वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ: Difference between revisions

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Latest revision as of 08:29, 26 September 2014

वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ
वर्णन पश्चिम बंगाल स्थित 'वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ' भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है।
स्थान सैंथिया, पश्चिम बंगाल
देवी-देवता सती 'महिषासुरमर्दिनी' तथा शिव 'वक्त्रनाथ'।
संबंधित लेख शक्तिपीठ, सती
पौराणिक मान्यता मान्यतानुसार यह माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती का 'मन' गिरा था।
अन्य जानकारी कुछ विद्वान यहाँ सती के दोनों 'भ्रू' का निपात मानते हैं। कहा जाता है कि यहीं पर महर्षि कहोड़ के पुत्र अष्टावक्र का आश्रम भी था।

वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

  • माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैंथिया में स्थित है।
  • पूर्वी रेलवे की मुख्य लाइन पर आण्डाल जंक्शन से सैंथिया लाइन पर आण्डाल से लगभग 39 किलोमीटर दूर एक छोटा-सा स्टेशन है 'दुब्राजपुर', जहाँ से लगभग 12 किलोमीटर उत्तर में अनेक तप्त झरने हैं। वहीं पर शिव के अनेक शिवालय भी हैं।
  • यह स्थान 'वक्त्रेश्वर' कहा जाता है, जो वाकेश्वर नाले के तट पर स्थित होने के कारण कहा जाता है।
  • यहीं वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ है, जो सैंथिया स्टेशन से लगभग 11 किलोमीटर दूर एक श्मशान की भूमि में विद्यमान है।
  • इस स्थान का मुख्य मंदिर वक्त्रेश्वर शिव मंदिर है।
  • माना जाता है कि इस स्थान पर सती का "मन" गिरा था।
  • कुछ विद्वान यहाँ सती के दोनों 'भ्रू' का निपात मानते हैं।
  • इस शक्तिपीठ की सती 'महिषासुरमर्दिनी' तथा शिव 'वक्त्रनाथ' हैं।
  • कहा जाता है कि यहीं पर महर्षि कहोड़ के पुत्र अष्टावक्र का आश्रम भी था, जो अब नहीं है।


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