जयसमन्द झील: Difference between revisions

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'''जयसमन्द झील''' [[राजस्थान]] के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इस झील को [[एशिया]] की सबसे बड़ी कृतिम झील होने का दर्जा प्राप्त है। यह [[उदयपुर ज़िला]] मुख्यालय से 51 कि.मी. की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की ओर [[उदयपुर]]-सलूम्बर मार्ग पर स्थित है। अपने प्राकृतिक परिवेश और बाँध की स्थापत्य कला की खूबसूरती से यह [[झील]] वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का महत्त्वपूर्ण स्थल बनी हुई है।
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'''जयसमन्द झील''' या 'ढेबर झील' [[राजस्थान]] के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इस झील को [[एशिया]] की सबसे बड़ी कृतिम झील होने का दर्जा प्राप्त है। यह [[उदयपुर ज़िला]] मुख्यालय से 51 कि.मी. की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की ओर [[उदयपुर]]-सलूम्बर मार्ग पर स्थित है। अपने प्राकृतिक परिवेश और बाँध की स्थापत्य कला की ख़ूबसूरती से यह [[झील]] वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का महत्त्वपूर्ण स्थल बनी हुई है।
==इतिहास==
==इतिहास==
उदयपुर के तत्कालीन महाराणा जयसिंह द्वारा 1687 एवं 1691 ईसवी के मध्य 14 हज़ार 400 मीटर लंबाई एवं 9 हज़ार 500 मीटर चौडाई में निर्मित यह कृत्रिम झील एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी का स्वरूप मानी जाती है। दो पहाडि़यों के बीच में ढेबर दर्रा<ref>झील</ref> को कृत्रिम झील का स्वरूप दिया गया और महाराणा जयसिंह के नाम पर इसे 'जयसमन्द'<ref>जयसमुद्र</ref> कहा जाने लगा। बताया जाता है कि कुछ वर्षों पूर्व इस झील में नौ नदियों एवं आधा दर्जन से भी अधिक नालों से [[जल]] आता था, लेकिन अब मात्र [[गोमती नदी]] और इसकी सहायक नदियों और कुछ नालों से ही जल का आगमन हो पाता है।
उदयपुर के तत्कालीन महाराणा जयसिंह द्वारा 1687 एवं 1691 ईसवी के मध्य 14 हज़ार 400 मीटर लंबाई एवं 9 हज़ार 500 मीटर चौडाई में निर्मित यह कृत्रिम झील एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी का स्वरूप मानी जाती है। दो पहाडि़यों के बीच में ढेबर दर्रा<ref>झील</ref> को कृत्रिम झील का स्वरूप दिया गया और महाराणा जयसिंह के नाम पर इसे 'जयसमन्द'<ref>जयसमुद्र</ref> कहा जाने लगा। बताया जाता है कि कुछ वर्षों पूर्व इस झील में नौ नदियों एवं आधा दर्जन से भी अधिक नालों से [[जल]] आता था, लेकिन अब मात्र [[गोमती नदी]] और इसकी सहायक नदियों और कुछ नालों से ही जल का आगमन हो पाता है।
====बाँध का निर्माण====
====बाँध का निर्माण====
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह भी बताया जाता है कि [[झील]] में पानी लाने वाली गोमती नदी पर महाराणा जयसिंह ने 375 मीटर लंबा एवं 35 मीटर ऊँचा बाँध बनवाया था, जिसके तल की चौड़ाई 20 मीटर एवं उपर से चौड़ाई पाँच मीटर है। बाँध का निर्माण बरवाड़ी की खानों के सफ़ेद सुमाजा<ref>सीस्ट</ref> पत्थर से कराया गया है। झील की मजबूती के लिहाज से दोहरी दीवार बनाई गई है। सुरक्षा की दृष्टि से बाँध से करीब 100 फीट की दूरी पर 396 मीटर लंबा एवं 36 मीटर ऊँचा एक और बाँध बनवाया गया। महाराणा सज्जनसिंह एवं फहसिंह के समय में इन दो बाँधों के बीच के भाग को भरवाया गया और समतल भूमि पर वृक्षारोपण किया गया।
ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह भी बताया जाता है कि [[झील]] में पानी लाने वाली गोमती नदी पर महाराणा जयसिंह ने 375 मीटर लंबा एवं 35 मीटर ऊँचा बाँध बनवाया था, जिसके तल की चौड़ाई 20 मीटर एवं ऊपर से चौड़ाई पाँच मीटर है। बाँध का निर्माण बरवाड़ी की खानों के सफ़ेद सुमाजा<ref>सीस्ट</ref> पत्थर से कराया गया है। झील की मजबूती के लिहाज से दोहरी दीवार बनाई गई है। सुरक्षा की दृष्टि से बाँध से क़रीब 100 फीट की दूरी पर 396 मीटर लंबा एवं 36 मीटर ऊँचा एक और बाँध बनवाया गया। महाराणा सज्जनसिंह एवं फहसिंह के समय में इन दो बाँधों के बीच के भाग को भरवाया गया और समतल भूमि पर वृक्षारोपण किया गया।
==स्थापत्य==
==स्थापत्य==
स्थापत्य कला की दृष्टि से बना बाँध अपने आप में आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। झील की तरफ़ के बाँध पर कुछ-कुछ दूरी पर बनी छह खूबसूरत छतरियाँ पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। गुम्बदाकार छतरियाँ पानी की तरफ़ उतरते हुए बनी हैं। इन छतरियों के सामने नीचे की ओर तीन-तीन बेदियाँ बनाई गई हैं। सबसे नीचे की बेदियों पर सूंड़ को ऊपर किए खड़ी मुद्रा में पत्थर की कारीगरी पूर्ण कलात्मक मध्यम कद के छह हाथियों की प्रतिमा बनाई गई है। यहीं पर बाँध के सबसे उँचे वाले स्थान पर महाराणा जयसिंह द्वारा भगवान [[शिव]] को सर्मपित 'नर्मदेश्‍वर महादेव' का कलात्मक मंदिर भी बनाया गया है।
स्थापत्य कला की दृष्टि से बना बाँध अपने आप में आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। झील की तरफ़ के बाँध पर कुछ-कुछ दूरी पर बनी छह ख़ूबसूरत छतरियाँ पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। गुम्बदाकार छतरियाँ पानी की तरफ़ उतरते हुए बनी हैं। इन छतरियों के सामने नीचे की ओर तीन-तीन बेदियाँ बनाई गई हैं। सबसे नीचे की बेदियों पर सूंड़ को ऊपर किए खड़ी मुद्रा में पत्थर की कारीगरी पूर्ण कलात्मक मध्यम कद के छह हाथियों की प्रतिमा बनाई गई है। यहीं पर बाँध के सबसे उँचे वाले स्थान पर महाराणा जयसिंह द्वारा भगवान [[शिव]] को सर्मपित 'नर्मदेश्‍वर महादेव' का कलात्मक मंदिर भी बनाया गया है।


[[एशिया]] की संभवत सबसे बड़ी कृत्रिम झील बाँध के उत्तरी छोर पर महाराणा फतहसिंह द्वारा निर्मित महल है, जिन्हें अब विश्रामगृह में तब्दील कर दिया गया है। दक्षिणी छोर पर बने महल "महाराज कुमार के महल" कहे जाते थे। दक्षिण छोर की पहाड़ी पर महाराणा जयसिंह द्वारा बनाए गए महल का जीर्णोद्धार महाराणा सज्जनसिंह के समय कराया गया था। उन्होंने इस झील के पीछे 'जयनगर' को बसाकर कुछ इमारतें एवं बावड़ी का निर्माण करवाया था, जो आबाद नहीं हो सके। आज यहाँ निर्माण के कुछ [[अवशेष]] ही नजर आते हैं।
[[एशिया]] की संभवत सबसे बड़ी कृत्रिम झील बाँध के उत्तरी छोर पर महाराणा फ़तहसिंह द्वारा निर्मित महल है, जिन्हें अब विश्रामगृह में तब्दील कर दिया गया है। दक्षिणी छोर पर बने महल "महाराज कुमार के महल" कहे जाते थे। दक्षिण छोर की पहाड़ी पर महाराणा जयसिंह द्वारा बनाए गए महल का जीर्णोद्धार महाराणा सज्जनसिंह के समय कराया गया था। उन्होंने इस झील के पीछे 'जयनगर' को बसाकर कुछ इमारतें एवं बावड़ी का निर्माण करवाया था, जो आबाद नहीं हो सके। आज यहाँ निर्माण के कुछ [[अवशेष]] ही नजर आते हैं।
==आकर्षक पर्यटन स्थल==
==आकर्षक पर्यटन स्थल==
जयसमन्द झील पर्यटकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र बन गई है। [[झील]] के अंदर बांध के सम्मुख एक टापू पर पर्यटकों की सुविधा के लिए 'जयसमन्द आइलेंड' का निर्माण एक निजी फर्म द्वारा कराया गया है। यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए ठहरने के लिए अच्छे सुविधायुक्त वातानुकूलित कमरे, रेस्टोरेन्ट, तरणताल एवं विविध मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए नौका का संचालन किया जाता है। नौका से झील में घूमना अपने आप में अनोखा सुख का अनुभव देता है। जयसमन्द झील के निकट वन एवं वन्यजीव प्रेमियों के लिए वन विभाग द्वारा वन्यजीव अभयारण्य भी बनाया गया है। यहाँ एक [[मछली]] पालन का अच्छा केन्द्र भी है। झील की खूबसूरती और प्राकृतिक परिवेश की कल्पना इसी से की जा सकती है कि अनेक फ़िल्मकारों ने अपनी फ़िल्मों में यहाँ के दृश्यों को कैद किया है। सड़क के किनारे सघन वनस्पति एवं वन होने से [[उदयपुर]] से राजसमन्द झील पहुँचना भी अपने आप में किसी रोमांच से कम नहीं है।
जयसमन्द झील पर्यटकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र बन गई है। [[झील]] के अंदर बांध के सम्मुख एक टापू पर पर्यटकों की सुविधा के लिए 'जयसमन्द आइलेंड' का निर्माण एक निजी फर्म द्वारा कराया गया है। यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए ठहरने के लिए अच्छे सुविधायुक्त वातानुकूलित कमरे, रेस्टोरेन्ट, तरणताल एवं विविध मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए नौका का संचालन किया जाता है। नौका से झील में घूमना अपने आप में अनोखा सुख का अनुभव देता है। जयसमन्द झील के निकट वन एवं वन्यजीव प्रेमियों के लिए वन विभाग द्वारा वन्यजीव अभयारण्य भी बनाया गया है। यहाँ एक [[मछली]] पालन का अच्छा केन्द्र भी है। झील की ख़ूबसूरती और प्राकृतिक परिवेश की कल्पना इसी से की जा सकती है कि अनेक फ़िल्मकारों ने अपनी फ़िल्मों में यहाँ के दृश्यों को कैद किया है। सड़क के किनारे सघन वनस्पति एवं वन होने से [[उदयपुर]] से राजसमन्द झील पहुँचना भी अपने आप में किसी रोमांच से कम नहीं है।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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{{भारत की झीलें}}{{राजस्थान के पर्यटन स्थल}}
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Latest revision as of 11:43, 11 August 2017

जयसमन्द झील
नाम जयसमन्द झील
देश भारत
राज्य राजस्थान
नगर/ज़िला उदयपुर
निर्देशांक उत्तर - 24°16′ ; पूर्व - 74°00
अधिकतम लंबाई 14 हज़ार 400 मीटर
अधिकतम गहराई 102 फ़ीट (लगभग)
अधिकतम चौड़ाई 9 हज़ार 500 मीटर
गूगल मानचित्र गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी जयसमन्द झील को 'ढेबर झील' के नाम से भी जाना जाता है।
अद्यतन‎

जयसमन्द झील या 'ढेबर झील' राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। इस झील को एशिया की सबसे बड़ी कृतिम झील होने का दर्जा प्राप्त है। यह उदयपुर ज़िला मुख्यालय से 51 कि.मी. की दूरी पर दक्षिण-पूर्व की ओर उदयपुर-सलूम्बर मार्ग पर स्थित है। अपने प्राकृतिक परिवेश और बाँध की स्थापत्य कला की ख़ूबसूरती से यह झील वर्षों से पर्यटकों के आकर्षण का महत्त्वपूर्ण स्थल बनी हुई है।

इतिहास

उदयपुर के तत्कालीन महाराणा जयसिंह द्वारा 1687 एवं 1691 ईसवी के मध्य 14 हज़ार 400 मीटर लंबाई एवं 9 हज़ार 500 मीटर चौडाई में निर्मित यह कृत्रिम झील एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी का स्वरूप मानी जाती है। दो पहाडि़यों के बीच में ढेबर दर्रा[1] को कृत्रिम झील का स्वरूप दिया गया और महाराणा जयसिंह के नाम पर इसे 'जयसमन्द'[2] कहा जाने लगा। बताया जाता है कि कुछ वर्षों पूर्व इस झील में नौ नदियों एवं आधा दर्जन से भी अधिक नालों से जल आता था, लेकिन अब मात्र गोमती नदी और इसकी सहायक नदियों और कुछ नालों से ही जल का आगमन हो पाता है।

बाँध का निर्माण

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह भी बताया जाता है कि झील में पानी लाने वाली गोमती नदी पर महाराणा जयसिंह ने 375 मीटर लंबा एवं 35 मीटर ऊँचा बाँध बनवाया था, जिसके तल की चौड़ाई 20 मीटर एवं ऊपर से चौड़ाई पाँच मीटर है। बाँध का निर्माण बरवाड़ी की खानों के सफ़ेद सुमाजा[3] पत्थर से कराया गया है। झील की मजबूती के लिहाज से दोहरी दीवार बनाई गई है। सुरक्षा की दृष्टि से बाँध से क़रीब 100 फीट की दूरी पर 396 मीटर लंबा एवं 36 मीटर ऊँचा एक और बाँध बनवाया गया। महाराणा सज्जनसिंह एवं फहसिंह के समय में इन दो बाँधों के बीच के भाग को भरवाया गया और समतल भूमि पर वृक्षारोपण किया गया।

स्थापत्य

स्थापत्य कला की दृष्टि से बना बाँध अपने आप में आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। झील की तरफ़ के बाँध पर कुछ-कुछ दूरी पर बनी छह ख़ूबसूरत छतरियाँ पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। गुम्बदाकार छतरियाँ पानी की तरफ़ उतरते हुए बनी हैं। इन छतरियों के सामने नीचे की ओर तीन-तीन बेदियाँ बनाई गई हैं। सबसे नीचे की बेदियों पर सूंड़ को ऊपर किए खड़ी मुद्रा में पत्थर की कारीगरी पूर्ण कलात्मक मध्यम कद के छह हाथियों की प्रतिमा बनाई गई है। यहीं पर बाँध के सबसे उँचे वाले स्थान पर महाराणा जयसिंह द्वारा भगवान शिव को सर्मपित 'नर्मदेश्‍वर महादेव' का कलात्मक मंदिर भी बनाया गया है।

एशिया की संभवत सबसे बड़ी कृत्रिम झील बाँध के उत्तरी छोर पर महाराणा फ़तहसिंह द्वारा निर्मित महल है, जिन्हें अब विश्रामगृह में तब्दील कर दिया गया है। दक्षिणी छोर पर बने महल "महाराज कुमार के महल" कहे जाते थे। दक्षिण छोर की पहाड़ी पर महाराणा जयसिंह द्वारा बनाए गए महल का जीर्णोद्धार महाराणा सज्जनसिंह के समय कराया गया था। उन्होंने इस झील के पीछे 'जयनगर' को बसाकर कुछ इमारतें एवं बावड़ी का निर्माण करवाया था, जो आबाद नहीं हो सके। आज यहाँ निर्माण के कुछ अवशेष ही नजर आते हैं।

आकर्षक पर्यटन स्थल

जयसमन्द झील पर्यटकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र बन गई है। झील के अंदर बांध के सम्मुख एक टापू पर पर्यटकों की सुविधा के लिए 'जयसमन्द आइलेंड' का निर्माण एक निजी फर्म द्वारा कराया गया है। यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए ठहरने के लिए अच्छे सुविधायुक्त वातानुकूलित कमरे, रेस्टोरेन्ट, तरणताल एवं विविध मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए नौका का संचालन किया जाता है। नौका से झील में घूमना अपने आप में अनोखा सुख का अनुभव देता है। जयसमन्द झील के निकट वन एवं वन्यजीव प्रेमियों के लिए वन विभाग द्वारा वन्यजीव अभयारण्य भी बनाया गया है। यहाँ एक मछली पालन का अच्छा केन्द्र भी है। झील की ख़ूबसूरती और प्राकृतिक परिवेश की कल्पना इसी से की जा सकती है कि अनेक फ़िल्मकारों ने अपनी फ़िल्मों में यहाँ के दृश्यों को कैद किया है। सड़क के किनारे सघन वनस्पति एवं वन होने से उदयपुर से राजसमन्द झील पहुँचना भी अपने आप में किसी रोमांच से कम नहीं है।


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विथिका


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. झील
  2. जयसमुद्र
  3. सीस्ट

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