कवितावली (पद्य)-किष्किन्धा काण्ड: Difference between revisions

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==किष्किन्धा काण्ड==
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(समुद्रोल्लंघन)
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जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,  
जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,  
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चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।
चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।
‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,  
‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,  
कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।ं
कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।
चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,  
चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,  
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।
(इति किष्किन्धा काण्ड )
(इति किष्किन्धा काण्ड )
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Latest revision as of 07:41, 7 November 2017

right|thumb|250px|कवितावली (किष्किन्धा काण्ड)

किष्किन्धा काण्ड

  
(समुद्रोल्लंघन)
जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई ,
पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो।
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ,
चितवत चहूँ ओर, औरति को कलु गो।
‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो,
कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो।
चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो,
उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो।।
(इति किष्किन्धा काण्ड )

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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