सुदामाचरित: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('नंददास के समसामयिक कवि नरोत्तमदास (सम्वत 1602) कृत 'स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 1: Line 1:
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=सुदामा चरित -नरोत्तमदास.jpg
|चित्र का नाम='सुदामाचरित' का आवरण पृष्ठ
|लेखक=
|कवि= [[नरोत्तमदास]]
|मूल_शीर्षक = '[[सुदामाचरित]]'
|मुख्य पात्र =
|कथानक = [[सुदामा]]
|अनुवादक =
|संपादक =
|प्रकाशक =
|प्रकाशन_तिथि =
|भाषा = [[ब्रजभाषा]]
|देश = [[भारत]]
|विषय =
|शैली =
|मुखपृष्ठ_रचना =
|विधा =
|प्रकार = खण्ड काव्य
|पृष्ठ =
|ISBN =
|भाग =
|विशेष =यह एक संक्षिप्त [[खण्ड काव्य]] है, जो [[दोहा]], कवित्त और [[सवैया]] छन्दों में रचा गया है।
|टिप्पणियाँ =
}}
[[नंददास]] के समसामयिक कवि [[नरोत्तमदास]] (सम्वत 1602) कृत 'सुदामाचरित' इस परम्परा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रचना है। यह एक संक्षिप्त [[खण्ड काव्य]] है, जो दोहा, कवित्त और सवैया छन्दों में रचा गया है। कथासंगठन, नाटकीय विधान, भाव, [[भाषा]], [[छन्द]] आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत 'सुदामा चरित' एक श्रेष्ठ रचना है तथा परवर्ती सुदामा चरित सम्बंधी रचनाओ को इससे प्रचुर प्रेरणा मिली।  
[[नंददास]] के समसामयिक कवि [[नरोत्तमदास]] (सम्वत 1602) कृत 'सुदामाचरित' इस परम्परा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रचना है। यह एक संक्षिप्त [[खण्ड काव्य]] है, जो दोहा, कवित्त और सवैया छन्दों में रचा गया है। कथासंगठन, नाटकीय विधान, भाव, [[भाषा]], [[छन्द]] आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत 'सुदामा चरित' एक श्रेष्ठ रचना है तथा परवर्ती सुदामा चरित सम्बंधी रचनाओ को इससे प्रचुर प्रेरणा मिली।  
;कथानक
;कथानक
Line 5: Line 31:
सुदामाचरितों की [[भाषा]] प्राय: [[ब्रजभाषा]] ही रही, परंतु कवि गोपाल और [[आलम]] ने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली से प्रचुर मात्रा में प्रभावित हैं। सुदामा चरितों के  अंतर्गत दोहा, कवित्त और सवैया, अरिल्ल आदि [[छंद|छंदों]] का प्रयोग हुआ है। पदशैली में इस प्रसंग की उद्‌भावना का श्रेय केवल [[सूरदास]] को ही प्राप्त है।
सुदामाचरितों की [[भाषा]] प्राय: [[ब्रजभाषा]] ही रही, परंतु कवि गोपाल और [[आलम]] ने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली से प्रचुर मात्रा में प्रभावित हैं। सुदामा चरितों के  अंतर्गत दोहा, कवित्त और सवैया, अरिल्ल आदि [[छंद|छंदों]] का प्रयोग हुआ है। पदशैली में इस प्रसंग की उद्‌भावना का श्रेय केवल [[सूरदास]] को ही प्राप्त है।


 
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
Line 15: Line 40:
{{cite book | last =धीरेंद्र| first =वर्मा| title =हिंदी साहित्य कोश| edition =| publisher =| location =| language =हिंदी| pages =636-365| chapter =भाग- 2 पर आधारित}}
{{cite book | last =धीरेंद्र| first =वर्मा| title =हिंदी साहित्य कोश| edition =| publisher =| location =| language =हिंदी| pages =636-365| chapter =भाग- 2 पर आधारित}}
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{खण्ड काव्य}}
[[Category:नया पन्ना अक्टूबर-2011]]
[[Category:पद्य साहित्य]][[Category:साहित्य_कोश]][[Category:खण्ड काव्य]][[Category:काव्य कोश]]
 
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 07:43, 8 April 2013

सुदामाचरित
कवि नरोत्तमदास
मूल शीर्षक 'सुदामाचरित'
कथानक सुदामा
देश भारत
भाषा ब्रजभाषा
प्रकार खण्ड काव्य
विशेष यह एक संक्षिप्त खण्ड काव्य है, जो दोहा, कवित्त और सवैया छन्दों में रचा गया है।

नंददास के समसामयिक कवि नरोत्तमदास (सम्वत 1602) कृत 'सुदामाचरित' इस परम्परा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रचना है। यह एक संक्षिप्त खण्ड काव्य है, जो दोहा, कवित्त और सवैया छन्दों में रचा गया है। कथासंगठन, नाटकीय विधान, भाव, भाषा, छन्द आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत 'सुदामा चरित' एक श्रेष्ठ रचना है तथा परवर्ती सुदामा चरित सम्बंधी रचनाओ को इससे प्रचुर प्रेरणा मिली।

कथानक

सुदामा दारिद्रय भंजन की कथा साम्प्रदायिक कृष्ण साहित्य में समादृत ना हो सकी। सूरदास और नंददास कृत 'सुदामा चरित' अवश्य इसके अपवाद हैं। वस्तुत: वल्लभ, निम्बार्क, चैतन्य, राधावल्लभ और हरिदासी सम्प्रदायों की उपासना पद्धति मं उत्तरोत्तर ब्रज लीलाओं और माधुर्य भाव की अभिवृद्धि के कारण द्वारिकावासी कृष्ण की ऐश्वर्यपूर्ण लीलाएँ साम्प्रदायिक साहित्य में स्वीकृत ना हो सकीं तथा लोक में सम्प्रदाय मुक्त कवियों द्वारा ही अधिक प्रचारित हुईं। सुदामाचरितों में विषयवस्तु के केवल दो प्रयोजन दृष्टिगत होते हैं। प्रथम तो सुदामा के दारिद्रय के अतिरेक का निरूपण तथा दूसरे कृष्ण की मैत्री का आदर्शीकरण। मूलत: भक्तिप्रसूत होते हुए भी रीति युग के राजकीय एश्वर्य एवं लोक के दारिद्रय युगपत अभिव्यक्ति कदाचित इस प्रसंग के द्वारा सबसे अधिक मात्रा में सम्भव थी। इसलिए उस युग में सुदामाचरितों की रचना को प्रेरणा मिली।

भाषा

सुदामाचरितों की भाषा प्राय: ब्रजभाषा ही रही, परंतु कवि गोपाल और आलम ने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली से प्रचुर मात्रा में प्रभावित हैं। सुदामा चरितों के अंतर्गत दोहा, कवित्त और सवैया, अरिल्ल आदि छंदों का प्रयोग हुआ है। पदशैली में इस प्रसंग की उद्‌भावना का श्रेय केवल सूरदास को ही प्राप्त है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • सहायक ग्रंथ- हिंदी साहित्य, भाग -2,
  • नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्टें 1905 12-14, 25-30, 32-34, 38-40,29-30;
  • बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्‌ की खोज रिपोर्ट; इतिहास एवं अन्य संदर्भ ग्रंथ।

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 636-365।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख