राधा माधव रंग रँगी -विद्यानिवास मिश्र: Difference between revisions
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राधा माधव रंग रँगी -विद्यानिवास मिश्र
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लेखक | विद्यानिवास मिश्र |
मूल शीर्षक | राधा माधव रंग रँगी |
प्रकाशक | भारतीय ज्ञानपीठ |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2002 |
ISBN | 81-263-0742-0 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 175 |
भाषा | हिंदी |
विधा | निबंध संग्रह |
विशेष | विद्यानिवास मिश्र जी के अभूतपूर्व योगदान के लिए ही भारत सरकार ने उन्हें 'पद्मश्री' और 'पद्मभूषण' से सम्मानित किया था। |
राधा माधव रंग रँगी मूर्द्धन्य साहित्यकार और चिन्तक पं. विद्यानिवास मिश्र द्वारा की गयी ‘गीतगोविन्द’ की सरस व्याख्या है। विभिन्न भाषाओं में हुई ‘गीतगोविन्द’ की टीकाओं और व्याख्याओं के बीच यह व्याख्या निस्सन्देह अद्भुत है, अद्वितीय है। इसमें जिस सूक्ष्मता से ‘गीतगोविन्द’ का विवेचन हुआ है, वह विलक्षण तो है ही भावविभोर और मुग्ध कर लेने वाला भी है। दरअसल डॉ. विद्यानिवास मिश्र ने जयदेव की इस कृति को जिस स्तर जाना-पहचाना है, वह राधा और कृष्ण के स्वरूप पर अनोखा प्रकाश डालता है। राधा माधव रंग रंगी हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और जाने माने भाषाविद विद्यानिवास मिश्र का निबंध संग्रह है।
सारांश
महाकवि जयदेव की कालजयी काव्यकृति ‘गीतगोविन्द’ भारत के सर्जनात्मक इतिहास की ऐसी महत्त्वपूर्ण घटना है जो निरन्तर प्रत्यक्ष अनुभव की जाती रही है; और आगे भी की जाती रहेगी। ‘गीतगोविन्द’ को देखने-सुनने, और समझने की भी एक अविच्छिन्न परम्परा रही है और यह परम्परा ही उसे एक जीवन-रस सृष्टि के रूप में परसे हुए हैं। इसी परम्परा में एक और नयी कड़ी है यह पुस्तक ‘राधा माधव रंग रँगी’। पण्डित जी ने अपनी लालित्यपूर्ण सशक्त अभिव्यक्ति द्वारा इस काव्यकृति को नये अर्थ और नयी भंगिमाएँ दी हैं। कहा न होगा कि उनके शब्द ‘गीतगोविन्द’ के सार को जिस ढंग से पहचानते हैं, वह जयदेव की अप्रतिम काव्यात्मक अनुभूति के साथ ही स्वयं पण्डित जी की गहरी चेतना का भी साक्षी है।
वक्तव्य
पहला संस्करण अप्रत्याशित ही समाप्त हो गया। इसके लिए रुचि लेने वाले पाठकों का आभारी हूँ। पहले संस्करण में कुछ अशुद्धियाँ रह गयी थीं। उन्हें सुधार कर लिया गया। इच्छा तो थी कि श्री प्रबुद्धानन्द की टीका भी इसमें जोड़ी जाए और उसके ऊपर स्वतन्त्र आलेख हो जिससे अध्यात्म में रुचि रखने वालों को कुछ और संजीवन सामग्री मिले। पर एक तो प्रकाशक का तगादा था कि इसे शीघ्र छापा जाए, दूसरे उसे स्वतन्त्र उपक्रम के रूप में लेना अधिक श्रेयस्कर समझा गया। इसलिए उसे सम्प्रति छोड़ दिया। भारत की दो प्रसिद्ध नृत्यांगनाएँ कुछ संचारियों की प्रस्तुति अपने अभिनय से करना चाहती थीं। उनका चित्र हम देना चाहते थे, पर नृत्यांगना तो नृत्यांगना है, उनके साथ बैठकर किसी मर्मस्पर्शी भाव का अभिनय चित्र प्राप्त करना कुछ दुस्साध्य ही है। उनके वादों को ही चित्र मान लेते हैं। ‘गीतगोविन्द’ की व्याख्या मैंने रची है कहना अर्धसत्य है। मेरे द्वारा रची गयी है-यही कहना सत्य होगा। इसका अर्थ यह है कि इसके रचने में श्री राधा कृष्ण की लीला में अलौकिक आनन्द प्राप्त करने वाले असंख्य-असंख्य लोगों की अभिलाषा ने मुझसे ऐसा लिखा लिया। इसलिए उन लोगों के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूं कि संसार अभी एकदम ठूँठ ही नहीं है। उसमें भी कहीं-न-कहीं सबको नकार कर कुछ हरियाली बची हुई। अपने प्रकाशक के प्रति मैं आभारी हूँ, जिन्होंने यह पुस्तक सुरुचि से छापी और इसका समुचित वितरण किया। -विद्यानिवास मिश्र[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राधा माधव रंग रँगी (हिंदी) pustak.org। अभिगमन तिथि: 9 अगस्त, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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