किसान कन्या: Difference between revisions

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'''किसान कन्या''' [[भारत]] में बनी पहली रंगीन हिंदी फ़िल्म है जिसका प्रदर्शन सन 1937 में हुआ। पहली सवाक फ़िल्म [[आलम आरा]] बनाने वाली इंपीरियल फ़िल्म कंपनी के अर्देशिर ईरानी  ने देश में रंगीन फ़िल्म बनाने का प्रबंध किया और भारत की पहली पूरी तरह स्वदेशी रंगीन फ़िल्म किसान कन्या [[बंबई]] के मैजेस्टिक सिनेमा घर में रिलीज की।  
'''किसान कन्या''' [[भारत]] में बनी पहली रंगीन हिंदी फ़िल्म है, जिसका प्रदर्शन सन [[1937]] में हुआ। पहली सवाक फ़िल्म [[आलम आरा]] बनाने वाली [[इंपीरियल फ़िल्म कंपनी]] के अर्देशिर ईरानी  ने देश में रंगीन फ़िल्म बनाने का प्रबंध किया और भारत की पहली पूरी तरह स्वदेशी रंगीन फ़िल्म किसान कन्या [[बंबई]] के मैजेस्टिक सिनेमा घर में रिलीज की।  
==निर्माण और निर्देशन==
==निर्माण और निर्देशन==
किसान कन्या हॉलीवुड के प्रोसेसर सिने कलर के तहत बनी थी। इस प्रोसेसर को इंपीरियल फ़िल्म कंपनी ने भारत और पूर्वी देशों के लिए ख़रीद लिया था। इसके विशेषज्ञ वोल्फ हीनियास की देखरेख में शूट और प्रोसेस की गई। किसान कन्या भारत की अपनी पहली रंगीन फ़िल्म थी। फ़िल्म में [[रंग]] इतने अच्छे निखरे थे कि दृश्य वास्तविक लगते थे। निर्माता ने विषय भी ग्रामीण अंचल का चुना था ताकि पर्दे पर वन, पेड़, नदी, खेत और पहाड़ की प्राकृतिक छटा खूबसूरती से आए। इस काम में भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री को वांछित सफलता मिली।<ref name="जागरण">{{cite web |url=http://www.jagran.com/entertainment/special100years-begining-of-colour-cinema-N17095.html |title=रंग भरे ख्वाबों में |accessmonthday=5 अगस्त |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=जागरण डॉट कॉम |language=हिन्दी }}</ref>
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==कहानी==
==कहानी==
किसान कन्या की कहानी गांव के एक लालची और क्रूर जमींदार की थी, जो अपने जुल्मों से किसान-मजदूरों का जीना मुश्किल किए हुए था। बाद में पाप के अंत के साथ फ़िल्म खत्म होती थी। फ़िल्म का निर्देशन मोती बी. गिडवानी ने किया था। इसकी कहानी और पटकथा जियाउद्दीन ने लिखी थी जबकि सिनेरियो तैयार करने और संवाद लिखने का काम [[सआदत हसन मंटो]] ने किया था। संगीत रामगोपाल पांडे का था और रुस्तम ने फोटोग्राफी की थी। किसान कन्या को रंगीन फोटोग्राफी की वजह से आशातीत सफलता तो मिली, पर कहानी के दृष्टिकोण से यह काफी कमजोर मानी गई। फ़िल्म समीक्षकों के अनुसार फ़िल्म की कहानी के हिसाब से किसान कन्या नाम सही नहीं था। इसकी कहानी फ़िल्म की नायिका बंसरी पर अधिक देर केंद्रित नहीं रहती।<ref name="जागरण"/>  
किसान कन्या की [[कहानी]] [[गांव]] के एक लालची और क्रूर ज़मींदार की थी, जो अपने जुल्मों से किसान-मज़दूरों का जीना मुश्किल किए हुए था। बाद में पाप के अंत के साथ फ़िल्म खत्म होती थी। फ़िल्म का निर्देशन मोती बी. गिडवानी ने किया था। इसकी कहानी और पटकथा जियाउद्दीन ने लिखी थी जबकि सिनेरियो तैयार करने और संवाद लिखने का काम [[सआदत हसन मंटो]] ने किया था। संगीत रामगोपाल पांडे का था और रुस्तम ने फोटोग्राफी की थी। किसान कन्या को रंगीन फोटोग्राफी की वजह से आशातीत सफलता तो मिली, पर कहानी के दृष्टिकोण से यह काफ़ी कमज़ोर मानी गई। फ़िल्म समीक्षकों के अनुसार फ़िल्म की कहानी के हिसाब से किसान कन्या नाम सही नहीं था। इसकी कहानी फ़िल्म की नायिका बंसरी पर अधिक देर केंद्रित नहीं रहती।<ref name="जागरण"/>  
==अभिनय==
==अभिनय==
मोती बी. गिडवानी का निर्देशन अच्छा था और गुंडे की भूमिका में उस जमाने के मशहूर अभिनेता ग़ुलाम मोहम्मद ने अपने जीवन का सर्वोत्कृष्ट अभिनय किया था। वे पूरी फ़िल्म में छाए हुए थे। जमींदार की पत्नी रामदेई के रूप में तब की चोटी की अभिनेत्री जिल्लोबाई ने अत्यंत संवेदनशील अदाकारी की थी। बंगाली नायिका पद्मा देवी ने भी अपने हिस्से में आए काम को बड़ी खूबी और तन्मयता से निभाया था।
मोती बी. गिडवानी का निर्देशन अच्छा था और गुंडे की भूमिका में उस जमाने के मशहूर अभिनेता ग़ुलाम मोहम्मद ने अपने जीवन का सर्वोत्कृष्ट अभिनय किया था। वे पूरी फ़िल्म में छाए हुए थे। ज़मींदार की पत्नी रामदेई के रूप में तब की चोटी की अभिनेत्री जिल्लोबाई ने अत्यंत संवेदनशील अदाकारी की थी। बंगाली नायिका पद्मा देवी ने भी अपने हिस्से में आए काम को बड़ी खूबी और तन्मयता से निभाया था।


समीक्षकों और फ़िल्म को समझने वालों ने इसे कमजोर कहानी वाली फ़िल्म बताया, जबकि यह दर्शकों को सिनेमा हाल तक खींचने में सौ प्रतिशत सफल रही। यह उस जमाने के हिसाब से निर्माता के लिए अधिक बजट की फ़िल्म थी, सो डर कर फ़िल्म निर्माताओं ने वर्षों तक रंगीन फ़िल्म बनाने का साहस नहीं किया। वर्षों बाद एम. भवनानी की फ़िल्म अजीत, जो प्रेमनाथ की पहली फ़िल्म थी, से रंगीन फिल्मों का जमाना लौटा। <ref name="जागरण"/>  
समीक्षकों और फ़िल्म को समझने वालों ने इसे कमज़ोर कहानी वाली फ़िल्म बताया, जबकि यह दर्शकों को सिनेमा हाल तक खींचने में सौ प्रतिशत सफल रही। यह उस जमाने के हिसाब से निर्माता के लिए अधिक बजट की फ़िल्म थी, सो डर कर फ़िल्म निर्माताओं ने वर्षों तक रंगीन फ़िल्म बनाने का साहस नहीं किया। वर्षों बाद एम. भवनानी की फ़िल्म अजीत, जो प्रेमनाथ की पहली फ़िल्म थी, से रंगीन फ़िल्मों का जमाना लौटा। <ref name="जागरण"/>  
==मुख्य कलाकार==
==मुख्य कलाकार==
*ग़ुलाम मोहम्मद  
*ग़ुलाम मोहम्मद  
*पद्मा देवी  
*पद्मा देवी  
*जिल्लोबाई
*जिल्लोबाई
*निस्सार  
*[[मास्टर निसार|निस्सार]]
*सैयद अहमद  
*सैयद अहमद  



Latest revision as of 10:53, 29 September 2017

किसान कन्या
निर्देशक मोती बी. गिडवानी
निर्माता अर्देशिर ईरानी
कहानी जियाउद्दीन
पटकथा जियाउद्दीन
संवाद सआदत हसन मंटो
कलाकार ग़ुलाम मोहम्मद, पद्मा देवी और जिल्लोबाई
संगीत रामगोपाल पांडे
छायांकन रुस्तम
प्रदर्शन तिथि 1937
अवधि 137 मिनट
भाषा हिंदी
अन्य जानकारी 'किसान कन्या' भारत में बनी पहली रंगीन हिंदी फ़िल्म है।

किसान कन्या भारत में बनी पहली रंगीन हिंदी फ़िल्म है, जिसका प्रदर्शन सन 1937 में हुआ। पहली सवाक फ़िल्म आलम आरा बनाने वाली इंपीरियल फ़िल्म कंपनी के अर्देशिर ईरानी ने देश में रंगीन फ़िल्म बनाने का प्रबंध किया और भारत की पहली पूरी तरह स्वदेशी रंगीन फ़िल्म किसान कन्या बंबई के मैजेस्टिक सिनेमा घर में रिलीज की।

निर्माण और निर्देशन

किसान कन्या हॉलीवुड के प्रोसेसर सिने कलर के तहत बनी थी। इस प्रोसेसर को इंपीरियल फ़िल्म कंपनी ने भारत और पूर्वी देशों के लिए ख़रीद लिया था। इसके विशेषज्ञ वोल्फ हीनियास की देखरेख में शूट और प्रोसेस की गई। किसान कन्या भारत की अपनी पहली रंगीन फ़िल्म थी। फ़िल्म में रंग इतने अच्छे निखरे थे कि दृश्य वास्तविक लगते थे। निर्माता ने विषय भी ग्रामीण अंचल का चुना था ताकि पर्दे पर वन, पेड़, नदी, खेत और पहाड़ की प्राकृतिक छटा ख़ूबसूरती से आए। इस काम में भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री को वांछित सफलता मिली।[1]

कहानी

किसान कन्या की कहानी गांव के एक लालची और क्रूर ज़मींदार की थी, जो अपने जुल्मों से किसान-मज़दूरों का जीना मुश्किल किए हुए था। बाद में पाप के अंत के साथ फ़िल्म खत्म होती थी। फ़िल्म का निर्देशन मोती बी. गिडवानी ने किया था। इसकी कहानी और पटकथा जियाउद्दीन ने लिखी थी जबकि सिनेरियो तैयार करने और संवाद लिखने का काम सआदत हसन मंटो ने किया था। संगीत रामगोपाल पांडे का था और रुस्तम ने फोटोग्राफी की थी। किसान कन्या को रंगीन फोटोग्राफी की वजह से आशातीत सफलता तो मिली, पर कहानी के दृष्टिकोण से यह काफ़ी कमज़ोर मानी गई। फ़िल्म समीक्षकों के अनुसार फ़िल्म की कहानी के हिसाब से किसान कन्या नाम सही नहीं था। इसकी कहानी फ़िल्म की नायिका बंसरी पर अधिक देर केंद्रित नहीं रहती।[1]

अभिनय

मोती बी. गिडवानी का निर्देशन अच्छा था और गुंडे की भूमिका में उस जमाने के मशहूर अभिनेता ग़ुलाम मोहम्मद ने अपने जीवन का सर्वोत्कृष्ट अभिनय किया था। वे पूरी फ़िल्म में छाए हुए थे। ज़मींदार की पत्नी रामदेई के रूप में तब की चोटी की अभिनेत्री जिल्लोबाई ने अत्यंत संवेदनशील अदाकारी की थी। बंगाली नायिका पद्मा देवी ने भी अपने हिस्से में आए काम को बड़ी खूबी और तन्मयता से निभाया था।

समीक्षकों और फ़िल्म को समझने वालों ने इसे कमज़ोर कहानी वाली फ़िल्म बताया, जबकि यह दर्शकों को सिनेमा हाल तक खींचने में सौ प्रतिशत सफल रही। यह उस जमाने के हिसाब से निर्माता के लिए अधिक बजट की फ़िल्म थी, सो डर कर फ़िल्म निर्माताओं ने वर्षों तक रंगीन फ़िल्म बनाने का साहस नहीं किया। वर्षों बाद एम. भवनानी की फ़िल्म अजीत, जो प्रेमनाथ की पहली फ़िल्म थी, से रंगीन फ़िल्मों का जमाना लौटा। [1]

मुख्य कलाकार

  • ग़ुलाम मोहम्मद
  • पद्मा देवी
  • जिल्लोबाई
  • निस्सार
  • सैयद अहमद


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 रंग भरे ख्वाबों में (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) जागरण डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 5 अगस्त, 2012।

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