पश्चिम भारत: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 9: Line 9:
किन्तु गुजरात राज्य का वास्तविक संस्थापक मुजफ़्फ़रशाह का पोता अहमदशाह (1411-43) ही था। उसने अपने लम्बे शासन काल में सामंतों को काबू में किया, प्रशासन को स्थिरता दी, अपने राज्य का विस्तार किया और उसे स्वयं मज़बूत किया। वह अपनी राजधानी [[पाटन]] से हटाकर नये नगर [[अहमदाबाद]] में ले आया। इस नगर की आधाशिला 1415 में रखी गई थी। वह बहुत बड़ा भवन निर्माता था और उसने नगर को अनेक भव्य मंहलों, बाज़ारों, मस्जिदों और मदरसों से सजाया। उसने गुजरात के [[जैन|जैनियों]] की उच्च स्थापत्य-परम्परा का लाभ उठाते हुए दिल्ली के स्थापत्तय से एकदम भिन्न शैली का विकास किया। इस शैली कि कुछ विशेषताएँ हैं—पतले मीनार, पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी और अलंकृत कोष्टक। उस काल की स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने—अहमदाबाद की [[जामा मस्जिद अहमदाबाद|जामा मस्जिद]] और तीन दरवाज़ा, आज भी सुरक्षित है।
किन्तु गुजरात राज्य का वास्तविक संस्थापक मुजफ़्फ़रशाह का पोता अहमदशाह (1411-43) ही था। उसने अपने लम्बे शासन काल में सामंतों को काबू में किया, प्रशासन को स्थिरता दी, अपने राज्य का विस्तार किया और उसे स्वयं मज़बूत किया। वह अपनी राजधानी [[पाटन]] से हटाकर नये नगर [[अहमदाबाद]] में ले आया। इस नगर की आधाशिला 1415 में रखी गई थी। वह बहुत बड़ा भवन निर्माता था और उसने नगर को अनेक भव्य मंहलों, बाज़ारों, मस्जिदों और मदरसों से सजाया। उसने गुजरात के [[जैन|जैनियों]] की उच्च स्थापत्य-परम्परा का लाभ उठाते हुए दिल्ली के स्थापत्तय से एकदम भिन्न शैली का विकास किया। इस शैली कि कुछ विशेषताएँ हैं—पतले मीनार, पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी और अलंकृत कोष्टक। उस काल की स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने—अहमदाबाद की [[जामा मस्जिद अहमदाबाद|जामा मस्जिद]] और तीन दरवाज़ा, आज भी सुरक्षित है।


अहमदशाह ने [[सौराष्ट्र]] और [[गुजरात]]-[[राजस्थान]] की सीमा पर स्थित [[राजपूत]] रियासतों को भी अपने अधिकार में करने का प्रयत्न किया। सौराष्ट्र में उसने [[गिरनार]] के मज़बूत क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया, लेकिन इस शर्त पर राजा को लौटा दिया कि वह उसे कर देता रहेगा। फिर उसने प्रसिद्ध तीर्थ स्थान [[सिद्धपुर]] पर आक्रमण किया और अनेक सुन्दर मन्दिरों को [[मिट्टी]] में मिला दिया। उसने गुजरात के [[हिन्दू|हिन्दुओं]] पर [[जज़िया|जज़िया]] लगा दिया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। इन घटनाओं के कारण अनेक मध्ययुगीन इतिहासकारों ने अहमदशाह का काफ़िरों के दुश्मन के रूप में स्वागत किया है। अनेक आधुनिक इतिहासकारों ने उसे धर्मान्ध कहा है। परन्तु [[सत्य]] कहीं जटिल जान पड़ता है। एक ओर अहमदशाह ने धर्मान्ध होकर मन्दिरों को तोड़ने का हुक्म दिया, और वहीं अहमदशाह की दूसरी ओर प्रशासन में हिन्दुओं को सम्मिलित करने में भी नहीं हिचका। 'बनिया' ([[वैश्य]]) समाज से सम्बद्ध माणिक चन्द और मोती चन्द उसके मंत्री थे। वह इतना न्यायप्रिय था कि खून के अपराध में उसने अपने दामाद को चौराहे पर फाँसी लगवा दी। उसने जहाँ हिन्दू राजाओं से युद्ध किए, वहीं उस काल के [[मुसलमान]] शासकों, विशेषतः मालवा के शासकों से भी वह लड़ता रहा। उसने [[इंदौर]] के शक्तिशाली क़िले को जीता तथा [[झालावाड़ ज़िला|झालावाड़]], [[बूँदी राजस्थान|बूँदी]] और डुंगरपुर की राजपूत रियासतों को भी अपने अधिकार में कर लिया।
{{seealso|पश्चिम भारत का इतिहास}}
====गुजरात तथा मालवा की शत्रुता====
गुजरात और मालवा प्रारम्भ से ही एक-दूसरे के कट्टर शत्रु थे और हर अवसर पर एक-दूसरे का विरोध ही करते थे। मुजफ़्फ़रशाह ने मालवा के सुल्तान हुशंग शाह को हराकर क़ैद कर लिया। लेकिन मालवा पर अधिकार रख पाना सम्भव ने देखकर उसने कुछ सालों के बाद हुशंग शाह को छोड़ दिया और उसे फिर मालवा का शासक बना दिया। लेकिन इससे दोनों के बीच खाई भरी नहीं बल्कि मालवा अपने को गुजरात से और भी अधिक असुरक्षित समझने लगा। मालवा वाले हमेशा गुजरात की शक्ति को कम करने का अवसर ढूंढते रहते थे और इसके लिए वे गुजरात के विरोधी गुटों को, चाहे वे विद्रोही सरदार हो या फिर [[हिन्दू]] राजा, सहायता देते रहते थे। [[गुजरात]] ने [[मालवा]] की गद्दी पर अपना आदमी बिठवाकर इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने का प्रयतन किया। लेकिन इस शत्रुता ने दोनों राज्यों को कमज़ोर कर दिया। परिणामतः ये दोनों ही पश्चिम भारत की राजनीति में कोई बड़ी भूमिका नहीं निभा सके।
==केन्द्र शासित प्रदेश==
==केन्द्र शासित प्रदेश==
* [[दादरा एवं नगर हवेली]]
* [[दादरा एवं नगर हवेली]]

Revision as of 09:01, 8 April 2012

पश्चिम भारत में भारत के पश्चिमी भाग में स्थित क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है। यह क्षेत्र उच्चस्तरीय औद्योगिक तथा आवासित है। पश्चिमी क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्र मराठा साम्राज्य में आते थे। भारत का पश्चिमी क्षेत्र उत्तर की ओर से थार मरुस्थल, पूर्व की ओर से विंध्य पर्वत और दक्षिणी ओर से अरब सागर से घिरा हुआ है।

राज्य

इतिहास

भारतीय इतिहास में पूर्वी क्षेत्रों से जुड़ी हुईं अनेकों घटनाएँ महत्त्वपूर्ण हैं। सल्तनत काल में गुजरात हस्तशिल्प कौशल, उन्नत बंदरगाहों और उपजाऊ भूमि के कारण दिल्ली सल्तनत के समृद्धतम प्रान्तों मे से एक था। फ़िरोज़शाह तुग़लक के काल में गुजरात का गवर्नर बहुत सज्जन व्यक्ति था। फ़रिश्ता उसके विषय में लिखता है कि "वह हिन्दू धर्म को प्रोत्साहन देता था और मूर्तिपूजा को दबाने की बजाय बढ़ावा देता था।" उसके बाद जफ़र ख़ान गुजरात का गवर्नर बना। उसका पिता इस्लाम स्वीकार करने से पहले साधारण राजपूत था और उसने अपनी बहन का विवाह फ़िरोज़ तुग़लक से किया था। दिल्ली पर तैमूर के आक्रमण के बाद गुजरात और मालवा स्वतंत्र हो गए। दिल्ली सल्तनत के साथ उनका सम्बन्ध केवल नाम मात्र का ही रह गया। किन्तु जफ़र ख़ान 1407 में ही स्वयं को गुजरात का शासक घोषित करने का अवसर प्राप्त कर सका। तब वह मुजफ़्फ़रशाह के नाम से गद्दी पर बैठा।

अहमदशाह का योगदान

किन्तु गुजरात राज्य का वास्तविक संस्थापक मुजफ़्फ़रशाह का पोता अहमदशाह (1411-43) ही था। उसने अपने लम्बे शासन काल में सामंतों को काबू में किया, प्रशासन को स्थिरता दी, अपने राज्य का विस्तार किया और उसे स्वयं मज़बूत किया। वह अपनी राजधानी पाटन से हटाकर नये नगर अहमदाबाद में ले आया। इस नगर की आधाशिला 1415 में रखी गई थी। वह बहुत बड़ा भवन निर्माता था और उसने नगर को अनेक भव्य मंहलों, बाज़ारों, मस्जिदों और मदरसों से सजाया। उसने गुजरात के जैनियों की उच्च स्थापत्य-परम्परा का लाभ उठाते हुए दिल्ली के स्थापत्तय से एकदम भिन्न शैली का विकास किया। इस शैली कि कुछ विशेषताएँ हैं—पतले मीनार, पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी और अलंकृत कोष्टक। उस काल की स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने—अहमदाबाद की जामा मस्जिद और तीन दरवाज़ा, आज भी सुरक्षित है।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

केन्द्र शासित प्रदेश


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख