Difference between revisions of "संविधान संशोधन"
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+ | |विवरण='[[भारतीय संविधान]]' का निर्माण 'संविधान सभा' द्वारा किया गया था। [[संविधान]] में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ही 'संशोधन' कहा जाता है। | ||
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+ | |अन्य जानकारी='[[भारत का संविधान]]' [[ब्रिटेन]] की संसदीय प्रणाली के नमूने पर आधारित है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है। ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है, जबकि [[भारत]] में [[संसद]] नहीं; बल्कि 'संविधान' सर्वोच्च है। | ||
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+ | '''भारत का संविधान''' [[26 जनवरी]], [[1950]] को लागू हुआ था। इसका निर्माण 'संविधान सभा' ने किया था, जिसकी पहली बैठक [[9 दिसम्बर]], [[1946]] को हुई थी। संविधान सभा ने [[26 नवम्बर]], [[1949]] को [[संविधान]] को अंगीकार कर लिया था। संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित [[भारत]] के लिए बुलाई गई थी। [[4 अगस्त]], [[1947]] को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष [[सच्चिदानन्द सिन्हा]] नियुक्त हुए थे। सिन्हा के निधन के बाद [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] संविधान सभा के अध्यक्ष बने। [[फ़रवरी]], [[1948]] में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। [[26 नवम्बर]], 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और [[26 जनवरी]], [[1950]] को लागू हुआ। | ||
+ | ==सर्वोच्चता== | ||
+ | '[[भारत का संविधान]]' [[ब्रिटेन]] की संसदीय प्रणाली के नमूने पर आधारित है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है। ब्रिटेन में [[संसद]] सर्वोच्च है। भारत में संसद नहीं; बल्कि संविधान सर्वोच्च है। भारत में न्यायालयों को भारत की संसद द्वारा पास किए गए क़ानून की संवैधानिकता पर फ़ैसला करने का अधिकार प्राप्त है। | ||
+ | ====संशोधन==== | ||
+ | संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को 'संशोधन' कहा जाता है। सभा या समिति के प्रस्ताव के शोधन की क्रिया के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है। किसी भी देश का संविधान कितनी ही सावधानी से बनाया जाए, किंतु मनुष्य की कल्पना शक्ति की सीमा बँधी हुई है। भविष्य में आने वाली और बदलने वाली सभी परिस्थितियों की कल्पना वह संविधान के निर्माण काल में नहीं कर सकता। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों की गुत्थियों के कारण भी [[संविधान]] में संशोधन और परिवर्तन करना आवश्यक तथा ज़रूरी हो जाता है। संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख लिखित संविधान का आवश्यक अंग माना गया है। 'गार्नर' के शब्दों में- "कोई भी लिखित संविधान इस प्रकार के उपबंधों के बिना अपूर्ण है।" | ||
+ | ====प्रक्रिया==== | ||
+ | संविधान के गुण-अवगुण परखने की कसौटी भी संशोधन की प्रक्रिया है। कुछ देशों के संविधान का संशोधन विधि-निर्माण की साधारण प्रक्रिया के अनुसार ही होता है। ऐसे संविधानों को 'नमनीय' या 'सरल संविधान' कहते हैं। इस प्रकार के संविधान का सर्वोत्तम उदाहरण [[इंग्लैंड]] का संविधान है। कुछ संविधानों के संशोधन की प्रक्रिया के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया का आलंबन किया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल एवं दुरूह होती है। ऐसे संविधान 'जटिल' या 'अनममीय' संविधान कहलाते हैं। [[संयुक्त राज्य अमरीका]] का संविधान ऐसे संविधानों का सर्वोत्तम उदाहरण है। भारतीय गणतंत्र संविधान के संशोधन का कुछ अंश नमनीय है और कुछ अंश की अनमनीय प्रक्रिया है। इन दोनों विधियों को ग्रहण करने से देश के मौलिक सिद्धांतों का पोषण होगा और संविधान में परिस्थितियों के अनुकूल विकसित होने की प्रेरणाशक्ति भी शामिल होगी। | ||
+ | ==समर्थन या अनुमोदन== | ||
+ | आमतौर पर किसी सभा या समिति में किसी भी सदस्य को अपना मत प्रकट करने या कोई प्रस्ताव प्रेषित करने का अधिकार होता है। या जब किसी सभा के सदस्यों को सभा के विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग व्यक्तियों को मनोनीत करने का अधिकार होता है, तब मनोनीत करने वाले सदस्य के कार्य की पुष्टि दूसरे सदस्य के द्वारा होना अनिवार्य होता है। अत: एक सदस्य, जब किसी प्रस्ताव को प्रेषित करता है या किसी सदस्य को किसी कार्य के लिए मनोनीत करता है, तब इस कार्य को संवैधानिक बनाने के लिए दूसरे सदस्य को इस कार्य का समर्थन या अनुमोदन करना पड़ता है। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो उपयुक्त कार्य वैधानिक नहीं माने जाएँगे और वे कार्य शून्य मान लिए जायेंगे। | ||
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{{संविधान सभा सूची1}} | {{संविधान सभा सूची1}} | ||
− | समय-समय पर संविधान में संशोधन | + | ;संविधान में समय-समय पर हुए संशोधन |
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− | + | |[[संविधान संशोधन- तीसरा]] | |
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− | + | |[[संविधान संशोधन- चौथा]] | |
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− | + | |[[संविधान संशोधन- पाचवाँ]] | |
− | + | |6. | |
− | + | |[[संविधान संशोधन- छठा]] | |
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− | + | |7. | |
− | + | |[[संविधान संशोधन- सातवाँ]] | |
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− | + | |[[संविधान संशोधन- आठवाँ]] | |
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− | + | |[[संविधान संशोधन- दसवाँ]] | |
− | + | |11. | |
− | + | |[[संविधान संशोधन- 11वाँ]] | |
− | + | |12. | |
− | + | |[[संविधान संशोधन- 12वाँ]] | |
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− | + | |[[संविधान संशोधन- 13वाँ]] | |
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− | + | |[[संविधान संशोधन- 14वाँ]] | |
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Latest revision as of 09:32, 5 July 2013
sanvidhan sanshodhan
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vivaran | 'bharatiy sanvidhan' ka nirman 'sanvidhan sabha' dvara kiya gaya tha. sanvidhan mean samay-samay par avashyakata hone par sanshodhan bhi hote rahe haian. vidhayini sabha mean kisi vidheyak mean parivartan, sudhar athava use nirdosh banane ki prakriya ko hi 'sanshodhan' kaha jata hai. |
sanvidhan lagoo hone ki tithi | 26 janavari, 1950 |
nirmanakarta | sanvidhan sabha |
pratham adhyaksh | sachchidanand sinha |
sanshodhan prakriya | sanvidhan ke gun-avagun parakhane ki kasauti sanshodhan ki prakriya hai. kuchh deshoan ke sanvidhan ka sanshodhan vidhi-nirman ki sadharan prakriya ke anusar hi hota hai. aise sanvidhanoan ko 'namaniy' ya 'saral sanvidhan' kahate haian. |
any janakari | 'bharat ka sanvidhan' briten ki sansadiy pranali ke namoone par adharit hai, kintu ek vishay mean yah usase bhinn hai. briten mean sansad sarvochch hai, jabaki bharat mean sansad nahian; balki 'sanvidhan' sarvochch hai. |
bharat ka sanvidhan 26 janavari, 1950 ko lagoo hua tha. isaka nirman 'sanvidhan sabha' ne kiya tha, jisaki pahali baithak 9 disambar, 1946 ko huee thi. sanvidhan sabha ne 26 navambar, 1949 ko sanvidhan ko aangikar kar liya tha. sanvidhan sabha ki pahali baithak avibhajit bharat ke lie bulaee gee thi. 4 agast, 1947 ko sanvidhan sabha ki baithak punah huee aur usake adhyaksh sachchidanand sinha niyukt hue the. sinha ke nidhan ke bad d aau. rajendr prasad sanvidhan sabha ke adhyaksh bane. faravari, 1948 mean sanvidhan ka masauda prakashit hua. 26 navambar, 1949 ko sanvidhan antim roop mean svikrit hua aur 26 janavari, 1950 ko lagoo hua.
sarvochchata
'bharat ka sanvidhan' briten ki sansadiy pranali ke namoone par adharit hai, kintu ek vishay mean yah usase bhinn hai. briten mean sansad sarvochch hai. bharat mean sansad nahian; balki sanvidhan sarvochch hai. bharat mean nyayalayoan ko bharat ki sansad dvara pas kie ge qanoon ki sanvaidhanikata par faisala karane ka adhikar prapt hai.
sanshodhan
sanvidhan mean samay-samay par avashyakata hone par sanshodhan bhi hote rahe haian. vidhayini sabha mean kisi vidheyak mean parivartan, sudhar athava use nirdosh banane ki prakriya ko 'sanshodhan' kaha jata hai. sabha ya samiti ke prastav ke shodhan ki kriya ke lie bhi is shabd ka prayog hota hai. kisi bhi desh ka sanvidhan kitani hi savadhani se banaya jae, kiantu manushy ki kalpana shakti ki sima bandhi huee hai. bhavishy mean ane vali aur badalane vali sabhi paristhitiyoan ki kalpana vah sanvidhan ke nirman kal mean nahian kar sakata. aantararashtriy paristhitiyoan ki gutthiyoan ke karan bhi sanvidhan mean sanshodhan aur parivartan karana avashyak tatha zaroori ho jata hai. sanvaidhanik sanshodhan ki prakriya ka ullekh likhit sanvidhan ka avashyak aang mana gaya hai. 'garnar' ke shabdoan mean- "koee bhi likhit sanvidhan is prakar ke upabandhoan ke bina apoorn hai."
prakriya
sanvidhan ke gun-avagun parakhane ki kasauti bhi sanshodhan ki prakriya hai. kuchh deshoan ke sanvidhan ka sanshodhan vidhi-nirman ki sadharan prakriya ke anusar hi hota hai. aise sanvidhanoan ko 'namaniy' ya 'saral sanvidhan' kahate haian. is prakar ke sanvidhan ka sarvottam udaharan ianglaiand ka sanvidhan hai. kuchh sanvidhanoan ke sanshodhan ki prakriya ke lie ek vishisht prakriya ka alanban kiya jata hai. yah prakriya jatil evan durooh hoti hai. aise sanvidhan 'jatil' ya 'anamamiy' sanvidhan kahalate haian. sanyukt rajy amarika ka sanvidhan aise sanvidhanoan ka sarvottam udaharan hai. bharatiy ganatantr sanvidhan ke sanshodhan ka kuchh aansh namaniy hai aur kuchh aansh ki anamaniy prakriya hai. in donoan vidhiyoan ko grahan karane se desh ke maulik siddhaantoan ka poshan hoga aur sanvidhan mean paristhitiyoan ke anukool vikasit hone ki preranashakti bhi shamil hogi.
samarthan ya anumodan
amataur par kisi sabha ya samiti mean kisi bhi sadasy ko apana mat prakat karane ya koee prastav preshit karane ka adhikar hota hai. ya jab kisi sabha ke sadasyoan ko sabha ke vibhinn padoan ke lie alag-alag vyaktiyoan ko manonit karane ka adhikar hota hai, tab manonit karane vale sadasy ke kary ki pushti doosare sadasy ke dvara hona anivary hota hai. at: ek sadasy, jab kisi prastav ko preshit karata hai ya kisi sadasy ko kisi kary ke lie manonit karata hai, tab is kary ko sanvaidhanik banane ke lie doosare sadasy ko is kary ka samarthan ya anumodan karana p data hai. yadi aisa nahian kiya jata to upayukt kary vaidhanik nahian mane jaeange aur ve kary shoony man lie jayeange.
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- sanvidhan mean samay-samay par hue sanshodhan
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tika tippani aur sandarbh
bahari k diyaan
sanbandhit lekh