प्रयोग:कविता सा.-1: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
कविता भाटिया (talk | contribs) No edit summary |
कविता भाटिया (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 12: | Line 12: | ||
-[[बिहार]] | -[[बिहार]] | ||
{न्यूज पेपर 'बंगाल गजट' के संस्थापक का क्या नाम है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-192,प्रश्न-57 | {न्यूज पेपर '[[बंगाल गजट]]' के संस्थापक का क्या नाम है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-192,प्रश्न-57 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-डेविड ओगील्वी | -डेविड ओगील्वी | ||
Line 18: | Line 18: | ||
-वोल्नी बी. पालमर | -वोल्नी बी. पालमर | ||
-ए.डब्ल्यू. अय्यर | -ए.डब्ल्यू. अय्यर | ||
||भारतवर्ष में प्रकाशित पहला | ||भारतवर्ष में प्रकाशित पहला अख़बार '[[बंगाल गजट]]' है जो वर्ष 1780 में [[अंग्रेज]] (आयरिश) जेम्स आगस्ट हेकीज द्वारा [[कलकत्ता]] से प्रकाशित किया गया था। अत: इसी समय से [[कोलकाता]] में पहली छपाई मशीन की शुरुआत हुई। | ||
{[[जैन चित्रकला]] कहलाती है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-44,प्रश्न-30 | {[[जैन चित्रकला]] कहलाती है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-44,प्रश्न-30 | ||
Line 57: | Line 57: | ||
-सुधीर रंजन खास्तगीर | -सुधीर रंजन खास्तगीर | ||
-मुकुल डे | -मुकुल डे | ||
||[[देवी प्रसाद राय चौधरी]] भारत के प्रसिद्ध चित्रकार, [[मूर्तिकार]] एवं ललित कला अकादमी के संस्थापक अध्यक्ष थे। इनका जन्म [[15 जून]], 1899 मीरपुर (अब पाकिस्तान में है) में हुअा था। इन्हें [[भारत सरकार]] द्वारा [[1958]] में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया है। {{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[देवी प्रसाद रायचौधरी]] | |||
{'हरिपुरा पैनल' की विषय-वस्तु बताइये? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-81,प्रश्न-35 | {'हरिपुरा पैनल' की विषय-वस्तु बताइये? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-81,प्रश्न-35 | ||
Line 81: | Line 82: | ||
||इंग्लैंड के भू-दृश्य (लैंडस्केप) चित्रकारों में जोसेफ मैलॉर्ड विलियम टर्नर (1775-1851 ई.) को अद्भुत प्रतिभाशाली एवं संयमी कलाकार माना जाता है। उनका कार्य प्रभाववादियों के लिए एक रोमांटिक प्रस्तावना के रूप में जाना जाता है। वह अपने तैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध थे। वर्ष 1839 में उनके द्वारा चित्रित चित्र 'द फाइटिंग टेंपरेरी' तैलीय माध्यम में बनी हुई है। वह ब्रिटिश वाटरकलर लैंडस्केप चित्रकारी के महानतम पुरोधा भी थे। टर्नर ने अपनी [[कला]] के द्वारा प्रकाश का प्रयोग विकसित किया। | ||इंग्लैंड के भू-दृश्य (लैंडस्केप) चित्रकारों में जोसेफ मैलॉर्ड विलियम टर्नर (1775-1851 ई.) को अद्भुत प्रतिभाशाली एवं संयमी कलाकार माना जाता है। उनका कार्य प्रभाववादियों के लिए एक रोमांटिक प्रस्तावना के रूप में जाना जाता है। वह अपने तैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध थे। वर्ष 1839 में उनके द्वारा चित्रित चित्र 'द फाइटिंग टेंपरेरी' तैलीय माध्यम में बनी हुई है। वह ब्रिटिश वाटरकलर लैंडस्केप चित्रकारी के महानतम पुरोधा भी थे। टर्नर ने अपनी [[कला]] के द्वारा प्रकाश का प्रयोग विकसित किया। | ||
{किस भारतीय कलाकार ने [[2001]] में अपना | {किस भारतीय कलाकार ने [[2001]] में अपना 100वां वर्ष मनाया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-146,प्रश्न-63 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-के.जी. सुब्रमण्यन | -के.जी. सुब्रमण्यन | ||
Line 87: | Line 88: | ||
+भावेश सान्याल | +भावेश सान्याल | ||
-अतुल बसु | -अतुल बसु | ||
||भावेश सान्याल (B.C. Sanyal) का जन्म [[22 अप्रैल]], [[1901]] की असम के धुबरी जिले में हुआ था। इस प्रकार वर्ष 2001 में उन्होंने अपना | ||भावेश सान्याल (B.C. Sanyal) का जन्म [[22 अप्रैल]], [[1901]] की [[असम]] के धुबरी जिले में हुआ था। इस प्रकार वर्ष [[2001]] में उन्होंने अपना 100वां जन्म दिवस मनाया। | ||
{प्रभाववादी चित्रों का भूल उद्देश्य था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-119,प्रश्न-25 | {प्रभाववादी चित्रों का भूल उद्देश्य था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-119,प्रश्न-25 | ||
Line 100: | Line 101: | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[मौर्य]] | -[[मौर्य]] | ||
+वाकाटक | +[[वाकाटक राजवंश|वाकाटक]] | ||
-[[शुंग]] | -[[शुंग]] | ||
-[[पल्लव]] | -[[पल्लव]] | ||
||अजंता भित्तिचित्रों की अधिकांश चित्र रचना वाकाटक एवं चालुक्य राजाओं के समय में की गई। वाकाटक एवं चालुक्य राजवंश के शासक बौद्ध धर्मानुयायी थे, इसलिए अजंता के चित्रों में बौद्ध चित्रों की प्रमुखता है। | ||[[अजंता की गुफ़ाएँ|अजंता भित्तिचित्रों]] की अधिकांश चित्र रचना [[वाकाटक राजवंश|वाकाटक]] एवं [[चालुक्य]] राजाओं के समय में की गई। वाकाटक एवं [[चालुक्य राजवंश]] के शासक बौद्ध धर्मानुयायी थे, इसलिए अजंता के चित्रों में बौद्ध चित्रों की प्रमुखता है। | ||
{[[कांगड़ा चित्रकला]] पर किस शैली का प्रभाव पड़ा? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-74,प्रश्न-15 | {[[कांगड़ा चित्रकला]] पर किस शैली का प्रभाव पड़ा? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-74,प्रश्न-15 | ||
Line 111: | Line 112: | ||
-[[जैन चित्रकला|जैन]] | -[[जैन चित्रकला|जैन]] | ||
-कश्मीरी | -कश्मीरी | ||
||[[कांगड़ा चित्रकला]] शैली तथा परंपरागत प्राचीन भारती कला शैली तथा पहाड़ी हिंदू कला का प्रभाव पड़ा। मुगल चित्रकारों तथा मूल पहाड़ी चित्रकारों ने मिलकर पहाड़ी चित्र शैली को जन्म दिया। जिसके मुखत: तीन रूप थे- [[बसौली|बसौली शैली]], गुलेर शैली तथा कांगड़ा शैली। यद्यपि पहाड़ी कला के विशेषज्ञ | ||[[कांगड़ा चित्रकला]] शैली तथा परंपरागत प्राचीन भारती कला शैली तथा पहाड़ी हिंदू कला का प्रभाव पड़ा। [[मुगल कालीन चित्रकला|मुगल चित्रकारों]] तथा मूल पहाड़ी चित्रकारों ने मिलकर पहाड़ी चित्र शैली को जन्म दिया। जिसके मुखत: तीन रूप थे- [[बसौली|बसौली शैली]], गुलेर शैली तथा कांगड़ा शैली। यद्यपि पहाड़ी कला के विशेषज्ञ डॉ. बी.एन. गोस्वामी पहाड़ी कला को मुगल प्रभाव मुक्त अर्थात पूरी तरह से भिन्न मानते हैं। गोस्वामी के अनुसार, पहाड़ी चित्रकला गुलेरवासी चित्रकार 'सेऊ' के वंशजों के आधार पर पली-बढ़ी। | ||
{प्रसिद्ध कलाकृति, 'द लास्ट सपर' के चित्रकार हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-107,प्रश्न-35 | {प्रसिद्ध कलाकृति, 'द लास्ट सपर' के चित्रकार हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-107,प्रश्न-35 | ||
Line 119: | Line 120: | ||
-राफेल सौंजियो डयू | -राफेल सौंजियो डयू | ||
-अलबर्ट ड्यूरर | -अलबर्ट ड्यूरर | ||
||'द लास्ट सपर', [[लियोनार्डो दा विंची]] द्वारा | ||'द लास्ट सपर', [[लियोनार्डो दा विंची]] द्वारा 15वीं शताब्दी में चित्रित एक प्रसिद्ध चित्र है। यह ईसा मसीह के शूली पर चढ़ने के पूर्व येरूसलम में उनके प्रेरितों के साथ साझा गया अंतिम भोजन का चित्र है। {{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:''' [[लियोनार्डो दा विंची]] | ||
{प्रभाववादी चित्रकार का मुख्य विषय होता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-120,प्रश्न-35 | {प्रभाववादी चित्रकार का मुख्य विषय होता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-120,प्रश्न-35 | ||
Line 125: | Line 126: | ||
-तान | -तान | ||
-वस्तु | -वस्तु | ||
-रंग | -[[रंग]] | ||
+वातावरण और प्रकाश | +वातावरण और प्रकाश | ||
||[[प्रभाववाद]] एवं यथार्थवाद में स्पष्ट अंतर है। यथार्थवाद में विषय का अस्तित्व उद्देश्यपूर्ण होता है जबकि प्रभाववाद में विषय का कार्य सौंदर्यानुभूति को जागृत करना मात्र है। यथार्थवाद में वस्तु के नैसर्गिक वर्ण का विचार करके रंगांकन किया जाता है जबकि प्रभाववाद में प्रकाश एवं वातावरण के प्रभाव के साथ रंगों के नैसर्गिक सौंदर्य की भी विचार था। एडवर्ड माने ने सुंदर [[रंग]] योजना व स्पष्ट तूलिका संचालन जैसे गुणों का विकास करके अपने अंतिम वस्तु निरपेक्ष सौंदर्य से परिपूर्ण चित्र बनाए, जो प्रभाववाद की आधुनिक कला की देन है। | ||[[प्रभाववाद]] एवं यथार्थवाद में स्पष्ट अंतर है। यथार्थवाद में विषय का अस्तित्व उद्देश्यपूर्ण होता है जबकि प्रभाववाद में विषय का कार्य सौंदर्यानुभूति को जागृत करना मात्र है। यथार्थवाद में वस्तु के नैसर्गिक वर्ण का विचार करके रंगांकन किया जाता है जबकि प्रभाववाद में [[प्रकाश]] एवं वातावरण के प्रभाव के साथ रंगों के नैसर्गिक सौंदर्य की भी विचार था। एडवर्ड माने ने सुंदर [[रंग]] योजना व स्पष्ट तूलिका संचालन जैसे गुणों का विकास करके अपने अंतिम वस्तु निरपेक्ष सौंदर्य से परिपूर्ण चित्र बनाए, जो प्रभाववाद की आधुनिक कला की देन है। | ||
{घनवाद से प्रेरणा लेने के उपरांत निजी विशेषता वाले कलाकार का नाम बताइए-(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-129,प्रश्न-38 | {घनवाद से प्रेरणा लेने के उपरांत निजी विशेषता वाले कलाकार का नाम बताइए-(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-129,प्रश्न-38 | ||
Line 139: | Line 140: | ||
{[[तैयब मेहता]] का प्रसिद्ध चित्र कौन-सा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-145,प्रश्न-50 | {[[तैयब मेहता]] का प्रसिद्ध चित्र कौन-सा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-145,प्रश्न-50 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -दुर्गा | ||
- | -सरस्वती | ||
+ | +काली | ||
-रेवती | -रेवती | ||
||[[तैयब मेहता]] बाम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप से संबंधित थे। उनके द्वारा चित्रित 'काली का चित्र' सर्वाधिक प्रसिद्ध है जिसकी एक करोड़ रुपये की बोली लगी। वर्ष [[2009]] में इनकी मृत्यु हुई थी। | ||[[तैयब मेहता]] बाम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप से संबंधित थे। उनके द्वारा चित्रित 'काली का चित्र' सर्वाधिक प्रसिद्ध है जिसकी एक करोड़ रुपये की बोली लगी। वर्ष [[2009]] में इनकी मृत्यु हुई थी। | ||
Line 153: | Line 154: | ||
||[[रंग]] को तकनीकी भाषा में ह्यू कहते हैं। ह्यू तकनीकी से [[नीला रंग|नीले]], [[पीला रंग|पीले]] और [[लाल रंग]] की विशेषता को जानते हैं। चित्र के एक ही रंग की विशेषता को जानते हैं। चित्र के एक ही [[रंग]] की शुद्धता (हल्का अथवा गहरा) को ज्ञात करने को क्रोमा कहा जाता है जबकि विबग्योर [[सूर्य]] [[प्रकाश]] के वर्ण विक्षेपण के रंगों का नीचे से ऊपर क्रमश: [[बैंगनी रंग|बैंगनी]], जामुनी, नीला, [[हरा रंग|हरा]], [[पीला रंग|पीला]], [[नारंगी रंग|नारंगी]], तथा [[लाल रंग|लाल]]। | ||[[रंग]] को तकनीकी भाषा में ह्यू कहते हैं। ह्यू तकनीकी से [[नीला रंग|नीले]], [[पीला रंग|पीले]] और [[लाल रंग]] की विशेषता को जानते हैं। चित्र के एक ही रंग की विशेषता को जानते हैं। चित्र के एक ही [[रंग]] की शुद्धता (हल्का अथवा गहरा) को ज्ञात करने को क्रोमा कहा जाता है जबकि विबग्योर [[सूर्य]] [[प्रकाश]] के वर्ण विक्षेपण के रंगों का नीचे से ऊपर क्रमश: [[बैंगनी रंग|बैंगनी]], जामुनी, नीला, [[हरा रंग|हरा]], [[पीला रंग|पीला]], [[नारंगी रंग|नारंगी]], तथा [[लाल रंग|लाल]]। | ||
{समान अथवा सामंजस्यपूर्ण अवयवों की पुनरावृत्ति से उत्पन्न | {समान अथवा सामंजस्यपूर्ण अवयवों की पुनरावृत्ति से उत्पन्न निरंतरता को कहते हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-164,प्रश्न-55 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-एकता | -एकता |
Revision as of 10:48, 14 December 2017
|