तैलंग स्वामी: Difference between revisions

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'''तैलंग स्वामी''' एक तपस्वी महात्मा थे। जिनका जन्म [[दक्षिण भारत]] के विजियाना जनपद के होलिया नगर में हुआ था। इनकी जन्मतिथि अज्ञात है। इनका बचपन का नाम तैलंगधर था।  
'''तैलंग स्वामी''' एक तपस्वी महात्मा थे। जिनका जन्म [[दक्षिण भारत]] के विजियाना जनपद के होलिया नगर में हुआ था। इनकी जन्मतिथि अज्ञात है। इनका बचपन का नाम तैलंगधर था।  
==जीवन परिचय==  
==जीवन परिचय==  
तैलंग स्वामी को वैराग्य की प्रवृत्ति बचपन से ही थी। मां की मृत्यु के बाद उसकी चिता के स्थान पर ही लगभग 20 वर्ष तक साधना करते रहे। मां की मृत्यु के बाद तैलंग स्वामी घूमने निकल गये। सबसे पहले वह [[पटियाला]] पहुंचे और भगीरथ स्वामी से संन्यास की दीक्षा ली। फिर [[नेपाल]], [[तिब्बत]], [[गंगोत्री]], यमुनोत्री, [[प्रयाग]], [[रामेश्वरम]], [[उज्जैन]] आदि की यात्रा करते हुए अंत में [[काशी]] पहुँचे और वहीं रह गए। काशी में पंचगंगा घाट पर आज भी तैलंग स्वामी का मठ है। यहाँ पर स्वामी जी [[कृष्ण]] की जिस मूर्ति की पूजा करते थे उसके ललाट पर [[शिवलिंग]] और सिर पर श्रीयंत्र बना हुआ है। मठ के मंडप में लगभग 25 फुट नीचे एक गुफा है जहाँ बैठकर वे साधना किया करते थे। कहा जाता है कि वे धूप और शीत की परवाह किए बिना बहुधा [[मणिकार्णिका घाट वाराणसी|मणिकार्णिका घाट]] पर पड़े रहते थे। जब भीड़ जुड़ने लगती तो किसी निर्जन स्थान पर चले जाते। उनका कहना था कि योगी बिना प्राणवायु के भी जीवित रहने की शक्ति प्राप्त कर सकता है। तैलंग स्वामी की मृत्यु अनुमानतः [[1887]] ई. के आसपास काशी में बतायी गई है।<ref>{{cite book | last =लीलाधर | first =शर्मा  | title =भारतीय चरित कोश  | edition = | publisher =शिक्षा भारती | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय  | language =[[हिन्दी]]  | pages =364  | chapter = }}
तैलंग स्वामी को वैराग्य की प्रवृत्ति बचपन से ही थी। माँ की मृत्यु के बाद उसकी चिता के स्थान पर ही लगभग 20 वर्ष तक साधना करते रहे। माँ की मृत्यु के बाद तैलंग स्वामी घूमने निकल गये। सबसे पहले वह [[पटियाला]] पहुंचे और भगीरथ स्वामी से सन्न्यास की दीक्षा ली। फिर [[नेपाल]], [[तिब्बत]], [[गंगोत्री]], [[यमुनोत्री]], [[प्रयाग]], [[रामेश्वरम]], [[उज्जैन]] आदि की यात्रा करते हुए अंत में [[काशी]] पहुँचे और वहीं रह गए। काशी में [[पंचगंगा घाट वाराणसी|पंचगंगा घाट]] पर आज भी तैलंग स्वामी का मठ है। यहाँ पर स्वामी जी [[कृष्ण]] की जिस मूर्ति की पूजा करते थे उसके ललाट पर [[शिवलिंग]] और सिर पर श्रीयंत्र बना हुआ है। मठ के मंडप में लगभग 25 फुट नीचे एक गुफा है जहाँ बैठकर वे साधना किया करते थे। कहा जाता है कि वे धूप और शीत की परवाह किए बिना बहुधा [[मणिकर्णिका घाट वाराणसी|मणिकर्णिका घाट]] पर पड़े रहते थे। जब भीड़ जुड़ने लगती तो किसी निर्जन स्थान पर चले जाते। उनका कहना था कि योगी बिना प्राणवायु के भी जीवित रहने की शक्ति प्राप्त कर सकता है। तैलंग स्वामी की मृत्यु अनुमानतः [[1887]] ई. के आसपास काशी में बतायी गई है।<ref>{{cite book | last =लीलाधर | first =शर्मा  | title =भारतीय चरित कोश  | edition = | publisher =शिक्षा भारती | location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय  | language =[[हिन्दी]]  | pages =364  | chapter = }}
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Latest revision as of 14:07, 2 June 2017

thumb|तैलंग स्वामी तैलंग स्वामी एक तपस्वी महात्मा थे। जिनका जन्म दक्षिण भारत के विजियाना जनपद के होलिया नगर में हुआ था। इनकी जन्मतिथि अज्ञात है। इनका बचपन का नाम तैलंगधर था।

जीवन परिचय

तैलंग स्वामी को वैराग्य की प्रवृत्ति बचपन से ही थी। माँ की मृत्यु के बाद उसकी चिता के स्थान पर ही लगभग 20 वर्ष तक साधना करते रहे। माँ की मृत्यु के बाद तैलंग स्वामी घूमने निकल गये। सबसे पहले वह पटियाला पहुंचे और भगीरथ स्वामी से सन्न्यास की दीक्षा ली। फिर नेपाल, तिब्बत, गंगोत्री, यमुनोत्री, प्रयाग, रामेश्वरम, उज्जैन आदि की यात्रा करते हुए अंत में काशी पहुँचे और वहीं रह गए। काशी में पंचगंगा घाट पर आज भी तैलंग स्वामी का मठ है। यहाँ पर स्वामी जी कृष्ण की जिस मूर्ति की पूजा करते थे उसके ललाट पर शिवलिंग और सिर पर श्रीयंत्र बना हुआ है। मठ के मंडप में लगभग 25 फुट नीचे एक गुफा है जहाँ बैठकर वे साधना किया करते थे। कहा जाता है कि वे धूप और शीत की परवाह किए बिना बहुधा मणिकर्णिका घाट पर पड़े रहते थे। जब भीड़ जुड़ने लगती तो किसी निर्जन स्थान पर चले जाते। उनका कहना था कि योगी बिना प्राणवायु के भी जीवित रहने की शक्ति प्राप्त कर सकता है। तैलंग स्वामी की मृत्यु अनुमानतः 1887 ई. के आसपास काशी में बतायी गई है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 364।

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