सोमनाथ चटर्जी: Difference between revisions

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==राजनीति में पदार्पण==
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==सांसद==
==सांसद==
संसदीय लोकतंत्र में आबद्धकारी आस्था के साथ सोमनाथ चटर्जी ने साढ़े तीन दशकों तक एक विशिष्ट सांसद के रूप में सेवा की। एक प्रखर वक्ता तथा एक प्रभावी विधायक के रूप में उन्होंने अपने लिए एक अलग स्थान बनाया। [[भारत]] की संसदीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में उनके अपरिमित व अमूल्य योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें वर्ष [[1996]] में "उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार" प्रदान किया गया। वर्ष [[1971]] से महत्त्वपूर्ण विषयों पर वाद-विवाद में भाग लेकर उन्होंने सदन में विचार-विमर्श में समृद्ध योगदान दिया। श्री चटर्जी ने कामगार वर्ग तथा वंचित लोगों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज़ बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। उनका वाद-विवाद कौशल, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ तथा जिस हास्य विनोद के साथ सदन में वे अपना दृष्टिकोण रखते थे, जिन्हें सभा दत्तचित्त होकर सुनती थी, वे उन्हें एक सुविख्यात सांसद बनाते हैं।<ref name="lsakk"></ref>
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Revision as of 15:02, 6 November 2015

सोमनाथ चटर्जी
पूरा नाम सोमनाथ चटर्जी
अन्य नाम सोमनाथ दा
जन्म 25 जुलाई, 1929
जन्म भूमि तेजपुर (असम)
अभिभावक एन.सी. चटर्जी और वीणापाणि देवी
पति/पत्नी रेणु चटर्जी
संतान एक पुत्र और दो पुत्रियाँ
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
पद लोकसभा अध्यक्ष
कार्य काल 4 जून, 2004 से 16 मई, 2009
शिक्षा स्नातकोत्तर
अद्यतन‎

सोमनाथ चटर्जी (अंग्रेज़ी: Somnath Chatterjee, जन्म: 25 जुलाई, 1929) 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' के प्रमुख नेताओं में से एक हैं। वे चौदहवीं लोकसभा में पश्चिम बंगाल के बोलपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्री चटर्जी चौदहवीं लोकसभा के लोकसभा अध्यक्ष भी थे। विगत वर्षों में भारतीय संसद के कई प्रमुख अध्यक्ष हुए हैं, जिन्होंने अध्यक्षपीठ को गरिमा और सम्मान प्रदान किया है। सोमनाथ चटर्जी 4 जून, 2004 को इस सम्माननीय पद के लिए निर्विरोध निर्वाचित होकर अध्यक्षों के दीप्ति मंडल में सम्मिलित हुए। जैसा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा है कि, अध्यक्ष राष्ट्र, उसकी स्वतंत्रता और आज़ादी का प्रतिनिधित्व करता है।

जीवन परिचय

25 जुलाई, 1929 को 'श्री एन.सी. चटर्जी' और 'श्रीमती वीणापाणि देवी' के सुपुत्र के रूप में तेजपुर, असम में जन्मे श्री चटर्जी की शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता और युनाइटेड किंगडम में हुई। उन्होंने स्नातकोत्तर (कैंटब) तथा यू.के. में मिडिल टैंपल से बैरिस्टर-एट-लॉ किया। श्री चटर्जी की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती रेणु चटर्जी है। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं।[1]

राजनीति में पदार्पण

सोमनाथ चटर्जी ने एक अधिवक्ता के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की तथा 1968 में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य बनने के बाद सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। राष्ट्रीय राजनीति में उनका अभ्युदय प्रथम बार 1971 में लोक सभा के लिए निर्वाचित होने के साथ हुआ। तब से लेकर उन्होंने सभी लोकसभाओं में एक सदस्य के रूप में निर्वाचित होकर सेवा की है, वर्ष 2004 में वर्तमान 14वीं लोकसभा में वे दसवीं बार निर्वाचित हुए। वर्ष 1989 से 2004 तक वे लोक सभा में सीपीआई(एम) के नेता रहे। लोकसभा चुनाव में उनकी बारंबार अधिक मतों के साथ विजय, जनता के बीच उनकी लोकप्रियता, पार्टी में उनके स्थान तथा सांसद के रूप में उनके कद्दावर व्यक्तित्व को प्रमाणित करता है।

सांसद

संसदीय लोकतंत्र में आबद्धकारी आस्था के साथ सोमनाथ चटर्जी ने साढ़े तीन दशकों तक एक विशिष्ट सांसद के रूप में सेवा की। एक प्रखर वक्ता तथा एक प्रभावी विधायक के रूप में उन्होंने अपने लिए एक अलग स्थान बनाया। भारत की संसदीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में उनके अपरिमित व अमूल्य योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें वर्ष 1996 में "उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार" प्रदान किया गया। वर्ष 1971 से महत्त्वपूर्ण विषयों पर वाद-विवाद में भाग लेकर उन्होंने सदन में विचार-विमर्श में समृद्ध योगदान दिया। श्री चटर्जी ने कामगार वर्ग तथा वंचित लोगों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज़ बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। उनका वाद-विवाद कौशल, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ तथा जिस हास्य विनोद के साथ सदन में वे अपना दृष्टिकोण रखते थे, जिन्हें सभा दत्तचित्त होकर सुनती थी, वे उन्हें एक सुविख्यात सांसद बनाते हैं।[1]

अपने पूरे संसदीय जीवन में सोमनाथ चटर्जी ने सदन की गरिमा को बढ़ाने वाले मूल्यों तथा परम्पराओं का निर्वहन करने तथा संसद की संस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने में एक उदाहरण प्रस्तुत किया। श्री चटर्जी ने सभापति तथा सदस्य के रूप में अनेक संसदीय समितियों की शोभा बढ़ायी। उन्होंने अधीनस्थ विधान संबंधी समिति तथा सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी समिति[2], विशेषाधिकार समिति, रेल संबंधी समिति, संचार संबंधी समिति[3] की विशिष्टता सहित अध्यक्षता की। वे कई समितियों के सदस्य रहे हैं, जिनमें से कुछ एक नियम समिति, सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति, कार्य मंत्रणा समिति आदि हैं। वे अनेक संयुक्त समितियों तथा प्रवर समितियों विशेषतः विधि के क्षेत्र में विशेषज्ञता की आवश्यकता वाली समितियों से सम्बद्ध रहे। एक बैरिस्टर तथा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में उन्होंने सदन तथा इसकी समितियों दोनों ही जगहों पर विधान के क्षेत्र में अपनी क़ानूनी सिद्धहस्तता का प्रयोग किया।

लोकसभा अध्यक्ष का पद

4 जून, 2004 को 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी का सर्वसम्मति से निर्वाचन कर सदन एक इतिहास रच रहा था। प्रथम बार सामयिक अध्यक्ष का लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन किया जा रहा था। 4 जून, 2004 को कांग्रेस पार्टी की नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी के निर्वाचन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। यह महत्त्वपूर्ण है कि लोक सभा में 17 अन्य दलों के नेताओं ने भी इनके नाम का प्रस्ताव किया, जिसका समर्थन अन्य दलों के नेताओं द्वारा किया गया। जब विचार और मतदान हेतु इस प्रस्ताव को सदन के समक्ष रखा गया, तब सभा ने सर्वसम्मति से इसे स्वीकार किया तथा सोमनाथ चटर्जी निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित किए गए। अध्यक्ष के इस प्रतिष्ठित पद पर निर्वाचित होने पर श्री चटर्जी को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता तथा लोक सभा में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने देश में संसदीय लोकतंत्र की उच्च परंपराओं, जिनके विकास में उन्होंने काफ़ी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, को बनाए रखते हुए सभा की कार्यवाही को निष्पक्ष और गौरवपूर्ण तरीके से चलाने की उनकी योग्यता में विश्वास व्यक्त किया। अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी लोकसभा तथा समस्त संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता के प्रतीक हैं।

कुशल संचालक

सोमनाथ चटर्जी ने सभा की कार्यवाही के संचालन को सुधारने में पहल की और उन्होंने इस संबंध में कई महत्त्वपूर्ण विनिर्णय और निर्णय दिए। 22 जुलाई, 2008 को विश्‍वास मत के दौरान किए गए सभा के संचालन के लिए उनको देश के विभिन्‍न वर्गों के नागरिकों तथा विदेशों से काफ़ी सराहना मिली। सभा में महत्त्वपूर्ण मुद्दो पर सुव्यवस्थित वाद-विवाद सुनिश्चित करने के लिए श्री चटर्जी सभी सत्रों से पहले और सत्र के दौरान राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ नियमित रूप से बैठकें करते रहे हैं। दुराचरण के मामलों सहित कई महत्त्वपूर्ण मामले विशेषाधिकार समिति को सौंपे गए, जिनके परिणामस्वरूप संसद सदस्य निष्कासित और निलंबित हुए हैं। अध्यक्ष की पहल पर ही संसद सदस्यों को दुराचरण और समय-समय पर होने वाले अन्य संबंधित मुद्दों के आरोपों की जांच के लिए एक विशेष समिति गठित की गयी। उन्होंने राज्य सभा के सभापति के साथ परामर्श करके समिति के दौरों संबंधी नियमों को संशोधित किया। अंतरराष्ट्रीय दौरों, सम्मेलनों और संसदीय शिष्टमंडल के विदेशी दौरों संबंधी प्रतिवेदनों को अब सभा पटल पर रखा जाता है।

कूटनीतिज्ञ

चीन यात्रा के दौरान भारतीय संसद ने चीन की संसद के साथ प्रथम समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसमें संसदीय लेनदेन एवं सहयोग को बढ़ाने के लिए समझौता किया गया है। विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों यथा राष्ट्रमंडल संसदीय एसोसिएशन (सीपीए), अंतर्संसदीय संघ (आईपीयू) तथा अन्य सेमिनारों एवं कार्यशालाओं में प्रस्तुतिकरणों की गुणवत्ता में सुधार के लिए माननीय अध्यक्ष महोदय द्वारा विशेष प्रयास किए गए हैं। मुख्यतः लोक सभा के माननीय अध्यक्ष द्वारा किए गए विशेष कूटनीतिक प्रयासों के कारण पश्चिम बंगाल विधान सभा के अध्यक्ष 'हाशिम अब्दुल हलीम' को 2 सितम्बर, 2005 को सीपीए सम्मेलन, नादी (फिजी) में 3 वर्ष के कार्यकाल के लिए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की कार्यकारी समिति का अध्यक्ष भारी बहुमत से चुना गया। किसी भारतीय प्रतिनिधि को यह सम्मान 20 वर्षों के बाद प्राप्त हुआ। इसके साथ ही लोक सभा के माननीय अध्यक्ष को नादी (फिजी) में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का उपाध्यक्ष चुना गया तथा भारत को 53वें सीपीए सम्मेलन की मेज़बानी करने का सम्मान प्राप्त हुआ। सितम्बर 2006 में श्री चटर्जी को अबुजा, नाइजीरिया में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का अध्यक्ष चुना गया। उनके नेतृत्व तथा समर्थ दिशानिर्देश में भारत ने सितम्बर, 2007 के दौरान नई दिल्ली में 53वें सीपीए सम्मेलन की सफलतापूर्वक मेज़बानी की, जिसमें 52 देशों को विविध क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों से अवगत कराया गया। श्री चटर्जी ने जेनेवा[4] में अंतर्संसदीय संघ की 117वीं सभा में भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया।[1]

सदन की कार्यवाही का प्रसारण

श्री चटर्जी की पहल पर "शून्यकाल" की कार्यवाही का 5 जुलाई, 2004 से सीधा प्रसारण किया गया है। श्री चटर्जी का मानना है कि, यह क़दम लोगों के जानने के अधिकार के स्वीकरण में शुरू किया गया है, इसका उद्देश्य सदस्यों को अनुशासित करना नहीं था, न ही उनका ऐसा मानना है कि, इससे संसद की आलोचना होगी। संसदीय कार्यवाही को अधिक व्यापक मीडिया कवरेज प्रदान करने के लिए 24 जुलाई 2006 से पूरे 24 घंटे के लिए लोक सभा का एक टेलीविज़न चैनल शुरू किया गया है। इसके परिणामस्वरूप सभा की दर्शक दीर्घा का विस्तार वास्तव में पूरे देश में हो गया है तथा इससे लोगों के संसद के निकट आने की आशा की जाती है। विश्व में यह अपने आप में अकेला प्रयास है।[1]

महत्त्वपूर्ण पहल

विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (डीआरएससी) के कार्यकरण के संबंध में श्री चटर्जी ने एक और महत्त्वपूर्ण पहल की है। निदेश 73क में यह प्रावधान किया गया है कि, संबंधित मंत्री छः महीने में एक बार लोक सभा की विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (डीआरएससी) के प्रतिवेदनों में निहित सिफारिशों के कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में अपने मंत्रालय के संबंध में एक वक्तव्य देगा। इससे समितियों की सिफारिशों, जो कि सामान्यतया एकमत से की जाती हैं, के कार्यान्वयन में काफ़ी सहायता मिली है। 14वीं लोक सभा के दौरान "ध्यानाकर्षण प्रस्तावों" तथा "स्थगन प्रस्तावों" की संख्या में सुस्पष्ट वृद्धि हुई है। 14वीं लोक सभा के दौरान आज की तिथि तक कुल 103 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव और 7 स्थगन प्रस्ताव लाए गए हैं। माननीय अध्यक्ष महोदय ने इस बात की वकालत की कि, स्वयं सदस्यों को अपने वेतन और भत्तों के संबंध में सुझाव नहीं देना चाहिए और यह कार्य एक स्वतंत्र आयोग द्वारा किया जाना चाहिए। सभी दलों के नेताओं ने इस सुझाव का समर्थन किया। तदनुसार समय-समय पर माननीय सदस्यों के वेतन और भत्तों के निर्धारण के लिए संस्थागत तंत्र बनाने के लिए प्रधानमंत्री के पास एक प्रस्ताव भेजा गया। इस प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है।

प्रशासनिक सुधार

माननीय अध्यक्ष महोदय श्री चटर्जी की पहल पर जनशक्ति की आवश्यकता का पुनःनिर्धारण करने, उनकी प्रभावी तैनाती, बेहतर कैरियर संभावनाओं की रूप-रेखा तैयार करने और कार्यात्मक दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढाने की दृष्टि से लोक सभा सचिवालय में विभिन्न सेवाओं की व्यापक संवर्ग समीक्षा प्रारंभ की गयी है। सचिवालय के प्रशासनिक तंत्र को सशक्त बनाने और वास्तविक विकेंद्रीकरण को प्रोत्साहन देने की दृष्टि से माननीय अध्यक्ष महोदय ने प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियाँ महासचिव को प्रत्यायोजित कर दी है। कर्मचारियों की सेवा संबंधी समस्याओं पर खुलकर विचार विमर्श करने और उनके समाधान के लिए 2005 में एक शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना की गयी है। तदर्थवाद से बचने के लिए कर्मचारियों के स्थनांतरण की नीति निरूपित की गयी है।

मीडिया सम्पर्क

माननीय श्री चटर्जी सत्र प्रारंभ होने से पूर्व और इसके पश्चात मीडिया के साथ नियमित रूप से बैठकें करते रहे हैं। ये बैठकें सभा की कार्यवाही से संबंधित विविध मुद्दों की व्याख्या करने और उन्हें स्पष्ट करने में विशेष रूप से उपयोगी रही हैं। संसद की प्रेस दीर्घा के लिए प्राधिकृत मीडिया कर्मियों के लिए संसदीय अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो (बीपीएसटी) द्वारा प्रबोधन कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया है और इन कार्यक्रमों की अत्यधिक सराहना की गयी है। प्रेस सलाहकार समिति को विभिन्न राज्यों की समकक्ष समितियों को शामिल करते हुए राष्ट्रीय संगोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन करने हेतु प्रोत्साहित किया जा रहा है।

संसदीय संग्रहालय की स्थापना

श्री चटर्जी द्वारा एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहल भारत की लोकतांत्रिक विरासत पर अत्याधुनिक संसदीय संग्रहालय की स्थापना है। भारत में राष्ट्रपति द्वारा 14 अगस्त, 2006 को इस संग्रहालय का उद्घाटन किया गया। इस संग्रहालय में भारतीय लोकतंत्र के उद्‌भव के विभिन्न चरणों को सुविधापूर्वक प्रस्तुत किया गया है। यह संग्रहालय जनता के दर्शनार्थ खुला है और विद्यार्थियों के लिए तो यह विशेष आकर्षण है।[1]

जनकल्याण कार्य

मानीय अध्यक्ष महोदय महत्त्वपूर्ण नीति गत और कार्यक्रम संबंधी मुद्दों पर विशेषज्ञों की राय लेने के लिए नियमित रूप से विशेषज्ञों से परामर्श करते थे। कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मध्य शक्तियों के प्रथक्करण जैसे महत्त्वपूर्ण संसदीय मुद्दों पर विस्तृत चर्चा आरंभ की गयी है। अब तक संसदीय ग्रंथागार के पुस्तकों और पत्रिकाओं के समृद्ध संग्रह का लाभ संसद सदस्य ही उठा पाते थे, परंतु माननीय अध्यक्ष की पहल पर ग्रंथागार के द्वार प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के अनुसंधान अध्येताओं तथा पत्र सूचना कार्यालय द्वारा प्राधिकृत पत्रकारों और सरकारी अधिकारियों के लिए भी खोल दिए गए हैं। श्री चटर्जी ने बच्चों में अच्छी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालने और इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से और उनके साथ संसदीय ग्रंथागार संग्रहालय और अभिलेखों के संसाधनों को बाँटने के लिए सुसज्जित रंग-बिरंगे और अत्याधुनिक बाल कक्ष की स्थापना करने की पहल की है।

बहुआयामी एवं परिश्रमी व्यक्तित्व

श्री चटर्जी का व्यक्तित्व बहुआयामी है, उनकी शिक्षा, खेलकूद और संसदीय अध्ययन में रूचि है। वह हर अर्थ में आम जनता से जुड़े हुए व्यक्ति हैं। वे सुदृढ़ वैचारिक आधार वाले एक आधुनिक व्यक्ति हैं, परंतु कहीं न कहीं वे उदारवाद से भी मज़बूती से जुड़े हुए हैं। उनमें राजनीतिक विभाजन से ऊपर उठने की अदभुत क्षमता के साथ साथ भारत के लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति अडिग प्रतिबद्धता भी है। वे उद्योग और कृषि, दोनों ही क्षेत्रों को समान महत्त्व देने में विश्वास करते हैं और दोनों ही की उन्नति के लिए भरसक प्रयास करते रहे हैं। वे एक दशक से भी ज़्यादा समय तक पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम के अध्यक्ष रहे और पश्चिम बंगाल राज्य में निवेश को बढावा देने के लिए उन्होंने कई राष्ट्रों की यात्रा की। श्री चटर्जी अनेकानेक सामाजिक सांस्कृतिक, शैक्षणिक और व्यवसायिक संस्थाओं तथा व्यापार संघों से सक्रिय रूप से जुडे हुए हैं। इन संगठनों के माध्यम से वे वंचित और दलित लोगों के उत्थान और साक्षरता अभियान जैसे साकारात्मक कार्यकलापों से जुडे हुए हैं। वे खेलकूद के प्रति अति उत्साही हैं और खेलकूद प्रतिस्पर्धाएं देखना पसंद करते हैं। वे कई खेलकूद संगठनों से जुडे हुए हैं। वे 'मोहन बगान', 'द क्रिकेट एशोसिएशन ऑफ बंगाल', 'द बंगाल टेबल टेनिस एशोसिएशन' आदि की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं।[1]

आदर्श और प्रेरणा स्रोत

सोमनाथ चटर्जी 1971 से लोक सभा के सदस्य के रूप में संसदविदों के लिए आदर्श रहे। वे एक अत्यंत प्रतिष्ठित अधिवक्ता, व्यापार संघवादी, स्पष्टवादी और प्रभावशाली संसदविद और कद्दावर नेता थे। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के वे अध्यक्ष थे। किसी के लिए भी उनका रिकार्ड तोड़ना बहुत दुष्कर होगा। अपने पूरे सार्वजनिक जीवन के दौरान सोमनाथ चटर्जी लोगों में लोकतंत्र की संस्था के प्रति आदर की भावना जागृत करते रहे और इस प्रकार से लोकतंत्र में लोगों का विश्वास बनाये रखा। व्यवस्था में ख़ामियों के कारण आम लोगों के मोहभंग से भलीभांति परिचित होने के कारण वे उन ख़ामियों को दूर करना चाहते थे। अत: वे लोगों में व्यवस्था के प्रति बढती जा रही कटुता के बारे में संसद को निरंतर अहसास कराते रहे और यह बताते रहे कि यदि व्यवस्था में सुधारात्मक उपाय नहीं किए जाएंगे तो लोगों का विश्वास शासन की प्रणाली के रूप में संसदीय लोकतंत्र की क्षमता से उठ जाएगा। श्री चटर्जी लोक सभा के कार्यकरण में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने का भरसक प्रयास करते रहे, ताकि वे लोक सभा को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे ऊंचे मंच के रूप में पुनः स्थापित कर सकें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 1.4 1.5 श्री सोमनाथ चटर्जी (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) लोक सभा अध्यक्ष का कार्यालय। अभिगमन तिथि: 7 मार्च, 2011
  2. 2 कार्यकाल
  3. 3 कार्यकाल
  4. 5-10 अक्तूबर, 2007

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