ee.) mean jab eeran samrat ‘khusaroo’ ke rajavaidy aur mantri ne ‘panchatantr’ ko amrit kaha. eerani rajavaidy burzoan ne kisi pustak mean yah padha tha ki bharat mean ek sanjivani booti hoti hai, jisase moorkh vyakti ko bhi niti-nipun kiya ja sakata hai. isi booti ki talash mean vah rajavaidy eeran se chalakar bharat aya aur usane sanjivani ki khoj shuroo kar di. us vaidy ko jab kahian sanjivani nahian mili to vah nirash hokar ek bharatiy vidvanh ke pas pahuancha aur apani sari pareshani bataee. tab us vidvanh ne kaha- ‘dekho mitr ! imasean nirash hone ki bat nahian, bharat mean ek sanjivani nahian, balki sanjivaniyoan ke paha d haian unamean apako anek sanjivaniyaan mileangi. hamare pas ‘panchatantr’ nam ka ek aisa granth hai jisake dvara moorkh ajnani[5] log naya jivan prapt kar lete haian.’’ eerani rajavaidy yah sunakar ati prasann hua aur us vidvanh se panchatantr ki ek prati lekar vapas eeran chala gaya, us sanskrit kriti ka anuvad usane pahalavi[6] mean karake apani praja ko ek amooly upahar diya. halaanki yah kriti bhi ab kho chuki hai.

leriyaee bhasha mean anuvad

yah tha panchatantr ka pahala anuvad jisane videshoan mean apani saphalata aur lokapriyata ki dhoom machani praranbh kar di. isaki lokapriyata ka yah parinam tha ki bahut jald hi panchatantr ka ‘leriyaee’ bhasha mean anuvad karake prakashit kiya gaya, yah sanskaran 570 ee. mean prakashit hua tha.

arabi mean anuvad

athavian shatabdi (mri.-760 ee.) mean panchatantr ki pahalavi anuvad ke adhar par ‘abdulaintachhuemurakka’ ne isaka arabi anuvad kiya jisaka arabi nam ‘molli v diman’ rakh gaya. ashchary aur khushi ki bat to yah hai ki yah granth aj bhi arabi bhasha ke sabase lokapriy granthoan mean ek mana jata hai.

yooropiy anuvad

isaka siriyaee anuvad, mean ise do siyaroan ki pahali kahani ke adhar par "kalilah va dimanah" ke nam se jana jata hai. "kalilah va dimanah" ka doosara siriyaee sanskaran aur 11 vian shatabdi ka yoonani sanskaran stefnaits kaee ichanelets samet kee any sanskaran prakashit hue, jinake laitin evan vibhinn slaviyaee bhashaoan mean isaka anuvad hua. lekin adhikaansh yooropiy sanskaranoan ka stro 12 vian shatabdi mean raibaee joel dvara anudin hibroo sanskaran hai.

panchatantr ki lokapriyata

panchatantr ka arabi anuvad hote hi panchatantr ki lokapriyata bahut tezise badhane lagi. arab deshoan se panchatantr ka saphar tezise badha aur gyarahavian sadi mean isaka anuvad yoonani bhasha mean hote hi ise roosi bhasha mean bhi prakashit kiya gaya. roosi anuvad ke sath panchatantr ne yoorop ki or apane qadam badhae, yoorop ki bhashaoan mean prakashit hokar panchatantr jab lokapriyata ke shikhar ko chhoo raha tha to 1251 ee. mean isaka anuvad spainish bhasha mean hua, yahi nahian vishv ki ek any bhasha hishri jo prachin bhashaoan mean ek mani jati haian, mean anuvad prakashit hote hi panchatantr ki lokapriyata aur bhi badh gee.

jarman bhasha mean

1260 mean ee. mean itali ke kapua nagar mean rahane vale ek yahoodi vidvanh ne jab panchatantr ko padha to laitin bhasha mean anuvad karake apane deshavasiyoan ko upahar svaroop yah rachana bheant karate hue usane kaha, ‘sahity mean jnanavardhan, manoranjak v rochak rachana isase achchhi koee aur ho hi nahian sakati. isi anuvad se prabhavit hokar 1480 mean panchatantr ka ‘jarman’ anuvad prakashit hua, jo itana adhik lokapriy hua ki ek varsh mean hi isake kee sanskaran bik ge. jarman bhasha mean isaki saphalata ko dekhate hue ‘chek’ aur ‘itali’ ke deshoan mean bhi panchatantr ke anuvad prakashit hone lage.

hitopadesh

isaka 15 vian shatabdi ka eerani[7] sanskaran anavar e suheli par adharit hai. panchatantr ki kahaniyaan java ke purane likhit sahity aur sanbhavat: maukhik roop se bhi iandoneshiya tak pahuanchi. bharat mean 12 vian shatabdi mean narayan dvara rachit "hitopadesh"[8], jo adhikaanshat: bangal mean prasarit hua, panchatantr ki samragi ki ek svatantr prastuti jan p data hai.

itailiyan, phreanch bhasha mean

1552 ee. mean panchatantr ka jo anuvad itailiyan bhasha mean hua, isi se 1570 ee. mean sar tamas narth ne isaka pahala anuvad taiyar kiya, jisaka pahala sanskaran bahut saphal hua aur 1601 ee. mean isaka doosara sanskaran prakashit hua. yah bat to b de-b de deshoan ki bhashaoan ki thi. phreanch bhasha mean to panchatantr ke prakashit hote hi vahaan ke logoan mean ek halachal si mach gee. kisi ko vishvas hi nahian ho raha tha ki koee lekhak pashu-pakshiyoan ke mukh se varnit itani manoranjak tatha jnanavardhak kahaniyaan bhi likh sakata hai.

saphalata aur sanskaran

isi prakar se panchatantr ne apana saphar jari rakha, nepali, chini, brahmi, japani, bhashaoan mean bhi jo sanskaran prakashit hue unhean bhi bahut saphalata mili. rah gee hindi bhasha, ise kahate haian ki apane hi ghar mean log paradesi ban kar ate haian. 1970 ee. ke lagabhag yah hindi mean prakashit hua aur hindi sahity jagath mean chha gaya. isaka prakash aj bhi jan-manas ko nee rah dikha raha hai aur shayad yugoan-yugoan tak dikhata hi rahe.

panchatantr ki prerak kahaniyaan

panchatantr ki prerak kahaniyaan
aklamand hans apas ki phoot ek aur ek gyarah ekata ka bal
kaue aur ulloo kharagosh ki chaturaee gajaraj v mooshakaraj gadha raha gadha hi
goloo-moloo aur bhaloo ghantidhari ooant chapaloos mandali jhagadaloo medhak
jhoothi shan dhoangi siyar dhol ki pol tin machhaliyaan
dushman ka svarth dusht sarp nakal karana bura hai bandar ka kaleja
bagula bhagat bade nam ka chamatkar baharupiya gadha billi ka nyay
buddhiman siyar makkhichoos gidad mitr ki salah muftakhor mehaman
moorkh gadha moorkh ko sikh moorkh batooni kachhua rang mean bhang
ranga siyar shatru ki salah shararati bandar sangathan ki shakti
sachcha shasak sachche mitr saan d aur gid d sianh aur siyar
svajati prem


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. kathavachak bharatiy sadhu bidapaee ke nam par, jinhean sanskrit mean vidyapati bhi kahate haian.
  2. kathavachak bharatiy sadhu bidapaee ke nam par, jinhean sanskrit mean vidyapati bhi kahate haian.
  3. visheshakar rajaoan aur rajapurushoan ke liye
  4. san.va.ko. (dvitiy khand), prishth 174
  5. ham vidvanh jinhean mritapray hi samajhate haian
  6. madhy farasi
  7. farasi
  8. labhakari paramarsh

bahari k diyaan

sanbandhit lekh