वेनिस का सौदागर -रांगेय राघव: Difference between revisions
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Revision as of 07:37, 25 January 2013
वेनिस का सौदागर -रांगेय राघव
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लेखक | शेक्सपीयर |
अनुवादक | रांगेय राघव |
प्रकाशक | राजपाल एंड संस |
प्रकाशन तिथि | 1 जनवरी, 2006 |
ISBN | 81-7028-172-5 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 112 |
भाषा | हिन्दी |
प्रकार | अनुवाद |
वेनिस का सौदागर प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव द्वारा अनुवादित एक नाटक है। यह शेक्सपियर के नाटक 'मर्चेंट ऑफ़ वेनिस' का हिन्दी अनुवाद है। इसे 'राजपाल एंड संस' द्वारा प्रकाशित किया गया था।
पुस्तक के अंश
शेक्सपियर एक महान नाटककार थे, उन्होंने जीवन के कई पहलुओं को इतनी गहराई से चित्रित किया है कि विश्व-साहित्य में उनका सानी सहज ही नहीं हो पता। मारलो तथा बेन जानसन जैसे उसके समकालीन कवि उसका उपहास करते रहे, किन्तु वे तो लुप्तप्राय हो गए और यह कविकुल दिवाकर आज भी देदीप्यमान है। शेक्सपियर ने लगभग 36 नाटक लिखे हैं, जबकि कविताएँ अलग से लिखीं हैं।[1] उसके कुछ प्रसिद्ध नाटक निम्नलिखित हैं-
- जूलियस सीज़र
- ऑथेलो
- मैकबेथ
- हैमलेट
- सम्राट लियर
- रोमियो जूलियट
- वेनिस का सौदागर
- बारहवीं रात
- तिल का ताड़[2]
- जैसा तुम चाहो[3]
- तूफान
शेक्सपियर के अतिरिक्त ऐतिहासिक नाटक तथा प्रहसन भी हैं। प्रायः उनके सभी नाटक प्रसिद्ध हैं। उन्होंने मानव-जीवन की शाश्वत भावनाओं को बड़े ही कुशल कलाकार की भाँति चित्रित किया है। उसके पात्र आज भी जीवित दिखाई देते हैं। जिस भाषा में शेक्सपियर के नाटक का अनुवाद नहीं है, वह उन्नत भाषाओं में कभी नहीं गिनी जा सकतीं।
कथावस्तु
‘मर्चेन्ट ऑफ़ वेनिस’ (वेनिस का सौदागर) का विषय शेक्सपियर से पूर्व व्यवहृत हो चुका था, इसका पता समसामयिक सूत्रों से भली प्रकार चलता है। इसके कथानक की रूप रेखा सर जियोवानी फियोरेण्टिनो की इटैलियन पुस्तक ‘इलपेकोरोन’ से बहुत कुछ साम्य रखती है। उपलब्ध सामग्री से ज्ञात होता है कि शेक्सपियर ने अपने इस नाटक की रचना सन 1598 से पूर्व की थी। इसकी कथावस्तु भी शेक्सपियर को एक ऐसे देश से प्राप्त हुई, जिसका प्रभाव एलिज़ावेथ-कालीन इंग्लैंड की संस्कृति पर प्रभूत मात्रा में पड़ा था।
‘मर्चेन्ट ऑफ़ वेनिस’ की कथावस्तु नितांत रोचक है। वेनिस शहर का एक सुन्दर और सजीला नौजवान बैसैनियो तीन कास्केट्स [4] को प्राप्त करने के लिए अपना भाग्य आजमाने बेलमोन्ट तक की यात्रा को जाने के लिए उत्सुक है, क्योंकि इन तीन पिटारों पर अपना भाग्य आजमा लेने पर ही वह सुन्दरी पोर्शिया के हृदय को जीत सकने में समर्थ हो सकता है। बैसैनियो स्वभावतः बड़ा खर्चीला है और अपने धन को पानी की तरह बहाता है। अतः जब बेलमोन्ट की यात्रा पर जाने के लिए उसे धन की आवश्यकता पड़ती है तो वह अपने ऐन्टोनियो नाम के एक व्यापारी मित्र से धन उधार माँगता है। किन्तु ऐन्टोनियो का सारा धन व्यापार में लगा होने के कारण समुद्र पर जहाज़ में था, जिससे वह अपने पास से उसे न देकर शाइलॉक नामक एक यहूदी से तीन हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ दिला देता है। कर्ज लेते समय कितना आश्चर्यजनक ‘तमस्सुक’[5] भरा जाता है, बैसैनियो को अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कहाँ तक सफलता प्राप्त होती है और वह कैसे निश्चित समय पर शाइलॉक का कर्ज चुकाने में असमर्थ रहता है तथा उसका मित्र ऐन्टोनियो किस प्रकार दुर्भाग्य की क्रूर लपेट में आता है एवं इस भयानक परिस्थिति से किस प्रकार पोर्शिया इनकी रक्षा करती है, यह सब ‘मर्चेन्ट ऑफ़ वेनिस’ में वर्णित है। ‘मर्चेन्ट ऑफ़ वेनिस’ शेक्सपियर के नाटकों में अन्यतम है और बहुत लोकप्रिय हुआ था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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