आँख: Difference between revisions

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# आन्तरिक तन्त्रिकामयी परत
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;<u>बाह्म तन्तुम परत</u>
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यह आँख की बाह्य, [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] व अपारदर्शक परत होती है। इसके उभरे हुए भाग को कार्निया कहते हैं। इस भाग में बाहर की ओर एक बहुत पतली झिल्ली होती है। जिसे कन्जंक्टाइवा कहते हैं। इसके पिछले भाग से दृष्टि तन्त्रिका निकलती है। जिसका सम्बन्ध मस्तिष्क की दृक पालियों से होता है। बाह्य पटल से ही नेत्रगोलक को घुमाने वाली पेशियाँ सम्बन्धित होती हैं।  
यह आँख की बाह्य, [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] व अपारदर्शक परत होती है। इसके उभरे हुए भाग को कार्निया कहते हैं। इस भाग में बाहर की ओर एक बहुत पतली झिल्ली होती है। जिसे कन्जंक्टाइवा कहते हैं। इसके पिछले भाग से दृष्टि तन्त्रिका निकलती है। जिसका सम्बन्ध [[मस्तिष्क]] की दृक पालियों से होता है। बाह्य पटल से ही नेत्रगोलक को घुमाने वाली पेशियाँ सम्बन्धित होती हैं।  
;<u>अभिमध्य वाहिकामयी</u>  
;<u>अभिमध्य वाहिकामयी</u>  
यह संयोजी ऊतक का बना पतला स्तर होता है। इसमें वर्णक कोशिकाएँ तथा [[रुधिर]] कोशिकाओं का जाल पाया जाता है। यह कार्निया से पीछे एक रंगीन गोल पर्दा बनाता है। जिसे उपतारा या आइरिस कहते हैं। इसके मध्य भाग में एक छिद्र होता है जिसे तारा कहते हैं। यह भाग नेत्र पर पड़ने वाले प्रकाश का नियमन करता है। है।  
यह संयोजी ऊतक का बना पतला स्तर होता है। इसमें वर्णक कोशिकाएँ तथा [[रुधिर]] कोशिकाओं का जाल पाया जाता है। यह कार्निया से पीछे एक रंगीन गोल पर्दा बनाता है। जिसे उपतारा या आइरिस कहते हैं। इसके मध्य भाग में एक छिद्र होता है जिसे तारा कहते हैं। यह भाग नेत्र पर पड़ने वाले प्रकाश का नियमन करता है। है।  
;<u>आन्तरिक तन्त्रिकामयी परत</u>  
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यह नेत्र की सबसे अन्दर की महत्वपूर्ण परत होती है। इसी पर किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है। दृष्टि पटल पर दृष्टि तन्त्रिका कोशिकाओं का जाल पाया जाता है। दृष्टि तन्त्रिका नेत्र में जिस स्थान से प्रतिष्ट होती है, वहाँ प्रतिबिम्ब नहीं बनता है। इस स्थान को अन्ध बिन्दु कहते हैं। इसी के समीप ही पीत बिन्दु पाया जाता है, जिस पर वस्तु का सर्वाधिक स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनता है। दृष्टि पटल आगे की ओर एक उभयोत्तल ताल बनाता है, जिसके द्वारा प्रकाश किरणें वस्तु से परावर्तित होकर आँख के अन्दर जाती हैं। ताल के दोनों सिरों पर सिलियरी पेशियाँ स्थित होती हैं। इनके द्वारा लेन्स का आकार घटाया या बढ़ाया जाता है। इस शक्ति को नेत्र की संमजन क्षमता कहते हैं। कार्निया तथा लेन्स के मध्य जलकोश स्थित होता है, जिसमें नेत्रोद द्रव तथा अन्तःपटल और लेन्स के मध्य बड़ा जेलीकोश पाया जाता है, जिसमें काचाभ द्रव भरा रहता है।  
यह नेत्र की सबसे अन्दर की महत्वपूर्ण परत होती है। इसी पर किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है। दृष्टि पटल पर दृष्टि तन्त्रिका कोशिकाओं का जाल पाया जाता है। दृष्टि तन्त्रिका नेत्र में जिस स्थान से प्रतिष्ट होती है, वहाँ प्रतिबिम्ब नहीं बनता है। इस स्थान को अन्ध बिन्दु कहते हैं। इसी के समीप ही पीत बिन्दु पाया जाता है, जिस पर वस्तु का सर्वाधिक स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनता है। दृष्टि पटल आगे की ओर एक उभयोत्तल ताल बनाता है, जिसके द्वारा प्रकाश किरणें वस्तु से परावर्तित होकर आँख के अन्दर जाती हैं। ताल के दोनों सिरों पर सिलियरी पेशियाँ स्थित होती हैं। इनके द्वारा लेन्स का आकार घटाया या बढ़ाया जाता है। इस शक्ति को नेत्र की संमजन क्षमता कहते हैं। कार्निया तथा लेन्स के मध्य जलकोश स्थित होता है, जिसमें नेत्रोद द्रव तथा अन्तःपटल और लेन्स के मध्य बड़ा जेलीकोश पाया जाता है, जिसमें काचाभ द्रव भरा रहता है।
 
==आँखों की सहायक संरचनाएँ==
==आँखों की सहायक संरचनाएँ==
आँखें अत्यंत नाजुक अंग हैं जो सहायक संरचनाओं के द्वारा सुरक्षित रहती हैं, ये रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
आँखें अत्यंत नाजुक अंग हैं जो सहायक संरचनाओं के द्वारा सुरक्षित रहती हैं, ये रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

Revision as of 08:57, 31 January 2011

(अंग्रेज़ी:Eye) आँख अधिकांश जीव जंतुओं के शरीर का आवश्यक अंग हैं। इस लेख में मानव शरीर से संबंधित उल्लेख है। आँख या नेत्रों के द्वारा हमें वस्तु का 'दृष्टिज्ञान' होता है। दृष्टि वह संवेदन है, जिस पर मनुष्य सर्वाधिक निर्भर करता है। दृष्टि एक जटील प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश किरणों के प्रति संवेदिता, स्वरूप, दूरी, रंग आदि सभी का प्रत्यक्ष ज्ञान सन्निहित है। आँखें अत्यंत जटिल ज्ञानेन्द्रियाँ हैं, जो दायीं-बायीं दोनों ओर एक-एक नेत्रकोटरीय गुहा में स्थित रहती है। ये लगभग गोलाकार होती हैं तथा इनका व्यास लगभग एक इंच (2.5 सेंटीमीटर) होता है। इन्हें नेत्रगोलक कहा जाता है। नेत्रकोटरीय गुहा शंक्वाकार होती है। इसके सबसे गहरे भाग में एक गोल छिद्र (फोरामेन) होता है, जिसमें से होकर द्वितीय कपालीय तंत्रिका (ऑप्टिक तन्त्रिका) का मार्ग बनता है। नेत्र के ऊपर व नीचे दो पलकें होती हैं। ये नेत्र की धूल के कणों से सुरक्षा करती हैं। नेत्र में ग्रन्थियाँ होती हैं। जिनके द्वारा पलक और आँख सदैव नम बनी रहती हैं। इस गुहा की छट फ्रन्टल अस्थि से, फर्श मैक्ज़िला से, लेटरल भित्तियाँ कपोलास्थि तथा स्फीनॉइड अस्थि से बनती हैं और मीडियल भित्ति लैक्राइमल, मैक्ज़िला, इथमॉइल एवं स्फीनॉइड अस्थियाँ मिलकर बनाती हैं। इसी गुहा में नेत्रगोलक वसीय ऊतकों में अन्त:स्थापित एवं सुरक्षित रहता है।

आँख की संरचना

नेत्र गोलक की भित्ति का निर्माण ऊतकों की निम्न तीन परतों से मिलकर हुआ होता है-

  1. बाह्म तन्तुम परत
  2. अभिमध्य वाहिकामयी
  3. आन्तरिक तन्त्रिकामयी परत
बाह्म तन्तुम परत

यह आँख की बाह्य, सफ़ेद व अपारदर्शक परत होती है। इसके उभरे हुए भाग को कार्निया कहते हैं। इस भाग में बाहर की ओर एक बहुत पतली झिल्ली होती है। जिसे कन्जंक्टाइवा कहते हैं। इसके पिछले भाग से दृष्टि तन्त्रिका निकलती है। जिसका सम्बन्ध मस्तिष्क की दृक पालियों से होता है। बाह्य पटल से ही नेत्रगोलक को घुमाने वाली पेशियाँ सम्बन्धित होती हैं।

अभिमध्य वाहिकामयी

यह संयोजी ऊतक का बना पतला स्तर होता है। इसमें वर्णक कोशिकाएँ तथा रुधिर कोशिकाओं का जाल पाया जाता है। यह कार्निया से पीछे एक रंगीन गोल पर्दा बनाता है। जिसे उपतारा या आइरिस कहते हैं। इसके मध्य भाग में एक छिद्र होता है जिसे तारा कहते हैं। यह भाग नेत्र पर पड़ने वाले प्रकाश का नियमन करता है। है।

आन्तरिक तन्त्रिकामयी परत

यह नेत्र की सबसे अन्दर की महत्वपूर्ण परत होती है। इसी पर किसी भी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है। दृष्टि पटल पर दृष्टि तन्त्रिका कोशिकाओं का जाल पाया जाता है। दृष्टि तन्त्रिका नेत्र में जिस स्थान से प्रतिष्ट होती है, वहाँ प्रतिबिम्ब नहीं बनता है। इस स्थान को अन्ध बिन्दु कहते हैं। इसी के समीप ही पीत बिन्दु पाया जाता है, जिस पर वस्तु का सर्वाधिक स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनता है। दृष्टि पटल आगे की ओर एक उभयोत्तल ताल बनाता है, जिसके द्वारा प्रकाश किरणें वस्तु से परावर्तित होकर आँख के अन्दर जाती हैं। ताल के दोनों सिरों पर सिलियरी पेशियाँ स्थित होती हैं। इनके द्वारा लेन्स का आकार घटाया या बढ़ाया जाता है। इस शक्ति को नेत्र की संमजन क्षमता कहते हैं। कार्निया तथा लेन्स के मध्य जलकोश स्थित होता है, जिसमें नेत्रोद द्रव तथा अन्तःपटल और लेन्स के मध्य बड़ा जेलीकोश पाया जाता है, जिसमें काचाभ द्रव भरा रहता है।

आँखों की सहायक संरचनाएँ

आँखें अत्यंत नाजुक अंग हैं जो सहायक संरचनाओं के द्वारा सुरक्षित रहती हैं, ये रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • नेत्रगुहा
  • भैंहे
  • पलकें
  • बरौनी
  • नेत्रश्लेष्मला या कॅन्जंक्टाइवा
  • अश्रुप्रवाही उपकरण
  • नेत्र पेशियाँ


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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