रमेश भाई एक स्तम्भ -आलोक श्रीवास्तव: Difference between revisions
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मेरी पहली बार रमेष भाई से मुलाकात तरूण षन्ति सेना के षिविर में 1972 मे हुई। | मेरी पहली बार रमेष भाई से मुलाकात तरूण षन्ति सेना के षिविर में 1972 मे हुई। |
Revision as of 13:51, 10 May 2013
रमेश भाई एक स्तम्भ -आलोक श्रीवास्तव
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संपादक | अशोक कुमार शुक्ला |
प्रकाशक | भारतकोश पर संकलित |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 80 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | रमेश भाई से जुडे आलेख |
प्रकार | संस्मरण |
मुखपृष्ठ रचना | ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया (संकलित आलेख) |
रमेश भाई एक स्तम्भ
आलेख: आलोक श्रीवास्तव
सचिव , रेडक्रास सोसाइटी, हरदोई
मेरी पहली बार रमेष भाई से मुलाकात तरूण षन्ति सेना के षिविर में 1972 मे हुई।
आजीवन में स्काउट जीवन से ऐसा जुडाव रहा कि सीधा गीष्मावकाष में षिविर जीवन जीने की आदत सी बन गयी थी। सो जब तरूण षान्ति सेना षिविर के बारे में पता चला तो मै भी उसमे षमिल होने पहुॅच गया वही मेरी मुलाकात षिविर संयोजक के रूप में रमेष भाई से हुई। वह तरूण षान्ति सेना के प्रदेष मंत्री थे। संवाद के दौरान हम एक दूसरे से परिचित हुयंे तो मुझे महसूस हुआ कि सेवा के क्षेत्र में बिना किसी लाभ की सोच रखने वालों में रमेष भाई का
व्यक्तित्व वास्तव में निराला है। धीरे धीरे मैं उनके करीब होता चला गया और उनके साथ रहने से षिविरों, रचनात्मक आन्दोलनों, पद यात्राओं में षामिल होने और गॉधी बाद तथा सर्वोदयी विचार धारा को जानने का अवसर मिला।
रमेष भाई एक निष्छल, निःस्वार्थी और प्रभावषाली व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनकी सोच रचनात्मक समाज सर्वोदय और अन्त्योदय को बढावा देने की थी। यही कारण था एक बार जब कुसुम दीदी की मॉ ने मुझसे कहा कि भाई को समझाओ कि यहॉ पर भी काम का दायरा बढाने के लिये एक संस्था का गठन करे। यह बहुत साथियों की यह इच्छा थी क्योकि इससे पूर्व भूरज सेवा संस्थान व विनोवा सेवा आश्रम बनवाने में उनकी प्रमुख भूमिका रही थी। इस बारे में मैने जब भाई जी से कहा वह षुरूआती दौर में यह कहकर टालते रहे कि वे किसी बन्धन में रहकर जीवन जीना नही चाहते। वास्तव में वह संस्थाओं को क्रान्ति विरोधी मानते थे इसलिए टालने के लिये ऐसा कहते थे। वस्तुतः यह उनकी साधु प्रवृत्ति का भी परिचायक था। मुझे लगा कि वह विनोवा जी को आदर्ष ही नही मानते हेै बल्कि उनका व्यक्तित्व व कृतित्व पूरी तरह से उन पर हावी है।
भाई जी अपनी बात पर अटल थे तो मैं भी उनके जीवन से प्रभावित हुआ था। बाद में साथियो की संख्या बढ जाने व उनके कुषलक्षेम की व्यवस्था के लिये सर्वोदय आश्रम की स्थापना हुई। संस्था के कागज तैयार करने में मैने भी भाई जी को सहयोग दिया। बाद में सर्वोदय आश्रम को अपने प्रयासों, आदर्षो व सिद्धान्तो से भाई जी ने षिखर पर पहॅुचाया।
भाई जी का व्यक्तित्व रचनात्मक, साहित्यक, दार्षनिक, प्रकृति प्रेमी था। उनकाक स्वाभाव विनोदी था। मुझे याद है एक बार उन्हें गोष्ठी में आमन्त्रित किया गया और वहॉ उनसे कविता कहने को कहा गया। पहले तो वह मना करते रहे बाद में एक कविता सुनाने को तैयार हुये। एक कविता पढने के बाद बोले कि अब तो हमे कहास लगी है। हम सुनायेगे और सब लोग सुनो और इस प्रकार हॅसी मजाक के माहौल में उनकी उत्कृष्ठ कविताओ में हम डूब गये।
जे0पी0 आन्दोलन में जब छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का गठन हुआ तो तरूण षान्ति सेना का जनपद अध्यक्ष होने के नाते मुझे वाहिनी का संयोजक चुना गया। इस बात की जानकारी जब रमेष भाई को हुई तो उन्होंने आकर मुझे उस आन्दोलन से हटकर मतदाता प्रषिक्षण कार्य में जुडने की सलाह दी।
मुझे भाई जी के नेतृत्व में काम करने में वास्तव में आनन्द आता था। भाई जी की यादों के झरोखों में जब जब जाता हूॅ तो उनके कई प्रसंग जेहन में उभर आते है जो सदा मुझे प्रेरणा प्रदान करते है।
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- आगे पढ़ने के लिए ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया (संकलित आलेख) पर जाएँ
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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