सती प्रथा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Adding category Category:सामाजिक प्रथाएँ (को हटा दिया गया हैं।))
No edit summary
Line 6: Line 6:
[[राजा राममोहन राय]] ने सती प्रथा को मिटाने के लिए भी प्रयत्न किया। उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। यह आन्दोलन समाचार पत्रों तथा मंच दोनों माध्यमों से चला। इसका विरोध इतना अधिक था कि एक अवसर पर तो उनका जीवन ही खतरे में था। वे अपने शत्रुओं के हमले से कभी नहीं घबराये। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण [[लार्ड विलियम बैंटिक]] 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सके। जब कट्टर लोगों ने [[इंग्लैंड]] में 'प्रिवी कॉउन्सिल' में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, तब उन्होंने भी अपने प्रगतिशील मित्रों और साथी कार्यकर्ताओं की ओर से ब्रिटिश संसद के सम्मुख अपना विरोधी प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। उन्हें प्रसन्नता हुई जब प्रिवी कॉउन्सिल ने सती प्रथा के समर्थकों के प्रार्थना पत्र को अस्वीकृत कर दिया। सती प्रथा के मिटने से राजा राममोहन राय संसार के मानवतावादी सुधारकों की सर्वप्रथम पंक्ति में आ गये।  
[[राजा राममोहन राय]] ने सती प्रथा को मिटाने के लिए भी प्रयत्न किया। उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। यह आन्दोलन समाचार पत्रों तथा मंच दोनों माध्यमों से चला। इसका विरोध इतना अधिक था कि एक अवसर पर तो उनका जीवन ही खतरे में था। वे अपने शत्रुओं के हमले से कभी नहीं घबराये। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण [[लार्ड विलियम बैंटिक]] 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सके। जब कट्टर लोगों ने [[इंग्लैंड]] में 'प्रिवी कॉउन्सिल' में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, तब उन्होंने भी अपने प्रगतिशील मित्रों और साथी कार्यकर्ताओं की ओर से ब्रिटिश संसद के सम्मुख अपना विरोधी प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। उन्हें प्रसन्नता हुई जब प्रिवी कॉउन्सिल ने सती प्रथा के समर्थकों के प्रार्थना पत्र को अस्वीकृत कर दिया। सती प्रथा के मिटने से राजा राममोहन राय संसार के मानवतावादी सुधारकों की सर्वप्रथम पंक्ति में आ गये।  


{{प्रचार}}
 
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=
|आधार=
Line 14: Line 14:
|शोध=
|शोध=
}}
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
__INDEX__


==संबंधित लेख==
{{सामाजिक प्रथाएँ}}
[[Category:समाज सुधार]]
[[Category:समाज सुधार]]
[[Category:प्राचीन समाज]]
[[Category:प्राचीन समाज]]
[[Category:सामाजिक प्रथाएँ]]
[[Category:सामाजिक प्रथाएँ]]
__INDEX__

Revision as of 09:01, 2 April 2012

भारत में सती प्रथा पुराने हिन्दू समाज की एक घिनौनी एवं ग़लत प्रथा है। इस प्रथा में जीवित विधवा पत्नि को मृत पति की चिता पर ज़िंदा ही जला दिया जाता था। 'सती' (सती, सत्य शब्द का स्त्रीलिंग रूप है) हिंदुओं के कुछ समुदायों की एक प्रथा थी, जिसमें हाल में ही विधवा हुई महिला अपने पति के अंतिम संस्कार के समय स्वंय भी उसकी जलती चिता में कूदकर आत्मदाह कर लेती थी।

इस शब्द को देवी सती (जिसे दक्षायनी के नाम से भी जाना जाता है) से लिया गया है। देवी सती ने अपने पिता राजा दक्ष द्वारा उनके पति शिव का अपमान न सह सकने करने के कारण यज्ञ की अग्नि में जलकर अपनी जान दे दी थी। यह शब्द सती अब कभी-कभी एक पवित्र औरत की व्याख्या करने में प्रयुक्त होता है। यह पुराने हिन्दू समाज कि एक घिनौनी एवं ग़लत प्रथा है।

सती प्रथा हटाने को आन्दोलन

[[चित्र:Raja-Rammohana-Roy-2.jpg|राजा राममोहन राय|thumb]] राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को मिटाने के लिए भी प्रयत्न किया। उन्होंने इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध निरन्तर आन्दोलन चलाया। यह आन्दोलन समाचार पत्रों तथा मंच दोनों माध्यमों से चला। इसका विरोध इतना अधिक था कि एक अवसर पर तो उनका जीवन ही खतरे में था। वे अपने शत्रुओं के हमले से कभी नहीं घबराये। उनके पूर्ण और निरन्तर समर्थन का ही प्रभाव था, जिसके कारण लार्ड विलियम बैंटिक 1829 में सती प्रथा को बन्द कराने में समर्थ हो सके। जब कट्टर लोगों ने इंग्लैंड में 'प्रिवी कॉउन्सिल' में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, तब उन्होंने भी अपने प्रगतिशील मित्रों और साथी कार्यकर्ताओं की ओर से ब्रिटिश संसद के सम्मुख अपना विरोधी प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। उन्हें प्रसन्नता हुई जब प्रिवी कॉउन्सिल ने सती प्रथा के समर्थकों के प्रार्थना पत्र को अस्वीकृत कर दिया। सती प्रथा के मिटने से राजा राममोहन राय संसार के मानवतावादी सुधारकों की सर्वप्रथम पंक्ति में आ गये।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


संबंधित लेख