कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 421: Difference between revisions
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{आचार्य चाणक्य का मूल नाम क्या था? | {[[चाणक्य|आचार्य चाणक्य]] का मूल नाम क्या था? | ||
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+विष्णुगुप्त | +[[विष्णुगुप्त]] | ||
- | -[[चरक]] | ||
- | -[[आम्भि]] | ||
-उपरोक्त में से कोई नहीं | -उपरोक्त में से कोई नहीं | ||
||[[चित्र:Chanakya-2.jpg|right|border|80px|विष्णुगुप्त]]'विष्णुगुप्त' [[भारतीय इतिहास]] में [[मौर्य काल]] के प्रसिद्ध [[चाणक्य|आचार्य चाणक्य]] का ही एक अन्य नाम है। चाणक्य को [[इतिहास]] में कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। कौटिल्य के कई नामों का उल्लेख किया गया है, किंतु इसमें 'चाणक्य' नाम ही अधिक प्रसिद्ध है। चाणक्य के [[पिता]] ने उसका नाम [[विष्णुगुप्त]] रखा था। कौटिल्य, चाणक्य और विष्णुगुप्त तीनों नामों से संबंधित और भी कई सन्दर्भ मिलते हैं, किंतु इन तीनों नामों के अलावा उसके और भी कई नामों का उल्लेख किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विष्णुगुप्त]] | |||
{ | {[[राम]] के [[लंका]] विजय के बाद [[अयोध्या]] वापस लौटने पर अयोध्यावासियों ने कौन-सा त्योहार मनाया था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-रामनवमी | -[[रामनवमी]] | ||
-दशहरा | -[[दशहरा]] | ||
+दीपावली | +[[दीपावली]] | ||
-होली | -[[होली]] | ||
||[[चित्र:Lakshmi-ganesh-1.jpg|right|border|80px|दीपावली]]'दीपावली' [[भारत]] के प्रमुख त्योहारों में से एक है। त्योहारों का जो वातावरण [[धनतेरस]] से प्रारम्भ होता है, वह आज के दिन पूरे चरम पर आता है। दीपावली की रात्रि को घरों तथा दुकानों पर भारी संख्या में [[दीपक]], मोमबत्तियां और बल्ब जलाए जाते हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार [[कार्तिक]] [[अमावस्या]] को [[राम|रामचंद्रजी]] चौदह [[वर्ष]] का वनवास काटकर तथा असुरी वृत्तियों के प्रतीक [[रावण]] का संहार करके [[अयोध्या]] लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली [[हिंदू|हिंदुओं]] के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[दीपावली]] | |||
{कूर्मावतार कब हुआ था? | {'कूर्मावतार' कब हुआ था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-चैत्र शुक्ल नवमी | -[[चैत्र]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[नवमी]] | ||
+वैशाख पूर्णिमा | +[[वैशाख पूर्णिमा]] | ||
-फाल्गुन कृष्ण तृतीया | -[[फाल्गुन मास|फाल्गुन]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[तृतीया]] | ||
-भाद्रपद कृष्ण | -[[भाद्रपद]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[अष्टमी]] | ||
||[[चित्र:Kurma-Avatar.jpg|right|border|80px|कूर्म अवतार]]'कूर्म अवतार' को 'कच्छप अवतार' (कछुआ अवतार) भी कहते हैं। [[कूर्म अवतार]] में [[विष्णु|भगवान विष्णु]] ने [[क्षीरसागर]] के [[समुद्र मंथन|समुद्रमंथन]] के समय [[मंदार पर्वत]] को अपने कवच पर संभाला था। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदार पर्वत और [[वासुकि]] नामक [[सर्प]] की सहायता से देवों एवं असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की। इस समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कूर्म अवतार]] | |||
{' | {'अष्टांगसंग्रह' नामक [[आयुर्वेद|आयुर्वेदिक]] चिकित्सा ग्रन्थ के लेखक कौन हैं? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-चरक | -[[चरक]] | ||
- | +[[वाग्भट]] | ||
-[[भाव मिश्र]] | |||
-सुश्रुत | -[[सुश्रुत]] | ||
||'वाग्भट' [[आयुर्वेद]] के प्रसिद्ध [[ग्रंथ]] 'अष्टांगसंग्रह' तथा '[[अष्टांगहृदयम्]]' के रचयिता थे। प्राचीन संहित्यकारों में यही ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपना परिचय स्पष्ट रूप में दिया है। 'अष्टांगसंग्रह' के अनुसार [[वाग्भट]] का जन्म [[सिंध प्रदेश|सिंधु देश]] में हुआ था। इनके पितामह का नाम भी वाग्भट था। ये [[अवलोकितेश्वर]] के शिष्य थे। इनके [[पिता]] का नाम सिद्धगुप्त था। यह [[बौद्ध धर्म]] को मानने वाले थे। [[ह्वेन त्सांग]] का समय 675 और 685 शती ईसवी के आसपास है। वाग्भट इससे पूर्व हुए थे। वाग्भट का समय पाँचवीं शती के लगभग है। ये [[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] थे, यह बात ग्रंथों से स्पष्ट है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वाग्भट]] | |||
{निम्न में से कौन-सा मेला बुन्देलखण्ड क्षेत्र में आयोजित होता है? | {निम्न में से कौन-सा मेला [[बुन्देलखण्ड|बुन्देलखण्ड क्षेत्र]] में आयोजित होता है? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[कजरी मेला]] | |||
-गुड़िया मेला | -गुड़िया मेला | ||
-बटेसर मेला | -बटेसर मेला | ||
-इनमें से कोई नहीं | |||
||'कजरी मेला' [[भारत की संस्कृति]] को संजोए हुए और [[बुन्देलखंड]] की सांस्कृतिक विरासत का परिचायक है। यह मेला [[अगस्त|अगस्त माह]] में [[रक्षाबंधन]] के बाद आयोजित होता है। इस मेले को '''भुजरियों का मेला''' भी कहा जाता है। मेले में अपार जनसमूह ऐतिहासिक कीरत सागर सरोवर में सामूहिक कजली विसर्जन की पुरातन परम्परा का निर्वहन करता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कजरी मेला]]] | |||
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Latest revision as of 05:25, 15 February 2020
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