Difference between revisions of "मोरारजी देसाई"

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मोरारजी का पूरा नाम मोरारजी रणछोड़जी देसाई था। (जन्म 29 फरवरी 1896) उन्हें [[भारत]] के चौथे [[प्रधानमंत्री]] के रूप में जाना जाता है। वह 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की परंतु असफल रहे। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के क़ाबिल नहीं थे। वस्तुत: वह दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावज़ूद उन्हें [[जवाहर लाल न्र्हरू|पंडित नेहरू]] और [[लालबहादुर शास्त्री]] के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री पद के लिए अति महत्वाकांक्षी थे। उनकी यह आकांक्षा मार्च [[1977]] में पूर्ण हुई लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। [[चौधरी चरण सिंह]] की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
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मोरारजी का पूरा नाम मोरारजी रणछोड़जी देसाई था। (जन्म- [[29 फरवरी]] 1896, [[गुजरात]]) उन्हें [[भारत]] के चौथे [[प्रधानमंत्री]] के रूप में जाना जाता है। वह 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की परंतु असफल रहे। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के क़ाबिल नहीं थे। वस्तुत: वह दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावज़ूद उन्हें [[जवाहर लाल न्र्हरू|पंडित नेहरू]] और [[लालबहादुर शास्त्री]] के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री पद के लिए अति महत्वाकांक्षी थे। उनकी यह आकांक्षा मार्च [[1977]] में पूर्ण हुई लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। [[चौधरी चरण सिंह]] की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।
 
==जन्म एवं==
 
==जन्म एवं==
श्री मोरारजी देसाई का जन्म [[29 फरवरी]] 1896 को [[गुजरात]] के [[भदेली]] नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई [[भावनगर]] ([[सौराष्ट्र]]) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी। पिता को लेकर उनके ह्रदय में काफी सम्मान था। इस विषय में मोरारजी देसाई ने कहा था-  
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श्री मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के [[भदेली]] नामक स्थान पर हुआ था। उनका संबंध एक ब्राह्मण परिवार से था। उनके पिता रणछोड़जी देसाई [[भावनगर]] ([[सौराष्ट्र]]) में एक स्कूल अध्यापक थे। वह अवसाद (निराशा एवं खिन्नता) से ग्रस्त रहते थे, अत: उन्होंने कुएं में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। पिता की मृत्यु के तीसरे दिन मोरारजी देसाई की शादी हुई थी। पिता को लेकर उनके ह्रदय में काफी सम्मान था। इस विषय में मोरारजी देसाई ने कहा था-  
 
<blockquote>"मेरे पिता ने मुझे जीवन के मूल्यवान पाठ पढ़ाए थे। मु्झे उनसे कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा प्राप्त हुई थी। उन्होंने धर्म पर विश्वास रखने और सभी स्थितियों में समान बने रहने की शिक्षा भी मुझे दी थी।"</blockquote>  
 
<blockquote>"मेरे पिता ने मुझे जीवन के मूल्यवान पाठ पढ़ाए थे। मु्झे उनसे कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा प्राप्त हुई थी। उन्होंने धर्म पर विश्वास रखने और सभी स्थितियों में समान बने रहने की शिक्षा भी मुझे दी थी।"</blockquote>  
 
मोरारजी देसाई की माता मणिबेन क्रोधी स्वभाव की महिला थीं। वह अपने घर की समर्पित मुखिया थीं। रणछोड़जी की मृत्यु के बाद वह अपने नाना के घर अपना परिवार ले गईं। लेकिन इनकी नानी ने इन्हें वहाँ नहीं रहने दिया। वह पुन: अपने पिता के घर पहुँच गईं।  
 
मोरारजी देसाई की माता मणिबेन क्रोधी स्वभाव की महिला थीं। वह अपने घर की समर्पित मुखिया थीं। रणछोड़जी की मृत्यु के बाद वह अपने नाना के घर अपना परिवार ले गईं। लेकिन इनकी नानी ने इन्हें वहाँ नहीं रहने दिया। वह पुन: अपने पिता के घर पहुँच गईं।  
 
==विद्यार्थी जीवन==
 
==विद्यार्थी जीवन==
 
मोरारजी देसाई की शिक्षा-दीक्षा [[मुंबई]] के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई जो उस समय काफी महंगा और खर्चीला माना जाता था। मुंबई में मोरारजी देसाई नि:शुल्क आवास गृह में रहे जो गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध था। एक समय में वहाँ 40 शिक्षार्थी रह सकते थे। विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई औसत बुद्धि के विवेकशील छात्र थे। इन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था लेकिन स्वयं मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया होगा। मोरारजी देसाई ने अपने कॉलेज जीवन में ही [[महात्मा गाँधी]], [[बाल गंगाधर तिलक]] और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना था। कॉलेज जीवन के पाँच वर्षों में इन्होंने बहुत सी फ़िल्में देखीं लेकिन स्वयं के पैसों से नहीं। इनका कहना था- "मैं अपने पैसों से फ़िल्म देखना या मनोरंजन करना पसंद नहीं करता। मुझमें कभी ऐसी ख़्वाहिश ही नहीं उठती थी।" मोरारजी देसाई को क्रिकेट देखने का भी शौक था लेकिन क्रिकेट खेलने का नहीं। क्रिकेट मैचों को देखने के लिए वह सही वक्त का इंतजार करते थे और सुरक्षा प्रहरी की नज़र बचाकर दर्शक दीर्घा में प्रविष्ट हो जाते थे।
 
मोरारजी देसाई की शिक्षा-दीक्षा [[मुंबई]] के एलफिंस्टन कॉलेज में हुई जो उस समय काफी महंगा और खर्चीला माना जाता था। मुंबई में मोरारजी देसाई नि:शुल्क आवास गृह में रहे जो गोकुलदास तेजपाल के नाम से प्रसिद्ध था। एक समय में वहाँ 40 शिक्षार्थी रह सकते थे। विद्यार्थी जीवन में मोरारजी देसाई औसत बुद्धि के विवेकशील छात्र थे। इन्हें कॉलेज की वाद-विवाद टीम का सचिव भी बनाया गया था लेकिन स्वयं मोरारजी ने मुश्किल से ही किसी वाद-विवाद प्रतियोगिता में हिस्सा लिया होगा। मोरारजी देसाई ने अपने कॉलेज जीवन में ही [[महात्मा गाँधी]], [[बाल गंगाधर तिलक]] और अन्य कांग्रेसी नेताओं के संभाषणों को सुना था। कॉलेज जीवन के पाँच वर्षों में इन्होंने बहुत सी फ़िल्में देखीं लेकिन स्वयं के पैसों से नहीं। इनका कहना था- "मैं अपने पैसों से फ़िल्म देखना या मनोरंजन करना पसंद नहीं करता। मुझमें कभी ऐसी ख़्वाहिश ही नहीं उठती थी।" मोरारजी देसाई को क्रिकेट देखने का भी शौक था लेकिन क्रिकेट खेलने का नहीं। क्रिकेट मैचों को देखने के लिए वह सही वक्त का इंतजार करते थे और सुरक्षा प्रहरी की नज़र बचाकर दर्शक दीर्घा में प्रविष्ट हो जाते थे।
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==व्यावसायिक जीवन==
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जब मोरारजी देसाई को लगा कि उनकी प्रतिभा आई.सी.एस. (ईंडियन सिविल सर्विस) में चयन होने लायक नहीं है तो उन्होंने मुंबई प्रोविंशल सिविल सर्विस हेतु आवेदन करने का मन बनाया जहाँ सरकार द्वारा सीधी भर्ती की जाती थी। जुलाई [[1917]] में उन्होंने यूनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर्स में प्रविष्टि पाई। यहाँ इन्हें ब्रिटिश व्यक्तियों की भाँति समान अधिकार एवं सुविधाएं प्राप्त होती रहीं। यहाँ रहते हुए मोरारजी अफसर बन गए। मई [[1918]] में वह परिवीक्षा पर बतौर उप ज़िलाधीश [[अहमदाबाद]] पहुंचे। उन्होंने चेटफ़ील्ड नामक ब्रिटिश कलेक्टर (ज़िलाधीश) के अंतर्गत कार्य किया।
  
 
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Revision as of 15:33, 14 October 2010

moraraji ka poora nam moraraji ranachho daji desaee tha. (janm- 29 pharavari 1896, gujarat) unhean bharat ke chauthe pradhanamantri ke roop mean jana jata hai. vah 81 varsh ki ayu mean pradhanamantri bane the. isake poorv kee bar unhoanne pradhanamantri banane ki koshish ki parantu asaphal rahe. lekin aisa nahian haian ki moraraji pradhanamantri banane ke qabil nahian the. vastut: vah durbhagyashali rahe ki varishthatam neta hone ke bavazood unhean pandit neharoo aur lalabahadur shastri ke nidhan ke bad bhi pradhanamantri nahian banaya gaya. moraraji desaee desh ke pradhanamantri pad ke lie ati mahatvakaankshi the. unaki yah akaanksha march 1977 mean poorn huee lekin pradhanamantri ke roop mean inaka karyakal poorn nahian ho paya. chaudhari charan sianh ki pradhanamantri banane ki mahatvakaanksha ke karan unhean pradhanamantri pad chho dana p da.

janm evan

shri moraraji desaee ka janm 29 pharavari 1896 ko gujarat ke bhadeli namak sthan par hua tha. unaka sanbandh ek brahman parivar se tha. unake pita ranachho daji desaee bhavanagar (saurashtr) mean ek skool adhyapak the. vah avasad (nirasha evan khinnata) se grast rahate the, at: unhoanne kuean mean kood kar apani ihalila samapt kar li. pita ki mrityu ke tisare din moraraji desaee ki shadi huee thi. pita ko lekar unake hraday mean kaphi samman tha. is vishay mean moraraji desaee ne kaha tha-

"mere pita ne mujhe jivan ke moolyavan path padhae the. muhjhe unase kartavyoan ka palan karane ki prerana prapt huee thi. unhoanne dharm par vishvas rakhane aur sabhi sthitiyoan mean saman bane rahane ki shiksha bhi mujhe di thi."

moraraji desaee ki mata maniben krodhi svabhav ki mahila thian. vah apane ghar ki samarpit mukhiya thian. ranachho daji ki mrityu ke bad vah apane nana ke ghar apana parivar le geean. lekin inaki nani ne inhean vahaan nahian rahane diya. vah pun: apane pita ke ghar pahuanch geean.

vidyarthi jivan

moraraji desaee ki shiksha-diksha muanbee ke elaphianstan k aaulej mean huee jo us samay kaphi mahanga aur kharchila mana jata tha. muanbee mean moraraji desaee ni:shulk avas grih mean rahe jo gokuladas tejapal ke nam se prasiddh tha. ek samay mean vahaan 40 shiksharthi rah sakate the. vidyarthi jivan mean moraraji desaee ausat buddhi ke vivekashil chhatr the. inhean k aaulej ki vad-vivad tim ka sachiv bhi banaya gaya tha lekin svayan moraraji ne mushkil se hi kisi vad-vivad pratiyogita mean hissa liya hoga. moraraji desaee ne apane k aaulej jivan mean hi mahatma gaandhi, bal gangadhar tilak aur any kaangresi netaoan ke sanbhashanoan ko suna tha. k aaulej jivan ke paanch varshoan mean inhoanne bahut si filmean dekhian lekin svayan ke paisoan se nahian. inaka kahana tha- "maian apane paisoan se film dekhana ya manoranjan karana pasand nahian karata. mujhamean kabhi aisi khvahish hi nahian uthati thi." moraraji desaee ko kriket dekhane ka bhi shauk tha lekin kriket khelane ka nahian. kriket maichoan ko dekhane ke lie vah sahi vakt ka iantajar karate the aur suraksha prahari ki nazar bachakar darshak dirgha mean pravisht ho jate the.

vyavasayik jivan

jab moraraji desaee ko laga ki unaki pratibha aee.si.es. (eeandiyan sivil sarvis) mean chayan hone layak nahian hai to unhoanne muanbee provianshal sivil sarvis hetu avedan karane ka man banaya jahaan sarakar dvara sidhi bharti ki jati thi. julaee 1917 mean unhoanne yoonivarsiti treniang kors mean pravishti paee. yahaan inhean british vyaktiyoan ki bhaanti saman adhikar evan suvidhaean prapt hoti rahian. yahaan rahate hue moraraji aphasar ban ge. mee 1918 mean vah pariviksha par bataur up ziladhish ahamadabad pahuanche. unhoanne chetafild namak british kalektar (ziladhish) ke aantargat kary kiya.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh