कवितावली (पद्य): Difference between revisions

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''''कवितावली'''' [[गोस्वामी तुलसीदास]] की प्रमुख रचनाओं में है। 16वीं [[शताब्दी]] में रची गयी कवितावली में [[राम|श्री रामचन्द्र जी]] के इतिहास का वर्णन कवित्त, [[चौपाई]], [[सवैया]] आदि [[छंद|छंदों]] में की गई है।
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==बाल काण्ड ==
==बाल काण्ड ==
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ऊँ श्रीसीतारामाभ्यां नमः
ऊँ श्रीसीतारामाभ्यां नमः


रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप।  
रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप।  
हरि-हर- अज- वन्दित-चरन, अगुण अनीह अनूप।1।  
हरि-हर- अज- वन्दित-चरन, अगुण अनीह अनूप।1।  
बालकेलि दशरथ -अजिर, करत सेा फिरत सभाय।  
बालकेलि दशरथ -अजिर, करत से फिरत सभाय।  
पदनखेन्दु तेहि ध्यान धरि विरवत तिलक बनाय।2।  
पदनखेन्दु तेहि ध्यान धरि विरवत तिलक बनाय।2।  
अनिल सुवन पदपद्यम्रज, प्रेमसहित शिर धार।  
अनिल सुवन पदपद्यम्रज, प्रेमसहित शिर धार।  
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==बालरूप की झाँकी==   
==बालरूप की झाँकी==   
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1(बालरूप की झाँकी)
(बालरूप की झाँकी)
श्री अवधेसके द्वारें सकारंे गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।  
श्री अवधेसके द्वारें सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।  
अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।।  
अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।।  
तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।।  
तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।।  
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पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।  
पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।  
नवनीत कलेवर पीत झँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ।  
नवनीत कलेवर पीत झँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ।  
अरबिंदु सेा आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन -भृंग पिएँ।  
अरबिंदु से आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन -भृंग पिएँ।  
मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जगमें फलु कौन जिएँ।2।  
मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जगमें फलु कौन जिएँ।2।  


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अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंगकी दुरि धरैं।  
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंगकी दुरि धरैं।  
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि-ज्यों किलकैं कल बाल-बिनोद करैं।  
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि-ज्यों किलकैं कल बाल-बिनोद करैं।  
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिरमें बिहरैं।3।  
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिर में बिहरैं।3।  
 
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==बाललीला==  
==बाललीला==  
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कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।  
कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।  
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सबै मन मोद भरैं।  
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सबै मन मोद भरैं।  
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अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिरमें बिहरैं।4।  
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिरमें बिहरैं।4।  


बर दंतकी पंगति कुंदकली अधराधर-पल्लव खेालनकी।
बर दंतकी पंगति कुंदकली अधराधर-पल्लव खेलनकी।
चपला चमकैं  घन बीच जगैं छबि मोतिन माल अमोलनकी।।  
चपला चमकैं  घन बीच जगैं छबि मोतिन माल अमोलनकी।।  
घुँघरारि लटैं लटकैं मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलनकी।  
घुँघरारि लटैं लटकैं मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलनकी।  
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लरिका सँग खेलत डोलत हैं सरजू-तट चौहट हाट हिएँ।
लरिका सँग खेलत डोलत हैं सरजू-तट चौहट हाट हिएँ।
तुलसी अस बालक सों नहिं नेहु कहा जप जाग समाधि  किएँ।  
तुलसी अस बालक सों नहिं नेहु कहा जप जाग समाधि  किएँ।  
नर वे खर सूकर स्वान समान कहैा जगमें फलु कौन जिएँ।6।  
नर वे खर सूकर स्वान समान कहै जगमें फलु कौन जिएँ।6।  


सरजू बर तीरहिं तीर फिरैं रघुबीर सखा अरू बीर सबै।  
सरजू बर तीरहिं तीर फिरैं रघुबीर सखा अरू बीर सबै।  
धनुही कर तीर , निषंग कसें ििट पीत दुकूल नवीन फबै।  
धनुही कर तीर , निषंग कसें कटि पीत दुकूल नवीन फबै।  
तुलसी तेहि औसर लावनिता दस चारि नौ तीन दकीस सबै।  
तुलसी तेहि औसर लावनिता दस चारि नौ तीन दकीस सबै।  
मति भारति पंगु भई जो  निहारि  बिचारि फिरी न पबै।7।  
मति भारति पंगु भई जो  निहारि  बिचारि फिरी न पबै।7।  
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</poem>  
==धनुर्यज्ञ==  
==धनुर्यज्ञ==  
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छोनीमेंके छोनीपति छाजै जिन्हैं छत्रछाया,  
छोनीमेंके छोनीपति छाजै जिन्हैं छत्रछाया,  
छोनी -छोनी छाए छिति आए निमिराज के।  
छोनी -छोनी छाए छिति आए निमिराज के।  
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पवनु, पुरंदरू, कुसानु, भानु, धनदु-से,  
पवनु, पुरंदरू, कुसानु, भानु, धनदु-से,  
गुनके निधान रूपधाम सोमु कामु को।।
गुनके निधान रूपधाम सोमु कामु को।।
बाल बलवान जातुधानप सरीखे सूर  
बाल बलवान जातुधानप सरीखे सूर  
जिन्हकें गुमान सदा सालिम संग्रामको।  
जिन्हकें गुमान सदा सालिम संग्रामको।  
तहाँ दसरत्थकें समत्थ नाथ तुलसीके,  
तहाँ दसरत्थकें समत्थ नाथ तुलसीके,  
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महामहनु पुरदहनु गहन जानि  
महामहनु पुरदहनु गहन जानि  
आनिकै सबैकेा सारू धनुष गढ़ायो है।
आनिकै सबैक सारू धनुष गढ़ायो है।
जनकसदसि जेते भले-भले  भूमिपाल  
जनकसदसि जेते भले-भले  भूमिपाल  
किये बलहीन , बलु आपनो बढ़ायो है।  
किये बलहीन , बलु आपनो बढ़ायो है।  
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हठि न पिनाकु काहूँ चपरि चढ़ायो है।  
हठि न पिनाकु काहूँ चपरि चढ़ायो है।  
तुलसी सो रामके सरोज-पानि परसत ही  
तुलसी सो रामके सरोज-पानि परसत ही  
टूट्यो मानेा बारे ते पुरारि ही पढ़ायो है।10।  
टूट्यो माने बारे ते पुरारि ही पढ़ायो है।10।  


4
डिगति उर्वि अति गुर्वि सर्ब पब्बै समुद्र-सर।  
डिगति उर्वि अति गुर्वि सर्ब पब्बै समुद्र-सर।  
ब्याल बधिर तेहि काल, बिकल दिगपाल चराचर।।
ब्याल बधिर तेहि काल, बिकल दिगपाल चराचर।।
दिग्गयंद लरखरत परत दसकंधु मुकख भर।  
दिग्गयंद लरखरत परत दसकंधु मुकख भर।  
सुर -बिमान हिमभानु भानु संघटत परसपर।।
सुर -बिमान हिमभानु भानु संघटत परसपर।।
चौंके बिरंचि संकर सहित, कोलु कमठु अहि कलमल्यौ।  
चौंके बिरंचि संकर सहित, कोलु कमठु अहि कलमल्यौ।  
ब्रह्मंड खंड कियो  चंड धुनि जबहिं राम सिवधनु दलयौ। ।11।  
ब्रह्मंड खंड कियो  चंड धुनि जबहिं राम सिवधनु दलयौ। ।11।  


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सखी कहै सखीसों तूँ प्रेमपय पालि, री।  
सखी कहै सखीसों तूँ प्रेमपय पालि, री।  
बालक नृपालजूकें ख्याल कही पिनाकु तोर्यो,  
बालक नृपालजूकें ख्याल कही पिनाकु तोर्यो,  
मंडलीक-मंडली-प्रताप-दासु दालि री।ं
मंडलीक-मंडली-प्रताप-दासु दालि री।
जनकको, सियाको, हमारो, तेरेा, तुलसीकेा,  
जनकको, सियाको, हमारो, तेरे, तुलसी के,  
सबको  भावतो ह्वैहै, मैं जो कह्यो कालि, री।।  
सबको  भावतो ह्वैहै, मैं जो कह्यो कालि, री।।  
कौसिलाकी कोखिपर तोषि तन वारिये, री।  
कौसिलाकी कोखिपर तोषि तन वारिये, री।  
राय दशरत्थकी बलैया लीजै आलि री।12।
राय दशरत्थकी बलैया लीजै आलि री।12।


दूब दधि रोचनु कनक थार भरि भरि  
दूब दधि रोचनु कनक थार भरि भरि  
आरति  सँवारि बर नारि चलीं गावतीं।
आरति  सँवारि बर नारि चलीं गावतीं।
लीन्हें जयमाल करकंज सोहैं जानकीके  
लीन्हें जयमाल करकंज सोहैं जानकीके  
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चंदकी किरिन पीवैं पलकौ न लावतीं।13।  
चंदकी किरिन पीवैं पलकौ न लावतीं।13।  


5
नगर निसान बर बाजैं ब्योम दुंदुभीं  
नगर निसान बर बाजैं ब्योम दुंदुभीं  
बिमान चढ़ि गान कैके सुरनारि नाचहीं।
बिमान चढ़ि गान कैके सुरनारि नाचहीं।
जयति जय तिहुँ पुर जयमाल राम उर  
जयति जय तिहुँ पुर जयमाल राम उर  
बरषैं सुमन सुर रूरे रूप राचहीं।  
बरषैं सुमन सुर रूरे रूप राचहीं।  
जनकको पनु जयो, सबको भावतो भयो
जनकको पनु जयो, सबको भावतो भयो
तुलसी मुदित रोम-रोम मोद माचहीं।  
तुलसी मुदित रोम-रोम मोद माचहीं।  
सावँरो किसोर गोरी सोभापर तृन तोरी  
सावँरो किसोर गोरी सोभापर तृन तोरी  
जोरी जियेा जुग जुग जुवती-जन जाचहीं।14।
जोरी जिये जुग जुग जुवती-जन जाचहीं।14।
भले भूप कहत भलें भदेस भूपनि सों  
 
भले भूप कहत भलें भदेस भूपनि सों  
लोक लखि बोलिये पुनीत रीति मारिषी।  
लोक लखि बोलिये पुनीत रीति मारिषी।  
जगदंबा जानकी जगतपितु रामचंद्र,  
जगदंबा जानकी जगतपितु रामचंद्र,  
जानि जियँ जोेहौ जो न लागै मुँह कारिखी।।  
जानि जियँ जोहौ जो न लागै मुँह कारिखी।।  
देखे हैं अनेक ब्याह, सुने हैं पुरान बेद  
देखे हैं अनेक ब्याह, सुने हैं पुरान बेद  
बूझे हैं सुजान साधु नर-नारि पारिखीं।
बूझे हैं सुजान साधु नर-नारि पारिखीं।
ऐसे सम समधी समाज न बिराजमान,  
ऐसे सम समधी समाज न बिराजमान,  
रामु -से न बर दुलही न सिय-सारिखी।15।  
रामु -से न बर दुलही न सिय-सारिखी।15।  


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सही भरी लोमस भुसुंडि बहुबारिषो।  
सही भरी लोमस भुसुंडि बहुबारिषो।  
चारिदस भुवन निहारि नर-नारि सब
चारिदस भुवन निहारि नर-नारि सब
नारदसों परदा न नारदु सो पारिखो।  
नारदसों परदा न नारदु सो पारिखो।  
तिन्ह कही जगमें जगमगति जोरी एक  
तिन्ह कही जगमें जगमगति जोरी एक  
दूजो को कहैया औ सुनैया चष चारिखो।  
दूजो को कहैया औ सुनैया चष चारिखो।  
रमा रमारमन सुजान हनुमान कही  
रमा रमारमन सुजान हनुमान कही  
सीय-सी न तीय न पुरूष राम-सरीखो।16।  
सीय-सी न तीय न पुरूष राम-सरीखो।16।  


दूलह श्री रधुनाथु बने दुलहीं सिय सुंदर मंदिर माहीं।  
दूलह श्री रधुनाथु बने दुलहीं सिय सुंदर मंदिर माहीं।  
गावति गीत सबै मिलि सुंदरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं।।  
गावति गीत सबै मिलि सुंदरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं।।  
रामको रूप निहारति जानकी कंकनके नगकी परछााहीं।
रामको रूप निहारति जानकी कंकनके नगकी परछाहीं।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही , पलकें टारत नाहीं।17।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही, पलकें टारत नाहीं।17।


==परशुराम-लक्ष्मण-संवाद==
==परशुराम-लक्ष्मण-संवाद==
भूपमंडली प्रचंड चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,  
भूपमंडली प्रचंड चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,  
चंड बाहुदंडु जाकेा ताहीसों कहतु हौं।  
चंड बाहुदंडु जाके ताहीसों कहतु हौं।  
कठिन कुठार-धार धरिबेको धीर ताहि,  
कठिन कुठार-धार धरिबेको धीर ताहि,  
बीरता बिदित ताको देखिये चहतु हौं।  
बीरता बिदित ताको देखिये चहतु हौं।  
Line 157: Line 148:
गाज्यौ मृगराजु गजराजु ज्यों गहतु हौं।।  
गाज्यौ मृगराजु गजराजु ज्यों गहतु हौं।।  
छोनीमें न छाड्यो छप्यो छोनिपको छोना छोटो,
छोनीमें न छाड्यो छप्यो छोनिपको छोना छोटो,
छोनिप छपन बाँको बिरूद बहतु हौं।18।  
छोनिप छपन बाँको बिरूद बहतु हौं।18।  


निपट निदरि बोले बचन कुठारपानि,  
निपट निदरि बोले बचन कुठारपानि,  
मानी त्रास औनिपनि मानो मौनता गही।  
मानी त्रास औनिपनि मानो मौनता गही।  
रोष माखे लखनु अकनि अनखोही बातैं ,  
रोष माखे लखनु अकनि अनखोही बातैं,  
तुलसी बिनीत बानी बिहसि ऐसी कही।।
तुलसी बिनीत बानी बिहसि ऐसी कही।।
सुजस तिहारें भरे भुअन भृगुतिलक,  
सुजस तिहारें भरे भुअन भृगुतिलक,  
प्रगट प्रतापु आपु कह्यो सेा सबै सही।।  
प्रगट प्रतापु आपु कह्यो से सबै सही।।  
टूट्यौ सो न जुरैगो सरासनु महेसजूको,  
टूट्यौ सो न जुरैगो सरासनु महेसजूको,  
रावरी पिनाकमें सरीकता कहाँ रही।19।
रावरी पिनाकमें सरीकता कहाँ रही।19।


गर्भ के अगर्भ काटनको पटु धार कुठारू कराल है जाको।  
गर्भ के अगर्भ काटनको पटु धार कुठारू कराल है जाको।  
सोई हौं बूझत राजसभा ‘धनु को दल्यौ’ हौं दलिहौं बलु ताको।ं
सोई हौं बूझत राजसभा ‘धनु को दल्यौ’ हौं दलिहौं बलु ताको।
लघु आनन उत्तर देत बड़े लरिहै मरिहैं करिहैं कछु साको।
लघु आनन उत्तर देत बड़े लरिहै मरिहैं करिहैं कछु साको।
गोरो गरूर गुमान भर्यौ कहैा कौसिक छोटो-सेा ढोटो है काको।20।  
गोरो गरूर गुमान भर्यौ कहैा कौसिक छोटो-से ढोटो है काको।20।  


मनु राखिबेके काज राजा मेरे संग दए,  
मनु राखिबेके काज राजा मेरे संग दए,  
दले जातुधान जे जितैया बिबुधेसके।  
दले जातुधान जे जितैया बिबुधेसके।  
गौतमकी तीय तारी, मेटे अघ भूरि भार,
गौतमकी तीय तारी, मेटे अघ भूरि भार,
लोचन-अतिथि भए जनक जनेसके।।  
लोचन-अतिथि भए जनक जनेसके।।  
चंड बाहुदंड-बल चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,
चंड बाहुदंड-बल चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,
ब्याही जानकी, जीते नरेस देस-देसके।  
ब्याही जानकी, जीते नरेस देस-देसके।  
साँवरे -गोरे सरीर धीर महाबीर दोऊ,  
साँवरे -गोरे सरीर धीर महाबीर दोऊ,  
नाम रामु लखनु कुमार कोसलेसके।21।  
नाम रामु लखनु कुमार कोसलेसके।21।  
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काल कराल नृपालन्हके धनुभंगु सुनै फरसा लिएँ धाए।  
काल कराल नृपालन्हके धनुभंगु सुनै फरसा लिएँ धाए।  
लक्खनु रामु बिलोकि सप्रेम महारिसतें फिरि आँखि दिखाए।  
लक्खनु रामु बिलोकि सप्रेम महारिसतें फिरि आँखि दिखाए।  
धीरसिरोमनि बीर बड़े बिनयी बिजयी रघुनाथु सुहाए।  
धीरसिरोमनि बीर बड़े बिनयी बिजयी रघुनाथु सुहाए।  
लायक हे भृगुनायकु, से धनु-सायक सौंपि सुभायँ सिधाए।।22।।
लायक हे भृगुनायकु, से धनु-सायक सौंपि सुभायँ सिधाए।।22।।
( इति बालकाण्ड)
( इति बालकाण्ड)
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==शीर्षक उदाहरण 1==
===शीर्षक उदाहरण 2===
====शीर्षक उदाहरण 3====
=====शीर्षक उदाहरण 4=====
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
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Revision as of 07:30, 14 September 2012

right|thumb|250px|कवितावली 'कवितावली' गोस्वामी तुलसीदास की प्रमुख रचनाओं में है। 16वीं शताब्दी में रची गयी कवितावली में श्री रामचन्द्र जी के इतिहास का वर्णन कवित्त, चौपाई, सवैया आदि छंदों में की गई है।

बाल काण्ड

 
ऊँ श्रीसीतारामाभ्यां नमः

रेफ आत्मचिन्मय अकल, परब्रह्म पररूप।
हरि-हर- अज- वन्दित-चरन, अगुण अनीह अनूप।1।
बालकेलि दशरथ -अजिर, करत से फिरत सभाय।
पदनखेन्दु तेहि ध्यान धरि विरवत तिलक बनाय।2।
अनिल सुवन पदपद्यम्रज, प्रेमसहित शिर धार।
इन्द्रदेव टीका रचत, कवितावली उदार।3।
बन्दौं श्रीतुलसीचरन नख, अनूप दुतिमाल।
कवितावलि-टीका लसै कवितावलि-वरभाल।4।

बालरूप की झाँकी

 
(बालरूप की झाँकी)
श्री अवधेसके द्वारें सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।।
तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।।
सजनी ससिमें समसील उभै नवनील सरोरूह -से बिकसे।1।

पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।
नवनीत कलेवर पीत झँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ।
अरबिंदु से आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन -भृंग पिएँ।
मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जगमें फलु कौन जिएँ।2।

तनकी दुति स्याम सरोरूह लोचन कंजकी मंजुलताई हरैं।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंगकी दुरि धरैं।
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि-ज्यों किलकैं कल बाल-बिनोद करैं।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिर में बिहरैं।3।

बाललीला

 
कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सबै मन मोद भरैं।
कबहूँ रिसिआइ कहैं हठिकै पुनि लेत सोई जेहि लागि अरैं।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी-मन -मंदिरमें बिहरैं।4।

बर दंतकी पंगति कुंदकली अधराधर-पल्लव खेलनकी।
चपला चमकैं घन बीच जगैं छबि मोतिन माल अमोलनकी।।
घुँघरारि लटैं लटकैं मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलनकी।
नेवछावरि प्रान करैं तुलसी बलि जाउँ लला इन बोलनकी।5।

पदकंजनि मंजु बनीं पनहीं धनुहीं सर पंकज-पानि लिएँ।
लरिका सँग खेलत डोलत हैं सरजू-तट चौहट हाट हिएँ।
तुलसी अस बालक सों नहिं नेहु कहा जप जाग समाधि किएँ।
नर वे खर सूकर स्वान समान कहै जगमें फलु कौन जिएँ।6।

सरजू बर तीरहिं तीर फिरैं रघुबीर सखा अरू बीर सबै।
धनुही कर तीर , निषंग कसें कटि पीत दुकूल नवीन फबै।
तुलसी तेहि औसर लावनिता दस चारि नौ तीन दकीस सबै।
मति भारति पंगु भई जो निहारि बिचारि फिरी न पबै।7।

धनुर्यज्ञ

 
छोनीमेंके छोनीपति छाजै जिन्हैं छत्रछाया,
छोनी -छोनी छाए छिति आए निमिराज के।
प्रबल प्रचंड बरिबंड बर बेष बपु ,
बरिबेकों बोले बैदेही बर काजके।।
बोले बंदी बिरूद बजाइ बर बजानेऊ,
बाजे-बाजे बीर बाहु धुनत समाजके।
तुलसी पुदित मन पुर नर-नारि जेते,
बार बार हेरैं मुख औध-मृगराजके।8।

सियकें स्वयंबर समाजु जहाँ राजनिको,
राजनके राजा महाराजा जानै नाम को।
पवनु, पुरंदरू, कुसानु, भानु, धनदु-से,
गुनके निधान रूपधाम सोमु कामु को।।
बाल बलवान जातुधानप सरीखे सूर
जिन्हकें गुमान सदा सालिम संग्रामको।
तहाँ दसरत्थकें समत्थ नाथ तुलसीके,
चपरि चढ़ायौ चापु चंद्रमाललाम को।9।

महामहनु पुरदहनु गहन जानि
आनिकै सबैक सारू धनुष गढ़ायो है।
जनकसदसि जेते भले-भले भूमिपाल
किये बलहीन , बलु आपनो बढ़ायो है।
कुलिस-कठोर कूर्मपीठतें कठिन अति
हठि न पिनाकु काहूँ चपरि चढ़ायो है।
तुलसी सो रामके सरोज-पानि परसत ही
टूट्यो माने बारे ते पुरारि ही पढ़ायो है।10।

डिगति उर्वि अति गुर्वि सर्ब पब्बै समुद्र-सर।
ब्याल बधिर तेहि काल, बिकल दिगपाल चराचर।।
दिग्गयंद लरखरत परत दसकंधु मुकख भर।
सुर -बिमान हिमभानु भानु संघटत परसपर।।
चौंके बिरंचि संकर सहित, कोलु कमठु अहि कलमल्यौ।
ब्रह्मंड खंड कियो चंड धुनि जबहिं राम सिवधनु दलयौ। ।11।

लोचनाभिराम धनस्याम रामरूप सिसु,
सखी कहै सखीसों तूँ प्रेमपय पालि, री।
बालक नृपालजूकें ख्याल कही पिनाकु तोर्यो,
मंडलीक-मंडली-प्रताप-दासु दालि री।
जनकको, सियाको, हमारो, तेरे, तुलसी के,
सबको भावतो ह्वैहै, मैं जो कह्यो कालि, री।।
कौसिलाकी कोखिपर तोषि तन वारिये, री।
राय दशरत्थकी बलैया लीजै आलि री।12।

दूब दधि रोचनु कनक थार भरि भरि
आरति सँवारि बर नारि चलीं गावतीं।
लीन्हें जयमाल करकंज सोहैं जानकीके
पहिरसवो राधोजूको सखियाँ सिखावतीं।।
तुलसी मुदित मन जनकनगर-जन
झाँकतीं झरोखं लागीं सोभा रानीं पावतीं।
मनहुँ चकोरी चारू बैठीं निज नीड
चंदकी किरिन पीवैं पलकौ न लावतीं।13।

नगर निसान बर बाजैं ब्योम दुंदुभीं
बिमान चढ़ि गान कैके सुरनारि नाचहीं।
जयति जय तिहुँ पुर जयमाल राम उर
बरषैं सुमन सुर रूरे रूप राचहीं।
जनकको पनु जयो, सबको भावतो भयो
तुलसी मुदित रोम-रोम मोद माचहीं।
सावँरो किसोर गोरी सोभापर तृन तोरी
जोरी जिये जुग जुग जुवती-जन जाचहीं।14।

भले भूप कहत भलें भदेस भूपनि सों
लोक लखि बोलिये पुनीत रीति मारिषी।
जगदंबा जानकी जगतपितु रामचंद्र,
जानि जियँ जोहौ जो न लागै मुँह कारिखी।।
देखे हैं अनेक ब्याह, सुने हैं पुरान बेद
बूझे हैं सुजान साधु नर-नारि पारिखीं।
ऐसे सम समधी समाज न बिराजमान,
रामु -से न बर दुलही न सिय-सारिखी।15।

बानी बिधि गौरी हर सेसहूँ गनेस कही,
सही भरी लोमस भुसुंडि बहुबारिषो।
चारिदस भुवन निहारि नर-नारि सब
नारदसों परदा न नारदु सो पारिखो।
तिन्ह कही जगमें जगमगति जोरी एक
दूजो को कहैया औ सुनैया चष चारिखो।
रमा रमारमन सुजान हनुमान कही
सीय-सी न तीय न पुरूष राम-सरीखो।16।

दूलह श्री रधुनाथु बने दुलहीं सिय सुंदर मंदिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुंदरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं।।
रामको रूप निहारति जानकी कंकनके नगकी परछाहीं।
यातें सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही, पलकें टारत नाहीं।17।

==परशुराम-लक्ष्मण-संवाद==
भूपमंडली प्रचंड चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,
चंड बाहुदंडु जाके ताहीसों कहतु हौं।
कठिन कुठार-धार धरिबेको धीर ताहि,
बीरता बिदित ताको देखिये चहतु हौं।
तुलसी समाजु राज तजि सो बिराजै आजु,
गाज्यौ मृगराजु गजराजु ज्यों गहतु हौं।।
छोनीमें न छाड्यो छप्यो छोनिपको छोना छोटो,
छोनिप छपन बाँको बिरूद बहतु हौं।18।

निपट निदरि बोले बचन कुठारपानि,
मानी त्रास औनिपनि मानो मौनता गही।
रोष माखे लखनु अकनि अनखोही बातैं,
तुलसी बिनीत बानी बिहसि ऐसी कही।।
सुजस तिहारें भरे भुअन भृगुतिलक,
प्रगट प्रतापु आपु कह्यो से सबै सही।।
टूट्यौ सो न जुरैगो सरासनु महेसजूको,
रावरी पिनाकमें सरीकता कहाँ रही।19।

गर्भ के अगर्भ काटनको पटु धार कुठारू कराल है जाको।
सोई हौं बूझत राजसभा ‘धनु को दल्यौ’ हौं दलिहौं बलु ताको।
लघु आनन उत्तर देत बड़े लरिहै मरिहैं करिहैं कछु साको।
गोरो गरूर गुमान भर्यौ कहैा कौसिक छोटो-से ढोटो है काको।20।

मनु राखिबेके काज राजा मेरे संग दए,
दले जातुधान जे जितैया बिबुधेसके।
गौतमकी तीय तारी, मेटे अघ भूरि भार,
लोचन-अतिथि भए जनक जनेसके।।
चंड बाहुदंड-बल चंडीस-कोदंडु खंड्यौ,
ब्याही जानकी, जीते नरेस देस-देसके।
साँवरे -गोरे सरीर धीर महाबीर दोऊ,
नाम रामु लखनु कुमार कोसलेसके।21।

काल कराल नृपालन्हके धनुभंगु सुनै फरसा लिएँ धाए।
लक्खनु रामु बिलोकि सप्रेम महारिसतें फिरि आँखि दिखाए।
धीरसिरोमनि बीर बड़े बिनयी बिजयी रघुनाथु सुहाए।
लायक हे भृगुनायकु, से धनु-सायक सौंपि सुभायँ सिधाए।।22।।
( इति बालकाण्ड)

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