वासुदेव (कुषाण): Difference between revisions
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*[[यवन|यवनों]] आदि के विदेशी देवताओं से अंकित उसके कोई सिक्के उपलब्ध नहीं हुए। इससे सूचित होता है, कि उसने प्राचीन [[हिन्दू धर्म]] को पूर्ण रूप से अपना लिया था। उसका वासुदेव नाम भी इसी बात का निर्देश करता है। | *[[यवन|यवनों]] आदि के विदेशी देवताओं से अंकित उसके कोई सिक्के उपलब्ध नहीं हुए। इससे सूचित होता है, कि उसने प्राचीन [[हिन्दू धर्म]] को पूर्ण रूप से अपना लिया था। उसका वासुदेव नाम भी इसी बात का निर्देश करता है। | ||
*ऐसा प्रतीत होता है कि राजा वासुदेव के शासन काल में कुषाण साम्राज्य की शक्ति क्षीण होनी शुरू हो गई थी। | *ऐसा प्रतीत होता है कि राजा वासुदेव के शासन काल में कुषाण साम्राज्य की शक्ति क्षीण होनी शुरू हो गई थी। | ||
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Latest revision as of 11:03, 3 March 2013
- वासुदेव एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें: वासुदेव
- हुविष्क के बाद वासुदेव कुषाण साम्राज्य का स्वामी बना।
- उसके सिक्कों पर शिव और नंदी की प्रतिमाएँ अंकित हैं।
- यवनों आदि के विदेशी देवताओं से अंकित उसके कोई सिक्के उपलब्ध नहीं हुए। इससे सूचित होता है, कि उसने प्राचीन हिन्दू धर्म को पूर्ण रूप से अपना लिया था। उसका वासुदेव नाम भी इसी बात का निर्देश करता है।
- ऐसा प्रतीत होता है कि राजा वासुदेव के शासन काल में कुषाण साम्राज्य की शक्ति क्षीण होनी शुरू हो गई थी।
- उत्तरापथ में इस समय अनेक ऐसी राजशक्तियों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने कुषाणों के गौरव का अन्त कर अपनी शक्ति का विकास किया था।
- हुविष्क के शासन काल में ही दक्षिणापथ में शकों ने एक बार फिर अपना उत्कर्ष किया था।
- रुद्रदामा के नेतृत्व में शक लोग एक बार फिर दक्षिणापथ की प्रधान राजशक्ति बन गए।
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