हम्मीर देव: Difference between revisions

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Revision as of 12:26, 10 December 2016

हम्मीर देव रणथम्भौर का चौहान राजा था, जिसने 1282 से 1301 ई. तक अपनी मृत्यु पर्यन्त राज्य किया। हम्मीर ने बड़ी आनबान और शान के साथ अपना शासन आरम्भ किया। उसने मालवा का एक भाग तथा गढ़मंडल जीत लिया था। हम्मीर देव ने अपने राज्य की सीमा मालवा में उज्जैन तक तथा राजपूताना में आबू पर्वत तक बढ़ा ली थी। हम्मीर इतना शक्तिशाली था कि सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने 1291 ई. में रणथम्भौर का क़िला सर करने का प्रयत्न त्याग दिया।

शक्ति प्रसार

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद उसके पुत्र गोविंद ने रणथंभौर में अपने राज्य की स्थापना की। हम्मीर उसी का वशंज था। सन 1282 ई. में जब उसका राज्याभिषेक हुआ, गुलाम वंश उन्नति के शिखर पर था। किंतु चार वर्षों के अंदर ही सुल्तान बलबन की मृत्यु हुई; और चार वर्षों के बाद गुलाम वंश की समाप्ति हो गई। हम्मीर ने इस राजनीतिक परिस्थिति से लाभ उठाकर चारों ओर अपनी शक्ति का प्रसार किया। उसने मालवा के राजा भोज को हराया, मंडलगढ़ के शासक अर्जुन को कर देने के लिए विवश किया, और अपनी दिग्विजय के उपलक्ष्य में एक कोटियज्ञ किया।[1]

ख़िलजी सुल्तानों के आक्रमण

सन 1290 ई. में पासा पलटा। दिल्ली में गुलाम वंश का स्थान साम्राज्याभिलाषी ख़िलजी वंश ने लिया और रणथंभौर पर मुसलमानों के आक्रमण शुरू हो गए। जलालुद्दीन ख़िलजी को विशेष सफलता नहीं मिली। तीन चार साल तक अलाउद्दीन ख़िलजी ने भी अपनी शनैश्चरी दृष्टि इस पर न डाली। किंतु सन 1300 ई. के आरंभ में जब अलाउद्दीन के सेनापति उलूग ख़ाँ की सेना गुजरात की विजय के बाद दिल्ली लौट रही थी, मंगोल नवमुस्लिम सैनिकों ने मुहम्मदशाह के नेतृत्व में विद्रोह किया और रणथम्भौर में शरण ली। अलाउद्दीन की इस दुर्ग पर पहले से ही आँख थी, हम्मीर के इस क्षत्रियोचित कार्य से वह और जलभुन गया। अलाउद्दीन को पहले आक्रमण में कुछ सफलता मिली। दूसरे आक्रमण में ख़िलजी बुरी तरह परास्त हुए; तीसरे आक्रमण में ख़िलजी सेनापति नसरत ख़ाँ मारा गया और मुसलमानों को घेरा उठाना पड़ा।


चौथे आक्रमण में स्वयं अलाउद्दीन ने अपनी विशाल सेना का नेतृत्व किया। धन और राज्य के लोभ से हम्मीर के अनेक आदमी अलाउद्दीन ख़िलजी से जा मिले। किंतु वीर हम्मीर ने शरणागत मुहम्मदशाह को ख़िलजियों के हाथ में सौंपना स्वीकृत नहीं किया। राजकुमारी देवल देवी और हम्मीर की रानियों ने जौहर की अग्नि में प्रवेश किया। वीर हम्मीर ने भी दुर्ग का द्वार खोलकर शत्रु से लोहा लिया और अपनी आन, अपने हठ, पर प्राण न्यौछावर किए। इस प्रकार 1301 ई. में सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने स्वयं क़िला घेर लिया और उसे फ़तेह कर लिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 490 |

  1. हम्मीर चौहान (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 10 दिसम्बर, 2016।

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