करणसिंह: Difference between revisions

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करणसिंह मेवाड़ के राणा अमर सिंह का पुत्र और राणा प्रताप सिंह का पौत्र था। 1614 ई. में राणा अमर सिंह मुग़लों के अधीन हो गया और उसने तथा उसके पुत्र करणसिंह ने बादशाह जहाँगीर का आधिपत्य स्वीकार कर लिया। जहाँगीर मेवाड़ विजय पर गर्व से फूला न समाया और उसने करणसिंह तथा उसके पिता की मूर्तियाँ आगरा के महल में स्थापित कीं।

  • जहाँगीर की अधीनता स्वीकार करने के बाद राणा अमर सिंह ने करणसिंह को मुग़ल दरबार में भेजा।
  • मुग़ल दरबार में करणसिंह का शानदार स्वागत किया गया।
  • जहाँगीर ने अपनी गद्दी से उठकर उसे अपनी बाँहों में भर लिया और उसे अनेक उपहार दिए।
  • राणा अमर सिंह के मान को रखने के लिए जहाँगीर ने उसके स्वयं उपस्थित होने पर बल नहीं दिया और न ही उसे शाही सेवा में आने को बाध्य किया गया।
  • युवराज करणसिंह को पाँचहज़ारी का मनसबदार बनाया गया।
  • इससे पहले यह पद जोधपुर, बीकानेर और आमेर के राजाओं को दिया गया था।
  • करणसिंह को 1500 सवारों की टुकड़ी के साथ मुग़ल सम्राट की सेवा में रहने को कहा गया
  • पिता राणा अमर सिंह की मृत्यु के बाद करणसिंह मुग़लों का अधीनस्थ राजा होकर मेवाड़ का शासन करता रहा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 77 |


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