मीरान-ए-बाग़: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " जिक्र" to " ज़िक्र") |
|||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''मीरान-ए-बाग़''' [[धौलपुर]], [[राजस्थान]] में स्थित है। यह बाग़ कई दशकों से उपेक्षा का शिकार रहा है, किंतु अब इसकी दशा सुधारने के लिए 'पुरातत्त्व एवं पर्यटन विभाग' ने महत्त्वपूर्ण प्रयास शुरु किये हैं। कभी 'बाबर गार्डन' के नाम से प्रसिद्ध इस बाग़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। | '''मीरान-ए-बाग़''' [[धौलपुर]], [[राजस्थान]] में स्थित है। यह बाग़ कई दशकों से उपेक्षा का शिकार रहा है, किंतु अब इसकी दशा सुधारने के लिए 'पुरातत्त्व एवं पर्यटन विभाग' ने महत्त्वपूर्ण प्रयास शुरु किये हैं। कभी 'बाबर गार्डन' के नाम से प्रसिद्ध इस बाग़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। | ||
{{tocright}} | |||
==निर्माण== | ==निर्माण== | ||
[[मुग़ल]] [[बाबर|बादशाह बाबर]] ने अपने आरामगाह के रूप में [[वर्ष]] 1527 ई. में इसका निर्माण करवाया था। बाबर यहां युद्ध के सिलसिले में आया था और उसे यहीं पर ढाई साल तक रुकना पड़ गया था। ऐसे में उसने अपने आरामगाह एवं शिकारगाह के रूप में इस बाग़ का निर्माण करवाया।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.bhaskar.com/news/MAT-RAJ-OTH-c-192-174482-NOR.html|title= अब मीरान ए बाग का होगा विकास|accessmonthday= 05 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दैनिक भास्कर|language= हिन्दी}}</ref> | [[मुग़ल]] [[बाबर|बादशाह बाबर]] ने अपने आरामगाह के रूप में [[वर्ष]] 1527 ई. में इसका निर्माण करवाया था। बाबर यहां युद्ध के सिलसिले में आया था और उसे यहीं पर ढाई साल तक रुकना पड़ गया था। ऐसे में उसने अपने आरामगाह एवं शिकारगाह के रूप में इस बाग़ का निर्माण करवाया।<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.bhaskar.com/news/MAT-RAJ-OTH-c-192-174482-NOR.html|title= अब मीरान ए बाग का होगा विकास|accessmonthday= 05 अक्टूबर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= दैनिक भास्कर|language= हिन्दी}}</ref> | ||
====खोज==== | ====खोज==== | ||
'बाबर गार्डन' की खोज [[वर्ष]] [[1978]] में [[भारत]] में तत्कालीन अमरीकी राजदूत की पत्नी एवं [[इतिहासकार]] डेनियल मोनिहटन ने की थी। वह [[बाबर]] की आत्मकथा '[[तुजुक-ए-बाबरी]]' को पढ़कर यहाँ पहुंची थी। यहाँ आने के बाद उन्होंने इस किताब में दिए स्थानों की खुदाई कराई। इस खुदाई में कई प्राचीन संरचनाओं के [[अवशेष]] मिले। उसके बाद '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग|पुरातत्त्व विभाग]]' ने भी यहाँ आकर संरचनाओं का अध्ययन किया और [[2 अक्टूबर]], [[1989]] को इसे आरक्षित क्षेत्र घोषित कर सूचना जारी कर दी। इससे पहले [[1933]] में तत्कालीन नरेश के नायब सरदार रणबीर सिंह द्वारा लिखित पुस्तक 'धौलपुर गजट' एवं [[गुलबदन बेगम]] द्वारा रचित 'गुल-ए-नगमा' में भी इसका | 'बाबर गार्डन' की खोज [[वर्ष]] [[1978]] में [[भारत]] में तत्कालीन अमरीकी राजदूत की पत्नी एवं [[इतिहासकार]] डेनियल मोनिहटन ने की थी। वह [[बाबर]] की आत्मकथा '[[तुजुक-ए-बाबरी]]' को पढ़कर यहाँ पहुंची थी। यहाँ आने के बाद उन्होंने इस किताब में दिए स्थानों की खुदाई कराई। इस खुदाई में कई प्राचीन संरचनाओं के [[अवशेष]] मिले। उसके बाद '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग|पुरातत्त्व विभाग]]' ने भी यहाँ आकर संरचनाओं का अध्ययन किया और [[2 अक्टूबर]], [[1989]] को इसे आरक्षित क्षेत्र घोषित कर सूचना जारी कर दी। इससे पहले [[1933]] में तत्कालीन नरेश के नायब सरदार रणबीर सिंह द्वारा लिखित पुस्तक 'धौलपुर गजट' एवं [[गुलबदन बेगम]] द्वारा रचित 'गुल-ए-नगमा' में भी इसका ज़िक्र है। | ||
==संरचना== | ==संरचना== | ||
[[आगरा]] एवं कश्मीरी शैली में बने मीरान-ए-बाग़ के चारों कोनों पर कुएं एवं बीच में बनी [[बावड़ी]] हमेशा पानी से लबालब भरी रहती थी। बाग़ के बीच में ही पत्थरों को काटकर [[कमल]] की पंखुड़ियों के रूप में बने छोटे-छोटे तालाब एवं फव्वारे इसके आकर्षण के प्रमुख केंद्र है। इसी विशेषता के चलते इसे 'कमल गार्डन' भी कहते हैं। इस बाग़ में गुप्त नालियों के जरिए बावड़ी से ही पानी की सप्लाई होती थी। इन नालियों के [[अवशेष]] अभी भी कई जगह देखे जा सकते हैं।<ref name="aa"/> | [[आगरा]] एवं कश्मीरी शैली में बने मीरान-ए-बाग़ के चारों कोनों पर कुएं एवं बीच में बनी [[बावड़ी]] हमेशा पानी से लबालब भरी रहती थी। बाग़ के बीच में ही पत्थरों को काटकर [[कमल]] की पंखुड़ियों के रूप में बने छोटे-छोटे तालाब एवं फव्वारे इसके आकर्षण के प्रमुख केंद्र है। इसी विशेषता के चलते इसे 'कमल गार्डन' भी कहते हैं। इस बाग़ में गुप्त नालियों के जरिए बावड़ी से ही पानी की सप्लाई होती थी। इन नालियों के [[अवशेष]] अभी भी कई जगह देखे जा सकते हैं।<ref name="aa"/> | ||
Line 15: | Line 16: | ||
[[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:राजस्थान के पर्यटन स्थल]][[Category:स्थापत्य कला]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:राजस्थान]][[Category:राजस्थान के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:राजस्थान के पर्यटन स्थल]][[Category:स्थापत्य कला]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:इतिहास कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
Latest revision as of 14:22, 16 November 2014
मीरान-ए-बाग़ धौलपुर, राजस्थान में स्थित है। यह बाग़ कई दशकों से उपेक्षा का शिकार रहा है, किंतु अब इसकी दशा सुधारने के लिए 'पुरातत्त्व एवं पर्यटन विभाग' ने महत्त्वपूर्ण प्रयास शुरु किये हैं। कभी 'बाबर गार्डन' के नाम से प्रसिद्ध इस बाग़ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है।
निर्माण
मुग़ल बादशाह बाबर ने अपने आरामगाह के रूप में वर्ष 1527 ई. में इसका निर्माण करवाया था। बाबर यहां युद्ध के सिलसिले में आया था और उसे यहीं पर ढाई साल तक रुकना पड़ गया था। ऐसे में उसने अपने आरामगाह एवं शिकारगाह के रूप में इस बाग़ का निर्माण करवाया।[1]
खोज
'बाबर गार्डन' की खोज वर्ष 1978 में भारत में तत्कालीन अमरीकी राजदूत की पत्नी एवं इतिहासकार डेनियल मोनिहटन ने की थी। वह बाबर की आत्मकथा 'तुजुक-ए-बाबरी' को पढ़कर यहाँ पहुंची थी। यहाँ आने के बाद उन्होंने इस किताब में दिए स्थानों की खुदाई कराई। इस खुदाई में कई प्राचीन संरचनाओं के अवशेष मिले। उसके बाद 'पुरातत्त्व विभाग' ने भी यहाँ आकर संरचनाओं का अध्ययन किया और 2 अक्टूबर, 1989 को इसे आरक्षित क्षेत्र घोषित कर सूचना जारी कर दी। इससे पहले 1933 में तत्कालीन नरेश के नायब सरदार रणबीर सिंह द्वारा लिखित पुस्तक 'धौलपुर गजट' एवं गुलबदन बेगम द्वारा रचित 'गुल-ए-नगमा' में भी इसका ज़िक्र है।
संरचना
आगरा एवं कश्मीरी शैली में बने मीरान-ए-बाग़ के चारों कोनों पर कुएं एवं बीच में बनी बावड़ी हमेशा पानी से लबालब भरी रहती थी। बाग़ के बीच में ही पत्थरों को काटकर कमल की पंखुड़ियों के रूप में बने छोटे-छोटे तालाब एवं फव्वारे इसके आकर्षण के प्रमुख केंद्र है। इसी विशेषता के चलते इसे 'कमल गार्डन' भी कहते हैं। इस बाग़ में गुप्त नालियों के जरिए बावड़ी से ही पानी की सप्लाई होती थी। इन नालियों के अवशेष अभी भी कई जगह देखे जा सकते हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 अब मीरान ए बाग का होगा विकास (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 05 अक्टूबर, 2014।