श्यामा प्रसाद मुखर्जी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर")
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 15: Line 15:
|क़ब्र=  
|क़ब्र=  
|नागरिकता=भारतीय
|नागरिकता=भारतीय
|प्रसिद्धि=भारतीय जनसंघ के संस्थापक
|प्रसिद्धि=[[भारतीय जनसंघ]] के संस्थापक
|पार्टी='[[भारतीय जनसंघ]]'
|पार्टी='[[भारतीय जनसंघ]]'
|पद=
|पद=
Line 42: Line 42:
कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी [[कांग्रेस]] उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे, किंतु उन्होंने अगले वर्ष इस पद से उस समय त्यागपत्र दे दिया, जब कांग्रेस ने विधान मंडल का बहिष्कार कर दिया। बाद में उन्होंने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुए। वर्ष [[1937]]-[[1941]] में 'कृषक प्रजा पार्टी' और [[मुस्लिम लीग]] का गठबन्धन सत्ता में आया। इस समय डॉ. मुखर्जी विरोधी पक्ष के नेता बन गए। वे फज़लुल हक़ के नेतृत्व में प्रगतिशील गठबन्धन मंत्रालय में वित्तमंत्री के रूप में शामिल हुए, लेकिन उन्होंने एक वर्ष से कम समय में ही इस पद से त्यागपत्र दे दिया। वे [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के प्रवक्ता के रूप में उभरे और शीघ्र ही '[[हिन्दू महासभा]]' में शामिल हो गए। सन [[1944]] में वे इसके अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे।
कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी [[कांग्रेस]] उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे, किंतु उन्होंने अगले वर्ष इस पद से उस समय त्यागपत्र दे दिया, जब कांग्रेस ने विधान मंडल का बहिष्कार कर दिया। बाद में उन्होंने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुए। वर्ष [[1937]]-[[1941]] में 'कृषक प्रजा पार्टी' और [[मुस्लिम लीग]] का गठबन्धन सत्ता में आया। इस समय डॉ. मुखर्जी विरोधी पक्ष के नेता बन गए। वे फज़लुल हक़ के नेतृत्व में प्रगतिशील गठबन्धन मंत्रालय में वित्तमंत्री के रूप में शामिल हुए, लेकिन उन्होंने एक वर्ष से कम समय में ही इस पद से त्यागपत्र दे दिया। वे [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के प्रवक्ता के रूप में उभरे और शीघ्र ही '[[हिन्दू महासभा]]' में शामिल हो गए। सन [[1944]] में वे इसके अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे।
====हिन्दू महासभा का नेतृत्व====
====हिन्दू महासभा का नेतृत्व====
राष्ट्रीय एकात्मता एवं अखण्डता के प्रति आगाध श्रद्धा ने ही डॉ. मुखर्जी को राजनीति के समर में झोंक दिया। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की 'फूट डालो व राज करो' की नीति ने 'मुस्लिम लीग' को स्थापित किया था। डॉ. मुखर्जी ने 'हिन्दू महासभा' का नेतृत्व ग्रहण कर इस नीति को ललकारा। राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] ने उनके हिन्दू महासभा में शामिल होने का स्वागत किया, क्योंकि उनका मत था कि हिन्दू महासभा में [[मदन मोहन मालवीय]] जी के बाद किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। कांग्रेस यदि उनकी सलाह को मानती तो हिन्दू महासभा कांग्रेस की ताकत बनती तथा मुस्लिम लीग की भारत विभाजन की मनोकामना पूर्ण नहीं होती।
राष्ट्रीय एकात्मता एवं अखण्डता के प्रति आगाध श्रद्धा ने ही डॉ. मुखर्जी को राजनीति के समर में झोंक दिया। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की 'फूट डालो व राज करो' की नीति ने 'मुस्लिम लीग' को स्थापित किया था। डॉ. मुखर्जी ने 'हिन्दू महासभा' का नेतृत्व ग्रहण कर इस नीति को ललकारा। [[महात्मा गांधी|राष्ट्रपिता महात्मा गांधी]] ने उनके हिन्दू महासभा में शामिल होने का स्वागत किया, क्योंकि उनका मत था कि हिन्दू महासभा में [[मदन मोहन मालवीय]] जी के बाद किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। कांग्रेस यदि उनकी सलाह को मानती तो हिन्दू महासभा कांग्रेस की ताकत बनती तथा [[मुस्लिम लीग]] की [[भारत विभाजन]] की मनोकामना पूर्ण नहीं होती।
==भारतीय जनसंघ की स्थापना==
==भारतीय जनसंघ की स्थापना==
{{Main|भारतीय जनसंघ}}
{{Main|भारतीय जनसंघ}}
Line 51: Line 51:
उस समय [[जम्मू-कश्मीर]] का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहाँ का [[मुख्यमंत्री]] भी [[प्रधानमंत्री]] कहा जाता था। लेकिन डॉ. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी दिया कि- '''एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे।''' [[अगस्त]], 1952 में [[जम्मू]] की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि "या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।"
उस समय [[जम्मू-कश्मीर]] का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहाँ का [[मुख्यमंत्री]] भी [[प्रधानमंत्री]] कहा जाता था। लेकिन डॉ. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी दिया कि- '''एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे।''' [[अगस्त]], 1952 में [[जम्मू]] की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि "या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।"
==निधन==
==निधन==
जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को [[11 मई]], [[1953]] में शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया, क्योंकि उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक प्रकार से पासपोर्ट के समान एक परमिट लेना पडता था और डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर चले गए थे, जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। वहाँ गिरफ्तार होने के कुछ दिन बाद ही [[23 जून]], [[1953]] को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु का खुलासा आज तक नहीं हो सका है। [[भारत]] की अखण्डता के लिए आज़ाद भारत में यह पहला बलिदान था। इसका परिणाम यह हुआ कि शेख़ अब्दुल्ला हटा दिये गए और अलग संविधान, अलग प्रधान एवं अलग झण्डे का प्रावधान निरस्त हो गया। '[[धारा 370]]' के बावजूद [[कश्मीर]] आज भारत का अभिन्न अंग बना हुआ है। इसका सर्वाधिक श्रेय डॉ. मुखर्जी को ही दिया जाता है।
[[चित्र:Shyama-Prasad-Mukhopadhyaya-Stamp.jpg|thumb|250px|श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सम्मान में [[डाक टिकट]]]]
[[जम्मू-कश्मीर]] में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को [[11 मई]], [[1953]] में शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया, क्योंकि उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक प्रकार से पासपोर्ट के समान एक परमिट लेना पडता था और डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर चले गए थे, जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। वहाँ गिरफ्तार होने के कुछ दिन बाद ही [[23 जून]], [[1953]] को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु का खुलासा आज तक नहीं हो सका है। [[भारत]] की अखण्डता के लिए आज़ाद भारत में यह पहला बलिदान था। इसका परिणाम यह हुआ कि शेख़ अब्दुल्ला हटा दिये गए और अलग संविधान, अलग प्रधान एवं अलग झण्डे का प्रावधान निरस्त हो गया। '[[धारा 370]]' के बावजूद [[कश्मीर]] आज भारत का अभिन्न अंग बना हुआ है। इसका सर्वाधिक श्रेय डॉ. मुखर्जी को ही दिया जाता है।
====नेतृत्व क्षमता====
====नेतृत्व क्षमता====
डॉ. मुखर्जी को देश के प्रखर नेताओं में गिना जाता था। [[संसद]] में 'भारतीय जनसंघ' एक छोटा दल अवश्य था, किंतु उनकी नेतृत्व क्षमता में संसद में 'राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल' का गठन हुआ था, जिसमें गणतंत्र परिषद, अकाली दल, हिन्दू महासभा एवं अनेक निर्दलीय सांसद शामिल थे। जब संसद में [[जवाहरलाल नेहरू]] ने भारतीय जनसंघ को कुचलने की बात कही, तब डॉ. मुखर्जी ने कहा- "हम देश की राजनीति से इस कुचलने वाली मनोवृत्ति को कुचल देंगे।" डॉ. मुखर्जी की शहादत पर शोक व्यक्त करते हुए तत्कालीन [[लोक सभा]] के अध्यक्ष श्री जी.वी. मावलंकर ने कहा- "वे हमारे महान् देशभक्तों में से एक थे और राष्ट्र के लिए उनकी सेवाएँ भी उतनी ही महान् थीं। जिस स्थिति में उनका निधन हुआ, वह स्थिति बड़ी ही दुःखदायी है। यही ईश्वर की इच्छा थी। इसमें कोई क्या कर सकता था? उनकी योग्यता, उनकी निष्पक्षता, अपने कार्यभार को कौशल्यपूर्ण निभाने की दक्षता, उनकी वाक्पटुता और सबसे अधिक उनकी देशभक्ति एवं अपने देशवासियों के प्रति उनके लगाव ने उन्हें हमारे सम्मान का पात्र बना दिया।"
डॉ. मुखर्जी को देश के प्रखर नेताओं में गिना जाता था। [[संसद]] में 'भारतीय जनसंघ' एक छोटा दल अवश्य था, किंतु उनकी नेतृत्व क्षमता में संसद में 'राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल' का गठन हुआ था, जिसमें गणतंत्र परिषद, अकाली दल, हिन्दू महासभा एवं अनेक निर्दलीय सांसद शामिल थे। जब संसद में [[जवाहरलाल नेहरू]] ने भारतीय जनसंघ को कुचलने की बात कही, तब डॉ. मुखर्जी ने कहा- "हम देश की राजनीति से इस कुचलने वाली मनोवृत्ति को कुचल देंगे।" डॉ. मुखर्जी की शहादत पर शोक व्यक्त करते हुए तत्कालीन [[लोक सभा]] के अध्यक्ष श्री जी.वी. मावलंकर ने कहा- "वे हमारे महान् देशभक्तों में से एक थे और राष्ट्र के लिए उनकी सेवाएँ भी उतनी ही महान् थीं। जिस स्थिति में उनका निधन हुआ, वह स्थिति बड़ी ही दुःखदायी है। यही ईश्वर की इच्छा थी। इसमें कोई क्या कर सकता था? उनकी योग्यता, उनकी निष्पक्षता, अपने कार्यभार को कौशल्यपूर्ण निभाने की दक्षता, उनकी वाक्पटुता और सबसे अधिक उनकी देशभक्ति एवं अपने देशवासियों के प्रति उनके लगाव ने उन्हें हमारे सम्मान का पात्र बना दिया।"
==विश्लेषण==
==विश्लेषण==
डॉ. मुखर्जी [[भारत]] के लिए शहीद हुए और भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया, जो राजनीति को एक नई दिशा प्रदान कर सकता था। डॉ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से ही सब एक हैं, इसलिए [[धर्म]] के आधार पर किसी भी तरह के विभाजन के वे ख़िलाफ़ थे। उनका मानना था कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अंतर नहीं है। हमारी [[भाषा]] और [[संस्कृति]] एक है। यही हमारी अमूल्य विरासत है। उनके इन विचारों और उनकी मंशाओं को अन्य राजनीतिक दलों के तात्कालिक नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। लेकिन इसके बावजूद लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया।
डॉ. मुखर्जी [[भारत]] के लिए शहीद हुए और [[भारत]] ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया, जो राजनीति को एक नई दिशा प्रदान कर सकता था। डॉ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से ही सब एक हैं, इसलिए [[धर्म]] के आधार पर किसी भी तरह के विभाजन के वे ख़िलाफ़ थे। उनका मानना था कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अंतर नहीं है। हमारी [[भाषा]] और [[संस्कृति]] एक है। यही हमारी अमूल्य विरासत है। उनके इन विचारों और उनकी मंशाओं को अन्य राजनीतिक दलों के तात्कालिक नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। लेकिन इसके बावजूद लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
Line 66: Line 67:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारतीय जनता पार्टी}}{{भारत का विभाजन}}
{{भारतीय जनता पार्टी}}{{भारत का विभाजन}}
[[Category:राजनीति कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:राजनीतिज्ञ]][[Category:राजनेता]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:राजनीति कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]][[Category:भारतीय जनता पार्टी]]
[[Category:भारतीय जनता पार्टी]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 11:38, 19 March 2024

श्यामा प्रसाद मुखर्जी
पूरा नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी
जन्म 6 जुलाई, 1901
जन्म भूमि कोलकाता
मृत्यु 23 जून, 1953
मृत्यु स्थान जम्मू-कश्मीर
अभिभावक आशुतोष मुखर्जी (पिता), जोगमाया देवी मुखर्जी (माता)
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि भारतीय जनसंघ के संस्थापक
पार्टी 'भारतीय जनसंघ'
शिक्षा एम.ए. (1923), बी.एल. (1924)
विद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय, 'लिंकन्स इन' (इंग्लैंड)
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
अन्य जानकारी डॉ. मुखर्जी 33 वर्ष की आयु में 'कलकत्ता विश्वविद्यालय' में विश्व के सबसे कम उम्र के कुलपति बनाये गए थे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी (अंग्रेज़ी: Syama Prasad Mookerjee, जन्म- 6 जुलाई, 1901, कोलकाता; मृत्यु- 23 जून, 1953) एक महान् शिक्षाविद और चिन्तक होने के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापक भी थे। उन्हें आज भी एक प्रखर राष्ट्रवादी और कट्टर देशभक्त के रूप में याद किया जाता है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक और सिद्धांतों के पक्के इंसान थे। संसद में उन्होंने सदैव राष्ट्रीय एकता की स्थापना को ही अपना प्रथम लक्ष्य रखा था। संसद में दिए अपने भाषण में उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा था कि "राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है।" भारतीय इतिहास में उनकी छवि एक कर्मठ और जुझारू व्यक्तित्व वाले ऐसे इंसान की है, जो अपनी मृत्यु के इतने वर्षों बाद भी अनेक भारतवासियों के आदर्श और पथप्रदर्शक हैं।

जन्म तथा शिक्षा

डॉ. मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम जोगमाया देवी मुखर्जी था और पिता आशुतोष मुखर्जी बंगाल के एक जाने-माने व्यक्ति और कुशल वकील थे। डॉ. मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में 1921 में प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने 1923 में एम.ए. और 1924 में बी.एल. किया। वे 1923 में ही सीनेट के सदस्य बन गये थे। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद कलकता उच्च न्यायालय में एडवोकेट के रूप में अपना नाम दर्ज कराया। बाद में वे सन 1926 में 'लिंकन्स इन' में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर बन गए।

कुलपति का पद

डॉ. मुखर्जी तैंतीस वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय में विश्व के सबसे कम उम्र के कुलपति बनाये गए थे। इस पद को उनके पिता भी सुशोभित कर चुके थे। 1938 तक डॉ. मुखर्जी इस पद को गौरवान्वित करते रहे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक रचनात्मक सुधार कार्य किए तथा 'कलकत्ता एशियाटिक सोसायटी' में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। वे 'इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस', बंगलौर की परिषद एवं कोर्ट के सदस्य और इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ़ बोर्ड के चेयरमैन भी रहे।

राजनीति में प्रवेश

कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए थे, किंतु उन्होंने अगले वर्ष इस पद से उस समय त्यागपत्र दे दिया, जब कांग्रेस ने विधान मंडल का बहिष्कार कर दिया। बाद में उन्होंने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुए। वर्ष 1937-1941 में 'कृषक प्रजा पार्टी' और मुस्लिम लीग का गठबन्धन सत्ता में आया। इस समय डॉ. मुखर्जी विरोधी पक्ष के नेता बन गए। वे फज़लुल हक़ के नेतृत्व में प्रगतिशील गठबन्धन मंत्रालय में वित्तमंत्री के रूप में शामिल हुए, लेकिन उन्होंने एक वर्ष से कम समय में ही इस पद से त्यागपत्र दे दिया। वे हिन्दुओं के प्रवक्ता के रूप में उभरे और शीघ्र ही 'हिन्दू महासभा' में शामिल हो गए। सन 1944 में वे इसके अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे।

हिन्दू महासभा का नेतृत्व

राष्ट्रीय एकात्मता एवं अखण्डता के प्रति आगाध श्रद्धा ने ही डॉ. मुखर्जी को राजनीति के समर में झोंक दिया। अंग्रेज़ों की 'फूट डालो व राज करो' की नीति ने 'मुस्लिम लीग' को स्थापित किया था। डॉ. मुखर्जी ने 'हिन्दू महासभा' का नेतृत्व ग्रहण कर इस नीति को ललकारा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उनके हिन्दू महासभा में शामिल होने का स्वागत किया, क्योंकि उनका मत था कि हिन्दू महासभा में मदन मोहन मालवीय जी के बाद किसी योग्य व्यक्ति के मार्गदर्शन की ज़रूरत थी। कांग्रेस यदि उनकी सलाह को मानती तो हिन्दू महासभा कांग्रेस की ताकत बनती तथा मुस्लिम लीग की भारत विभाजन की मनोकामना पूर्ण नहीं होती।

भारतीय जनसंघ की स्थापना

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

महात्मा गांधी की हत्या के बाद डॉ. मुखर्जी चाहते थे कि हिन्दू महासभा को केवल हिन्दुओं तक ही सीमित न रखा जाए अथवा यह जनता की सेवा के लिए एक गैर-राजनीतिक निकाय के रूप में ही कार्य न करे। वे 23 नवम्बर, 1948 को इस मुद्दे पर इससे अलग हो गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में सम्मिलित किया था। डॉ. मुखर्जी ने लियाकत अली ख़ान के साथ दिल्ली समझौते के मुद्दे पर 6 अप्रैल, 1950 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। मुखर्जी जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श करने के बाद 21 अक्तूबर, 1951 को दिल्ली में 'भारतीय जनसंघ' की नींव रखी और इसके पहले अध्यक्ष बने। सन 1952 के चुनावों में भारतीय जनसंघ ने संसद की तीन सीटों पर विजय प्राप्त की, जिनमें से एक सीट पर डॉ. मुखर्जी जीतकर आए। उन्होंने संसद के भीतर 'राष्ट्रीय जनतांत्रिक पार्टी' बनायी, जिसमें 32 सदस्य लोक सभा तथा 10 सदस्य राज्य सभा से थे, हालांकि अध्यक्ष द्वारा एक विपक्षी पार्टी के रूप में इसे मान्यता नहीं मिली।

भारत विभाजन के विरोधी

जिस समय अंग्रेज़ अधिकारियों और कांग्रेस के बीच देश की स्वतंत्रता के प्रश्न पर वार्ताएँ चल रही थीं और मुस्लिम लीग देश के विभाजन की अपनी जिद पर अड़ी हुई थी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस विभाजन का बड़ा ही कड़ा विरोध किया। कुछ लोगों की मान्यता है कि आधे पंजाब और आधे बंगाल के भारत में बने रहने के पीछे डॉ. मुखर्जी के प्रयत्नों का ही सबसे बड़ा हाथ है।

संकल्प

उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झंडा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमंत्री भी प्रधानमंत्री कहा जाता था। लेकिन डॉ. मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने जोरदार नारा भी दिया कि- एक देश में दो निशान, एक देश में दो प्रधान, एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे। अगस्त, 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि "या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दूंगा।"

निधन

[[चित्र:Shyama-Prasad-Mukhopadhyaya-Stamp.jpg|thumb|250px|श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सम्मान में डाक टिकट]] जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने पर डॉ. मुखर्जी को 11 मई, 1953 में शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार ने हिरासत में ले लिया, क्योंकि उन दिनों कश्मीर में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक प्रकार से पासपोर्ट के समान एक परमिट लेना पडता था और डॉ. मुखर्जी बिना परमिट लिए जम्मू-कश्मीर चले गए थे, जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया गया। वहाँ गिरफ्तार होने के कुछ दिन बाद ही 23 जून, 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु का खुलासा आज तक नहीं हो सका है। भारत की अखण्डता के लिए आज़ाद भारत में यह पहला बलिदान था। इसका परिणाम यह हुआ कि शेख़ अब्दुल्ला हटा दिये गए और अलग संविधान, अलग प्रधान एवं अलग झण्डे का प्रावधान निरस्त हो गया। 'धारा 370' के बावजूद कश्मीर आज भारत का अभिन्न अंग बना हुआ है। इसका सर्वाधिक श्रेय डॉ. मुखर्जी को ही दिया जाता है।

नेतृत्व क्षमता

डॉ. मुखर्जी को देश के प्रखर नेताओं में गिना जाता था। संसद में 'भारतीय जनसंघ' एक छोटा दल अवश्य था, किंतु उनकी नेतृत्व क्षमता में संसद में 'राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल' का गठन हुआ था, जिसमें गणतंत्र परिषद, अकाली दल, हिन्दू महासभा एवं अनेक निर्दलीय सांसद शामिल थे। जब संसद में जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय जनसंघ को कुचलने की बात कही, तब डॉ. मुखर्जी ने कहा- "हम देश की राजनीति से इस कुचलने वाली मनोवृत्ति को कुचल देंगे।" डॉ. मुखर्जी की शहादत पर शोक व्यक्त करते हुए तत्कालीन लोक सभा के अध्यक्ष श्री जी.वी. मावलंकर ने कहा- "वे हमारे महान् देशभक्तों में से एक थे और राष्ट्र के लिए उनकी सेवाएँ भी उतनी ही महान् थीं। जिस स्थिति में उनका निधन हुआ, वह स्थिति बड़ी ही दुःखदायी है। यही ईश्वर की इच्छा थी। इसमें कोई क्या कर सकता था? उनकी योग्यता, उनकी निष्पक्षता, अपने कार्यभार को कौशल्यपूर्ण निभाने की दक्षता, उनकी वाक्पटुता और सबसे अधिक उनकी देशभक्ति एवं अपने देशवासियों के प्रति उनके लगाव ने उन्हें हमारे सम्मान का पात्र बना दिया।"

विश्लेषण

डॉ. मुखर्जी भारत के लिए शहीद हुए और भारत ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया, जो राजनीति को एक नई दिशा प्रदान कर सकता था। डॉ मुखर्जी इस धारणा के प्रबल समर्थक थे कि सांस्कृतिक दृष्टि से ही सब एक हैं, इसलिए धर्म के आधार पर किसी भी तरह के विभाजन के वे ख़िलाफ़ थे। उनका मानना था कि आधारभूत सत्य यह है कि हम सब एक हैं। हममें कोई अंतर नहीं है। हमारी भाषा और संस्कृति एक है। यही हमारी अमूल्य विरासत है। उनके इन विचारों और उनकी मंशाओं को अन्य राजनीतिक दलों के तात्कालिक नेताओं ने अन्यथा रूप से प्रचारित-प्रसारित किया। लेकिन इसके बावजूद लोगों के दिलों में उनके प्रति अथाह प्यार और समर्थन बढ़ता गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख