कनिष्क तृतीय

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कनिष्क तृतीय का राज्यारोहण 102 शक संवत या 180 ई. रखा जा सकता है। कनिष्क प्रथम और कनिष्क द्वितीय से भिन्न कनिष्क तृतीय का होना केवल सिक्कों के साक्ष्यों के आधार पर सिद्ध हुआ है तथापि वह प्रामाणिक है।

  • इसके सिक्कों पर वासुदेव प्रथम का मोनोग्राम है कनिष्क प्रथम का नहीं, इसीलिए वह अवश्य ही वासुदेव प्रथम का उत्तराधिकारी रहा होगा, पूर्वज नहीं।
  • उसके सिक्कों की ग्रीक लिपि बिल्कुल अस्पष्ट है और उन पर ब्राह्मी अक्षर मिलते हैं जो वासुदेव प्रथम या उसके पहले के किसी राजा के सिक्कों पर नहीं पाये जाते।
  • इस प्रकार यह कनिष्क जिसके सिक्कों पर अस्पष्ट ग्रीक भाषा तथा ब्राह्मी अक्षर मिलते हैं, निश्चय ही वासुदेव प्रथम का उत्तराधिकारी रहा था।
  • इस कनिष्क को इसी नाम के पहले दो शासकों से भेद करने के लिए कनिष्क तृतीय का नाम दिया गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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