शिशुपालगढ़: Difference between revisions

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'''शिशुपालगढ़''' एक ऐतिहासिक स्थान, जो [[उड़ीसा]] में [[भुवनेश्वर|भुवनेश्वर नगर]] से लगभग डेढ़ मील की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह [[कलिंग]] की प्राचीन राजधानी था। भुवनेश्वर के निकट इस प्राचीन नगर के ध्वंसावशेष स्थित हैं। यहाँ [[1949]] ई. में विस्तृत [[उत्खनन]] किया गया था।
 
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शिशुपालगढ़ ऐतिहासिक स्थान जो [[उड़ीसा]] में [[भुवनेश्वर|भुवनेश्वर नगर]] से लगभग डेढ़ मील दक्षिण-पूर्व में स्थित है।  
==इतिहास==
==इतिहास==
शिशुपालगढ़ का प्रथम काल 300-200 ई. पू. माना गया है। द्वितीय तथा तृतीय काल क्रमशः 200 ई. पू. से 200 ई. तथा 200 ई. से 350 ई. तक माना गया है।  
उड़ीसा के भुवनेश्वर के निकट स्थित इस प्राचीन नगर के ध्वंसावशेष पाये जाते हैं। यहाँ विस्तृत उत्खनन कार्य वर्ष 1949 में प्रारम्भ किया गया था। इस नगर का संबंध प्रसिद्ध [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] [[महाकाव्य]] '[[महाभारत]]' के [[शिशुपाल]] से नहीं जान पड़ता, क्योंकि इसका अस्तित्व काल तीसरी शती ई. पू. से चौथी शती ई. तक है।
==उत्खनन==
====उत्खनन====
शिशुपालगढ़ से दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए हैं। शिशुपालगढ़ का दुर्ग पौन मील वर्गाकार है। उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में हाथीदाँत का एक विशाल मनका उल्लेखनीय है, जिस पर एक ओर दो हंस बने हैं, और दूसरी ओर [[कमल|कमल पुष्प]]। कर्णाभरण काफ़ी संख्या में मिले हैं। शिशुपालगढ़ की खुदाई से कुल मिलाकर 31 सिक्के प्राप्त हुए हैं। यहाँ से उपलब्ध सामग्री का सबसे बड़ा भाग मृद्भाण्ड हैं। इन मृद्भाण्डों में उत्तरीय कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड, कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड तथा रूलेटेड मृद्भाण्ड उल्लेखनीय हैं।  
शिशुपालगढ़ से [[दुर्ग]] के [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। यहाँ का दुर्ग पौन मील वर्गाकार है। उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में हाथीदाँत का एक विशाल मनका उल्लेखनीय है, जिस पर एक ओर दो हंस बने हैं, और दूसरी ओर [[कमल|कमल पुष्प]]। कर्णाभरण काफ़ी संख्या में मिले हैं। शिशुपालगढ़ की खुदाई से कुल मिलाकर 31 सिक्के प्राप्त हुए हैं। यहाँ से उपलब्ध सामग्री का सबसे बड़ा भाग मृद्भाण्ड हैं। इन मृद्भाण्डों में उत्तरीय कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड, कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड तथा रूलेटेड मृद्भाण्ड उल्लेखनीय हैं।  
 
==अशोक का शिलालेख==
शिशुपालगढ़ से तीन मील दूर [[धौली]] नामक स्थान है जो [[अशोक]] के शिलालेख के कारण प्रख्यात है। इस अभिलेख में इस स्थान को [[तोसलि]] से अभिहित किया गया है। सम्भवतः उस समय इस स्थल के आस-पास एक जीवंत नगर रहा होगा, जैसा कि खण्डहरों तथा निकटस्थ ऐतिहासिक स्थलों से सिद्ध होता है। शिशुपालगढ़ से छः मील दूरी पर ही [[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख|हाथीगुम्फा]] से [[खारवेल|राजा खारवेल]] का लेख प्राप्त हुआ है।
{{main|अशोक के शिलालेख}}
शिशुपालगढ़ से तीन मील दूर [[धौली]] नामक स्थान है, जो [[मौर्य राजवंश|मौर्य]] [[अशोक|सम्राट अशोक]] के [[अशोक के शिलालेख|शिलालेख]]<ref>कलिंग-अभिलेख</ref> के लिए प्रख्यात है। इस अभिलेख में इस स्थान का नाम 'तोसलि' कहा गया है। उस समय इस स्थान के आस-पास एक विशाल नगर स्थित रहा होगा, जैसा कि [[खंडहर|खंडहरों]] तथा निकटस्थ ऐतिहासिक स्थलों से सिद्ध होता है। ह. कृ. महताब के मत में केसरी वंशीय नरेश शिशुपाल केसरी के नाम पर ही इसका 'शिशुपालगढ़' का नामकरण हुआ होगा।<ref>हिस्ट्री ऑफ उड़ीसा, पृ. 66</ref>
====खारवेल का अभिलेख====
शिशुपालगढ़ से छह मील दूर 'खंडगिरि' तथा '[[उदयगिरि पहाड़ियाँ|उदयगिरि की पहाडि़याँ]]' हैं, जहाँ दो प्रसिद्ध गुफ़ाओं में ई. सन के पूर्व के अभिलेख प्राप्त हुए हैं। '[[हाथीगुम्फ़ा शिलालेख|हाथीगुम्फ़ा]]' नामक एक गुफ़ा में कलिंगराज [[खारवेल]] का और बैकुंठपुर गुफ़ा में उसकी रानी का अभिलेख अंकित है। ये गुफ़ाएँ तीसरी शती ई. पू. में [[आजीवक]] साधुओं के रहने के लिए अशोक ने बनवाई थीं, जैसा कि उसके अभिलेख से जान पड़ता है। खारवेल के लेख में इस स्थान का नाम कलिंग नगर दिया हुआ है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=902|url=}}</ref>


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शिशुपालगढ़ एक ऐतिहासिक स्थान, जो उड़ीसा में भुवनेश्वर नगर से लगभग डेढ़ मील की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। यह कलिंग की प्राचीन राजधानी था। भुवनेश्वर के निकट इस प्राचीन नगर के ध्वंसावशेष स्थित हैं। यहाँ 1949 ई. में विस्तृत उत्खनन किया गया था।

इतिहास

उड़ीसा के भुवनेश्वर के निकट स्थित इस प्राचीन नगर के ध्वंसावशेष पाये जाते हैं। यहाँ विस्तृत उत्खनन कार्य वर्ष 1949 में प्रारम्भ किया गया था। इस नगर का संबंध प्रसिद्ध हिन्दू महाकाव्य 'महाभारत' के शिशुपाल से नहीं जान पड़ता, क्योंकि इसका अस्तित्व काल तीसरी शती ई. पू. से चौथी शती ई. तक है।

उत्खनन

शिशुपालगढ़ से दुर्ग के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहाँ का दुर्ग पौन मील वर्गाकार है। उत्खनन में प्राप्त अवशेषों में हाथीदाँत का एक विशाल मनका उल्लेखनीय है, जिस पर एक ओर दो हंस बने हैं, और दूसरी ओर कमल पुष्प। कर्णाभरण काफ़ी संख्या में मिले हैं। शिशुपालगढ़ की खुदाई से कुल मिलाकर 31 सिक्के प्राप्त हुए हैं। यहाँ से उपलब्ध सामग्री का सबसे बड़ा भाग मृद्भाण्ड हैं। इन मृद्भाण्डों में उत्तरीय कृष्ण मार्जित मृद्भाण्ड, कृष्ण लोहित मृद्भाण्ड तथा रूलेटेड मृद्भाण्ड उल्लेखनीय हैं।

अशोक का शिलालेख

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

शिशुपालगढ़ से तीन मील दूर धौली नामक स्थान है, जो मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेख[1] के लिए प्रख्यात है। इस अभिलेख में इस स्थान का नाम 'तोसलि' कहा गया है। उस समय इस स्थान के आस-पास एक विशाल नगर स्थित रहा होगा, जैसा कि खंडहरों तथा निकटस्थ ऐतिहासिक स्थलों से सिद्ध होता है। ह. कृ. महताब के मत में केसरी वंशीय नरेश शिशुपाल केसरी के नाम पर ही इसका 'शिशुपालगढ़' का नामकरण हुआ होगा।[2]

खारवेल का अभिलेख

शिशुपालगढ़ से छह मील दूर 'खंडगिरि' तथा 'उदयगिरि की पहाडि़याँ' हैं, जहाँ दो प्रसिद्ध गुफ़ाओं में ई. सन के पूर्व के अभिलेख प्राप्त हुए हैं। 'हाथीगुम्फ़ा' नामक एक गुफ़ा में कलिंगराज खारवेल का और बैकुंठपुर गुफ़ा में उसकी रानी का अभिलेख अंकित है। ये गुफ़ाएँ तीसरी शती ई. पू. में आजीवक साधुओं के रहने के लिए अशोक ने बनवाई थीं, जैसा कि उसके अभिलेख से जान पड़ता है। खारवेल के लेख में इस स्थान का नाम कलिंग नगर दिया हुआ है।[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कलिंग-अभिलेख
  2. हिस्ट्री ऑफ उड़ीसा, पृ. 66
  3. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 902 |

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